क्या आप जानते हैं कि खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं?

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हारे का सहारा खाटूश्याम हमारा – खाटू श्याम जिन्हें लाडले सरकार भी कहा जाता है जिन्हें भगवान कृष्ण ने खाटू वाले बाबा को अपने नाम खाटूश्याम से पूजे जाने का वरदान दिया था और कहा था जैसे-जैसे कालयुग में पाप बढ़ेगा तब तब खाटू श्याम को लेकर आस्था बढ़ती जाएगी. आज के समय में लोगों के बीच खाटू श्याम को लेकर इतनी आस्था है कि लोग उन्हें हारे का सहारा, खाटूश्याम हमारा कहते हैं. खाटू श्याम को हारे का सहारा कहे जाने के पीछे के कहानी है और इस वजह से उन्हें खाटू श्याम हारे का सहारा कहा जाता है. वहीं इस बीच इस पोस्ट के जरिए हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि खाटू श्याम हारे का सहारा क्यों कहा जाता है.

Also Read- खाटू श्याम की अर्जी कैसे लगाई जाती है? इन बातों का रखें खास ध्यान. 

महाभारत के युद्ध से जुड़ा है किस्सा

खाटू श्याम को लेकर मान्यता है कि जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था और इस युद्ध के दौरन दुनियाभर के बड़े-बड़े राजा-महाराजा को धर्म और अधर्म का मार्ग चुनने को कहा गया और कई राजा-महाराजा ने अपनी सेना के साथ इस युद्ध में हिस्सा लिया. कई राजा-महाराजों ने कौरवों को चुना तो कुछ ने इस युद्ध में पांडवों की तरफ से लड़े. वहीं इस युद्ध में नौजवान बर्बरीक भी हिस्सा लेने के लिए आया और यही से हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा की कहानी शुरू हुई.

बर्बरीक ने माँ कही थी हारे का सहारा बनने की बात 

महाभारत युद्ध में जहाँ कई राजा-महाराजों ने पांडवों और कौरवों को चुना और इस युद्ध का हिस्से बने तो वहीं इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए बर्बरीक ने भी अपनी माता मौरवी से जिद्द करते हुए इस युद्ध में देखने की बात कही और उनकी माँ ने उन्हें इस युद्ध में जाने की इजाजत देते हुए कहा कि “जाओ बेटा हारे का सहारा बनना”. वहीं बर्बरीक ने अपनी माँ से कहा कि इस युद्ध में जो भी हारेगा मैं उनकी तरफ़ से युद्ध लडूंगा और यह कहते हुए बर्बरीक में रण भूमि की ओर चल दिए.

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SOURCE-GOOGLE

बर्बरीक ने किया था माँ से वादा 

वहीं जब बर्बरीक के इस युद्ध में आने का पता श्रीकृष्ण को चला और ये भी पता चला कि बर्बरीक ने अपनी माँ से कहा है कि जो भी हारेगा मैं उनकी तरफ़ से युद्ध लडूंगा. तो वहीं श्रीकृष्ण इस बात की खबर थी कि बर्बरीक ने इस युद्ध में हिस्सा लिया तो युद्ध का परिणाम एक दिन में भी आ सकता और ऐसा भी हो सकता है कि इस युद्ध के परिणाम कभी आये ही न क्योंकि बर्बरीक के पास दिव्य शक्तियां थी  जो उसे उन्हें भगवान शिव से मिली थीं. बर्बरीक के पास 3 बाण थे जो पुरी सृष्टि को ख़त्म कर सकते थे और अगर बर्बरीक ने युद्ध में हिस्सा लिया तो कही पांडवो की हार न हो जाए. जिसके बाद  श्री कृष्ण ने बर्बरीक को इस युद्ध में जाने से रोकने के एक योजना बनाई.

श्री कृष्ण ने बनाई बर्बरीक को रोकने की योजना 

जब बर्बरीक युद्ध को देखने के लिए जा रहे थे तभी रास्ते में श्री कृष्ण उन्हें एक ब्राह्मण के वेश में मिले और उन्हें अपनी शक्ति प्रदर्शन करने को कहा और फिर बर्बरीक ने अपनी वीरता दिखाते हुए बाण चलाया और पास एक पीपल का वृक्ष पर जितने भी पत्ते थे एक ही बाण से सभी पत्तों में छेद हो गए और एक पत्ता जो श्री कृष्ण के पैर के नीचे छिपा हुआ था वहां जाकर बाण रुक गया. वहीं इस शक्ति प्रदर्शन को देखते हुए श्रीकृष्ण सोच रहे थे बर्बरीक को इस युद्ध में जाने से रोकना पड़ेगा और श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान माँगा.

बर्बरीक ने श्री कृष्ण को दिखाई अपनी शक्ति 

श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शक्ति प्रदर्शन देखते हुए कहा कि आप बहुत बड़े योद्धा है बहुत महान है क्या आप मुझ गरीब ब्राह्मण को कुछ दान नहीं देंगे और बर्बरीक ने उन्हें दान देने का वादा कर दिया. श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान के रूप में उनका शीश मांग लिया और ब्राह्मण की ये बात सुनकर बर्बरीक को आभास हो गया कि यह कोई आम ब्राह्मण नहीं है  कोई देव हैं और उन्होंने ब्राह्मण से असली अवतार में आने के लिए कहा और उनसे अपना परिचय बताने का निवेदन किया. श्री कृष्ण अपने असली अवतार में आए और बर्बरीक को अपने दर्शन दिए.

Story of Barbarik's bravery- History of khatushyam, हारे का सहारा खाटूश्याम
source-google

श्री कृष्ण ने बर्बरीक ने माँगा उनका शीश 

बर्बरीक ने वचन के मुताबिक, श्री कृष्ण के चरणों में अपना शीश दान करने के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण से अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, मैं युद्ध को देखने की इच्छा रखता हूं इसीलिए आप मेरा सिर दान में ले लीजिए मगर महाभारत का युद्ध देखने की भी इच्छा पूरी करें जिसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुमको यह युद्ध देखने का सौभाग्य जरूर मिलेगा. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर भगवान के श्री चरणों में रख दिया. भगवान श्री कृष्ण ने शीश को एक ऊंचे स्थान पर रख दिया ताकि बर्बरीक महाभारत का युद्ध देख सके.

श्री कृष्ण ने दिया अपना नाम 

इसी के साथ बर्बरीक की इस दानवीरता से खुश होकर श्री कृष्ण ने उन्हें अपना नाम “श्याम” दिया साथ ही आशीर्वाद भी दिया की आने वाले युग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे. जब भी कोई हारा और टूटा हुआ भक्त आपके पास आएगा तुम्हारी पूजा से उसके सब काम दुःख दर्द पूरे हो जाएंगे और सभी काम भी पूरे हो जायेंगे. वहीं जहाँ पर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का सर रखा था आज वहां पार खाटू श्याम का मंदिर है और इसी पौराणिक कथा के अनुसार ही “खाटू श्याम को हारे का सहारा कहते हैं”.

Also Read- खाटू श्याम जी का इतिहास क्या है? पांडवों से जुड़ा है कनेक्शन. 

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