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क्या सच में ब्राह्मणों और क्षत्रियों के खिलाफ थे बाबा साहेब अंबेडकर? जानिए क्या है हकीकत?

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बाबा साहब भीम राव अंबेडकर को हिंदू विरोधी कहकर बुलाया जाता हैं। उनके बौद्ध धर्म को अपनाने को लेकर आज भी समाज के कुछ लोग उनकी नीति को पसंद नहीं करते, लेकिन हमें या आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि बाबा साहब हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं थे बल्कि वो हिंदूवादी सोच के खिलाफ थे, हिंदू धर्म में फैली जातिवाद की कुरीति के खिलाफ थे।

उनका कहना था कि हिंदू धर्म में जातिवाद बना रहेगा, और इस कारण हिंदू धर्म में कभी भी किसी को बराबरी का हक नहीं मिलेगा। इसके लिए वो ब्राह्मणवाद को भी कसूरवार मानते थे। अब सवाल ये है कि भले ही दलित होने के कारण उन्हें जातिवाद की पीड़ा झेलनी पड़ी थी, लेकिन क्या वो इस कारण ब्राह्मणों और क्षत्रियों के खिलाफ थे? क्या वो उनसे घृणा करते थे? आज हम यहीं जानने की कोशिश करेंगे…

बाबा साहब ब्राह्मणवाद के खिलाफ थे, क्योंकि वो जानते थे कि ज्यादातर नियम वो ही तय करते थे। कौन समाज में ऊंचा है और कौन नीचा.. ये अवधारना भी उन्हीं की फैलाई हुई थी। वो मानते थे कि ब्राह्मणवाद का विनाश करके ही स्वतंत्रता, समता और बंधुता का न्यायपूर्ण समाज स्थापित किया जा सकता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ब्राह्मण मूर्ख है या ज्ञानी, लेकिन अगर वो ब्राह्मण है तो वो उच्च है, उनके बनाए नियम सर्वोपरि होंगे। और यहीं कारण था कि हिंदू धर्म में लाख कोशिश के बाद भी जातिवाद का भेदभाव खत्म नहीं होगा। लेकिन ये कहना कि बाबा साहब ब्राह्मणों और क्षत्रियों के खिलाफ थे, ये गलत होगा।

सच्चाई तो ये कि असल में बाबा साहेब कौन थे, उनकी मूल विचारधारा को सही मायने में कोई समझ ही नहीं पाया। उनके दलित होने का फायदा केवल राजनीति के लिए करते है। उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर अलग ही रूप में जनता के सामने पेश कर दिया जाता है। जबकि संविधान अंबेडकर की दूरवादी सोच का एक उदाहरण है।

भारत में करीब 4000 के आसपास जातियां है, करीब 7 मुख्य धर्म है। फिलहाल 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश है। भारत एक बड़ा देश है जिसके लिए एक बेहतर और मजबूत संविधान बनाना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन बाबा साहब ने ये संविधान बनाया और सबको वो हक दिए, जो उस वक्त की मांग थी। एक जटिल संविधान बनाने का श्रेय बाबा साहब को जाता है। बाबा साहब के बनाए गए संविधान को हिंदु समर्थक माना जाता है, इस संविधान को लिखे जाने के बाद 275 सवर्णों ने भी अपना हस्ताक्षर करके सहमति दी थी, यानि कि वो भी मानते थे कि ये सबके लिए अच्छा संविधान है।

यानि वो किसी एक धर्म के खिलाफ नहीं थे, वो उस धर्म में पनपने वाली कुरीतियों के खिलाफ थे। और ब्राह्मणवाद और क्षत्रिय हिंदू धर्म की कुरितियों की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने के लिए है। वो इस विचारधारा के खिलाफ थे। मानवधिकारों का हनन पूंजिपतियों को और मजबूत बनाने वाला था, वो इसके खिलाफ थे। 

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