Bharat Bandh News: 10 ट्रेड यूनियंस की हड़ताल, जानें लेबर कोड और अन्य मुद्दों पर 10 अहम सवालों के जवाब

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Bharat Bandh News: आज देशभर में भारत बंद का ऐलान किया गया है, जिसका आयोजन 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने किया है। यह हड़ताल सरकार की कथित ‘मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक’ नीतियों के खिलाफ बुलाई गई है। इस विरोध में बैंकिंग, डाक सेवाएं, कोयला खनन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सरकारी कामकाज प्रभावित होने की संभावना है। इसके साथ ही ट्रेनें लेट होने और बिजली आपूर्ति में रुकावट की भी आशंका जताई जा रही है। इस समय सवाल यह उठता है कि यूनियनें क्या चाहती हैं और खासकर बिजली कंपनियों के निजीकरण का क्या मुद्दा है। आइए इसे 10 महत्वपूर्ण बिंदुओं में समझते हैं।

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17 सूत्री मांगों के तहत हड़ताल- Bharat Bandh News

केंद्र सरकार को 17 मांगों का चार्टर सौंपा गया था, जिन्हें सरकार द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। इसके विरोध में लगभग 25 करोड़ श्रमिक भारत बंद में भाग ले रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा आपत्ति चार नए लेबर कोड से है, जो हड़ताल के अधिकार को कमजोर करते हैं, काम के घंटों को बढ़ाते हैं और नियोक्ताओं को सजा से बचाने का मौका देते हैं। यूनियनों का कहना है कि ये कोड कर्मचारियों के अधिकारों पर हमला कर रहे हैं और इनका विरोध किया जाना चाहिए।

चार नए लेबर कोड और विरोध

यूनियनों का कहना है कि नए लेबर कोड से उनके अधिकारों में कटौती हो रही है। खासतौर पर काम के घंटे बढ़ाने, कर्मचारियों की छंटनी पर रोक न लगाना और निजीकरण के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जताई जा रही है। इसके अलावा, युवाओं के लिए रोजगार संकट और पब्लिक सेक्टर में भर्तियों की कमी को लेकर भी सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं।

हड़ताल में शामिल संगठन

भारत बंद का नेतृत्व कई प्रमुख ट्रेड यूनियनों द्वारा किया जा रहा है, जिनमें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC), भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC), भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (CITU), हिंद मजदूर सभा (HMS), और अन्य संगठन शामिल हैं। साथ ही, संयुक्त किसान मोर्चा और ग्रामीण श्रमिक संगठन भी इस विरोध में शामिल हो रहे हैं।

सरकार की नीतियों का विरोध

यूनियनों का आरोप है कि सरकार की नीतियां मजदूरों और किसानों के लिए हानिकारक हैं और इन नीतियों से केवल कॉरपोरेट्स को लाभ हो रहा है। इनका कहना है कि सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में खर्चों में कटौती, मजदूरी में गिरावट और रोजगार संकट ने श्रमिकों की स्थिति और भी बदतर कर दी है।

बिजली कंपनियों का निजीकरण

एक अहम मुद्दा बिजली कंपनियों का निजीकरण है, जिस पर ट्रेड यूनियनों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बिजली वितरण और उत्पादन को निजी हाथों में सौंपने से न केवल कर्मचारियों की नौकरी और वेतन की सुरक्षा समाप्त होगी, बल्कि इससे उपभोक्ताओं को भी नुकसान होगा। यह मुद्दा विरोध का एक प्रमुख कारण बन गया है।

प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं

भारत बंद में प्रवासी श्रमिकों का भी मुद्दा प्रमुख रूप से उठाया जा रहा है। आरोप है कि प्रवासी मजदूरों के मताधिकार को सीमित किया जा रहा है, जिससे उनका राजनीतिक हक छीना जा रहा है। यह विशेष रूप से बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के समय उठाया गया सवाल है।

बेरोजगारी और महंगाई की समस्या

यूनियनों का कहना है कि बेरोजगारी और महंगाई लगातार बढ़ रही है। नए भर्तियों को रोकने, रिटायर्ड कर्मचारियों की दोबारा तैनाती और युवाओं को रोजगार न देने के आरोप हैं। साथ ही, जरूरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ रही हैं, जिससे आम जनता की स्थिति और भी कठिन हो रही है।

प्रमुख मांगें

यूनियनों ने कुछ प्रमुख मांगें सरकार के सामने रखी हैं, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र में भर्ती की प्रक्रिया को शुरू करना, निजीकरण और ठेकाकरण पर रोक लगाना, चारों लेबर कोड को रद्द करना, मनरेगा की मजदूरी और दिनों में वृद्धि करना, शहरी बेरोजगारों के लिए योजनाएं बनाना और शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन पर खर्च बढ़ाना शामिल है।

न्यूनतम वेतन और पेंशन

यूनियनें न्यूनतम वेतन ₹26,000 मासिक तय करने और पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग कर रही हैं। साथ ही, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी भी प्रमुख मुद्दे हैं। ये सभी मुद्दे कर्मचारियों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए उठाए जा रहे हैं।

पहले भी हुआ है आंदोलन

यह पहली बार नहीं है जब इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया जा रहा है। इससे पहले ट्रेड यूनियनों ने 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2023 को भी इस तरह की देशव्यापी हड़तालें की थीं। इन आंदोलनों में लाखों कर्मचारी सड़कों पर उतरे थे और श्रमिक समर्थक नीतियों और विवादास्पद आर्थिक सुधारों को वापस लेने की मांग की थी।

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