जानिए कैसे कोलंबिया और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय ने बदली बाबा साहेब अम्बेडकर की पूरी जिंदगी

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युवा अम्बेडकर की जाति, नस्ल, वर्ग और लिंग के प्रति उभरती समझ, उन्हें उसके साथ हुए बचपन में जातिगत भेदभाव को समझने और व्यक्त करने में मदद कर रही थी. उनकी अकादमिक समझ उन्हें उनके अनुभवों को व्यक्त करने में काफी मदद कर रहे थे, लेकिन इन बदलाव का अधिकतर हिस्सा कोलंबिया विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में रहते हुए आया था, इनकी वजह से सामाजिक मुद्दों को लेकर अम्बेडकर की सक्रियता अधिक बढ़ गयी थी. इस लेख में आज हम आपको अम्बेडकर के कोलंबिया विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय पढ़ने, रहने के कारण हुए प्रभाव के बारे में बात करेंगे.

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अम्बेडकर ने कई बार कोलंबिया विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के समय के बारे में बताया है कि उनका अधिकांश समय परिसद या सेमिनारों में भाग लेने में चला जाता है. या कोलंबिया विश्वविद्यालय में शानदार लॉ लाइब्रेरी में अपना काम करने में बीत जाता था. लेकिन पैसे बचाने के लिए वह परिसद से बहार खाना खाते थे, वह पूरे दिन में एक समय का ही खाना खाते थे, उन्होंने बताया कि वह प्रति दिन 1.10 डॉलर खाने पर खर्च करते थे क्यों कि उन्हें अपने घर भी पैसे भेजने पड़ते थे. उस समय बाबा साहेब का पैसे के मामले में हाथ तंग था. लेकिन फिर भी अम्बेडर की पढाई की तीव्रता का कोई मुकाबला नहीं था, न्यूयॉर्क शहर में रहकर उन्होंने आपने व्यक्तित्व में बहुत कुछ विकसित किया. उनका कोलंबिया विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की वजह से अम्बेडकर आपने समाज की समस्याओं के लिए ओर भी सक्रिय हो गए थे.

न्यूयॉर्क शहर से ही उन्हें किताबे इकठा करने का भुत सवार हुआ था. वह वहां रहते हुए सकेंड हैण्ड किताबों की दुकानों, लाइब्रेरी, फुटपाथ हर जगह किताबों का उनका लगवा दिखता था, जिसके बाद उन्होंने भारत आकर आपके घर में भी अपनी खुद की लाइब्रेरी बनाई थी, उनके पास 35000 किताबे थी.  न्यूयॉर्क मेव किताबों की तलाश युवा अम्बेडकर को शहर के उपरी भाग में फिफ्थ एवेन्यू के 42 वीं स्ट्रीट तक ले गयी थी, बाबा साहेब वहां बनी सार्वजनिक लाइब्रेरी से बहुत खुश हुए थे. क्यों कि यह लाइब्रेरी महिलाओं और अश्वेत लोगो के लिए भी खोल; दी गई थी, जिससे प्रभावित होकर मुंबई में अम्बेडकर ने फ़िरोजशाह मेहता की मृत्यु पर नगर निगम से उनकी समाधि की जगह उनके नाम पर एक सार्वजनिक लाइब्रेरी बनने को कहा था

न्यूयॉर्क में रहते उन्होंने आपने सामाजिक – राजनीतिक ही नहीं बल्कि लिंग को लेकर भी खुद को सजत रखा था. वहां रहते समय उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार वालों को कई पत्र लिखे, जिनमे अलग अलग विषय का जिक्र मिलता है. उन्होंने एक पत्र अपने पिता के दोस्त, जो उनके पिता के साथ ब्रिटिश सेना में थे और महार जाति के ही थे, को लिखा था. जिस पत्र में उन्होंने उनकी लडकी की शिक्षा जरी रखने की बत कही थी, साथ ही कहा था कि लडकी लडको को साथ पढ़ने से समाज का विकार बहुत जल्दी होगा. उस पत्र को देख कर उस लडकी ने सोचा होगा की हमारी जाति में भी कोई ऐसा इंसान है जो शिक्षा के लिए प्रोहत्साहन करता है.

ऐसे ही कोलंबिया विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के अम्बेडकर के विचारो और सक्रियता पर जाने कितने प्रभाव पड़े है. जिनकी वजह से बाबा साहेब का जीवन इतना महान रहा है कि आज भी उन्हें और उन्हें विचारों से लोग प्रभवित होते है.

और पढ़ें :  डॉ भीमराव अंबेडकर क्यों मानते थे कि भारत में ‘लोकतंत्र छलावा’ है ? 

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