Waqf Bill Update: वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश, मुस्लिम समाज में गहरा आक्रोश, कोर्ट जाने की तैयारी

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Waqf Bill Update: केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने के बाद देशभर में इसे लेकर बहस तेज हो गई है। जहां विपक्षी दलों ने इस पर खुलकर आपत्ति दर्ज की है, वहीं मुस्लिम धर्मगुरु भी इसे मुस्लिम समाज के खिलाफ करार दे रहे हैं। अगर यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) इसके खिलाफ न्यायिक रास्ता अपनाने की बात कह रहा है।

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लखनऊ की ऐशबाग ईदगाह के इमाम, मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने इस विधेयक को लेकर गहरी नाराज़गी जताई है। उन्होंने इसे वक्फ संपत्तियों के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि इससे समुदाय की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था प्रभावित होगी। उनका कहना है कि प्रस्तावित बदलाव न सिर्फ वक्फ की आत्मा के खिलाफ हैं, बल्कि संविधान की धारा 14, 25, 26 और 29 का भी उल्लंघन करते हैं।

AIMPLB के सुझावों की अनदेखी- Waqf Bill Update

मौलाना खालिद रशीद का आरोप है कि AIMPLB और अन्य संगठनों द्वारा जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के समक्ष दिए गए सुझावों को नए बिल में जगह नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि यह बेहद निराशाजनक है कि जिस समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक स्थलों की बात हो रही है, उन्हीं की बातों को अनसुना कर दिया गया है।

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गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद

सबसे विवादास्पद प्रावधानों में एक है – वक्फ काउंसिल और बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति। मौलाना का कहना है कि किसी अन्य धर्म के ट्रस्ट या बोर्ड में किसी बाहरी धर्म के व्यक्ति को कानूनी तौर पर शामिल नहीं किया जाता, तो फिर वक्फ बोर्ड में यह व्यवस्था क्यों लाई जा रही है? उन्होंने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ बताया है।

वक्फ बिलइस्तेमाल की समाप्ति से संकट

एक और बड़ा मुद्दा है बिलइस्तेमाल (कस्टमरी यूसेज) की अवधारणा को खत्म करना। मौलाना ने कहा कि वक्फ की 90% से अधिक संपत्तियाँ मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों के रूप में हैं। ऐसे में इसे धार्मिक न मानना एक गंभीर भ्रम की स्थिति है। इस व्यवस्था को समाप्त करने से कई ऐतिहासिक और सक्रिय वक्फ संपत्तियों पर खतरा मंडरा सकता है।

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धार्मिक पहचान का प्रमाण?

बिल के एक अन्य प्रावधान के अनुसार, कोई भी गैर-मुस्लिम व्यक्ति तभी वक्फ संपत्ति दान कर सकता है जब वह साबित करे कि वह पिछले 5 वर्षों से मुसलमान है। मौलाना का कहना है कि यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 26, जो धार्मिक संस्थाओं को प्रबंध करने का अधिकार देता है, के खिलाफ है।

चयन की पारदर्शिता पर सवाल

अब तक वक्फ बोर्ड के सदस्यों का चयन चुनाव प्रणाली से होता था, लेकिन नए विधेयक में सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह स्वयं नामांकित सदस्य नियुक्त करे। इससे बोर्ड की स्वायत्तता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

महिला प्रतिनिधित्व को लेकर भ्रम

बिल में महिलाओं को बोर्ड में शामिल करने की बात कही गई है, जबकि मौजूदा वक्फ एक्ट में यह पहले से ही मौजूद है। ऐसे में इस बात को दोहराना सिर्फ राजनीतिक प्रचार जैसा प्रतीत होता है।

मौलाना ने स्पष्ट किया है कि यदि यह विधेयक पास हो जाता है, तो मुस्लिम समाज संवैधानिक और कानूनी रास्ते से अपनी लड़ाई लड़ेगा और उम्मीद जताई कि न्यायपालिका उन्हें इंसाफ दिलाएगी।

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