अफगानिस्तान के हिंदूकुश से लेकर तिब्बत के पठार और नेपाल
के हिमालय तक हर साल हजारों भूकंप आएंगे. इसे न तो कोई रोक सकता है. न ही इससे बचा
जा सकता है. बस एक ही तरीका है कि हमें पहले जानकारी मिल जाए. इससे भी कोई फायदा
नहीं होगा. क्योंकि हमारी जमीन लगातार यूरोप और चीन को धक्का दे रही है. अब जिस
दिन यूरोप या चीन की जमीन ने वापस रिएक्ट किया तो यहां बड़ी आपदा आएगी. ये भूकंप इसलिए आ रहे हैं क्योंकि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट (Indian
Tectonic Plate) लगातार यूरेशियन (Eurasian) और तिब्बतन प्लेट (Tibetan Plate) को दबा रही है. अब दो चीजें
जब आपस में मिलती हैं या टकराती हैं तो नुकसान होता ही है. ये सबकुछ धरती की ऊपरी
परत के ठीक नीचे हो रहा है. ये भूकंप इसलिए आ रहे हैं
क्योंकि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) लगातार यूरेशियन (Eurasian)
और तिब्बतन
प्लेट (Tibetan Plate) को दबा रही है. अब दो चीजें जब आपस में मिलती हैं या टकराती
हैं तो नुकसान होता ही है. ये सबकुछ धरती की ऊपरी परत के ठीक नीचे हो रहा है.
दिल्ली
में ये पहली बार नहीं
दिल्ली-एनसीआर
में भूकंप के झटके का मामला कोई पहली बार नहीं आया है, इससे पहले भी कई बार यहां भूकंप को महसूस किया
गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में दिल्ली को हाई रिस्क सिस्मिक जोन में रखा
गया है. आइए आपको बताते हैं कि क्या होता है सिस्मिक जोन (Seismic Zone), भारत में कुल कितने सिस्मिक जोन हैं
और राजधानी दिल्ली किस जोन का हिस्सा है?
क्या
होता है सिस्मिक जोन?
सिस्मिक
जोन का मतलब है उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र यानी वो जगह जहां भूकंप आने की
संभावना बहुत ज्यादा होती है. भारत में भूकंप की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे 2 से लेकर 5 तक के जोन में बांटा गया है. इसमें सबसे
ज्यादा खतरनाक सिस्मिक जोन 5 है,
जहां आठ से नौ तीव्रता वाले भूकंप के
आने की आशंका रहती है. भारत का करीब 11 फीसदी हिस्सा 5वें
जोन में आता है. 18 फीसदी
चौथे और 30 फीसदी तीसरे
जोन में आता है. बाकी बचे हिस्से पहले और दूसरे जोन में आते हैं.
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इन
प्लेटों के बीच चल रही है कुश्ती
इस बात
को आप कुछ इस तरह समझे कि अगर मैं लगातार आपको धक्का देता रहूं. पर आपके पीछे एक
दीवार है. जो आपको पीछे जाने नहीं दे रहा है. मेरे धक्के से लगातार आपके शरीर में
ऊर्जा स्टोर हो रही है. जिसे आप एक दबाव की तरह महसूस कर रहे हैं. आपको दर्द हो
रहा है. बेचैनी और उलझन भी होगी. ये सभी रिएक्शन एक एनर्जी स्टोर होने की वजह से
होती है. आखिरकार आप इस एनर्जी से छुटकारा पाने के लिए रिएक्ट करेंगे. मुझे वापस
धक्का देंगे या किसी तरह से मेरे सामने से हटेंगे. बस यही हालत बनी हुई है इंडियन, यूरेशियन और तिब्बत टेक्टोनिक प्लेट के बीच.
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हर साल
15-20 mm चीन की ओर खिसक रही है भारतीय प्लेट
असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 15 से 20 मिलिमीटर
तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रहा है. इतना बड़ा जमीन का टुकड़ा किसी अन्य बड़े टुकड़े
को धकेलेगा, तो कहीं न कहीं तो ऊर्जा
स्टोर होगी. तिब्बत की प्लेट खिसक नहीं पा रही हैं. इसलिए दोनों प्लेटों के नीचे
मौजूद ऊर्जा निकलती है. ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में निकलती है, तो उससे घबराने की जरुरत नहीं है. जब तेजी से ऊर्जा निकलती
है तो बड़ा भूकंप आता है.
कब
आएंगे भूकंप कोई बता नहीं सकता
कोई भी
प्राकृतिक आपदा कब आएगी किसी को नहीं पता होता. ठीक ऐसे ही भूकंप आने का खतरा हमे
पहले से पता नहीं होता. लेकिन हम ऐसी डिवाइस
बना सकते हैं जिससे कि भूकंप आने से कुछ देर पहले ही हम सतर्क हो जाएँ और उससे
बच्चे के लिए हर संभव कोशिश कर सकें. हाल ही में आए नेपाल के भूकंपों की पहली लहर की
सूचना आईआईटी रुड़की में लगे अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को 30 सेकेंड बाद ही मिल गई
थी. इन भूकंपों की वजह तिब्बतन प्लेट का रेजिस्ट करना है.
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दिल्ली
में अगर आया 5 की तीव्रता का भूकंप, तो लखनऊ हिला देगा
अगर भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5 से ज्यादा है तो
उसकी पहली लहर 10 मिनट में 500 किलोमीटर तक फैल जाती है. यानी दिल्ली में भूकंप का
केंद्र बनता है तो लखनऊ तक भूकंप की पहली लहर 10 मिनट में पहुंच जाएगी. ये जरूरी
नहीं रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता पांच ही रहे. वह कम होती चली जाती है. हल्के
झटके मध्य भारत के भोपाल तक महसूस किये जा सकते हैं.
टेक्टोनिक प्लेटों के हिलने, टकराने, चढ़ाव, ढलाव से लगातार प्लेटों के बीच तनाव बनता है. ऊर्जा बनती
है. अगर हल्के-फुल्के भूकंप आते रहते हैं, तो ये ऊर्जा रिलीज होती रहती है. ऐसे में बीच-बीच में बड़े भूकंपों के आने की
आशंका रहती है. अगर ऊर्जा का दबाव ज्यादा हो जाता है और यह एकसाथ तेजी से निकलने
का प्रयास करता है, तो भयानक भूकंप
सकते हैं.
इसलिए
है दिल्ली एनसीआरवालों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत
दिल्ली-NCR भूकंप के
पांचवें और चौथे जोन में है. यहां के लोगों को सतर्क रहने की जरुरत है. क्योंकि हम
भूकंप को न रोक सकते हैं, न टाल सकते
हैं. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में भूकंप से संबंधित अर्ली
वॉर्निंग सिस्टम लगाए जाएं. पाकिस्तान के हिंदूकुश में भूकंप आता है तो हमें 5
मिनट बाद पता चलता है कि भूकंप आया है. यानी एक लहर आती है. अगर हमारे पास एक
सिग्नल आता है कि भूकंप आ गया है, इस इलाके को यह
इतनी देर में हिला देगा. तो इसे कहते हैं अर्ली वॉर्निंग. हम इसके जरिए लोगों को
बचा सकते हैं. उत्तराखंड में हमने पहला ऐसा सिस्टम लॉन्च किया है. सरकार ऐसे
सिस्टम लगाने का प्रयास पूरी तरह से कर रही है.
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IIT रूड़की ने
विकसित किया भूकंप अर्ली वॉर्निंग एप
IIT Roorkee ने अर्ली
वॉर्निंग सिस्टम को लेकर एक एप विकसित किया है. इसका नाम है उत्तराखंड भूकंप अलर्ट
(Uttarakhand Bhookamp Alert). इस एप में एक
अलार्म है, जो भूकंप आने पर बजेगा.
यानी जैसे ही अलार्म बजे आप तुरंत सुरक्षित स्थानों पर चले जाइए. इसके अलावा अर्ली
वॉर्निंग नोटिफिकेशन मैसेज भी आएंगे. क्योंकि उत्तराखंड में अगर भूकंप आता है तो Delhi-NCR के लोगों को असर हो सकता है. लोग इस एप को
प्लेस्टोर या एपल आईस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं.
किस बेस
पर निर्धारित होता है जोन
एरिया
के स्ट्रक्चर के आधार पर इलाके को भूकंप की दृष्टि से खतरनाक और कम खतरनाक जोन में
विभाजित किया जाता है. बढ़ती आबादी और तेजी से बनती ऊंची इमारतों के कारण
दिल्ली-एनसीआर भूकंप की दृष्टि से और भी खतरे के घेरे में रखा गया है.
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किस
जोने का हिस्सा है दिल्ली
- Seismic Zone 5: सिस्मिक जोन 5 को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता
है. इसमें देश का पूरा पूर्वोत्तर इलाका, जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा, हिमाचल प्रदेश का कुछ हिस्सा और
उत्तराखंड के कुछ इलाके, गुजरात
का कच्छ, उत्तर बिहार और
अंडमान निकोबार द्वीप शामिल है - Seismic Zone 4: इसे भी काफी खतरनाक माना जाता है.
जोन 4 में भूकंप की
तीव्रता 7.9 से 8 तक हो सकती है. दिल्ली, एनसीआर के इलाके, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाके, यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ हिस्सा और पश्चिम तट
से सटा महाराष्ट्र और राजस्थान का इलाका आता है. - Seismic Zone 3: इसमें भूकंप की तीव्रता सात या उससे
कम होती है. इसमें केरल, गोवा,
लक्षदीप, यूपी, गुजरात और पश्चिम बंगाल के बचे हुए इलाके, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के इलाके आते हैं. चेन्नई,
मुंबई, भुवनेश्वर, कोलकाता और बेंगलुरु को भी जोन 3 में रखा गया है. - Seismic Zone 2:जोन 2 को बेहद कम खतरनाक जोन माना जाता है. यहां 4.9
तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है.
थिरुचिरापल्ली, बुलंदशहर,
मुरादाबाद, गोरखपुर, चंडीगढ़ आदि सिस्मिक जोन 2 में आते हैं.