Jain Monk Arrested: सूरत में जैन मुनि को 19 वर्षीय युवती से दुष्कर्म का दोषी ठहराया, 10 साल की सजा

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Jain Monk Arrested: गुजरात के सूरत जिले की एक सेशन कोर्ट ने शनिवार को जैन दिगंबर संप्रदाय के एक मुनि को 19 वर्षीय युवती के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराते हुए उसे दस साल की सजा सुनाई। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ए के शाह ने दोषी शांतिसागरजी महाराज पर 25,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया। यह मामला सूरत के नानपुरा स्थित महावीर दिगंबर जैन मंदिर से जुड़ा है, जहां एक धार्मिक अनुष्ठान के बहाने आरोपी ने अपनी दरिंदगी को अंजाम दिया।

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मूल घटना का विवरण- Jain Monk Arrested

पीड़िता, जो मूल रूप से ग्वालियर की रहने वाली है, 19 साल की उम्र में वडोदरा के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। उसके परिवार का सूरत के तिमलियावद स्थित महावीर दिगंबर जैन मंदिर में आना-जाना था और वे शांतिसागरजी महाराज के प्रवचनों से प्रभावित थे। परिवार के इस संपर्क के चलते ही, 1 अक्टूबर 2017 को शांतिसागरजी ने पीड़िता और उसके परिवार को एक धार्मिक अनुष्ठान के बहाने सूरत बुलाया। परिवार को सूरत स्थित महावीर दिगंबर जैन उप-मंदिर में ठहरने की व्यवस्था भी की गई थी।

इस दौरान, शांतिसागरजी सूरत में चातुर्मास के लिए रह रहे थे। पीड़िता के मुताबिक, उसी समय आरोपी जैन मुनि ने उसे मंत्र जाप के बहाने अपने कमरे में बुलाया और फिर परिवार के साथ कोई अनहोनी न होने का बहाना बना कर उसके साथ दुष्कर्म किया।

दुष्कर्म का खुलासा और गिरफ्तारी

दूसरे दिन, पीड़िता की तबीयत खराब होने पर इस घटना का खुलासा हुआ। इसके बाद पीड़िता के परिवार ने सूरत के अठवालाइंस पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। मेडिकल जांच में दुष्कर्म की पुष्टि हो गई, जिसके बाद आरोपी शांतिसागरजी को अक्टूबर 2017 में ही गिरफ्तार कर लिया गया।

आरोपी की सफाई और कोर्ट का निर्णय

गिरफ्तारी के बाद, शांति सागर ने दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है। आरोपी का कहना था कि वह पीड़िता को 5-6 महीने से जानता था और वह पहली बार सपरिवार सूरत आई थी। शांतिसागरजी ने कहा कि तिमलियावद नानपुरा धर्मशाला में लड़की की रजामंदी से ही शारीरिक संबंध बनाए गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि यह उनकी जिंदगी में पहली बार हुआ था। मेडिकल जांच के दौरान जब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि वह एक साधु हैं, तो उन्होंने सिर झुका लिया। यह जानकारी डॉक्टर ने मेडिको लीगल केस रजिस्टर में दर्ज की थी।

शांतिसागरजी महाराज का परिचय

आरोपी शांतिसागरजी का असली नाम गिरराज शर्मा था। वे मध्य प्रदेश के गुना जिले में अपने ताऊजी के साथ बड़े हुए थे। उनका परिवार कोटा में रहता था और उनके पिता सज्जनलाल शर्मा हलवाई का काम करते थे। गिरराज ने 22 साल की उम्र में मंदसौर में जैन संतों के संपर्क में आकर दीक्षा ली और गिरराज से शांतिसागर महाराज बन गए।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह मामला समाज में जैन मुनियों की छवि और उनके धार्मिक अधिकारों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। एक साधु द्वारा ऐसी दरिंदगी की घटना ने यह साबित कर दिया कि धार्मिक संस्थाओं के नाम पर समाज में मौजूद विश्वास का गलत फायदा उठाया जा सकता है। इस मामले ने यह भी दिखाया कि समाज में धार्मिक नेताओं के खिलाफ शिकायतों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, ताकि ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई की जा सके।

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