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कोतवाली के इस गुरुद्वारे से है गुरु गोविंद सिंह का खास सम्बंध, जानिए क्या है इसकी कहानी

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हम सब जानते है की सिखों का पवित्र स्थान उनका गुरुद्वारा होता है. और पूरी दुनिया में जितने भी गुरूद्वारे है सबकी अपनी कहानी है, कुछ गुरूद्वारे खुद सिख गुरुओं ने बनाएं है तो कुछ गुरुद्वारों का निर्माण सिख अनुयायियों ने करवाया था. आज हम एक ऐसे ही गुरूद्वारे के बारे में बताएंगे, जिसकी कहानी सिख गुरु, गुरु गोबिंद साहिब जी के जीवन से जुडी है. यह गुरुद्वारा मोरिंडा पंजाब राज्य के रोपड़ जिले में एक शहर में है जिसका नाम गुरुद्वारा श्री कोतवाली साहिब है. ये गुरुद्वारा इस स्थान पर आज भी मौजूद है.

दोस्तों आईए आज हम आपको गुरुद्वारा श्री कोतवाली साहिब से गुरु गोबिंद जी के संबंध के बारे में बताते है.

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गुरुद्वारा श्री कोतवाली साहिब

बात उस समय की है जब मुगलों और अजमेर चंद की राजपूत पहाड़ी सरदारों ने आनंदपुर साहिब के चारों तरफ घेराबंदी कर ली थी. और सम्राट औरंगजेब ने गुरु जी को कुरान की शपथ लेकर बोला था की जब आप अपने परिवार के साथ  आनंदपुर साहिब छोड़ कर निकलेंगे तो मुग़ल सेना आपका पीछा नहीं करेगी. लेकिन मुगलों ने अपना वादा तोड़ दिया. और गुरु जी और उसके परिवार का पीछा किया. जिसके बाद आगे जाकर गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार से अलग हो गए थे. गुरु जी अपने दो बड़े बेटों के साथ, अपने परिवार से अलग हो गए थे.

गुरु गोबिंद जी से साहिबजादा फतेह सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी और माता गुजरी जी अलग हो गए थे, और कुछ दिनों तक किसी पुराने गुरु के सेवक के घर छुपे रहे. एक दिन एक गंगू नाम का व्यक्ति खुद को गुरु जी का अनुयायी बता कर गुरु की माँ और उनके बेटों को अपने साथ ले गया, जब रात में माता सो रही थी तो उनसे बैग से गंगू ने कुछ सिक्कों की चोरी भी कर लिए थे और इनाम के लालच में आकर उनके बारे में मुगल सम्राट को भी बता दिया.

मुग़ल सेना ने सुबह आकर उन्हें बंधी बना लिया था और साहिबजादा फतेह सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी और माता गुजरी जी को रंगेर मुखिया जानी खान और मणि खान द्वारा मोरिंडा शहर में गुरुद्वारा श्री कोतवाली साहिब के स्थान पर ले जाया गया, उन्हें रात भर जेल की कोठरी में रखा गया और फिर मुकदमे और फाँसी का सामना करने के लिए सरहिंद (अब फतेहगढ़ साहिब) ले जाया गया. यह गुरुद्वारा उसी जगह है जहाँ पर माता गुजरी को बंधी बना कर उस रात रखा गया था. इस गुरूद्वारे का बाद में दोबारा निर्माण भी करवाया गया था.

और पढ़ें : कनाडा का वो चर्च जो बन गया गुरुद्वारा, जानिए क्या है इसकी कहानी 

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