दुनिया के तीसरे सबसे बड़े लोकतंत्र देश की करेंसी पर इस कारण छपे थे भगवान गणेश, भारत से मिलती-जुलती हैं यहां की संस्कृति!

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भारत और इंडोनेशिया की संस्कृति में कई तरह से समानताएं हैं. अगर आप यहां जाते हैं तो एक बार के लिए आपको ये गलतफहमी भी हो सकती है कि आप कहीं भारत में ही तो नहीं है. आइए आपको इंडोनेशिया से जुड़ी खास बाते बताते हैं और साथ ही ये भी बताते हैं कि इंडोनेशिया की करेंसी में भगवान गणेश की तस्वीर छापने के पीछे क्या वजह थी…

सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश

दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश कहलाए जाने वाला इंडोनेशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लोकतंत्र भी है. ये ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया के बीच हजारों द्वीपों पर फैला हुआ है. यहां पर मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी है, लेकिन यहां हिन्दू धर्म का साफ तौर पर असर नजर आता है.

इस कारण करेंसी पर छपे थे भगवान गणेश

आपको बता दें कि इंडोनेशिया में हिन्दू देवी-देवताओं की काफी पूजा-पाठ की जाती है. इतना ही नहीं भगवान गणेश को तो यहां पर कला और बुद्धि का भगवान माना जाता है. इसी कारण से इंडोनेशिया की करेंसी पर पहले गणेश जी की तस्वीर अंकित होती थी. दरअसल, कुछ सालों पहले यहां की अर्थव्यवस्था में गिरावट आने लगी थी, ऐसे में यहां के अर्थशास्त्रियों ने विचार-विमर्श कर बाद में 20 हजार रुपयों के नए नया नोट जारी किए थे और इन सभी नोटों पर भगवान गणेश की फोटो को छापा गया. हालांकि, साल 1998 के बाद इंडोनेशिया में जारी हुए नए नोटों पर से भगवान गणेश की तस्वीर को हटा दिया गया था.

यहां की संस्कृति में रामायण-महाभारत का अस्तित्व

चाहे इंडोनेशिया की करेंसी की बात की जाए या फिर आम जन के जीवन की यहां की सांस्कृतिक विविधता नजर आ जाती है. यहां की संस्कृति में रामायण और रामायण मंचन का अहम हिस्सा है. एक मुस्लिम बहुल वाले देश की संस्कृति में रामायण-महाभारत का अस्तित्व भले ही हैरतअंगेज हो, मगर इंडोनेशिया में हिंदू धर्म समेत अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ काफी सहज है. इंडोनेशिया में हर कोई रामायण और महाभारत की कहानी जानता है. यहां के जकार्ता स्क्वेर में भगवान कृष्णा और अर्जुन की मूर्तियां भी स्थापित हैं.

हिंदू-मुस्लिम के बीच अच्छा रिश्ता

इंडोनेशिया में हिन्दू-मुस्लिम की गहरी दोस्ती तो इसी से साफ है जब यहां के मुसलमान रमजान में रोजा रखने के दौरान इफ्तार के बाद यहां के हिन्दू मंदिर में रामायण मंचन में हिस्सा लेने जाते हैं.

इस द्वीप पर करीब 60 फीसदी हिन्दू आबादी

इंडोनेशिया में जावा नामक एक प्रमुख द्वीप है, यहां पर करीब जहां लगभग 60 फीसदी हिंदू धर्म के लोगों की आबादी है. यहां 13वीं से 15वीं शताब्दी के बीच एक माजापाहित नामक हिंदू साम्राज्य काफी फला फूला, जिसके चलते यहां की संस्कृति, भाषा और भूमि पर हिंदू संस्कृति की न मिटने वाली छाप पड़ गई.

जगह-जगह पर मिलेंगे मंदिर

इंडोनेशिया में जगह-जगह पर भगवान शिव और विष्णु जी के मंदिर बने हुए हैं. यहां संस्कृत में लिखे हुए शब्द, रामायण-महाभारत का जिक्र काफी मिलता है. हालांकि पूरे इंडोनेशिया में हिन्दुओं की इतनी ज्यादा आबादी नहीं है, यहां 2 फीसदी से भी कम हिन्दूओं की आबादी है.

इंडोनेशिया का सिर्फ धर्म ही नहीं बल्कि यहां की भाषा भी भारत से काफी मिलती जुलती है. इनकी भाषा को ‘बहासा इंदोनेसिया‘ कहा जाता है. वहीं, इनके शब्दकोष में भी स्त्री और मंत्री जैसे शब्द होते हैं.

इस शताब्दी से हुई हिन्दू धर्म की स्थापना

इंडोनेशिया में हिन्दूओं कैसे पहुंचे ये पूर्ण रूप से साफ नहीं है, लेकिन ऐसा कहना है कि यहां पर 5वीं शताब्दी तक हिंदू धर्म स्थापित हो चुका था. जैसे-जैसे हिंदू साम्राज्य का असर में बढ़ोतरी होने लगी वैसे-वैसे 12वीं से 13वीं शताब्दी तक हिंदू और बौद्ध शासकों ने अपना कई द्वीपों पर अधिकार जमा लिया.

इंडोनेशिया में ज्यादातर 6 धर्मों के समुदाय हैं, जिनमें से हिन्दू धर्म को साल 1962 में जगह मिली. लोमबोक, जावा और बाली में हिंदू धर्म के बहुत सारे अनुयायी हैं. बता दें कि साल 1964 से ही हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था परिषद हिंदू धर्म इंडोनेशिया अस्तित्व में है. यहां पर हिन्दू धर्म के प्रभाव के अलावा बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा है. इंडोनेशिया के बोरोबोदूर में दुनिया का बहुत बड़ा बौद्ध स्तूप है.

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