सरकार के डेटा से गायब कैसे हो गया बाबा साहेब का इस्तीफा?

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बाबा साहेब ने देश को संविधान दिया…देश को एक नई दिशा दी…एक नई पहचान दी…उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया. कानून मंत्री बनने के बाद भी वह देश को नई दिशा देने और बहुजनों के उत्थान के लिए काम करते रहे. उन्होंने मजदूरों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया. इसी कड़ी में वह संसद में हिंदू कोड बिल लेकर आए थे, जिसका मनुवादियों ने जमकर विरोध किया. जिसके बाद उनके द्वारा प्रस्तावित बिल निरस्त हो गया. इससे क्षुब्ध होकर बाबा साहेब ने केंद्रीय कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सरकार के डोमेन से बाबा साहेब का इस्तीफा (Baba Saheb Resignation) ही गायब हो गया है. आखिर ये खुलासा हुआ कैसे, आइए समझते हैं.

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जानिए क्या है पूरा मामला

न्यूज पेपर द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत नाम के एक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्वीकार किया गया बाबा साहेब के त्यागपत्र की प्रमाणिक प्रति मांगी थी. प्रशांत ने अपनी याचिका में यह जानकारी भी मांगी थी कि आखिर बाबा साहेब ने अपने पद से इस्तीफा क्यों दिया था? प्रशांत ने जो याचिका डाली थी उसका सफर प्रधानमंत्री कार्यालय से शुरु होता है. पीएमओ ने याचिका को कैबिनेट सचिवालय भेजा और याचिकाकर्ता को बताया गया कि बाबा साहेब का इस्तीफा 11 अक्टूबर 1951 को मंजूर हो गया था.

कैबिनेट सचिवालय तारीख से अधिक जानकारी उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा. सचिवालय की ओऱ से कहा गया कि इस बिंदु या इस विषय से संबंधित और जानकारी हमारे पास नहीं है. याचिका का सफर जारी रहा. देश के तीन शीर्ष कार्यालयों से होकर गुजरने के बाद भी बाबा साहेब के त्यागपत्र के बारे में तारीख से अधिक कोई जानकारी नहीं मिली.

सरकार के रिकॉर्ड में नहीं है त्यागपत्र

बाबा साहेब के त्यागपत्र (Dr Ambedkar Resignation letter) की कॉपी न मिलने पर प्रशांत ने केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष अपनी अपील दायर की. सूचना आयोग की ओर से कहा गया कि भारत के पहले कानून मंत्री के त्य़ागपत्र की कॉपी प्रधानमंत्री कार्यालय या राष्ट्रपति सचिवालय के रिकॉर्ड में होनी चाहिए. इसके पीछे आयोग की ओर से तर्क दिया गया कि इन्हीं दोनों कार्यालय के पास किसी भी मंत्रिमंडल के सदस्य के त्यागपत्र के स्वीकार और अस्वीकार करने का रिकॉर्ड होता है.

पीएमओ की सीपीआईयो ने याचिका को राष्ट्रपति सचिवालय भेजकर यह बोला कि मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य के त्यागपत्र को स्वीकार और अस्वीकार करने का काम राष्ट्रपति का है. यह उनके संवैधानिक कामकाज के अंतर्गत आता है.इसके बाद कैबिनेट सचिवालय के सीपीआईओ ने कहा कि अपील में मांगी गई कोई भी सूचना कैबिनेट सचिवालय के पास नहीं है. हमने इसके लिए संवैधानिक मामलों के अनुभागों में खोजबीन की लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा मांगा गया दस्तावेज नहीं मिला. रिकॉर्ड में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

यानी सीधा और सपाट बात यह है कि बाबा साहेब का इस्तीफा सरकार के डोमेन में ही नहीं है. यह कब गायब हुआ, कैसे गायब हुआ, किसने गायब किया…स्पष्ट है कि इसके बारे में भी सरकार के पास बहुत कुछ जानकारी नहीं होगी. देश के पहले कानून मंत्री का इस्तीफा गायब हो गया, राष्ट्रपति द्वारा इस्तीफा की स्वीकृति वाला लेटर गायब हो गया…हम सब देखते रह गए. सरकार कहती है कि हम देश के अंतिम नागरिक तक चीजें पहुंचाएंगे….ऐसे में स्थिति का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं!

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