जानिए क्यों गुरु तेग बहादुर को कहा जाता था 'हिंद की चादर'

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इस वजह से 28 नवंबर को मनाया  जाता है शहीदी दिवस 

सिख धर्म के 10 गुरुओं में से नौवें, गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) की मृत्यु आज ही के दिन यानी 28 नवंबर को साल 1675 में हुई थी.  गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था जिसके लिए उनको ‘हिन्द की चादर’ (hind ki chadar) कहा गया. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि गुरु तेग बहादुर कौन थे और क्यों उन्हें ‘हिन्द की चादर” कहा जाता था. 

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जानिए कौन थे गुरु तेग बहादुर

गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म बैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब (Punjab) के अमृतसर (Amritsar) में हुआ था. पिता गुरु हरगोबिंद ने उन्हें त्यागमल नाम दिया था. वहीं मुगलों के खिलाफ युद्ध में उनकी बहादुरी को देखते हुए उनका नाम तेग बहादुर पड़ा. तेग बहादुर का मतलब होता है तलवार का धनी (lord of the sword). 

इस्लाम कबूल ना करके मौत को चुना 

दरअसल, मुगल शासक औरंगजेब  (Mughal Emperor Aurangzeb) ने उन्हें जान के बदले अपना धर्म छोड़कर इस्लाम (Islam)  कबूल करने को कहा था और इस दौरान उन्होने इस्लाम कबूल न करके जान देने का विकल्प चुना. जिसके बाद औरंगजेब 28 नवंबर 1675 में दिल्ली के लाल किले (Red Fort) के सामने चांदनी चौक (Chandni Chowk) पर गुरु तेग बहादुर सिर कलम करवा दिया था. इसलिए इस दिन को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day) के रूप में मनाया जाता है और उनकी शहादत को याद किया जाता है.

गुरु तेग बहादुर को कहा जाता है ‘हिंद की चादर’

गुरु तेग बहादुर ने गुरु नानक के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश में कश्मीर और असम जैसे स्थानों की लंबी यात्रा की और 20 सालों तक साधना करी. वहीं इस्लाम कबूल न करके जान देने का विकल्प चुनने वाले गुरु तेग बहादुर दुनिया में मानव अधिकारियों के लिए पहली शहादत थी, इसलिए उन्हें सम्मान के साथ ‘हिंद की चादर’  (hind ki chadar) कहा जाता है.

गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा साहिब (Gurdwara Sahib) बना है. जिसे गुरुद्वारा शीश गंज (Gurudwara Sheesh Ganj) के नाम से जाना जाता है. 

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