गंधार की धरती पर बौद्ध धर्म का सफाया! पाकिस्तान के इतिहास के पन्नों से गायब होता जा रहा है Buddhism

Table of Content

Buddhism in Pakistan:पाकिस्तान, जो कभी गंधार की भूमि के रूप में बौद्ध धर्म का केंद्र था, आज बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एकदम सुनसान नजर आता है। यहां के प्राचीन इतिहास और समृद्ध संस्कृति की छवि दुनिया भर के बौद्धों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती थी, लेकिन हकीकत इससे बिलकुल अलग है। राज्य प्रायोजित कट्टरपंथी गतिविधियों, लगभग शून्य बौद्ध जनसंख्या और सरकार की दिखावटी गतिविधियों ने पाकिस्तान में बौद्ध धर्म की स्थिति को बेहद नाजुक बना दिया है। आईए आपको विस्तार से बताते हैं कि पाकिस्तान में बौद्ध धर्म के लोग आज किस हाल में हैं।

और पढ़ें: दलाई लामा के गुरु Avalokiteshvara कौन हैं और तिब्बती बौद्ध धर्म में उनकी भूमिका क्या है? जानिए सब कुछ

गंधार और स्वात की गौरवशाली कहानी (Buddhism in Pakistan)

गंधार, जो वर्तमान में पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी हिस्से और पूर्वी अफगानिस्तान में फैला हुआ था, कभी बौद्ध धर्म के सबसे बड़े केंद्रों में से एक था। यहां महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म की मजबूत उपस्थिति थी। स्वात घाटी, जिसे प्राचीन काल में उदय्याना कहा जाता था, गंधार के अधीन एक राज्य था और यहाँ कई बौद्ध स्मारक और स्थलों का प्रमाण आज भी मौजूद है।

कहा जाता है कि बौद्ध संत पद्मसंभव का जन्म चकदरा के पास एक गांव में हुआ था। पद्मसंभव, जिन्हें तिब्बती भाषा में गुरु रिनपोछे कहा जाता है, ने तिब्बत में वज्रयान बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इसके अलावा पंजाब और सिंध क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार था। लेकिन 600 ईस्वी के बाद पंजाब में अधिकांश बौद्ध हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो गए, जबकि सिंध में बौद्ध धर्म का प्रभुत्व अरब आक्रमण (710 ईस्वी) तक रहा। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद अधिकांश बौद्ध, हिंदू, सिख और ईसाई समुदायों की तरह पाकिस्तान छोड़कर भारत चले गए।

कट्टरपंथ और धर्मनिरपेक्षता का संकट

पाकिस्तान में बौद्ध धर्म की स्थिति को कमजोर करने वाले सबसे बड़े कारणों में से एक राज्य-समर्थित कट्टरपंथी तत्व हैं। ये समूह, अक्सर सरकार के समर्थन में, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हिंसा और उत्पीड़न करते रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान में बौद्धों की संख्या नगण्य हो गई है। हिंसा, डर और भेदभाव ने बौद्ध समुदाय को अपनी पहचान छुपाने और देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में प्राचीन बमियान बुद्धों को नष्ट करना तो दुनिया भर में सुर्खियों में आया, लेकिन पाकिस्तान में भी बौद्ध स्थलों और कलाकृतियों की ध्वंस गतिविधियां होती रही हैं, जिन पर वैश्विक ध्यान नहीं गया।

सरकार की दिखावटी कोशिशें

पाकिस्तानी सरकार अक्सर बाहरी दुनिया के सामने बौद्ध धर्म के संरक्षण का दिखावा करती है। उदाहरण के तौर पर, बौद्ध भिक्षुओं के दौरे, वार्सा वासा उत्सव और गंधार संगोष्ठी जैसे आयोजन किए जाते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि ये केवल प्रतीकात्मक कदम हैं, जिनसे सरकार अपने देश में बौद्ध समुदाय के संकट को छिपाने की कोशिश करती है।

  • भिक्षु दौरे: ये दौरे गंधार के प्राचीन स्थलों को दिखाने के लिए आयोजित किए जाते हैं, लेकिन इससे बौद्ध समुदाय की सुरक्षा या उनके अधिकारों में कोई सुधार नहीं होता।
  • वार्सा वासा उत्सव: बौद्ध परंपरा के इस उत्सव को मनाने का दिखावा किया जाता है, लेकिन पाकिस्तान में बौद्ध आबादी लगभग शून्य होने के कारण यह वास्तविक धार्मिक क्रिया नहीं बन पाती।
  • गंधार संगोष्ठी: यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम गंधार के बौद्ध विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए आयोजित होता है, लेकिन इसके बावजूद बौद्धों के उत्पीड़न पर कोई गंभीर कदम नहीं उठाए जाते।

वित्तीय संकट और विरासत का खतरा

पाकिस्तान का मौजूदा आर्थिक संकट बौद्ध विरासत के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण पुराने मंदिर, विहार और कलाकृतियों की देखभाल नहीं हो पा रही है। पर्याप्त सुरक्षा न होने से चोरी और अवैध खुदाई का खतरा बढ़ जाता है। कई बार अवैध रूप से निकाली गई कलाकृतियाँ अंतरराष्ट्रीय ब्लैक मार्केट में बिक जाती हैं।

इसके अलावा पर्यटन की कमी और अवसंरचना में गिरावट से स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और बौद्ध स्थलों के संरक्षण की प्रेरणा कम हो जाती है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी

पाकिस्तान में बौद्ध धर्म के विनाश को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल दिखावटी कार्यक्रमों से काम नहीं चलेगा। बौद्ध समुदाय के बचाव, स्थलों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए वास्तविक प्रयास करने होंगे। धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में गंभीर प्रतिबद्धता के बिना पाकिस्तान में बौद्ध धर्म की स्थिति और खराब हो सकती है।

पाकिस्तान, जो कभी बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था, अब बौद्ध समुदाय के लिए लगभग सुनसान हो गया है। प्राचीन विहार, स्तूप और कलाकृतियां जो इसकी समृद्ध विरासत की गवाही देती थीं, खतरे में हैं। कट्टरपंथ, लगभग शून्य बौद्ध आबादी और सरकार की केवल दिखावटी गतिविधियों ने बौद्ध धर्म के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। अगर इस स्थिति को समय रहते नहीं सुधारा गया, तो गंधार की धरती पर बौद्ध संस्कृति केवल इतिहास की किताबों में ही याद रह जाएगी।

और पढ़ें: Who Was Li Dan Brahmin: बौद्ध धर्म को चीन तक पहुँचाने वाले भारतीय मूल के महान नेता की कहानी

vickynedrick@gmail.com

vickynedrick@gmail.com https://nedricknews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News

Trending News

Editor's Picks

Is AI Replacing Tech Jobs? Exploring the Impact of Artificial Intelligence on the Workforce

  Introduction: The Rise of AI in Technology Artificial Intelligence (AI) has emerged as a transformative force within the technology sector, fundamentally altering how businesses operate and innovate. Over recent years, we have witnessed a remarkable surge in AI applications, ranging from machine learning algorithms to natural language processing systems, that are now integral components...

UP BJP New President: यूपी भाजपा को मिला नया चेहरा, संगठन की कमान अब पंकज चौधरी के हाथ

UP BJP New President: उत्तर प्रदेश भाजपा को आखिरकार नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है। शनिवार को एकमात्र नामांकन होने के बाद जिस नाम पर पहले ही सहमति बन चुकी थी, उस पर रविवार को औपचारिक ऐलान कर दिया गया। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय परिसर स्थित सभागार में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यवेक्षकों...

Kanpur News: एक जैसे चेहरे ही नहीं, फिंगरप्रिंट भी सेम! कानपुर का अनोखा मामला, विज्ञान हैरान

Kanpur News: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से एक ऐसा हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जिसने आम लोगों के साथ-साथ विज्ञान के जानकारों को भी सोच में डाल दिया है। विज्ञान अब तक यही मानता आया है कि दुनिया में किसी भी दो इंसानों के फिंगरप्रिंट और आंखों की रेटिना एक जैसी नहीं...

राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार Dr Ramvilas Das Vedanti का निधन, अयोध्या और संत समाज में शोक की लहर

Dr Ramvilas Das Vedanti: राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता और अयोध्या से पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती का सोमवार सुबह मध्य प्रदेश के रीवा में निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे। जानकारी के अनुसार, वे 10 दिसंबर को दिल्ली से रीवा पहुंचे थे, जहां उनकी रामकथा चल रही थी। इसी दौरान...

Bhim Janmabhoomi dispute: रात में हमला, दिन में फाइलें गायब! भीम जन्मभूमि विवाद ने लिया खतरनाक मोड़

Bhim Janmabhoomi dispute: महू स्थित संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि से जुड़ा राष्ट्रीय स्मारक एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी, महू में कथित तौर पर हुई गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, फर्जीवाड़े और सत्ता हथियाने के आरोपों ने इस ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय महत्व के स्मारक की गरिमा...

Must Read

©2025- All Right Reserved. Designed and Developed by  Marketing Sheds