Vice president angry on S.C. : क्या सच में संविधान के हिसाब से अदालत नहीं दे सकती है राष्ट्रपति को आदेश?

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Vice president angry on S.C.: वो कौन है जो देश के सर्वोच्च स्थान पर बैठे व्यक्ति को आदेश दे रहे है। क्या वो देश के संसद और संविधान से भी बड़े हो गए है। जिन्हें संविधान में बनाए नियमों को मानना है, वो खुद को ही सबसे सुप्रीम मान रहें हैं। ये गुस्से से भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़(Vice President Jagdeep Dhankhad) ने और वो भी उच्चतम न्यायालय(Supreme Court) के लिए। राज्यसभा के एक प्रोग्राम में धनखड़ ने सीधा सुप्रीम कोर्ट को ही आड़े हाथों ले लिया। एक के बाद एक कई शब्दों के हमले किये, अब सवाल ये उठता हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कर दिया जिसके कारण धनखड़ इतने ज्यादा नाराज़ है, आखिर ऐसा क्या कह दिया उच्चतम न्यायालय ने, जो जगदीप धनखड़ के बर्दाश्त के बाहर हो गया। आइए जानते है पूरा मामला।

क्या है मामला

दरअसल 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को आने वाले 3 महीनों के अंदर कुछ लंबित विधेयकों को पारित करने के लिए फैसला लेने को कहा है। जिसका कारण है तमिलनाडु सरकार। तमिलनाडु सरकार (Tamilnadu Governnment) की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसके अनुसार राज्य के राज्यपाल आरएन रवि के पास करीब 10 विधेयक भेजे गए है जो कि काफी लंबे समय से पारित करने के लिए लंबित है। इन विधयकों को राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए भेजे हुए है, जिनपर राष्ट्रपति की ओर से कोई फैसला आना बाकी है, और यहीं कारण है कि वो काफी लंबे समय से पास नहीं हो पाए। तमिलनाडु सरकार ने कानून का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसला लेने में देरी के कारण सरकार कई कानून पास नहीं कर पा रही है, इस लिए कोर्ट जल्द से जल्द कोई सटीक कदम उठाए।

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क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

याचिका को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीधे राष्ट्रपति से ही सवाल कर दिया है, इतना ही नहीं राष्ट्रपति को विधेयकों को पारित करने के लिए एक समय सीमा तय करने का सलाह तक दे दी। कोर्ट ने ये भी आदेश जारी किया कि राष्ट्रपति 3 महीनों में इन लंबित विधेयकों पर फैसला करें। समय सीमा पर फैसला न होने पर राष्ट्रपति को इसका कारण बताना चाहिए और जिन राज्यों के लिए विधेयक पारित होने है वहां भी सूचित करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि एक बार विधेयक के पास होने के बाद फिर से अगर राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए विधेयक को भेजा जाता है तो ये भी पूरी तरह से अवैध है।

क्या कहा उपराष्ट्रपति ने

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के इस कदम की साफ तौर पर आलोचना करते हुए कहा कि आखिर देश की कानून व्यवस्था किस ओर जा रही है। सुप्रीम कोर्ट भला कैसे राष्ट्रपति को आदेश दे सकती है। अब जज ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाते नजर आयेंगे, और खुद को ही सुपर संसद के तौर पर मानेंगे क्योंकि उनके अनुसार तो अगर राष्ट्रपति तय समय पर फैसला नहीं देंगे तो विधेयक को कोर्ट ही कानून बना देगा। राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद है, जिन्हे संविधान की सुरक्षा करने के लिए नियुक्त किया जाता है, और बाकी के सांसदों, मंत्रियों और जजों को संविधान में बनाये गए सभी नियमों को मानना होता है। कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 145/3 के अनुसार केवल राष्ट्रपति को विधेयक की व्याख्या कर सकती है, जिसे 5 या उससे ज्यादा जजों की पीठ कर सकती है। लेकिन ये आदेश तो केवल 2 जजों की बेंच ने दिया है।

क्या कहता है अनुच्छेद 200 (article 200)

संविधान के अनुच्छेद 200 के मुताबित सभी राज्यों के राज्यपाल के पास ये कानूनी अधिकार है कि वो राज्य सरकार द्वारा भेजे गए विधेयक पर किसी भी कारण से संतुष्त न होने पर असहमति जता सकते है या फिर विधेयक को पास करने से पहले विचार करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेज सकते है, और इसे पास करने के लिए कोई समय सीमा भी तय नहीं की गई है।

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कोर्ट ने साफ तौर पर इस व्यवस्था को गलत बताते हुए कहा कि भले ही राज्यपाल के पास विधेयक को पास करने के लिए कोई समय सीमा न हो लेकिन इस तरह से बिना वजह देरी करने से राज्य में कानून पारित होने में वो अवरोध पैदा कर रहे है, जो सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस तीखे व्यवहार की धनखड़ ने कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने ये भी साफ कर दिया है कोर्ट खुद को राष्ट्रपति से बड़ा समझने की गलती न करे, जो भी होगा वो संवैधानिक रूप से ही होगा।।

 

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