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जब पानी के लिए डॉ अंबेडकर को बनना पड़ा था मुसलमान लेकिन उसके बाद जो हुआ….

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Dr Ambedkar Motivation – हम सब बाबा साहेब अम्बेडकर को संविधान निर्माता, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक के रूप में जानते है. वह पहले भारतीय थे, जिन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकनोमिक से डिग्री प्राप्त की थी. लेकिन क्या आप जानते है कि उन्होंने अपने जीवन के 4 साल इस्लामी, सिख , ईसाई और हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन करने में लगा दिए थे. वैसे इनका जन्म मध्य प्रदेश के हिन्दू परिवार की महार जाति में हुआ था. इन्होने अपने जीवन में जातिगत भेदभाव का सामना बहुत बार किया था. जिसके चलते उन्होंने हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था का होना जातिगत भेदभाव का सबसे बड़ा कारण पाया था. जिसके चलते उन्होंने सारे धर्मो के बारे में अधययन करने का फैसला किया था.

वह जानना चाहते थे कि यह सामाजिक कुरतिया सिर्फ हिन्दू धर्म में है या सारे धर्मो में है. हम आपको बता कि बाबा साहबे ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म को अपना लिया था. इनका जन्म बेसक हिन्दू परिवार में हुआ हो लेकिन मृत्यु के समय उनका धर्म बौद्ध धर्म था. क्यों कि बाबा साहेब को छोटी उम्र में ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. दोस्तों, आईये आज हम आपको बतायेंगे कि बाबा साहेब ने अपनी आत्मकथा में ऐसा क्यों लिखा “ मैंने उन्हें अपना नाम मुस्लिम बताया था फिर भी उन्होंने मुझे चुंगी से पानी नहीं पिने दिया “. आईये आपको इसके पीछे की पूरी कहानी बताते है.

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डॉ अंबेडकर को बनना पड़ा था मुसलमान

बाबा साहेब को 9 साल की उम्र में पहली बार जातिगत भेदभाव के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था. बाबा साहबे ने इस किस्से का  जिक्र अपनी आत्मकथा “वेटिंग फॉर वीजा” में किया था. बाबा साहेब ने बताया है कि ‘यह बात 1901 की है, जब बाबा साहबे का परिवार सतारा में रहता था. उनकी माँ का देहांत हो गया था, उनके पिता रिटायर होने के बाद गावं चले गए थे. एक बार गर्मियों की छुट्टियों में उसके पिता ने बाबा साहबे और उसके भाई बहनों को गावं में बुलाया था. गावं जाने के लिए वह स्टेशन पर पहुच गए, जहाँ से उन्होंने गावं के सबसे करीब स्टेशन था वहां की ट्रेन ली. पिता ने उन्हें बोला था कि मैं स्टेशन पर चपरासी को भेज दूंगा, लेकिन वह एक घंटे वहीं खड़े रहे कोई नहीं आया.

जिसके बाद स्टेशन मास्टर उनके पास आया और बोला कि सब चले गए तुम लोग यहा क्यों खड़े है ? बाबा साहेब में जवाब दिया की उन्हें कोरेगावं जाना है, वह अपने पिता या चपड़ासी का इंतजार कर रहे है. इसके बाद बाबा साहेब लिखते है कि ‘हमने कपड़े लत्ते अच्छे पहने हुए थे, कोई नहीं पकड़ सकता था कि हम अछूतों के बच्चे है स्टेशन मास्टर को लगा की हम ब्राह्मण के बच्चे है”

Dr Ambedkar Motivation – कुछ देर बाद, स्टेशन मास्टर ने पुछा की तुम कौन हो ? बाबा साहेब ने जवाब दिया हम महार जाति के है, यह सुनकर स्टेशन मास्टर चौक गया और अन्दर अपने कमरे में चला गया. बाबा साहेब और उसके बहन भाई बहुत परेशान थे, क्यों कि न उन्हें कोई लेने आ रहा था, नहीं ही स्टेशन के भर कड़ी गाड़ी उन्हें लेजाने को तैयार थी.

इसके बाद स्टेशन मास्टर ने एक तरकीब निकाली , बाबा साहेब से पुछा तुम्हे बैलगाड़ी चलानी आती है, बाबा साहेब ने हाँ में जवाब दिया. मास्टर एक बैलगाड़ी वाले के पास गया और बोला की तुम दो गुना पैसे ले लेना और गाड़ी भी मत चलाना. बीएस गाडी के साथ चलना. बैलगाड़ी वाला राजी हो गया. गाडी चलती गयी… चलते चलते रस्ते में रात हो गयी, बच्चे घर से खाना तो लाये थे लेकिन पानी नहीं था. रस्ते में उन्हें एक घर दिखा.. बाबा साहेब बोले की में पानी मांग कर लाता हूं. बैलगाड़ी वाले ने चिला कर बाबा साहेब से कहा कि ‘वह हिन्दुओ का घर है महार जाति वाले को पानी नहीं देंगे’ “तुम खुद को मुसलमान बताना, शायद अपनी मिल जाये” .

बाबा साहबे चुंगी वाले के पास गया और पानी माँगा ‘चुंगी वाले ने पुछा तुम कौन हो ? बाबा साहबे ने जवाब दिया कि ‘मुसलमान’. चुंगी वाले ने कहा कि मुसलमानों के लिए यहा पानी नहीं है.. उनके लिए पानी ऊपर पहाड़  पर है, वहा से ले आओ.

काफी रात हो गयी थी, इस समय पहाड़ी पर जाना मुमकिन नहीं था सबने बैलगाड़ी में बिस्तर लगाया और सो गए. बाबा साहेब इस घटना के बारे में लिखते है कि ‘हमारे पास भोजन है, लेकिन पानी के बिना हमने भूखा सोना पड़ रहा है क्यों कि हम अछूत है” बाबा साहेब (Dr Ambedkar Motivation) को इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया था.

और पढ़ें : ‘बहन’ के गहने बेच डॉ अंबेडकर के लिए किताब लाया करते थे पिता रामजी सकपाल 

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