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जानिए सिख क्यों मनाते है शहीदी सप्ताह ? इतिहास के इन पन्नों में क्या-क्या हुआ…

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गोबिन्द सिंह जी के संपूर्ण परिवार हो गए थे शहीद 

‘निक्कियां जिंदा, वड्डा साका’ गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादों की शहादत को जब भी याद किया जाता है तो सिख संगत (Sikh sangat) के मुख से यह शब्द ही निकलते है। इंसानियत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले चारों साहिबजादों की याद में हर साल शहीदी सप्ताह का आयोजन किया जाता है। श्रद्धावान सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक, शहीदी सप्ताह मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों (Gurudwaras) से लेकर घरों तक में कीर्तन और पाठ बड़े स्तर पर किया जाता है। ये वही दिन है जब गुरु गोबिन्द सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji)महाराज ने अपने दो बड़े बेटों को एक-एक कर मानवता की रक्षा के लिए मैदाने जंग में उतारा दिया था। जबकि, 26 दिसंबर को गुरु गोबिन्द सिंह जी के संपूर्ण परिवार का नाम शहादत के कारण सुनहरे इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया था।

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40 सिख लाखों मुगलों पर पड़े भारी 

आज के इस वीडियो में हम शहीदी सप्ताह के बारे में जानेंगे और इसके पीछे के कारण को भी हम आपके साथ शेयर करेंगे। सबसे पहले ये जान लेते है की आखिर इस पुरे हफ्ते को शहीदी सप्ताह के रूप में क्यों जाना जाता है।  नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर (20 December to 27 December) तक का ही वो दिन था जिसमे एक-एक कर के गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पूरे परिवार को खो दिया था। ये वही हफ्ता था जिसे चमकौर साहिब की लड़ाई के रूप में भी जाना जाता है। ये वही ऐतिहासिक युद्ध था जिसमे केवल 40 सिख लाखों मुगलों पर भारी पड़ रहे थे, लेकिन युद्ध के अंत में गोबिंद सिंह जी को छोड़ सारे सीख शहीद हो गए थे। 

  • मुगलों का अचानक से आनंदपुर साहिब किले पर हमला

कहानी शुरू होती है 20 दिसम्बर के उस दिन से जब मुगलों ने अचानक से आनंदपुर साहिब (Anandpur Sahib) किले पर हमला कर दिया। तब गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों (Mughal)को मुँह तोड़ जवाब देना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। जब गुरु गोबिंद सिंह जी सभी सिखों के साथ सरसा नदी (Sarsa river)को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव काफी तेज हो गया, जिस कारण उनका पूरा परिवार बिछड़ गया।

मुगलों ने माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादों को बनाया बंदी

गुरु गोबिंद सिंह जी तथा उनके दोनों बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह (Sahibjada Ajit Singh) व बाबा जुझार सिंह (Baba Jujhar Singh) अलग होने के बाद चमकौर पहुंच गए। जबकि गोबिंद सिंह जी की माता गुजरी (Mother Gujari), और दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह (Baba Joravar Singh) व बाबा फतेह सिंह (Baba Fateh Singh), गुरु साहिब के सेवक गंगू गुरु साहिब के साथ अलग दिशा में चले गए।  इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन इसके साथ ही उसने सरहंद के नवाज वजीर खान को इसकी जानकारी भी दे दी और वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को बंदी बना लिया।

  • चमकौर का युद्ध हुआ शुरू 

इसके बाद ही सिखों और मुस्लिमों में चमकौर का युद्ध (Chamkaur War) शुरू हुआ, जिसमे केवल 40 सिख (40 Sikhs) लाखों मुगलों पर भारी पड़ रहे थे। मुगलों की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण अंत में गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति मांगी और शहीद हो गए। ये देखकर गुरु गोबिंद सिंह जी ने खुद युद्ध में उतरने का फैसला किया लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें युद्ध में उतरने से रोक दिया। मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा और वहां बचे सारे सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए।

  • बीबी हरशरण कौर का बलिदान 

गुरु गोबिंद सिंह युद्ध भूमी से निकलकर एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरण कौर (Bibi Harsharan Kaur) मिलीं। हरशरण कौर, गुरु साहिब को अपना आदर्श मानती थीं या फिर कह ले ये उनकी अनुयाई थी। हरशरण कौर को जब युद्ध की पूरी कहानी का पता चला तो वो चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ मुगल चाहते थे कि शहीद सिखों के शव को चील-गिद्द खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरण कौर को शहीदों का अंतिम संस्कार करते देखा, तो मुगलों ने उन्हें बंदी बना, आग के हवाले कर दिया और इसके साथ ही हरशरण कौर भी शहीदों में शामिल हो गईं।

दोनों छोटे पुत्रों को जिन्दा ही दीवार में चुनाव दिया 

वहीं दूसरी तरफ वजीर खान गुरु गोबिंद सिंह जी को अपने काबू में ना पाकर बौखला गया और उनकी माता और छोटे साहिबजादों को ठन्डे बुर्ज के खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। जिसके बाद उसने उन सभी मासूमों पर अपना धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाना शुरू किया। गुस्से और हैवानियत में वजीर खान शायद ये भूल चूका था की वो गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्र और माता हैं। इतने दबाव के बाद भी इन लोगों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया। ये सब देख वजीर खान अंदर-ही-अंदर तिलमिला जाता है और बौखला कर गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे पुत्रों को जिन्दा ही दीवार में चुनाव देता है। यह खबर सुन माता गुजरी भी अपने प्राण त्याग देती हैं। आपको मुगलों के इस निर्दयिता से ये तो समझ आ गया हो गया की आखिर सिख गुरुओं ने क्यों धर्म की रक्षा हेतु खालसा पंथ या फिर कह ले सिख समुदाय का निर्माण किया था।

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