UP Border Scheme: क्या है विवादित बॉर्डर स्कीम, जिसको हटाने की मांग करते हैं सिपाही? क्यों बनी हुई है ये मुसीबत की वजह?

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उत्तर प्रदेश की विवादित बॉर्डर स्कीम एक बार फिर से चर्चाओं में हैं। कुछ पुलिसकर्मी इसके विरोध में फिर से उतर आए हैं। वो इसे हटाने की अपनी मांग के लिए अब सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। ट्विटर पर यूपी पुलिस के सिपाहियों ने अपनी कुछ मांगें सरकार के आगे रखी हैं, जिसमें बॉर्डर स्कीम हटाने के साथ 2800 ग्रेड पे, ड्यूटी के फिक्स घंटे और वीकली ऑफ की मांग की गई है। 

पुलिस के सिपाहियों का कहना है कि वो अपनी मांगों को लेकर विरोध-प्रदर्शन नहीं कर सकते, लेकिन सरकार से ये अपील तो कर सकते हैं कि वो उनकी सुने और उनकी मांगों को पूरा करें। उनका कहना है कि उनके भी तो परिवार होते हैं, जिनकी उन्हें देखभाल करनी होती है, जिनके साथ उन्हें वक्त बिताना होता ह है। जिसकी वजह से लागू विवादित बॉर्डर स्कीम की मांग जोर पकड़ रही है। 

बॉर्डर स्कीम है क्या? 

इसके तहत किसी भी नॉन गजेटेड कर्मचारियों को अपने गृह जनपद को तैनात नहीं किया जा सकता। उन्हें सिर्फ अपने गृह जनपद ही नहीं बल्कि उससे सटे किसी जिले में भी तैनात नहीं किया जा सकता। उनकी तैनाती एक जिला छोड़कर ही हो सकती है। 

उदाहरण के तौर पर कोई नॉन गजेटेड पुलिसकर्मी अगर मेरठ के रहने वाले हैं, तो उनको मेरठ ही नहीं, बल्कि उससे सटे हुए जिले में भी तैनात नहीं किया जा सकता। उन्हें एक जिला छोड़कर ही तैनात किया जा सकता है। 

कब लागू हुई ये बॉर्डर स्कीम?

विवादित बॉर्डर स्कीम साल 2010 में लागू हुई थीं, जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार सत्ता में थीं। उन्होंने ही इसे लागू किया था। इसके बाद जब अखिलेश यादव की सरकार आई, तो साल 2012 में इसे हटाया भी गया। जिससे पुलिस महकमे में खुशी की लहर दौड़ पड़ी, लेकिन ये खुशी ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई। 2014 में अखिलेश यादव ने ही एक बार फिर इसे को लागू कर दिया था। जिसके बाद से ही ये अब तक लागू है।

पुलिस के सिपाही इसे हटाने की मांग क्यों कर रहे? 

पुलिसकर्मियों की ड्यूटी देश की सेवा, देश की जनता की सुरक्षा करना, कानून व्यवस्था बनाए रखना होती है। कोई भी मौसम हो, कैसे भी हालात तो पुलिस को अपनी ड्यूटी करनी ही होती है। बात छुट्टी की हो, तो कोई त्योहार या फिर कुछ ओर पुलिसकर्मियों को छुट्टियां भी बेहद कम ही मिलती है।  

परिवार तो इन सिपाहियों के भी होते हैं, जिनके साथ वो भी आम लोगों की तरह ही वक्त बिताना चाहते हैं, उनकी देखभाल करना चाहते हैं। लेकिन इस बॉर्डर स्कीम की वजह से ऐसा नहीं हो पाता। इसके तहत पुलिस के सिपाहियों को कई सौ किलोमीटर दूर तैनात कर दिया जाता है, जिससे वो अपने परिवार से दूर हो जाते हैं। मान लीजिए अगर उनके परिवार में कोई इमरजेंसी की सिचुएशन आ गई, तो वो ऐसे में अपने परिवार के पास जल्दी पहुंच भी नहीं सकते। यही वजह है कि पुलिसकर्मी भले ही दबी आवाज में, लेकिन इसको हटाने की मांग लगातार करते रहते हैं। 

सिपाहियों का ये मानना है कि अगर उनकी तैनाती गृह जनपद या फिर आसपास के जिले में की जाती है, तो इससे उनका तनाव कम होगा। साथ ही इससे जिले की परिस्थिति से परिचित होने पर वो अपराध और अपराधियों पर भी अकुंश लगा सकेंगे।

पुलिस महकमे में इसे ‘हत्यारी बॉर्डर स्कीम’ भी कहकर बुलाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिपाहियों में जो आत्महत्या के मामले बढ़े, उसकी एक वजह ये बॉर्डर स्कीम भी है। 

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