2 October 2023 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

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2 October ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 2 अक्टूबर 2023 (2 October ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.

“मीठे बच्चे – नई दुनिया के लिए बाप तुम्हें सब नई बातें सुनाते, नई मत देते इसलिए उनकी गत-मत न्यारी गाई जाती है”प्रश्नः-रहमदिल बाप सभी बच्चों को किस बात में सावधान कर ऊंच तकदीर बना देते हैं?उत्तर:-बाबा कहते – बच्चे, ऊंच तकदीर बनानी है तो सर्विस करो। अगर खाया और सोया, सर्विस नहीं की तो ऊंची तकदीर नहीं बना सकेंगे। सर्विस के बिगर खाना हराम है, इसलिए बाबा सावधान करते। सारा मदार पढ़ाई पर है। तुम ब्राह्मणों को पढ़ना और पढ़ाना है, सच्ची गीता सुनानी है। बाप को रहम पड़ता है इसलिए हर बात की रोशनी देते रहते हैं।गीत:-जिस दिन से मिले हम तुम……

ओम् शान्ति। रूहानी बाप समझाते हैं। जब बच्चों को बेहद का बाप मिलता है तो हर एक बात नई सुनाते हैं क्योंकि यह बाप नई दुनिया स्थापन करने वाला है। मनुष्य तो ऐसी नई बातें सुना न सकें। बाप, जिसको हेविनली गॉड फादर कहा जाता है, वह बेहद का बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। नर्क की स्थापना करने वाला है रावण। 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरुष में, वह हो गई रावण सम्प्रदाय। तो यह नई बात सुनाई ना! स्वर्ग बनाने वाला है परमपिता परमात्मा, जिसको राम कहते हैं। नर्क बनाने वाला है रावण, जिसका चित्र बनाकर वर्ष-वर्ष जलाते हैं। एक बार जल गया तो फिर उनका एफीजी देखने में थोड़ेही आयेगा। वह आत्मा जाकर दूसरा शरीर लेती है। फीचर्स आदि बदल जाते हैं। यह तो रावण के वही फीचर्स वर्ष-वर्ष बनाते और जलाते हैं। वास्तव में जैसे निराकार शिवबाबा का कोई फीचर नहीं, वैसे रावण का भी कोई फीचर नहीं। यह रावण तो विकार हैं। बाप यह समझाते हैं। मनुष्य भक्ति मार्ग में क्या चाहते हैं? भगवान् आते ही हैं भक्ति का फल देने वा रक्षा करने क्योंकि भक्ति में दु:ख बहुत है। सुख है अल्पकाल क्षण भंगुर। भारतवासियों का बिल्कुल दु:खी जीवन है। कोई का बच्चा मरा, कोई का देवाला निकला, जीवन तो दु:खी रहता है ना। बाप कहते हैं मैं आता हूँ सभी का जीवन सुखी बनाने। बाप आकर के नई बात बताते हैं, कहते हैं मैं आया हूँ स्वर्ग की स्थापना करने। वहाँ तुम विकार में नहीं जायेंगे। वह है निर्विकारी राज्य, यह है विकारी राज्य। अगर तुमको स्वर्ग का राज्य चाहिए तो वह बाप ही स्थापन करते हैं। नर्क का राज्य रावण स्थापन करते हैं। तो बाप पूछते हैं तुम स्वर्ग में चलेंगे? वैकुण्ठ की महारानी-महाराजा विश्व के मालिक बनेंगे? यह कोई वेद-शास्त्र आदि की बातें नहीं हैं। बाप ऐसे नहीं कहते कि राम-राम कहो वा दर-दर धक्के खाओ, मन्दिरों, तीर्थो आदि में जाओ वा गीता, भागवत आदि बैठकर पढ़ो। नहीं, सतयुग में तो शास्त्र होते नहीं। तुम भल कितने भी वेद-शास्त्र आदि पढ़ो, यज्ञ, जप, दान-पुण्य आदि करो – यह है ही धक्के खाना, इनसे प्राप्ति कुछ भी नहीं। भक्ति मार्ग में कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। इस समय सब नर्कवासी हैं। अगर कोई को कहो तुम नर्कवासी हो तो बिगड़ेंगे। वास्तव में तुम जानते हो नर्क कलियुग को और स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है। बाप वैकुण्ठ की बादशाही ले आये हैं। कहते हैं स्वर्ग का मालिक बनना है तो पवित्र जरूर बनना पड़ेगा। मूल बात सारी पवित्रता की है। कई मनुष्य कहते हैं हम पवित्र तो कभी नहीं रह सकते। अरे, तुमको पावन बनाते हैं स्वर्ग में चलने लिए। पहले वापिस शान्तिधाम में जाकर फिर स्वर्ग में आना है। सभी धर्म वालों को कहते हैं देह को छोड़ अशरीरी बनकर जाना है इसलिए देह के अभिमान को तोड़ो। मैं क्रिश्चियन हूँ, बौद्धी हूँ, यह सब हैं देह के धर्म। आत्मा तो स्वीट होम में रहती है।

तो अब बाप कहते हैं वापिस मुक्तिधाम चलेंगे? वहाँ तुम शान्ति में रहेंगे। बताओ तुम वापिस कैसे चल सकते हो? मुझ बाप को और अपने स्वीट होम को याद करो। देह के सब धर्म छोड़ो। यह मामा है, काका है, चाचा है इन सब देह के सम्बन्धों को छोड़ो। अपने को देही समझो। मुझे याद करो। बस यह है मेहनत और मैं कुछ नहीं सुनाता हूँ। शास्त्र आदि जो पढ़े हो वह सब छोड़ो। मैं नई दुनिया के लिए तुमको नई मत देता हूँ। कहा जाता है ना – ईश्वर की गत और मत न्यारी है। गति कहा जाता है मुक्ति को। बाप नई बात सुनाते हैं ना। मनुष्य भी जब सुनते हैं तो कहते हैं यहाँ तो नई बातें हैं। शास्त्रों की कोई बात नहीं। यूँ तो है गीता की बात परन्तु मनुष्यों ने गीता को भी खण्डन कर दिया है। मैंने तो गीता पुस्तक कुछ भी नहीं उठाई है। वह तो बाद में बनती है। मैं तो तुमको ज्ञान सुनाता हूँ। ऐसे कभी कोई नहीं कहेंगे कि तुम मेरे सिकीलधे बच्चे हो। यह निराकार परमात्मा ही कहते हैं। निराकार आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा सुनती है, यह शरीर है आरगन्स। यह बात कभी कोई समझते नहीं। वह मनुष्य, मनुष्य को सुनाते हैं, यह परमात्मा बैठ आत्माओं को सुनाते हैं। हम आत्मायें सुनती हैं इन कानों द्वारा। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा बैठ समझाते हैं। मनुष्य तो यह वन्डर खाते हैं – भगवान् कैसे समझायेगा। वह तो समझते हैं श्रीकृष्ण भगवानुवाच। अरे, श्रीकृष्ण तो देहधारी है। मैं तो देहधारी नहीं, मैं विदेही हूँ और विदेही आत्माओं को सुनाता हूँ। तो यह नई बातें सुनने से मनुष्य चकित हो जाते हैं। जो कल्प पहले बच्चे सुनकर गये हैं उन्हों को तो बहुत अच्छा लगता है, पढ़ते हैं, मम्मा-बाबा कहते हैं। इसमें अन्धश्रधा की तो कोई बात हो न सके। लौकिक रीति भी बच्चे माँ-बाप को, माँ-बाप कहते हैं। अभी तुम उन लौकिक माँ-बाप की याद छोड़ पारलौकिक मात-पिता को याद करो। यह पारलौकिक माँ-बाप तुम्हें अमृत की लेन-देन सिखलाने वाले हैं। कहते हैं – हे बच्चे, अब विष की लेन-देन छोड़ो। मैं तुमको जो शिक्षा देता हूँ वह एक-दो को दो तो तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। थोड़ा सुनेंगे तो भी स्वर्ग में आ जायेंगे। परन्तु औरों को आपसमान नहीं बना सकते तो दास-दासी जाकर बनेंगे। दास-दासियों में भी नम्बरवार होते हैं। बच्चों को सम्भालने वाले दास-दासियां जरूर अच्छे मर्तबे वाले होंगे। यहाँ रहते हुए फिर अगर पढ़ते नहीं तो दास-दासी बन पड़ते हैं। प्रजा में भी नम्बरवार होते हैं। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वह इतना ऊंच पद पाते हैं। प्रजा में साहूकारों के भी दास-दासियां होंगे। हर एक को अपनी शक्ल देखनी है – हम क्या बनने लायक हैं? बाबा से अगर कोई पूछे तो बाबा झट बता देंगे। बाप तो सब-कुछ जानते हैं और सिद्ध कर बतलाते हैं कि इस कारण यह तुम बनेंगे। भल सरेन्डर किया है, उसका भी हिसाब-किताब है। सरेन्डर किया है परन्तु कुछ सर्विस नहीं करते, सिर्फ खाते-पीते रहते तो जो दिया वह खाकर ख़त्म करते हैं। दिया सो खाया, सर्विस नहीं की तो थर्ड क्लास दास-दासी जाकर बनेंगे। हाँ, सर्विस करते हैं और खाते हैं तो ठीक है। धंधा कुछ नहीं करते तो खा-खा कर ख़त्म कर देते हैं फिर और भी बोझा चढ़ जाता है। यहाँ रहते हैं जो दिया सो खाया। जो भल नहीं देते हैं परन्तु सर्विस बहुत करते हैं तो वह ऊंच पद पा लेते हैं। मम्मा ने धन कुछ नहीं दिया, परन्तु पद बहुत ऊंच पाती है क्योंकि बाबा की रूहानी सर्विस करती है। हिसाब है ना। कइयों को नशा रहता है हमने तो सब कुछ दिया है, सरेन्डर हुए हैं। परन्तु खाते भी तो हैं ना। बाबा मिसाल तो सब बताते हैं। सर्विस नहीं की खाया और ख़लास किया। कहते हैं ना – जिन सोया तिन खोया। 8 घण्टा सर्विस करने बिगर खाना हराम है। खाते रहेंगे तो जमा कुछ नहीं होगा फिर सर्विस करनी पड़ेगी। बाप को तो सब बतलाना पड़ता है ना, जो कोई ऐसे नहीं कहे कि हमको बतलाया क्यों नहीं? बाबा ने सब-कुछ दिया और फिर सर्विस भी करते रहते हैं, तो ऊंच पद भी है। सरेन्डर हुए और बैठ खाया, सर्विस नहीं की तो क्या बनेगा? श्रीमत पर चलते नहीं। बाबा ख़ास समझा रहे हैं। ऐसे नहीं कि पिछाड़ी को कहे कि हमारा पद ऐसा क्यों हुआ? तो बाप समझाते हैं सर्विस न करना, मुफ्त में खाना, उसका नतीजा कल्प-कल्पान्तर का यह हो जायेगा इसलिए बाबा सावधान करते हैं। समझना चाहिए कल्प-कल्पान्तर के लिए हमारा पद भ्रष्ट हो जायेगा। बाबा को रहम पड़ता है इसलिए हर बात की रोशनी देते हैं। सर्विस नहीं करेंगे तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्विस करते हैं, उनका पद बहुत ऊंच है।

सारा मदार पढ़ाई और पढ़ाने पर है। तुम ब्राह्मण हो, तुमको सच्ची गीता सुनानी है। वह तो कच्छ में कुरम उठाते हैं। तुम्हारे कच्छ में कुछ नहीं। तुम हो सच्चे ब्राह्मण। तुमको सच सुनाना है, सच्ची प्राप्ति करानी है, और सबने घाटा ही दिलाया है इसलिए लिखा जाता है वह सब झूठ है। बाबा सच सुनाकर सचखण्ड का मालिक बनाते हैं। यह तो समझने की बात है। विश्व का मालिक बनना कम बात है क्या! सेन्सीबुल बच्चे जो होंगे वह तो प्लैन बनाते रहेंगे – हम सोने की ईटों का ऐसे-ऐसे मकान बनायेंगे, यह करेंगे। साहूकार का बच्चा जैसे बड़ा होता जायेगा तो उनके ख्यालात चलेंगे – हम ऐसे करेंगे, यह बनायेंगे। तुम भी भविष्य में प्रिन्स बनते हो तो शौक होगा ना – हम ऐसे-ऐसे महल बनायेंगे। जो और कोई का नहीं होगा। यह ख्यालात उनके चलेंगे जो अच्छी रीति पढ़कर पढ़ाते हैं। बादशाही तो होगी ना। तो बुद्धि में यह ख्यालात चलनी चाहिए – हम कितने नम्बर से पास होंगे? बड़ा भारी स्कूल है, इसमें लाखों करोड़ों पढ़ेंगे, ढेर आयेंगे। यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते हैं। भगवान् एक है, उनको ही मात-पिता कहते हैं – वह आकर एडाप्ट करते हैं। कितनी गुह्य बातें हैं। यह नया स्कूल है, नया पढ़ाने वाला है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। झोली उनकी भरेगी जो लायक होंगे, बाप को याद करेंगे। माँ-बाप को कभी कोई भूलता नहीं है। फिर संगमयुगी बच्चे बाप को भूल कैसे सकते हैं। अच्छा!

दुनिया धमचक्र में है और तुम बच्चे चुप हो। चुप में है शान्ति, शान्ति में है सुख। तुम जानते हो मुक्ति के बाद फिर है जीवन-मुक्ति। तुम बच्चों को सिर्फ दो अक्षर याद हैं – अल्फ अल्लाह और बे बादशाही। सिर्फ एक अल्फ को याद करने से बादशाही मिल गई। बाकी क्या बचा? बाकी रही छांछ। अल्फ मिला गोया मक्खन मिला, बाकी सब है छांछ। ऐसे हैं ना? हम चुप रहते हैं। जानते हैं चुप रहकर हम श्रीमत पर चलते हैं। परन्तु वन्डर यह है कि बच्चे अल्फ को भी पूरा याद नहीं करते, भूल जाते हैं। माया तूफान लाती है। बाप भी कहते हैं मनमनाभव, मध्याजीभव। गीता में अक्षर हैं। तो तुमको गीता वालों से अर्थ पूछना चाहिए कि मनमनाभव, मध्याजीभव का अर्थ क्या है? बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुमको बादशाही मिलेगी। सब देह के धर्म छोड़ देही बन जाओ और बाप को याद करो तो बादशाही मिलेगी। ग्रंथ में भी कहते हैं – जपो अल्फ को तो बादशाही मिलेगी। सचखण्ड की राजाई मिलती है। हम दुनिया से बिल्कुल न्यारे हैं, और कोई भी ऐसे नहीं कहेंगे। बाप तुम्हें नई बातें सुनाते हैं, बाकी सब पुरानी बातें ही सुनाते हैं। बात बड़ी सहज है। अल्फ के बनो तो बादशाही मिलेगी। फिर भी पुरुषार्थ तो करना पड़े। आपसमान बनाने की जितनी सर्विस करेंगे उतना फल मिलेगा। मनुष्य न अल्फ को जानते हैं, न बे को जानते हैं। बे माना बादशाही का मक्खन। श्रीकृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं ना। जरूर स्वर्ग की स्थापना करने वाले ने ही बादशाही दी होगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) वापिस स्वीट होम (घर) जाना है इसलिए देह के धर्मों और सम्बन्धों को भूल स्वयं को देही समझना है। इसी अभ्यास में रहना है।

2) बाप की जो शिक्षायें मिली हैं, वह दूसरों को देनी है, आप समान बनाना है। 8 घण्टे सर्विस जरूर करनी है।

वरदान:-शुद्ध फीलिंग द्वारा फ्लू की बीमारी को खत्म कर वरदानों से पलने वाले सफलतामूर्त भव
सभी बच्चों को बापदादा की श्रेष्ठ मत है – बच्चे सदा शुद्ध फीलिंग में रहो। मैं सर्व श्रेष्ठ अर्थात् कोटों में कोई आत्मा हूँ, मैं देव आत्मा, महान आत्मा, विशेष पार्टधारी आत्मा हूँ – इस फीलिंग में रहो तो व्यर्थ फीलिंग का फ्लू नहीं आ सकता। जहाँ यह शुद्ध फीलिंग है वहाँ अशुद्ध फीलिंग नहीं हो सकती। इससे फ्लू की बीमारी से अर्थात् मेहनत से बच जायेंगे और सदा स्वयं को ऐसा अनुभव करेंगे कि हम वरदानों से पल रहे हैं, सेवा में सफलता पा रहे हैं।स्लोगन:-संगमयुगी मर्यादा पुरुषोत्तम बनना – यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ लक्ष्य है

Also Read- बागेश्वर महाराज के प्रवचन: लाभ किसमें है? अमृत या भागवत, बाबा जी ने बता दिया उपाय. 

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