हम सब जानते है कि अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश में हुआ था. उसका परिवार महार जाति से जुड़ा हुआ था, महार जाति को उस समय अछूत जाति मन जाता था. स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर अपने जमाने के सबसे पढ़े लिखे व्यक्तियों में से थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन में 32 डिग्री प्राप्त की थी, इसके साथ ही उन्होंने 9 भाषाएं भी सीखी थी. बाबा साहेब को पढने लिखने का शौक बचपन से ही है. उन्हें किताबों से बहुत लगाब था. प्रसिद्ध लेखक जॉन गुथेंर ने लिखा है कि ‘1938 में, जब राजगृह में मेरी मुलाकात बाबा साहेब से हुई थी तो उनके पास 8 हजार किताबें थी, लेकिन जब बाबा साहेब की मृत्यु हुई, तो उनके पास 35 हजार किताबें मिली थी. उन्हें बचपन से ही खेलने खुदने का कोई शौक नहीं था, उनका सारा दिन किताबों के आस पास ही गुजर जाता था.
दोस्तों, आज हम आपको बताएँगे कि बाबा साहबे के जीवन में सबसे ज्यादा असर किन किताबों ने डाला था. बाबा साहेब का किताबों के प्रति कितना प्रेम था. उन्हें अपनी किताबे कितनी प्रिय थी.
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बाबा साहेब का किताबों के प्रति प्यार
बाबा साहेब के निकटतम सहयोगी शंकरानंद शास्त्री ने अपनी किताब ‘माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर’ में लिखा है कि मैं 20 दिसम्बर 1944 को रविवार के दिन उनके घर गया, बाबा साहेब मुझे अपने साथ जामा मस्जिद वाले इलाके में ले गए थे. जहाँ उस समय पुराणी किताबों का अड्डा होता था’.
“मैंने उनसे कहने की कोशिश कि थी कि दिन के खाने का समय हो रहा है, लेकिन उसने मेरी बात अनसुनी करदी थी, जामा मस्जिद के पास लोगो को उनके आने की ख़बर हो गयी थी, वहां लोगों की भीड़ इकठी हो गयी थी, इतनी भीड़ में भी उन्होंने विभिन्न विषयों पर करीब 2 दर्ज किताब खरीद ली थी”
अंबेडकर की जिंदगी पर सबसे ज्यादा असर डालने वाली 3 किताबें
करतार सिंह ने चेन्नई से प्रकाशित होने वाली जय भीम में 13 अप्रैल 1947 में लिखा था कि ‘एक बार मैंने बाबा साहेब से पुछा था कि इतनी सारी किताबे कैसे पढ़ पाते है.. ? “उन्होंने जवाब दिया कि लगातार किताबे पढने से उन्हें यह अनुभव हो गया है कि कैसे किताबों के मूलमंत्र को अपना कर उनकी फिजूल बातों को दरकिनार कर दिया जाये”
“उन्होंने मुझे बताया था कि तीन किताबों ने उनके ऊपर सबसे ज्यादा असर किया था, पहली किताब का नाम था ‘लाइफ़ ऑफ़ टॉलस्टाय’, दूसरी किताब का नाम था विक्टर ह्यूगो की ‘ले मिज़राब्ल’ और तीसरी किताब का नाम था थॉमस हार्डी की ‘फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड”.
क़िताबों को लेकर उनका प्यार इस हद तक था, कि वो सुबह होने तक क़िताबों में ही लीन रहते थे. वह अपनी किताबे किसको भी नहीं देते थे, उनका कहना था कि अगर किसीको मेरी किताबे पढनी है तो मेरे पुस्तकालय में बैठ कर पढो.
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