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सरदार पटेल ने नवाब से ऐसे छीना था जूनागढ़, रियासतों के विलय में निभाई थी अहम भूमिका

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31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल ने देश की सेवा में अहम योगदान दिया है। उनका जन्म गुजरात में हुआ था और आजादी के बाद वे देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे हैं। महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। प्रखर व्यक्तित्व और अदम्य साहस की बदौलत ही उन्होंने भारत को एक धागे में पिरोने का काम किया। उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 में ली थी। आजादी के बाद बंटवारे के समय में सरदार पटेल ने भारतीय रियासतों के विलय से स्वतंत्र भारत को नए रूप में गढ़ने में अहम भूमिका निभाई थी।

राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है जन्मदिवस 

भारत की बागडोर को एक सूत्र में संभालने वाले पटेल ने लंदन में बैरिस्टर की पढाई की थी। लेकिन वो शुरुआत से ही महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे जिसके बाद उनके मन भारत की आजादी में योगदान देने की एक लौ जली। जिसके बाद उन्होंने खुद को स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को समर्पित कर दिया। आजादी में योगदान देने के लिए साल 2014 से हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय पर भड़के थे पटेल 

जूनागढ़ के नवाब महावत खान की रियासत के ज्यादातर हिस्सों का हक़ हिन्दुओं का था। लेकिन वहां अल्लाबख्श को अपदस्थ करके जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारे से शाहनवाज भुट्टो को दीवान बनाया गया। इस दौरान जिन्ना की नज़र कश्मीर पर थी। वो नेहरू के साथ जूनागढ़ के बहाने कश्मीर की सौदेबाजी करना चाहते थे। जिसके बाद जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय का एलान किया। इस बात पर सरदार पटेल काफी भड़क गए।

उन्होंने आक्रोशित होकर जूनागढ़ में सैन्य बल भेज दिया। हैरानी की बात तो ये रही कि वहां की जनता ने भी नवाब का साथ नहीं दिया।  अपने खिलाफ बढ़ते आंदोलन को देख महावत कराची भाग गया। जिसके बाद आखिरकार नवंबर 1947 के पहले सप्ताह में शाहनवाज भुट्टो ने पाकिस्तान के बजाय हिंदुस्तान में जूनागढ़ के विलय की घोषणा कर दी। इस तरह सरदार पटेल की बदौलत 20 फरवरी, 1948 में जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।

पटेल ने चलाया था ऑपरेशन पोलो 

देश की सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद को माना जाता था। उसका एरिया इतना बड़ा था कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल को मिलाया जाए तब भी हैदराबाद के बराबर वो नहीं टिक सकते थे। हैदराबाद के निजाम अली खान आसिफ ने अपनी रियासत को न ही पाकिस्तान और न ही भारत में शामिल होने का फैसला किया। बता दें कि हैदराबाद की 85 प्रतिशत हिंदू आबादी दी लेकिन सेना के वरिष्ठ पदों पर वहां मुस्लिमों का राज था। 15 अगस्त 1947 में निजाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। और पाकिस्तान से हथियारों की खरीद फरोख्त में लग गए। हैदराबाद के निजाम के इस फैसले के बाद सरदार पटेल ने ऑपेरेशन पोलो के तहत सैन्य कार्रवाई का फैसला किया। और 13 सितंबर 1948 में हैदराबाद पर आक्रमण कर दिया। आख़िरकार 17 सितंबर को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए और इस तरह हैदराबाद भारत में समां गया।

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