13 August 2023 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

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13 August ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 13 अगस्त 2023 (13 august ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहे हैं.

प्योरिटी की रूहानी पर्सनालिटी की स्मृति स्वरूप द्वारा मायाजीत बनो

आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। हर एक स्नेही बच्चों के मूरत में रूहानी पर्सनालिटी की झलक देख रहे हैं। बाहर के रूप में तो साधारण पर्सनालिटी वाले हैं लेकिन रूहानी पर्सनालिटी में सबसे नम्बरवन हैं। दुनिया में अनेक प्रकार की पर्सनालिटीज़ गाई जाती हैं। शरीर की भी पर्सनालिटी, कोई विशेषता की भी पर्सनालिटी और कोई विशेष पोजीशन की भी पर्सनालिटी, लेकिन आप सबके चेहरे पर, चलन में कौन-सी पर्सनालिटी है? प्योरिटी की पर्सनालिटी। प्योरिटी ही पर्सनालिटी है। जितना-जितना जो प्योर हैं उतनी उनकी पर्सनालिटी न सिर्फ दिखाई देती है लेकिन अनुभव होती है। सभी अपने रूहानी पर्सनालिटी को अनुभव करते हो? आप जैसी पर्सनालिटी सतयुग से अब तक कोई की है? सारे कल्प में चक्कर लगाओ तो आप जैसी पर्सनालिटी है? नहीं है ना! तो आपको अपने रूहानी पर्सनालिटी का नशा है! अनादि काल में तो परमधाम में भी आप विशेष आत्माओं की पर्सनालिटी सबसे ऊंची है। चाहे आत्मायें सब चमकती हुई ज्योति हैं लेकिन आप रूहानी पर्सनालिटी वाली आत्माओं की चमक अन्य सब आत्माओं से न्यारी और प्यारी है। अपने अनादि काल की पर्सनालिटी को स्मृति में लाओ। आई स्मृति में? देख रहे हो? बापदादा के साथ-साथ कैसे रूहानी पर्सनालिटी में दिखाई दे रहे हैं। अपने आपको देख सकते हो? तो चले जाओ अनादि काल में। कितने टाइम में जा सकते हो? जाने में कितना टाइम लगेगा? सेकेण्ड से कम ना! कि एक दिन, एक घण्टा चाहिये? सेकेण्ड से भी कम जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। तो अनादि काल की अपनी पर्सनालिटी देख ली? अभी अनादि काल से आदि काल में आ जाओ। आ गये या अभी चल रहे हो? पहुँच गये? तो अनादि काल से आदि काल में अपनी रूहानी पर्सनालिटी देखो – कितनी श्रेष्ठ पर्सनालिटी है! तन की भी तो मन की भी तो धन की भी और सम्बन्ध की भी। सब प्रकार की पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है! तो आदि काल की पर्सनालिटी देख रहे हो? कितने सुन्दर लगते हो, कितने सजे हुए हो, कितने सुख, शान्ति, प्रेम, आनन्द स्वरूप हो तो आदि काल में भी अपनी पर्सनालिटी को देखो। स्पष्ट दिखाई देती है वा 5 हज़ार वर्ष हो गये तो थोड़ा स्पष्ट नहीं है? सभी को स्पष्ट है? होशियार हो सभी। तो आदि काल भी अपना देख लिया। अभी आओ मध्य काल में तो मध्य काल में भी आपकी पर्सनालिटी क्या रही? आपके जड़ चित्र कितने विधिपूर्वक पूजे और गाये जाते हैं। चाहे कितने भी धर्मात्मा, महात्मा, नेतायें पर्सनालिटी वाले गाये जाते हैं लेकिन आपके जड़ चित्रों की पर्सनालिटी के आगे उनकी पर्सनालिटी कुछ भी नहीं है। जैसे आप सबकी पूजा होती है वैसे कोई महात्मा या नेता की, धर्म आत्मा की विधिपूर्वक पूजा होती है? कभी देखी है? आपके जड़ चित्रों जैसे श्रृंगार किसका होता है? तो मध्य काल में भी आप आत्माओं के प्योरिटी की पर्सनालिटी की विशेषता कितनी श्रेष्ठ है! अपना चित्र देखा? आपकी पूजा होती है कि नहीं? सिर्फ बड़े-बड़ों की होती है, हमारी नहीं! डबल विदेशियों के मन्दिर हैं? देखा है, उसमें आपका चित्र है? कि सुना है तो कहते हो कि हाँ होंगे! स्मृति में है? तो मध्य काल भी आपका अति श्रेष्ठ है और अब लास्ट जन्म में जो मरजीवा ब्राह्मण जन्म है उसकी पर्सनालिटी देखो कितनी बड़ी है! गायन कितना है – कोई भी श्रेष्ठ कार्य अब तक भी आपके नामधारी ब्राह्मण ही करते हैं। चाहे ब्राह्मण अभी ब्राह्मण रहे नहीं हैं लेकिन नाम के तो ब्राह्मण है ना! आपके नाम से आपकी पर्सनालिटी के कारण वो भी श्रेष्ठ गाये जाते हैं। तो ब्राह्मण जन्म की पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है! आदि काल, अनादि काल, मध्य काल और अब अन्त काल – सारे कल्प में आपकी पर्सनालिटी सदा ही महान् रही है।

लौकिक पर्सनालिटी वालों का अगर नाम भी आता है तो कोई विशेष बुक में उन्हों का नाम आता है – फलाने-फलाने हैं। लेकिन आपका नाम किसमें आता है? साधारण बुक में नहीं आता है, शास्त्रों में आता है। जो भी आदि काल से शास्त्र बने उसमें किसके चरित्र हैं? किसका गायन है? किसकी कहानियाँ हैं? तो लौकिक पर्सनालिटी वालों का गायन विशेष बुक में होता है और आपका गायन शास्त्रों में होता है और शास्त्रों को कितना रिगार्ड देते हैं। बड़े विधिपूर्वक शास्त्र को सम्भालते हैं, उसको भी बड़े पूज्य के रूप में देखते हैं। जो सच्चे भक्त हैं वो शास्त्र को विधिपूर्वक रखते भी हैं और पढ़ते भी हैं। ऐसे रिवाजी किताबों के माफिक नहीं रखते। तो अपनी पवित्रता की पर्सनालिटी को सदा ही इमर्ज रूप में स्मृति में रखो। जानते हैं… या हैं तो हम ही… ऐसे मर्ज नहीं। स्मृति स्वरूप में रखो। जिसके बुद्धि में ये इमर्ज रूप में स्मृति रहती है तो स्मृति ही समर्थी का आधार है। और जहाँ समर्थी है वहाँ माया आ सकती है? समर्थ आत्मा के पास माया का आना असम्भव है। मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है। माया का काम है आना लेकिन आपका काम अभी समय प्रमाण भगाना नहीं है। माया आई और भगाया। नहीं, आपका काम है सदा मायाजीत रहना। तो मायाजीत हो वा माया को बार-बार भगाने वाले हो? अभी भगाना पड़ता है, थोड़ा-थोड़ा वो दर्शन देने के लिये आ जाती है! नहीं ना! डबल फारेनर्स ने माया को सदा के लिए भगा दिया? या भगाते ही रहते हैं? क्या हॉल है? माया सदा के लिए भाग गई? अभी नहीं आयेगी ना? कि थोड़ा-थोड़ा आये, कोई हर्जा नहीं? फिर भी आधा कल्प की दोस्ती है, फ्रैण्ड है ना! उसको ऐसे ही छोड़ देंगे, आवे ही नहीं! सुनाया ना कि समय समाप्त होने के पहले बहुत काल का मायाजीत बनने का अभ्यास चाहिये। अन्त में नहीं हो सकेगा। अगर अन्त में मायाजीत बनने का पुरुषार्थ भी करेंगे तो क्या हॉल होगा? बापदादा तोते की कहानी सुनाते हैं ना कि तोते को कहा नलके पर नहीं बैठना, पर नलके पर बैठकर ही बोल रहा था। ऐसे ही अन्त काल में अगर बहुत काल का अभ्यास नहीं होगा तो मन में सोचते रहेंगे कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन माया का प्रभाव भी होता रहेगा, और कोशिश भी करेंगे मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन होगा ही नहीं। इसीलिये क्या करना है? अभी से मायाजीत बनने का अभ्यास करो। और उसका सहज साधन है अपने रूहानी पर्सनालिटी को स्मृति स्वरूप में रखो। पर्सनालिटी वाले की निशानी क्या होती है? जो ऊंची पर्सनालिटी वाले होते हैं उसकी कहाँ भी, किसी में भी आंख नहीं जायेगी। ये ऐसा है, ये ऐसा है, ये ऐसा करता, ये ऐसे करती, मैं क्यों नहीं करुँ, मैं क्यों नहीं कर सकती हूँ/कर सकता हूँ… दूसरे के प्राप्ति में आंख नहीं जायेगी। क्यों? रूहानी पर्सनालिटी वाला सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है। स्वभाव में भी सम्पन्न, संस्कार में भी सम्पन्न और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी सम्पन्न, भरपूर। वो कभी अपने प्राप्तियों के भण्डार में कोई अप्राप्ति अनुभव ही नहीं करेगा। क्यों? रूहानी पर्सनालिटी के कारण वो सदा ही मन से भरपूर होने के कारण सन्तुष्ट रहता है। आंख दूसरे की प्राप्ति में तब जाती है जब अपने में अप्राप्ति अनुभव करते हो। तो कोई अप्राप्ति है क्या? गीत क्या गाते हो – अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में। ये गीत मुख से नहीं, मन से गाते हो ना? जो गाते हैं वो हाथ उठाओ। अच्छा, डबल विदेशी भी गीत गाते हो? अच्छा!

बापदादा आज चारों ओर के बच्चों की प्योरिटी की पर्सनालिटी चेक कर रहे थे। प्योरिटी की परिभाषा को भी अच्छी तरह से जानते हो। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत नहीं, ब्रह्मचर्य व्रत में तो आजकल के सरकमस्टांस अनुसार कई अज्ञानी भी रहते हैं। ज्ञान से नहीं लेकिन हालातों को देखकर। कई भक्त भी रहते हैं। वो कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन प्योरिटी को सारे दिन में चेक करो – पवित्रता की निशानी है स्वच्छता, सत्यता। अगर सारे दिन में चाहे उठने में, चाहे बैठने में, चाहे बोलने में, चाहे सेवा करने में, चाहे स्थूल सेवा की वा सूक्ष्म सेवा की लेकिन अगर विधिपूर्वक नहीं की, विधि में भी अगर ज़रा-सा अन्तर रह गया तो वो भी स्वच्छता अर्थात् पवित्रता नहीं। व्यर्थ संकल्प भी अपवित्रता है। क्यों? आप सोचेंगे कि हमने पाप तो किया ही नहीं, किसको दु:ख तो दिया ही नहीं लेकिन अगर व्यर्थ चला, समय गया, संकल्प गया, सन्तुष्टता गई तो आपके पवित्रता की फाइनल स्टेज के डिग्री में फर्क पड़ जायेगा। 16 कला नहीं बन सकेंगे। 15 कला, 14 कला, साढ़े पन्द्रह कला… नम्बरवार हो जायेगा। तो अपवित्रता सिर्फ किसको दु:ख देना या पाप कर्म करना नहीं है लेकिन स्वयं में सत्यता, स्वच्छता विधिपूर्वक अगर अनुभव करते हो तो पवित्र हो। निकल गया, बोलना नहीं था लेकिन बोल लिया, तो इसको क्या कहेंगे? मालिक हैं? इसीलिये अमृतवेले से लेकर रात तक अपने संकल्प, बोल, कर्म, सेवा – सबको चेक करो। मोटे रूप से नहीं चेक करो। अगर मोटे रूप से चेक करेंगे तो देखो चन्द्रवंशी को मोटी निशानी तीर-कमान दिया है और सूर्यवंशी को कितनी छोटी-सी मुरली दे दी है। मुरली कितनी हल्की है! और तीर कमान कितना मेहनत का है। पहले तो निशाना लगाते रहो, दूसरा बोझ उठाते रहो! और मुरली देखो – नाचो, गाओ, हंसो, खेलो। तो इसीलिये मोटे-मोटे रूप से न पुरुषार्थ का रखो, न चेकिंग का रखो। अभी महीन बुद्धि बनो क्योंकि समय समाप्त अचानक होना है, बताकर नहीं होना है। बापदादा ने तो पहले ही कह दिया है कि कोई उलहना नहीं देना – बाबा, आपने बताया क्यों नहीं? बाप कभी भी टाइम कॉन्सेस नहीं बनायेगा। अभी पूरा डायमण्ड बनना है ना! ये वायदा किया है ना? डायमण्ड जुबली मनानी है या डायमण्ड बनना है? क्या करना है? बनना भी है और मनाना भी है। दोनों साथ-साथ करना है। तो बापदादा अगले वर्ष में चेक करेंगे – वायदा निभाया या सिर्फ मुख मीठा किया? तो कौन हो? सिर्फ बोलने वाले हो या निभाने वाले हो? अच्छा! देखो, टी.वी. में आप सबका फोटो आ रहा है, फिर बदल नहीं जाना – मैं था ही नहीं, मैंने नहीं कहा था! बनना तो अच्छा है ना, तो जो अच्छी बात है उसको जल्दी करना चाहिये या देरी से? जल्दी करना चाहिये ना!

सेकेण्ड में एवररेडी बन सकते हो? सेकेण्ड में अशरीरी बन सकते हो? कि युद्ध करनी पड़ेगी कि नहीं, मैं शरीर नहीं हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ… ऐसे तो नहीं ना! सोचा और हुआ। सोचना और स्थित होना। (बापदादा ने कुछ मिनटों तक ड्रिल कराई) अच्छा लगता है ना! तो सारे दिन में बीच-बीच में ये अभ्यास करो। कितने भी बिज़ी हो लेकिन बीच-बीच में एक सेकेण्ड भी अशरीरी होने का अभ्यास अवश्य करो। इसके लिये कोई नहीं कह सकता – मैं बिज़ी हूँ। एक सेकेण्ड निकालना ही है, अभ्यास करना ही है। अगर किसी से बातें भी कर रहे हो, किसके साथ कार्य कर रहे हो, तो उन्हों को भी एक सेकेण्ड ये ड्रिल कराओ, क्योंकि समय प्रमाण ये अशरीरीपन का अनुभव, यह अभ्यास जिसको ज्यादा होगा वो नम्बर आगे ले लेगा क्योंकि सुनाया कि समय समाप्त अचानक होना है। अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो फौरन ही समय की समाप्ति का वायब्रेशन आयेगा इसलिये अभी से अभ्यास बढ़ाओ। ऐसे नहीं, अगले साल में डायमण्ड जुबली है तो अब नहीं करना है, पीछे करना है। जितना बहुत काल एड करेंगे उतना राज्य-भाग्य के प्राप्ति में भी नम्बर आगे लेंगे। अगर बीच-बीच में यह अभ्यास करेंगे तो स्वत: ही शक्तिशाली स्थिति सहज अनुभव करेंगे। ये छोटी-छोटी बातों में जो पुरुषार्थ करना पड़ता है वो सब सहज समाप्त हो जायेगा।

अच्छा सभी खुशराज़ी हैं ही या पूछना पड़ेगा? मातायें खुश हो? बहुत अच्छा। देखो, कहाँ-कहाँ से मेले में पहुँच गये हो। अच्छा चांस मिला ना, नहीं तो डेट का इन्तज़ार करते रहते हैं – हमारा नम्बर कब आयेगा, हमारा नम्बर कब आयेगा? अभी तो खुला निमंत्रण था ना! सब ठीक अच्छी तरह से रह रहे हो? बेहद अनुभव हो रहा है ना? कि थोड़ी-थोड़ी तकलीफ है? बुजुर्ग माताओं को तकलीफ नहीं हुई है? लाइन में लगो तब ही खाना मिलेगा! लाइन में लगने में थकावट नहीं होती? मज़ा आता है? इतना बड़ा परिवार कब मिलेगा! तो परिवार को देखकर हर्षित होते हैं ना! भक्ति मार्ग के मेले से तो अच्छा मेला है ना? और दो दिन बढ़ा दें कि बस का खर्चा होगा? घर नहीं याद आयेगा? नौकरी नहीं याद आयेगी? ये भी कुछ नवीनता होनी चाहिये ना तो ये मेला भी एक नवीनता हुई। नवीनता का अनुभव कर लिया। अभी फिर पुरानी बातें थोड़ेही होगी, नई बातें होगी ना! नई बात पसन्द आती है या पुरानी? नई बात अच्छी लगती है ना! अच्छा।

चारों ओर के सर्व रूहानी प्योरिटी की पर्सनालिटी वाले विशेष आत्माओं को, सदा आदि से अन्त तक पर्सनालिटी की झलक दिखाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा पवित्रता, स्वच्छता, सत्यता के शक्ति से स्व को और विश्व को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक आत्मायें, सदा निमित्त भाव से सेवाधारी बन प्रत्यक्षफल अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से:- अच्छा रहा मेला? कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना? सबके शुभ संकल्प और उमंग-उत्साह के संकल्प से सफलता है ही है। यह संगठन का संकल्प ऐसे होता है जो असफलता को मिटा देता है। जैसे किला होता है ना तो किला कमजोर तब होता है जब एक भी ईट हिलती है। और सब ईटे मजबूत हैं तो किला कभी हिल नहीं सकता। विजय है। तो ये भी संगठन से उमंग-उत्साह और श्रेष्ठ संकल्प से, सहयोग से सफलता हुई पड़ी है। अच्छा लगा और समय प्रति समय और अनुभव करते जाते हैं। पहले क्वेश्चन उठता था होगा? लेकिन जो सोचो उसमें सफलता है ही। तो सफलता मूर्त का वरदान संगठन की शक्ति को मिलता है। बापदादा सदा गुडमॉर्निंग, गुडनाइट करते हैं। अच्छा डबल विदेश उड़ रहा है ना। अच्छा है। ओम् शान्ति।

वरदान:-स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन भव
मैं अकाल तख्तनशीन आत्मा हूँ अर्थात् स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ। जैसे राजा जब तख्त पर बैठता है तो सब कर्मचारी आर्डर प्रमाण चलते हैं। ऐसे तख्तनशीन बनने से यह कर्मेन्द्रियां स्वत: आर्डर पर चलती हैं। जो अकालतख्त नशीन रहते हैं उनके लिए बाप का दिलतख्त है ही क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है, फिर न देह है, न देह के संबंध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है इसलिए अकालतख्त नशीन बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: बनते हैं।

स्लोगन:-निर्णय करने, परखने और ग्रहण करने की शक्ति को धारण करना ही होलीहंस बनना है।

और पढ़ें: प्रेमानंद जी के प्रवचन : नौकरी,व्यापार करने वाले इस तरह करें अपना काम. 

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