साका सरहिंद क्या है – सिख धर्म में कई गुरु हुए जिन्होंने अपने देश और धर्म को बचाने के लिए हंसी-खुशी अपने प्राणों का बलिदान दिया. जहाँ सिख धर्म के कई गुरुओं का बलिदान धर्म को बचाने और बढ़ाने के लिए याद किया जाता है तो वहीं सिख धर्मं में बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत इतिहास की सबसे ज्यादा दर्दनाक घटना में से एक है. जिसको साका सरहिंद के नाम से जाना गया. वही इस पोस्ट के जरिए हम आपको इसी साका सरहिंद की घटना के बारे में बताने जा रहे हैं.
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मुगल शासकों की दरिंदगी दिखाती है ये घटना
जिस घटना की हम बात कर रहे हैं वो घटना मुगल शासकों की दरिंदगी दिखती है. ये घटना साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह जी जो 9 साल के थे और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जी जो 7 साल के थे. उनके साथ हुई थी. जिन्होंने अपनी दादी मां को हौसला देते हुए कहा कि हम गुरु तेग बहादुर साहिब के पोते हैं, जालिमों का जुल्म हमें अपने धर्म से नहीं हिला सकता और जब उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया तब उन्होंने जो बोले सो निहाल के नारे लगाए और इसी हौसले को देखते हुए मुगल शासकों ने उन्हें बड़ी बेहरमी से मार डाला.
एक हो गए पहाड़ी राजा और मुगल शासक
गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के जुल्मों का सामना करने के लिए 1699 के बैसाखी वाले दिन खालसा पंथ की स्थापना करके सिखों को संत सिपाही बनाया. ये खालसा फौज का निर्माण निर्दोष, मासूम व बेसहारों का सहारा बनने के लिए बनाई गयी और इस वजह से आम लोगों को जीवन आसान हो गया था. जहाँ लोग अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगे. यही वजह थी जब मुगलों के जुल्मो कि शिकायत कम हो गयी थी लेकिन आनंदपुर साहिब जहाँ गुरु साहिब दरबार लगाते थे वहां पहाड़ी राजपूतों के जुल्मों की बात सामने आने लगी और खालसा फौज ने पहाड़ी राजपूतों के जुल्मों से भी लोगों को बचाया और इस वजह से पहाड़ी राजा मुगलों के साथ मिल गए और आनंदपुर साहिब का घेराव कर दिया.
राजपूत राजाओं और मुगलों ने किया विश्वासघात
जहाँ आनंदपुर साहिब का घेराव करने के बाद राजाओं और मुगलों ने गुरु साहिब के समाने झूठी कसम खाकर ये कहा कि आनंदपुर साहिब छोड़ दो, हमारा आपसे कोई झगड़ा नहीं है हम आपको कोई नुकसान नहीं करेंगे तो वहीं सिखों ने भी गुरु जी से प्रार्थना करते हुए जीवन बचाने के लिए आनंदपुर साहिब का किला छोड़ने की बात कही और फिर गुरु साहिब ने आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया लेकिन राजपूत राजाओं और मुगलों ने विश्वासघात करते हुए उनके पीछे से हमला कर दिया और इस हमले में उनका परिवार अलग हो गया.
गुरु की रसोइया ने की गद्दारी – साका सरहिंद क्या है
परिवार अलग होने के बाद गुरु के घर में खाना बनाने वाली रसोइया गंगू माता गुजरी जी और उनके छोटे साहिबजादों को अपने घर ले आई. इसी दौरान मुग़ल शासक ने ऐलान किया की जो गुरु गोबिंद सिंह जी या उनके परिवार के किसी सदस्य को पकड़वाएगा उसे बड़ा इनाम दिया जाएगा और इनाम के लालच में गुरु साहिब कि रसोइया गंगू माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों को गिरफ्तार करवा दिया.
माता और छोटे साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में किया गया कैद
माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों को गिरफ्तारी के बाद उन्हें एक ठंडे बुर्ज पर कैद कर लिया गया और फिर माता गुजरी जी व साहिबजादों पर मुकद्दमा चलाते हुए काजी को बुलाया गया और पूछा गया कि इन बच्चों को क्या सजा दी जाए काजी ने कहा कि कुरान के मुताबिक छोटे बच्चों को सजा नहीं दी जा सकती, इसलिए इन्हें छोड़ दिया जाए. सूबा सरहिंद के करीबी सुच्चा नंद ने कहा कि बच्चो अगर तुम्हें छोड़ दिया जाए तो बाहर जाकर क्या करोगे? साथ ही यह भी झूठ बोला कि तुम्हारे पिता गुरु गोबिंद सिंह जी भी मारे गए हैं. साहिबजादों ने एक आवाज में कहा कि हम बाहर जाकर अपने पिता जी की तरह फौज तैयार कर जुल्म के खिलाफ डट कर लडेंग़े.
सुच्चा नंद ने सूबेदार को दिया साहिबजादों को मारने की बात
साका सरहिंद क्या है – वहीं साहिबजादों के इस बातों की वजह सुच्चा नंद ने सूबेदार को कहा कि इन बच्चों को जीवित छोडऩे की गलती न की जाए. ये आम बच्चे नहीं, ये गुरु गोबिंद सिंह के बच्चे हैं, बड़े होकर आपके लिए ही बड़ी मुश्किलें खड़ी करेंगे. इसके बाद वजीद खान ने नवाब शेर खान को बुलाया और कहा कि अगर तूने गुरु गोबिंद सिंह से अपने भाई और भतीजे की मौत का बदला लेना है तो इन बच्चों को मार कर ले सकता है लेकिन नवाब शेर खान ने ऐसा करने से मन कर दिया है और कहा कि गुरु गोबिंद सिंह से टक्कर हुई तो मैदान में लड़ूंगा.
साहिबजादों को मिली जिंदा दीवार में चुनवाने की सजा
नवाब शेर खान के जवाब के बाद सूबा सरहिंद ने बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को जिंदा दीवार में चुनवाने का हुक्म जारी कर दिया. इसी वजह से इस घटना को इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना से जाना जाता है और घटना हमें बताती है कि सिखों के गुरुओं के साथ-साथ उनके साहिबजादों ने हमारे धर्म के लिए हंसते-हंसते जान दे दी.
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