कौन थे बाबा श्रीचंद – सिख धर्म जिसमें ‘स्मरण’ और ‘सेवा’ को खास महत्व दिया गया क्योंकि सिख धर्म में ‘स्मरण’ जो ‘सिमरन’ बना गया जिसका मतलब याद करना है और सेवा जो सिखों द्वारा गुरुद्वारों में देखी जा सकती है. सिख धर्म में सभी गुरुओं और ग्रन्थ साहिब को याद किया जाता है और गुरुओं और ग्रन्थ साहिब की ही अरदास होती है. सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी समेत सभी गुरुओं का नाम सिख धर्म में हर जगह लिया जाता है लेकिन सिख धर्म की स्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी के बेटे ने सिख धर्म छोड़ दिया. गुरु नानक देव जी के बेटे श्रीचंद ने सिख धर्म को छोड़ अलग रास्ते पर चल पड़े थे. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि गुरु नानक देव जी के बेटे के विचार उनसे लग क्यों थे.
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कौन थे बाबा श्रीचंद क्यों छोड़ा था सिख धर्म ?
जानकारी के अनुसार, 15वीं सदी में गुरु नानक जी ने सिख धर्म की स्थापना की और उसके बाद ही सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया. तो वहीं गुरु नानक देव जी के बेटे बाबा श्रीचंद ने पिता इन सभी कामों को छोड़कर ब्रह्मचेतना में लीन हो गए. श्रीचंद बचपन से ही संन्यास ग्रहण की इच्छा थी,
जहाँ गुरु नानक जी ने सिख धर्म को आगे बढ़ा रहे थे जहाँ गुरु नानक जी संसार में रह कर ज्ञान अर्जन पर बल देने की बात करते थे, गृहस्थी बसाने का उपदेश देते थे तो वहीं श्रीचंद बचपन से ही संन्यास ग्रहण की इच्छा रखते थे वो जहाँ जंगल में रहने की बातें करते थे और संसार के त्यागने की बात करते थे और इस वजह से उन्होंने पिता द्वारा स्थापित किए हुए सिख धर्म को छोड़कर संन्यास ले लिया.
5 सिख गुरुओं से बाबा श्रीचंद के अच्छे रिश्ते
वहीं सिखों में मान्यता है कि बाबा श्रीचंद जी का जीवन काफी लंबा था और अपने 135 वर्ष के आयुकाल में उन्होंने 5 सिख गुरुओं से अच्छे रिश्ते निभाए. तीसरे गुरु अमर दास के बेटे बाबा मोहन उनके संप्रदाय में शामिल हुए. वहीं जवाहरलाल नेहरू की केंद्रीय कैबिनेट में कृषि मंत्री का पद संभाल चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने बाबा श्रीचंद जी को लेकर लिखा था कि जब महाराणा प्रताप अकबर से लड़ते-लड़ते परेशान और निराश हो गए थे, तब बाबा श्रीचंद ने उनका उत्साहवर्धन किया था. वहीं प्राचीन काल से ही भारत में ऋषि-मुनि राजाओं को सही मार्ग दिखाते रहे हैं और ऐसा सही मार्ग पर चलने की रह बाबा श्रीचंद जी दिखाते थे.
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