Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध और इच्छा! क्या वास्तव में इच्छा ही जीवन का कारण है या दुखों का?

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Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध ने कहा था, “इच्छा ही सब दुखों का कारण है।” यह वाक्य अक्सर सरल समझा जाता है, लेकिन क्या वास्तव में बुद्ध इच्छाओं के विरोधी थे? क्या इच्छा जीवन को गति देने वाली मूल ऊर्जा नहीं है? जब हमें भूख लगती है, तब भोजन की इच्छा होती है; प्यास लगने पर पानी की चाह; ठंड लगने पर गर्माहट की आकांक्षा—क्या ये इच्छाएं जीवन के प्रवाह को बनाए रखने वाली शक्ति नहीं हैं? क्या बुद्ध हमें जीवन की इसी ऊर्जा के खिलाफ खड़ा होने की शिक्षा देते हैं? और यदि इच्छा पर नियंत्रण पाने का प्रयास एक नई इच्छा को जन्म देता है, तो क्या यह दुष्चक्र अंतहीन नहीं हो जाता? क्या मानवता ने इस गूढ़ प्रश्न का समाधान पाया है?

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बुद्ध का संदेश और इच्छाओं की जटिलता- Mahatma Buddha Teachings

बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं को समाप्त करने का आग्रह नहीं था, बल्कि वह जीवन में व्याप्त दुखों के स्रोत की समझ प्रदान करता था। उनका कहना था कि मनुष्य की इच्छाएं जब अतिरेक और असंतोष की ओर बढ़ती हैं, तब वे दुखों का कारण बनती हैं। लेकिन इच्छाओं का होना स्वयं जीवन का आधार भी है। इस द्वंद्व को समझना आसान नहीं।

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जिद्दू कृष्णमूर्ति की दृष्टि

बीसवीं सदी के महान विचारक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने इस विषय पर गहरा विचार किया। उनके अनुसार, हमारे विचार, निर्णय और कर्म सभी एक ज्ञान और अनुभव के “संकलन” से उत्पन्न होते हैं। यह संकलन केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक भी है। हमारा मस्तिष्क, जो ज्ञान और अनुभव के आधार पर काम करता है, कभी भी पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सकता। इसका मतलब यह है कि हमारे सभी विचार और भावनाएं अपूर्ण और कभी-कभी भ्रमित करने वाले होते हैं।

कृष्णमूर्ति ने इसी संकलन से संचालित मस्तिष्क को मानवता के दुख और अराजकता का मूल कारण माना। हमारा “स्व” या “मैं” भी इसी संकलन का हिस्सा है, जो हमें स्वयं के प्रति अत्यंत सचेत रखता है, लेकिन साथ ही भ्रमित भी करता है। इसलिए जो गर्व और इच्छा हम स्वयं के लिए महसूस करते हैं, वे भी एक अधूरी छवि मात्र हैं।

“स्व” की छवि और इच्छाओं का चक्र

हमारा “स्व” यानी स्वयं की पहचान एक सीमित विचार है जो हमें अपने मूल स्वरूप से दूर कर देता है। यह “संकलन” की छवि हमें भ्रमित करती है और आंतरिक द्वंद्व को जन्म देती है। इसलिए बुद्ध ने इसे सभी दुखों का मूल कारण बताया। इच्छाओं का यह चक्र, जो स्व की भ्रामक छवि से उत्पन्न होता है, अंतहीन पीड़ा का कारण बन सकता है।

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इस प्रकार, बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं का त्याग नहीं, बल्कि उनके स्रोत की समझ है। वह हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हमारी आंतरिक छवि और अनुभव का संकलन हमारे दुखों का आधार बनता है। इच्छाएं जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन जब वे हमारी सोच और पहचान का हिस्सा बन जाती हैं, तो वे हमें भ्रम और दुख की ओर ले जाती हैं। जिद्दू कृष्णमूर्ति के विचार इस बात को और भी स्पष्ट करते हैं कि मानव मस्तिष्क का यह संकलन ही हमारी पीड़ा का मुख्य कारण है।

इसलिए, बुद्ध की शिक्षा हमें इच्छाओं को खत्म करने के बजाय, उनके जन्मस्थान और प्रभाव को समझने का आह्वान करती है, ताकि हम जीवन के सच्चे सुख और शांति की ओर अग्रसर हो सकें।

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