Krishnapingal Sankashti Chaturthi Vrat Katha: कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा, संतान सुख की प्राप्ति के लिए विशेष व्रत

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Krishnapingal Sankashti Chaturthi Vrat Katha: हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है, और इस दिन विधिपूर्वक गणेश जी की पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की सिद्धि होती है। हर महीने की दोनों चतुर्थियों में से कुछ विशेष मानी जाती हैं, जिनमें आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी प्रमुख है। इस दिन कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी का व्रत खास माना जाता है, और इसे विशेष रूप से माताएं अपने संतान की उम्र बढ़ाने, सेहतमंद जीवन देने और सुखी जीवन के लिए करती हैं।

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कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 2025- Krishnapingal Sankashti Chaturthi Vrat Katha

इस साल कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 14 जून, 2025 को होगी, जो आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर आधारित है। तिथि 14 जून को दोपहर 03:46 बजे प्रारंभ होगी और 15 जून को दोपहर 03:51 बजे समाप्त होगी। चतुर्थी के दिन चंद्रमा की पूजा भी की जाती है, और तिथि का निर्धारण चंद्रोदय समय के आधार पर होता है, जो इस साल 14 जून को रात 10 बजकर 07 मिनट पर होगा। हालांकि, चांद निकलने का समय अलग-अलग शहरों में थोड़ा भिन्न हो सकता है।

कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि

इस दिन व्रत रखने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और भगवान गणेश का स्मरण करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद, गणेश भगवान की विधिपूर्वक पूजा करें और उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें। ‘ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप करें। व्रत कथा पढ़ने के बाद गणेश जी की आरती करें। रात को चांद के निकलने से पहले पुनः गणेश जी की पूजा और आरती करें, और चंद्रदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद फलाहार करें।

कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की कथा

कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की कथा द्वापर युग में माहिष्मति नगरी के एक प्रतापी राजा महीजित से जुड़ी हुई है। राजा महीजित एक पुण्यात्मा और धर्मनिष्ठ राजा थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान की कमी के कारण वे मानसिक रूप से परेशान रहते थे। उन्होंने कई यज्ञ और दान किए, लेकिन उन्हें संतान नहीं प्राप्त हुई। वे ब्राह्मणों और प्रजाजनों से इस विषय पर परामर्श करने गए और पूछा, “मेरी कोई संतान नहीं है, जबकि मैंने हमेशा धर्म का पालन किया है और प्रजा का अच्छे से ध्यान रखा है, फिर भी मुझे संतान क्यों नहीं मिल रही?”

राजा के इस सवाल का उत्तर देने के लिए विद्वान ब्राह्मणों ने उन्हें महर्षि लोमश के पास जाने की सलाह दी। राजा और उनकी प्रजा महर्षि लोमश के पास गए और अपनी समस्या बताई। महर्षि लोमश ने कहा, “आपको संतान सुख की प्राप्ति के लिए आषाढ़ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करनी होगी। यदि आप श्रद्धापूर्वक इस व्रत को रखते हैं, तो भगवान गणेश की कृपा से आपको संतान की प्राप्ति होगी।”

राजा ने महर्षि लोमश के बताए गए उपायों को स्वीकार किया और पूरी श्रद्धा से गणेश चतुर्थी का व्रत रखा। इसके बाद राजा की पत्नी, रानी सुदक्षिणा को एक सुंदर और सुलक्षण पुत्र की प्राप्ति हुई। इस व्रत का प्रभाव इतना लाभकारी था कि ना केवल राजा और रानी को संतान सुख मिला, बल्कि वे समृद्ध और सुखी जीवन जीने लगे।

व्रत का प्रभाव

श्री कृष्ण जी के अनुसार, कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी का व्रत न केवल संतान सुख देता है, बल्कि यह व्रत करने से व्यक्ति को समस्त सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। साथ ही, यह व्रत स्वास्थ्य, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।

इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ दूर होती हैं और भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से है। हमारे द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी का स्रोत विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, परंपराओं और ज्ञात विद्वानों से लिया गया है, लेकिन यह सत्यापन का दावा नहीं करता। कृपया किसी भी धार्मिक आस्था या विचारधारा से संबंधित गहरे अध्ययन के लिए आधिकारिक धार्मिक गुरु, विद्वान, या ग्रंथों से परामर्श लें।

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