Baba Baghel Singh Story in Hindi – सिखों ने एक बार नहीं बल्कि कई बार अफगानियों और मुगलों को धूल चटाया है. कई बार सिखों की तलवार ने आक्रांताओं के लहु का स्वाद चखा है…सिखों की कुर्बानी का इतिहास काफी झंकझोरने वाला है…लेकिन एक ऐसा सिख योद्धा भी था जिसने औरंगजेब के पोते को परास्त कर दिल्ली के लाल किले पर कब्जा जमाया था और केसरिया झंडा भी फहराया था…एक ऐसा सिख योद्धा भी था जिसने दिल्ली में औरंगजेब के पोते (Shah Alam) से तलवार की नोक पर 7 गुरुद्वारों के निर्माण कराएं, जहां गुरु साहिबान के पैर पड़े थे.
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बघेल सिंह का जन्म कब हुआ था
बाबा बघेल सिंह (Who was Baba Baghel Singh) एक अच्छे सिपाही होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे राजनीतिक वार्ताकार भी थे और अपने पक्ष में कई विरोधियों को जीतने में सक्षम थे. 18वीं सदी में अहमद शाह दुर्रानी के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में मुगल सत्ता के पतन के मद्देनजर, सिखों ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया था. इनका जन्म 1730 के आसपास अमृतसर (Baghel Singh Date of Birth) में एक जाट परिवार में हुआ था. दरअसल, महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल से पहले पंजाब 12 सिख मिसलों में विभाजित था और हर मिसल के एक सरदार थे…इन्हीं मिसलों में से एक था करोड़ सिंघिया मिसल. इस मिसल के प्रमुख थे करोड़ सिंह…उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने बघेल सिंह को गोद ले लिया था…ऐसे में करोड़ा सिंह के बाद बघेल सिंह उनके उत्तराधिकारी बनें. 1765 में वो इस मिसल के नेता बने थे.
बघेल सिंह ने अपनी युद्ध कौशल नीति और वीरता से जहाँ अपना धिकार क्षेत्र बढ़ते चले गए तो वहीं इस बीच जहाँ उन्होंने करनाल व जगाधरी के बीच वलौंधी को अपनी राजधानी बना लिया था. वहीं, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की एक किताब दिल्ली फतह दिवस के अनुसार दिल्ली के लाल किले पर कब्जा करने से पहले बाबा बघेल सिंह और जस्सा सिंह आहलूवालिया ने गंगा यमुना के बीच कई क्षेत्रों पर आक्रमण कर उनसे लगान वसूला और वहां के नवाबों की दौलत पर कब्जा जमा लिया था.
औरंगजेब के पोते को तबाह कर दिया
कहा जाता है कि नवाबों से वसूले गए धन के कुछ हिस्सों को इन सिख वीरों ने 1762 में अहमद शाह अब्दाली (Ahmed Shah Abdali) के आक्रमण के कारण तबाह हुए श्रीदरबार साहिब के निर्माण के लिए भेज दिया था. इसी बीच अहमद शाह अब्दाली ने एक बार फिर से भारत पर आक्रमण कर दिया. इन अफगानियों की टक्कर एक बार फिर से सिख योद्धाओं से हुई और इस युद्ध में सिखों ने अफगानियों को करारी शिकस्त दी…दूसरी ओर सिखों के बारंबार आक्रमण ने दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक शाह आलम…जो बहादुर शाह जफर 1 का बेटा और औरंगजेब का पोता था, उसे तबाह कर दिया.
सिखों ने दिल्ली (Sikh attack on Delhi full Details) पर 1764 से लेकर 1783 लक यानी 19 वर्षों में 12 हमले किए थे और शाह आलम को ऐसा घाव दिया था कि वह सिखों के नाम से ही कांपने लगता था. दिल्ली पर जब सिखों ने 10 वीं बार चढ़ाई करने की प्लानिंग शुरु की तो शाह आलम को इसकी भनक लग गई. डर से वह बेचैन हो उठा…तब उसने अपने वजीरों को सिखों से बातचीत करने को कहा. लेकिन उसका कोई कारनामा काम नहीं आया. फिर क्या था, 12 अप्रैल 1781 को सिख योद्धाओं ने यमुना पार की और दिल्ली से 32 किलो मीटर दूर स्थित बागपत पर आक्रमण पर कर दिया. सिखों ने बागपत को तबाह कर दिया और खेकड़ा को बर्बाद कर दिया. इसके ठीक बाद 16 अप्रैल को सिखों ने शहादरा और पटपड़गंज पर हमला बोल दिया और इन्हें लूट लिया था….लगातार हुए हमले से शाह आलम घबरा गया था…
तीस हजारी के पीछे की कहानी
हालांकि, 20 अप्रैल 1781 को सिख योद्धाओं ने लूट की संपत्ति के साथ यमुना पार कर लिया और सामान बेचने लगे. इसके बाद 28 मार्च 1782 को मुगलों की ओर से सिखों को परेशान करने की कोशिश की गई. इसके जवाब में सिखों ने दिल्ली पर आक्रमण किया और दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक सबकुछ लूट लिया. अब समय आ गया था दिल्ली पर सिखों के बारहवें आक्रमण का. समय था 1783 का…बाबा बघेल सिंह (Baba Baghel Singh), जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया की अगुवाई में 40,000 सिखों ने दिल्ली में डेरा डाला…सिख सैनिकों को 3 हिस्सों में बांटा गया..5000 सिपाही मजनू के टीले पर तैनात कर दिए गए, 5000 सिपाहियों की दूसरी टुकड़ी अजमेरी गेट पर तैनात की गई और बाकी बची 30,000 की सेना जिसमें अधिकतर घुड़सवार थे उनको सब्जी मंडी व कश्मीरी गेट के स्थान पर खड़ा कर दिया गया जिसे आजकल “तीस हजारी” के नाम से जाना जाता है.
तीस हजारी को यह नाम लाल किले पर आक्रमण करने वाले 30 हजार सिख सैनिकों के कारण ही दिया गया था जो नंगी तलवार लेकर मुगलों का काम तमाम करने के लिए वहां पर तैनात थे. फिर क्या था…मुगलों और सिखों के बीच भयानक युद्ध शुरु हुआ. सिखों ने मुगलों को गाजर मूली की तरह काट डाला और दिल्ली पर कब्जा जमा लिया… सिख सेना ने लाल किले के मुख्य द्वार पर खालसा पंथ का केसरी निशान साहिब झंडा फहराया ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ था जब सिख सेना ने लाल किले पर कब्जा किया था.
लाल किले पर फहराया केसरिया झंडा
दिल्ली पर कब्जे के साथ ही अब शाह आलम (Baba Baghel Singh Story) के ऊपर मौत मंडराने लगी थी लेकिन शाह आलम की बीबी बेगम सबरू ने पूरा काम तमाम कर दिया. वह बहुत बड़ी राजनीतिज्ञ थी…जब इनकी अपने जान पर बन आई तब इन्होंने तीनों जनरलों यानी बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया को अपना भाई बना लिया और दो शर्तें उनके सामने रख दी. बेगम समरू की पहली शर्त यह थी कि शाह आलम का जीवन बख्श दिया जाए और दूसरी शर्त यह थी कि लाल किले को उनके कब्जे में रहने दिया जाए. बेगम की इन मांगों के जवाब में सिख जनरलों ने 4 शर्तें रखी. उनकी शर्तें थी कि वह सभी स्थान जहां गुरु साहिबान के चरण पड़े, जहां गुरु तेग बहादुर साहिब को शहीद किया गया और माता सुंदरी व माता साहिब कौर जी के निवास स्थानों का अधिकार सिखों को दिया जाए.
बादशाह शाह आलम (Baba Baghel Singh Story) से कहा गया कि वह दिल्ली में उन 7 स्थानों पर गुरुद्वारा के निर्माण का आदेश जारी करें जहां गुरु साहिबान के पैर पड़े थे. इसके अलावा सिखों ने गुरुद्वारों के निर्माण के अलावा उसके अन्य खर्चों के लिए शाह आलम से कर की वसूली में से 6आने प्रति रुपैया देने की डिमांड की. साथ ही यह भी कहा कि जब तक गुरुद्वारों का निर्माण हो नहीं जाता, तब तक 4000 सिख सैनिक दिल्ली में ही रहेंगे. आखिरकार शाह आलम को यह बात माननी पड़ी थी. बाबा बघेल सिंह 4000 सैनिकों के साथ दिल्ली में ही रुके. वहीं, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढिया लाल किले के दीवाने आम का 6 फुट लंबा, 4 फुट चौड़ा और 9 इंच मोटा पत्थर का तख्त उखाड़कर अमृतसर ले गए. यह तख्त आज भी अमृतसर के नजदीक बने रामगढ़िया बुर्ज में रखा हुआ है.
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