अमरिंदर सिंह का 'राजनीतिक स्वार्थ' उनकी राजनीति लील गया

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अमरिंदर सिंह, पंजाब की सियासत का एक ऐसा नाम जिन्होंने राज्य के साथ-साथ देश में भी काफी नाम कमाया. उनकी राजनीतिक सूझबूझ और क्षमता के आगे कई बार विपक्षी पानी मांगते दिखे. कांग्रेस की टिकट पर पहली बार 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ने और जीतने के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उन्होंने संसद और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद वो (Amrinder Singh) शिरोमणि अकाली दल में शामिल हुए, राज्य में मंत्री बने लेकिन फिर जल्द ही कांग्रेस की ओर खींचे चले आए. कांग्रेस ने उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया, वर्ष 2002 से लेकर 2007 तक कांग्रेस की ओर से वो पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे. हालांकि, उसके बाद पंजाब की सत्ता में अगले 10 वर्षों तक शिरोमणि अकाली दल का कब्जा रहा. 

पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 (Punjab Election 2017) में अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में फिर से राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई. लेकिन इस बार उनके साथ कई मुश्किलें थी. विरोधी उन पर हावी हो चुके थे. पार्टी में ही गुटबाजी शुरु हो गई थी. हालांकि, उन्होंने राज्य इकाई को एकजुट करने का पूरा प्रयास किया लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ गया. 

तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की ‘नौटंकी’ ने उन्हें मजबूर कर दिया और 18 सितंबर 2021 को उन्होंने लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. उसके बाद ऐसा लगने लगा था कि अमरिंदर सिंह राज्य की राजनीति में कांग्रेस के लिए सुनामी बनकर आएंगे लेकिन ऐसा हो नहीं सका. अमरिंदर सिंह की राजनीति का ग्राफ कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही गिरता चला गया. 

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कांग्रेस से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चक्कर में अपनी खुद की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab Lok Congress) की स्थापना की. जल्द ही भाजपा ने उन्हें राज्य में यानी पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में समर्थन देने का ऐलान कर दिया. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने कैप्टन के बाद राज्य में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया, जो नवजोत सिंह सिद्धू के चेले और प्रियंका गांधी के करीबी थे. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चला लेकिन जल्द ही नवजोत सिंह सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं को पंख लग गए. उन्होंने चन्नी को भी निशाने पर लेना शुरु कर दिया.

ध्यान देने योग्य है कि ये सारी घटनाएं पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले हो रही थीं. भाजपा और अमरिंदर सिंह को लगने लगा था कि वो इस मौके का पूरा लाभ उठा सकते हैं. इनके पास पकड़ भी थी, राज्य की राजनीति का अनुभव भी था लेकिन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन फ्लॉप साबित हुआ. कांग्रेस तो चुनाव नहीं जीत पाई लेकिन साथ ही भाजपा और अमरिंदर सिंह भी डूब गए.

स्थिति तो ऐसी बन गई कि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 (Punjab Election 2022) में अमरिंदर सिंह अपने गृह नगर से भी अपनी सीट निकालने में विफल साबित हुए. 41 वर्षों की राजनीति करने, राज्य का दो बार मुख्यमंत्री बनने, अपने गृह नगर से लगातार चुनाव जीतने के बाद अपने दम पर अपने गृह क्षेत्र से ही कोई नेता विधायकी का चुनाव भी नहीं जीत पाए, तो आप उसकी लोकप्रियता या जनता में उसे लेकर कितना लगाव है, उसका अंदाजा लगा सकते हैं. अमरिंदर सिंह के साथ भी वहीं हुआ. 

मौजूदा समय में अमरिंदर सिंह (Amrinder Singh) खुद भाजपा में शामिल हो चुके हैं और साथ ही भाजपा के साथ ही अपनी पार्टी का विलय कर दिया है. उनकी पहचान और राज्य की राजनीति में उनकी पकड़ दोनों का नगाड़ा फूट गया है और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनकी राजनीति अपनी अंतिम सांसे ले रही है. हाल ही में यह खबर सामने आई थी कि उन्हें राज्यपाल बनाया जा सकता है लेकिन ऐसा भी हो नहीं सका. अभी तक उन्हें भाजपा की ओर से कोई बड़ी जिम्मेदारी भी नहीं दी गई है. 

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