चीन के शंघाई शहर में रहते थे हजारों सिख, कम्युनिस्ट शासकों ने उजाड़ दिया आशियाना

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चीन के शहर शंघाई में एक समय था जब सिख पुलिसकर्मियों का अपना ही अलग रुतबा हुआ करता था. उस समय चीनी लोगों उनके डरते थे. शंघाई में 1940 के दशक में लगभग तीन हजार सिख रहते थे. वहा उनकी अलग कॉलोनी और गुरुद्वारा भी था. लेकिन 1949 में बाद शंघाई में सिखों स्थिति बदलने लगी. कम्युनिस्ट शासक माओ त्से तुंग को भारतीयों का चीन की पुलिस में काम करना पसंद नही था, वह नहीं चाहती थी कि एक भारतीय चीनी लोगों पर धौंस जमाएं. देखते ही देखते सिखों को चीनी पुलिस से हटाकर सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी पर ला दिया. सिखों की नई पीढियां वहां खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी. कुछ ही समय बाद चीन से सारे सिखों ने पलायन कर लिया था. खुशवंत सिंह ने 2012 में लिखा कि शंघाई शहर में जो गुरुद्वारा स्थापित था उसे भी बाद में  एक रिहायशी मकान में बदल दिया गया था.

Sikhs lived in Shanghai
Source- Google

आईए आज हम आपको बताएंगे कि सिखों को क्यों शंघाई छोड़न पड़ा था. क्यों सिखों को चीन से पलायन लेना करना पड़ा?

और पढ़ें : हिंदू-सिख एकता की पहचान है यह गुरुद्वारा, गुरु ग्रंथ साहिब जी के साथ हिन्दू देवी-देवता भी है विराजमान

शंघाई में सिख कब गए?

साल 1842 और 1860 के बीच अंग्रेजों ने अफीम युद्ध में चीन को हरा चीन की आर्थिक राजधानी शंघाई पर कब्जा कर लिया था. लेकिन चीनी लोगों को सम्भलना अपने आप में मुश्किल काम था. जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने लंबे-चौड़े सिख नौजवानों को शंघाई भेजने का फैसला किया. और वेतन होने के कारण सिख बड़ी मात्रा में पंजाब छोड़कर शंघाई जाने लगे. सिख हमेशा से कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार थे, इसीलिए चीनी लोग सिखों को पुलिसकर्मी के रूप में पसंद करने लगे थे. धीरे-धीरे चीन में सिखों का महत्व बढने लगा. सिख चीनी महिलाओं से शादी करके एक नए सामाजिक पपरिवेश की रचना करने लगे. शादी के बाद चीनी महिलाएं भी सिख धर्म अपना लेती थी.

Sikhs lived in Shanghai
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फिर समय ने अंगडाई ली और 1941 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर शंघाई पर कब्जा जमा लिया था. जहाँ अंग्रेजो का प्रभाव खत्म हो गया था, लेकिन सिख पुलिसकर्मी वहीं रह गए. एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस शंघाई गए थे, वहां रह रहे सीखे को आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का प्रस्ताव भी दिया गया था लेकिन नेता जी की मौत के बाद ये संभव नहीं हो सकता.

शंघाई से सिखों का पलायन

माओ त्से तुंग धर्म जिन्हें अफीम कहा जाता है, उनका मानना है कि धार्मिक विश्वास किसी भी देश को कमजोर बनाता है. इसलिए चीन की साम्यवादी सरकार नास्तिक थी. ज्सिके बाद साम्यवादी सरकार के बाद शंघाई में सिखों का रहना बहाल हो गया था. जिसके बाद सिखों के गुरूद्वारे को भी रिहायशी मकानों में बदल दिया गया. चीनी सरकार की कठोर पाबंदियों से सिखों को आपने धर्म से अलग कर दिया था. और कुछ ही समय में सिखों ने शंघाई से पलायन कर लिया था.

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लेकिन 1980 के बाद चीन ने अपनी नीति को बदली. और व्यापर के लिए विदेशियों के दरवाजें पर गए. आज के समय में भी चीन में सिख रहते हैं लेकिन अब सिख केवल व्यापारी बन कर रह गये हैं. 2011 से 2013 के बीच यीबू शहर में करीब चार लाख भारतीय व्यापार करने के लिए गए थे. जहाँ अब सिखों का गुरुद्वारा भी है. चीन में अब सिख बच्चों की पढाई मंदारिन भाषा में होती है. इससे अलग भाषा वह अपने घर में ही सीखते है.

और पढ़ें : जानिए कौन थे बाबा गुरबख्श सिंह जी, जिन्होंने युद्ध में सिर कटने के बाद नहीं गिरने दी अपनी तलवार 

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