बाबा साहब से ये 5 बड़ी बातें सीखकर आप भी बन सकते हैं महान इंसान

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किसी व्यक्ति ने अपने लिए कितनी ऊंचाईयां हासिल की हैं, उससे उसकी महानता निर्धारित नहीं होती, बल्कि महान लोग दूसरों के लिए कैसे जीते हैं, उनके लिए क्या-क्या करते हैं, क्या-क्या त्याग करते हैं, ये उन्हें महान और शिक्षाप्रद बनाता है। ऐसे ही एक व्यक्ति थे बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने अपने जीवन में जातिवाद का दंश झेलते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त की, लेकिन फिर अपना पूरा जीवन पिछड़े और वंचित तबके के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। बाबा साहेब एक अद्भुत व्यक्ति हैं, जिनके जीवन से युवा बहुत कुछ सीख सकते हैं। यहां हम 5 ऐसी बातों के बारे में चर्चा करेंगे जिन्हें यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपना ले तो वह न केवल अपने लिए कुछ करेगा बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी बहुत कुछ करेगा।

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1. शिक्षा का महत्व जानें

बाबा साहेब आंबेडकर के अनुयायी नामदेव नीमगड़े अपनी पुस्तक – इन द टाइगर्स शैडो: द ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ एन आंबेडकराइट में लिखते हैं कि बाबा साहेब आंबेडकर दिन-रात में पढ़ाई में खोये रहते थे। कोर्ट जाने के बाद बाबा साहेब शाम को पुस्तक बाजार में घूमते थे और घर लौटते समय उनके हाथ में किताबों का बंडल होता था। बाबा साहेब ज्ञान प्राप्त करने को बहुत महत्व देते थे। प्रसिद्ध लेखक जॉन गुंथर ने लिखा है कि जब वे 1938 में राजगृह में बाबा साहेब से मिले थे, तब उनके पुस्तकालय में 8000 पुस्तकें थीं और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के समय तक उनके पुस्तकालय में 50000 पुस्तकें हो गई थीं। बाबा साहेब कहते थे ज्ञान शेरनी का दूध है, जो इसे पीएगा वह दहाड़ेगा। यहां सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि जीवन में ज्ञान प्राप्त करने को सबसे अधिक महत्व दिया जाना चाहिए

2. अपने समय की कीमत जाने

दूसरी बात जो हम बाबा साहब से सीख सकते हैं, वो है अपने समय की कीमत। हर किसी को अपने समय की कीमत समझनी चाहिए और जितना हो सके उतना समय ज्ञान अर्जित करने में लगाना चाहिए, न कि बेकार की चीज़ें पढ़ने में। बाबा साहब अपने समय का बहुत ख्याल रखते थे। काम से वापस आते ही सीधे अपनी स्टडी टेबल पर जाकर पढ़ना शुरू कर देते थे। कहा जाता है कि बाबा साहब देर रात तक पढ़ते थे और फिर सुबह जब कोर्ट में काम करने जाते थे, तो वहाँ भी दोपहर में जब भी समय मिलता था, तो डाक से आने वाली नई किताबें पलटते थे।

3. दृढ़ इच्छाशक्ति

बाबा साहेब को कक्षा में अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था। बाबा साहेब घर से एक बोरा लेकर बैठते थे। और स्कूल का चपरासी भी उस बोरे को नहीं छूता था, इसलिए बाबा साहेब हर दिन उस बोरे को उठाकर वापस लाते थे। बाबा साहेब को स्कूल में उपलब्ध सामान्य जल स्रोत से पानी भी पीने की अनुमति नहीं थी। चपरासी उन्हें दूर से पानी देता था। जिस दिन चपरासी नहीं आता था, उन्हें पानी भी नहीं मिलता था और उन्हें कई बार भेदभाव का सामना करना पड़ता था। जिस बच्चे ने बचपन में इतना भेदभाव और तिरस्कार झेला, उसने आगे चलकर 9 भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और 32 डिग्रियां हासिल कीं। वे अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय थे। और वे अपनी जाति के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की। यहां हम जान सकते हैं कि बाबा साहेब की दृढ़ इच्छाशक्ति कितनी मजबूत थी। कई बार तिरस्कार सहने के बाद भी उन्होंने कभी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा और उस पर आगे बढ़ते रहे।

4. अपने सिद्धांतों को लालच से ऊपर रखें

बाबा साहब का जीवन सामान्य तरीके से शुरू हुआ और वे अपने जीवन में सर्वोच्च पदों पर पहुंचे, लेकिन उन्होंने कभी लालच को अपने पास नहीं आने दिया। उन्होंने हमेशा अपने सिद्धांतों पर जीवन जिया। जहां आज के नेता छोटी-छोटी बातों पर बिक जाते हैं, वहीं बाबा साहब ने बचपन में गरीबी और भेदभाव का दर्द झेला, लेकिन कभी भी इसे अपने व्यक्तित्व पर दाग नहीं लगने दिया। आज के युवा बाबा साहब से सच्चाई के रास्ते पर चलने का महत्व सीख सकते हैं।

5. जीवन बड़ा होना चाहिए लंबा नहीं

बाबा साहब खुद कहते थे कि जीवन बड़ा होना चाहिए, लंबा नहीं। उनके कहने का मतलब था कि हमें अपना जीवन ऐसे जीना चाहिए कि हम अपने समाज और राष्ट्र को कुछ दे सकें, न कि ऐसे जीना चाहिए कि हम अपने समाज और राष्ट्र पर बोझ बन जाएं। बाबा साहब ने अपने समाज के हित के लिए गांधी जी से आंख में आंख डालकर बहस की। उन्होंने अपने ज्ञान को कभी अहंकार में नहीं बदला।

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