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US Hypersonic Missile: डार्क ईगल की उड़ान से कांपा चीन, अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक में बदली गेम की दिशा!

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US Hypersonic Missile: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे और सैन्य विस्तार के बीच अमेरिका ने बड़ा और रणनीतिक कदम उठाया है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित टैलिसमैन सेबर सैन्य अभ्यास के दौरान अमेरिका ने अपनी लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली ‘डार्क ईगल’ को ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र में तैनात किया। ये पहला मौका है जब अमेरिका ने इस अत्याधुनिक हथियार को अपनी सीमा से बाहर कहीं तैनात किया है।

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क्या है डार्क ईगल? (US Hypersonic Missile)

‘डार्क ईगल’ को अमेरिका की सबसे घातक और उन्नत मिसाइल प्रणालियों में गिना जा रहा है। यह मिसाइल ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक तेज़ (मैक-5+) उड़ान भर सकती है और लगभग 1,725 मील (करीब 2,800 किलोमीटर) दूर तक टारगेट को सटीकता से निशाना बना सकती है।

इसकी खास बात यह है कि यह उड़ान के दौरान अपना रास्ता बदल सकती है, जिससे इसे इंटरसेप्ट करना बेहद मुश्किल हो जाता है। परंपरागत बैलिस्टिक मिसाइलें जहां एक तय दिशा में जाती हैं, वहीं हाइपरसोनिक मिसाइलें दुश्मन के लिए अनजान और अप्रत्याशित बन जाती हैं।

सिस्टम में क्या-क्या शामिल है?

‘डार्क ईगल’ कोई एकल मिसाइल नहीं बल्कि एक पूरा हथियार सिस्टम है। इसमें शामिल हैं:

  • चार मोबाइल लॉन्चर, हर एक पर दो मिसाइलें
  • एक कमांड और कंट्रोल वाहन
  • टारगेटिंग और नेविगेशन में मदद करने वाले सपोर्ट व्हीकल

इसका मकसद केवल हमला करना नहीं बल्कि दुश्मन के अति-संरक्षित सैन्य नेटवर्क (Anti-Access/Area Denial – A2/AD) को भेदना है, जो चीन की रणनीति की रीढ़ मानी जाती है।

चीन और रूस से प्रतिस्पर्धा

‘डार्क ईगल’ की तैनाती का समय भी बहुत मायने रखता है। अमेरिका इस वक्त हाइपरसोनिक हथियारों की रेस में चीन और रूस से मुकाबला कर रहा है।

  • चीन ने 2019 में अपनी DF-17 हाइपरसोनिक मिसाइल दुनिया के सामने रखी थी, जिसमें ग्लाइड व्हीकल टेक्नोलॉजी शामिल है।
  • रूस भी अपनी खतरनाक ‘अवनगार्ड’ हाइपरसोनिक ग्लाइड प्रणाली को विकसित कर चुका है।

इन दोनों देशों की तेजी से हो रही प्रगति ने अमेरिका को मजबूर कर दिया कि वह अपनी सैन्य तकनीक को और आगे बढ़ाए और इस रेस में पिछड़ने न पाए।

बीजिंग को रणनीतिक संदेश

ऑस्ट्रेलिया के जिस उत्तरी हिस्से में ‘डार्क ईगल’ को तैनात किया गया है, वह चीन के दक्षिण चीन सागर के ठिकानों और ताइवान तक के इलाकों को अपनी ऑपरेशनल रेंज में ले आता है। इसका सीधा मतलब है कि अमेरिका अब ऐसी स्थिति में है कि वह चीन की सीधी पहुंच से बाहर रहकर भी उसकी गतिविधियों पर नजर रख सकता है और जरूरत पड़ने पर जवाबी कार्रवाई कर सकता है।

विशेषज्ञ इसे केवल सैन्य तैनाती नहीं बल्कि एक स्पष्ट रणनीतिक संदेश मान रहे हैं। अमेरिका ने यह दिखा दिया है कि वह न सिर्फ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों के साथ खड़ा है, बल्कि चीन की आक्रामक रणनीतियों को सीधे चुनौती देने के लिए भी तैयार है।

सहयोगियों को भी मिला भरोसा

‘डार्क ईगल’ की यह तैनाती अमेरिका के सहयोगी देशों — खासकर ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत — के लिए भी एक मजबूत संदेश है। यह उन्हें बताता है कि अमेरिका क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर है और वह इस इलाके में किसी एक देश का वर्चस्व नहीं बनने देगा।

क्या होगा आगे?

अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले दिनों में ‘डार्क ईगल’ हिंद-प्रशांत की सैन्य संतुलन में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यह न सिर्फ दुश्मनों के लिए चेतावनी है, बल्कि अमेरिका के लिए एक अहम रणनीतिक मोहरा भी, जो उसे जरूरत पड़ने पर लंबी दूरी से तेज़, सटीक और अप्रत्याशित जवाब देने में सक्षम बनाता है।

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