Satyapal Malik Passed Away: किडनी फेलियर से जंग हार गए सत्यपाल मलिक, राजनीति की मजबूत आवाज़ का दुखद अंत

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Satyapal Malik Passed Away: देश ने एक ऐसे नेता को खो दिया है, जिन्होंने राजनीति के कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर आवाज़ उठाई और अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक अब हमारे बीच नहीं रहे। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) से जूझ रहे थे और हाल ही में दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे। उनकी बीमारी और संघर्ष की कहानी भी उनकी राजनीतिक जीवन की तरह गहरी और प्रेरणादायक थी।

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स्वास्थ्य से जुड़ी जटिलताएं और अंतिम दिनSatyapal Malik Passed Away

मलिक के निधन की जानकारी उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर दी गई है। 78 वर्षीय मलिक ने 5 अगस्त को आरएमएल अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे मई 2025 से दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे।

वहीं, कुछ महीनों पहले सत्यपाल मलिक ने खुद सोशल मीडिया पर अपनी सेहत के बारे में जानकारी दी थी। उन्हें पेशाब में कठिनाई हो रही थी, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के मुताबिक, उनके यूरिनरी ट्रैक्ट में संक्रमण (यूटीआई) की वजह से किडनी में फेलियर की स्थिति उत्पन्न हो गई। यूटीआई समय पर ठीक न होने पर किडनी की कार्यक्षमता पर गंभीर असर डाल सकता है और मलिक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। संक्रमण से होने वाली सेप्सिस जैसी जटिलता ने उनके शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाया।

पिछले कुछ महीनों से उनका किडनी डायलिसिस चल रहा था, लेकिन उनकी हालत लगातार खराब होती गई। 78 वर्ष के इस अनुभवी नेता का निधन देश के लिए एक बड़ा नुकसान है। वे न केवल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे, बल्कि अपनी मुखरता और समाज के लिए लड़ाई के लिए भी जाने जाते थे।

राजनीतिक सफर: संघर्ष से शिखर तक

सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन करीब 1968-69 में छात्र नेता के तौर पर शुरू हुआ था। 1974 में उन्होंने पहली बार विधायक का चुनाव जीता और फिर लोक दल के महासचिव बने। 1980 में राज्यसभा पहुंचे, फिर 1984 में कांग्रेस में शामिल होकर 1986 में दोबारा राज्यसभा का सदस्य बने।

Satyapal Malik Passed Away
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राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बोफोर्स मामले के बाद वे कांग्रेस से बाहर आए और वीपी सिंह की जनता दल में शामिल हो गए। 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा सदस्य चुने गए और केंद्रीय राज्यमंत्री बने। 2004 में भाजपा में शामिल होने के बाद भी उनके राजनीतिक सफर में उतार-चढ़ाव आते रहे।

राज्यपाल के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका

2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया, जहां उन्होंने राजनीतिक दलों पर खुलकर आरोप लगाए। अगस्त 2018 में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल नियुक्त किए गए। उनके कार्यकाल के दौरान अनुच्छेद 370 को हटाया गया, जो भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। बाद में गोवा और मेघालय के राज्यपाल भी रहे।

उनकी मुखरता ने कई बार बीजेपी और केंद्र सरकार को असहज कर दिया। उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के पक्ष में आवाज उठाई और कई संवेदनशील मुद्दों पर सरकार की आलोचना की। उनके इन बयानों ने राजनीति में एक अलग पहचान बनाई।

किसानों के लिए आवाज़ उठाई

मलिक ने नवंबर 2020 से चल रहे कृषि कानून विरोध प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार की नीति की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि किसानों को अपमानित नहीं किया जा सकता और उनके साथ बातचीत जरूरी है। उनकी यह राय सरकार के लिए चुनौती थी, जो किसानों के समर्थन में खुलकर आवाज़ उठाने वाले नेताओं में से एक थे।

अंतिम विदाई और विरासत

सत्यपाल मलिक का निधन न केवल उनके परिवार और समर्थकों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा क्षति है। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे और उनके संघर्ष को याद रखा जाएगा।

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