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जानिए क्या है IPC की धारा 201, क्या है सजा और जमानत का प्रावधान

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धारा 201 क्या है – जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या या हमला करता है तब उसके ऊपर केस दर्ज होता है लेकिन इस अपराध के दौरन कोई अन्य शख्स आरोपी की मदद करता है या उसे बचाता है तब उसके ऊपर भी केस दर्ज होता हैं और आईपीसी (IPC) की धारा 201  उस शख्स पर कारवाई होती है. भारत में ऐसे कई मामले में जिसने आरोपी के साथ अपराध को छुपाने और या सबूत को मिटाने का काम करता है उसके ऊपर IPC कि धारा 201 के तहत कारवाई होती है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको आईपीसी (IPC) की धारा 201 क्या है कब लगती है साथ ही सजा और जमानत का क्या प्रावधान है इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं.

Also Read- धारा 271 क्या है, कब लगती है और क्या है इससे बचने का प्रावधान ?. 

जानिए IPC की धारा 201 क्या है

भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 201 (Section 201) के तहत अपराध के सबूतों (evidence of crime) को मिटाना या गलत जानकारी (False information) देना परिभाषित (Define) किया गया है. IPC की धारा 201 के अनुसार, अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना-जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध (offence) किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप (Annulment of evidence), इस आशय से कारित (Caused by intent) करेगा कि अपराधी को वैध दंड (lawful punishment to the offender) से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है;

सजा और जमानत का प्रावधान

वहीं IPC की धारा 201 के तहत दण्ड तीन भागों में बांटा गया है

  • अगर कोई व्यक्ति मृत्यु दण्ड से दण्डित अपराधी की सबूत मिटाने में सहायता करता है तो उसे अधिकतम सात वर्ष की कारावास एवं जुर्माना लगाया जायेगा.
  • अगर कोई व्यक्ति आजीवन कारावास से 10 बर्ष तक के सजा वाले अपराधी की सहायता करता है तो उसे अधिकतम तीन वर्ष की कारावास एवं जुर्माना लगाया जायेगा.
  • अगर कोई व्यक्ति 10 वर्ष से कम अपराध से दण्डित व्यक्ति की सहायता करता है तो उसे उस अपराध की अधिकतम सजा की एक चौथाई से दण्डित किया जाएगा अर्थात सिक्कों के कूटकरण के अपराध की सजा अधिकतम सात वर्ष है येसे अपराध की सहायता करने वाले व्यक्ति को सात वर्ष की एक चौथाई एक वर्ष सात माह पांच दिन हो सकती है.

इसी के साथ यह मामला एक गैर – संज्ञेय, जमानती अपरा  है और इस  माममें जमानत देने को लेकर किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचार किया जा सकता है. वहीं यह अपराध पीड़ित व्यक्ति (जिस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग हुआ है) द्वारा समझौता करने योग्य है.

Also Read- अन्य धारा 4 क्या है, कब लगती है और क्या है इससे बचने का प्रावधान ?. 

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