DoT latest news: भारत का टेलीकॉम सेक्टर आज सिर्फ कॉल और इंटरनेट तक सीमित नहीं रह गया है। यह देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था, गवर्नेंस, फाइनेंशियल इन्क्लूजन और सामाजिक बदलाव की रीढ़ बन चुका है। इसी तेजी से बढ़ते डिजिटल इकोसिस्टम को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में दूरसंचार विभाग (DoT) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने एक अहम पहल की है।
शुक्रवार को DoT ने जानकारी दी कि वह UNDP के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन कर रहा है, जिसका उद्देश्य टेलीकॉम सेक्टर में सर्कुलर इकॉनमी मॉडल को अपनाने के लिए ठोस एक्शन प्लान तैयार करना है। DoT ने माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म X पर कहा कि यह मंच नीति निर्माताओं, इंडस्ट्री लीडर्स, टेक्नोलॉजी प्रोवाइडर्स और पूरी वैल्यू चेन से जुड़े स्टेकहोल्डर्स को एक साथ लाएगा।
DoT के मुताबिक, यह वर्कशॉप सिर्फ चर्चा तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि सहयोग और सह-निर्माण (co-creation) के जरिए ऐसे व्यावहारिक रास्ते तलाशे जाएंगे, जिनसे टेलीकॉम वैल्यू चेन में सर्कुलर प्रैक्टिस को जमीन पर उतारा जा सके। इसका मकसद इनोवेशन को बढ़ावा देना, जिम्मेदार उत्पादन को अपनाना और भारत के टेलीकॉम इकोसिस्टम को लंबे समय तक टिकाऊ बनाना है।
वर्कशॉप में दिखी मजबूत भागीदारी (DoT latest news)
इस राष्ट्रीय कार्यशाला में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), UNDP, दूरसंचार विभाग, Telecommunications Consultants India Limited (TCIL), टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स, उपकरण निर्माता कंपनियों और टेक्नोलॉजी वेंडर्स के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में यह साफ संदेश उभरकर सामने आया कि अब टेलीकॉम सेक्टर में सर्कुलर इकॉनमी कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन चुकी है।
टेलीकॉम सेक्टर और सर्कुलर इकॉनमी क्यों ज़रूरी?
कार्यशाला में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि आज भारत का टेलीकॉम सेक्टर महज एक उद्योग नहीं, बल्कि देश का राष्ट्रीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर है। भारत में 1.18 अरब से अधिक टेलीफोन उपभोक्ता हैं और 86.8 करोड़ से ज्यादा लोग ब्रॉडबैंड सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। देश भर में 7.7 लाख से अधिक मोबाइल टावर और करीब 35 लाख किलोमीटर का ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछ चुका है। 5G सेवाएं अब 700 से ज्यादा जिलों तक पहुंच चुकी हैं और इसका लगातार विस्तार हो रहा है।
टेलीकॉम सेक्टर का योगदान देश की जीडीपी में करीब छह प्रतिशत तक पहुंच चुका है और 5G डेंसिफिकेशन, डेटा सेंटर्स, फाइबर नेटवर्क और बढ़ती डिवाइस पेनिट्रेशन के चलते इसका प्रभाव और गहरा होता जा रहा है। हालांकि, इस तेज़ डिजिटल विस्तार के साथ संसाधनों की बढ़ती खपत, ऊर्जा की मांग, ई-वेस्ट और सप्लाई चेन से जुड़ी चुनौतियां भी सामने आ रही हैं।
‘Take–Make–Dispose’ मॉडल अब नहीं है कारगर
वर्कशॉप में यह बात बार-बार सामने आई कि पारंपरिक “लेना–बनाना–फेंकना” (Take–Make–Dispose) वाला मॉडल अब भारत जैसे बड़े और महत्वाकांक्षी देश के लिए टिकाऊ नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मॉडल से कच्चे माल पर दबाव बढ़ता है, ई-वेस्ट की समस्या गंभीर होती जाती है और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करना मुश्किल हो जाता है।
भारत हर साल बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करता है। उद्योग के अनुमान के अनुसार देश में हर साल 38 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा ई-वेस्ट निकलता है। हालांकि अभी भी इसका एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक सेक्टर में चला जाता है, लेकिन एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) नियमों के सख्त होने और अनुपालन बढ़ने से अब औपचारिक रीसाइक्लिंग का हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
सर्कुलर इकॉनमी बन सकती है व्यावहारिक समाधान
वर्कशॉप में यह बात उभरकर सामने आई कि सर्कुलर इकॉनमी मॉडल टेलीकॉम सेक्टर के लिए एक व्यावहारिक और दूरदर्शी समाधान है। यह मॉडल उत्पादों को लंबे समय तक उपयोग में रखने, उनकी मरम्मत, री-यूज़, रीसाइक्लिंग और जिम्मेदार निपटान पर जोर देता है। टेलीकॉम सेक्टर में इसका मतलब है कि नेटवर्क उपकरण, राउटर, मॉडेम, बेस ट्रांसीवर स्टेशन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स को जल्द फेंकने की बजाय दोबारा इस्तेमाल या अपग्रेड किया जाए।
अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) की परिभाषा के अनुसार, टेलीकॉम में सर्कुलरिटी एक ऐसा सिस्टम है जो डिज़ाइन से ही रिस्टोरेटिव और रीजनरेटिव होता है और जिसका लक्ष्य कचरे को न्यूनतम या शून्य के करीब लाना है।
सरकार की नीतियों में सर्कुलर सोच को मिल रहा है स्थान
सरकार ने सर्कुलर इकॉनमी को भविष्य की रणनीति के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार किया है। 2021 में इसके लिए 11 सेक्टोरल कमेटियां बनाई गई थीं, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम सेक्टर भी शामिल हैं। टेलीकॉम सेक्टर के लिए विज़न, स्ट्रैटेजी और एक्शन प्लान का ड्राफ्ट तैयार किया जा चुका है और वह अब अंतिम चरण में है।
ड्राफ्ट नेशनल टेलीकॉम पॉलिसी 2025 में टेलीकॉम मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग को अनिवार्य बनाने, सर्कुलर इकॉनमी मॉडल अपनाने, रिफर्बिश्ड प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देने और ‘राइट टू रिपेयर’ जैसी पहल को मजबूत करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके साथ ही आईटी मंत्रालय भी तकनीक, स्किल डेवलपमेंट और नीतिगत प्रयासों के जरिए ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
टेक्नोलॉजी बनेगी सर्कुलर टेलीकॉम की धुरी
इस पहल में टेक्नोलॉजी को केवल सपोर्ट सिस्टम नहीं, बल्कि सर्कुलर इकॉनमी की रीढ़ माना गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का उपयोग नेटवर्क उपकरणों की समय रहते मरम्मत और उनके जीवनकाल को बढ़ाने में किया जा सकता है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स के ज़रिये उपकरणों की ट्रैकिंग और संसाधनों के बेहतर उपयोग पर नजर रखी जा सकती है। वहीं ब्लॉकचेन तकनीक सप्लाई चेन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकती है।
साझेदारी और सहयोग पर रहेगा फोकस
DoT की रणनीति सख्त नियमों की बजाय सहयोग और प्रोत्साहन पर आधारित है। नीति निर्माताओं का मानना है कि सर्कुलर इकॉनमी को लागू करने के लिए टेलीकॉम ऑपरेटर्स, उपकरण निर्माता, रीसाइक्लर्स, स्टार्टअप्स, शिक्षण संस्थान और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच मजबूत तालमेल जरूरी है। कार्यशाला में यह संदेश भी दिया गया कि सर्कुलरिटी किसी एक कंपनी की समस्या नहीं, बल्कि पूरे इकोसिस्टम के डिज़ाइन से जुड़ा मुद्दा है।
2030 और विकसित भारत 2047 की तैयारी
वर्कशॉप में 2030 तक भारत को टेलीकॉम सर्कुलर इकॉनमी में वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाने का विज़न रखा गया। इसमें कच्चे माल पर निर्भरता कम करने, ऊर्जा कुशल नेटवर्क और डेटा सेंटर्स विकसित करने और लाइफ-साइकिल लागत को घटाने जैसे लक्ष्य शामिल हैं। वहीं विकसित भारत 2047 के सपने को पूरा करने के लिए सर्कुलर टेलीकॉम को अनिवार्य बताया गया, क्योंकि यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है, बल्कि ग्रीन जॉब्स और नए बिजनेस मॉडल भी तैयार करता है।
भारत को मिल सकता है वैश्विक नेतृत्व का मौका
वहीं, UNDP जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ साझेदारी से भारत को वैश्विक स्तर की बेहतरीन प्रथाओं से सीखने और उन्हें देश की जरूरतों के हिसाब से अपनाने का मौका मिलेगा। साथ ही भारत ऐसे मॉडल विकसित कर सकता है, जिन्हें दूसरे विकासशील देश भी अपना सकें। कार्यशाला में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि अगर सर्कुलर इकॉनमी को एक अवसर के रूप में देखा जाए, तो भारत टेलीकॉम सेक्टर में टिकाऊ विकास का वैश्विक उदाहरण बन सकता है। इस राष्ट्रीय कार्यशाला को इसी दिशा में एक मजबूत और दूरगामी कदम माना जा रहा है।
कार्यशाला में पूर्व TCIL निदेशक एर. कमेंद्र कुमार ने कहा कि सर्कुलर इकॉनमी अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि समय की मांग है। उन्होंने शेर के जरिए संदेश दिया—
“उन्हें गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है,
मुझे यक़ीं है कि ये आसमाँ कुछ कम है।”
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