Bath in winter: उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम आते ही नहाना कई लोगों के लिए सबसे बड़ा टास्क बन जाता है। घना कोहरा, जमा देने वाली ठंड और बर्फ जैसे ठंडे पानी को देखकर अच्छे-अच्छों की हिम्मत जवाब दे जाती है। यही वजह है कि कुछ लोग रोज नहाने से कतराने लगते हैं, तो कुछ हफ्तों तक स्नान ही नहीं करते। लेकिन सवाल यह उठता है कि नहाने की परंपरा आखिर शुरू कहां से हुई और कब इसे रोजमर्रा की जरूरत माना जाने लगा?
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नहाने की परंपरा कितनी पुरानी है (Bath in winter)
नहाने का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। प्राचीन सभ्यताओं में पानी को सिर्फ शरीर साफ करने का साधन नहीं, बल्कि शुद्धिकरण का जरिया माना जाता था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सिंधु घाटी सभ्यता है। ईसा पूर्व करीब 2500 साल पहले बने विशाल स्नानागार बताते हैं कि उस दौर में भी स्वच्छता और सामूहिक स्नान को अहम माना जाता था।
मोहनजोदड़ो का ग्रेट बाथ
मोहनजोदड़ो में स्थित ‘ग्रेट बाथ’ दुनिया के सबसे पुराने सार्वजनिक स्नानागारों में से एक है। इतिहासकारों के मुताबिक, यहां स्नान सिर्फ साफ-सफाई के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का भी हिस्सा था। यह साफ दिखाता है कि भारत में नहाने की परंपरा बेहद पुरानी और व्यवस्थित रही है।
भारतीय संस्कृति और धार्मिक स्नान
भारतीय परंपरा में स्नान को धार्मिक कर्म से जोड़ा गया। गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों में स्नान को पुण्य माना गया। आज भी कुंभ मेले और पर्वों पर नदी स्नान की परंपरा उसी सोच का विस्तार है। आयुर्वेद में भी स्नान को शरीर, मन और आत्मा के संतुलन के लिए जरूरी बताया गया है।
मौसम के हिसाब से बदले नियम
प्राचीन समय में रोज सुबह स्नान को स्वास्थ्यवर्धक माना जाता था, लेकिन मौसम के अनुसार इसके नियम बदल जाते थे। सर्दियों में ठंड से बचने के लिए गर्म पानी से सीमित स्नान की सलाह दी जाती थी, ताकि शरीर को नुकसान न पहुंचे।
ग्रीस और रोमन सभ्यता में स्नान
भारत के अलावा प्राचीन ग्रीस और रोमन सभ्यता में भी सार्वजनिक स्नानघर काफी लोकप्रिय थे। रोमन बाथ सिर्फ नहाने की जगह नहीं थे, बल्कि सामाजिक मेलजोल के केंद्र भी थे। वहां गर्म और ठंडे पानी दोनों की व्यवस्था होती थी, जिससे लोग खुद को तरोताजा महसूस करते थे। हालांकि ये सुविधाएं ज्यादातर शहरों तक ही सीमित थीं।
मध्यकाल में क्यों घट गई नहाने की आदत
मध्यकालीन यूरोप में नहाने की आदत धीरे-धीरे कम हो गई। उस समय यह मान्यता फैल गई थी कि बार-बार नहाने से शरीर कमजोर होता है और बीमारियां फैलती हैं। ठंडा मौसम, पानी की कमी और गर्म पानी के इंतजाम न होने की वजह से लोग सर्दियों में हफ्तों तक नहीं नहाते थे। शरीर की गंध छिपाने के लिए इत्र और खुशबूदार तेलों का इस्तेमाल आम हो गया।
सर्दियों में न नहाने के वैज्ञानिक कारण
सर्दियों में नहाने से परहेज के पीछे वैज्ञानिक वजह भी थी। ठंड के मौसम में त्वचा प्राकृतिक तेल छोड़ती है, जो शरीर को गर्म रखने में मदद करता है। बार-बार नहाने से यह परत हट जाती है, जिससे त्वचा रूखी हो जाती है और ठंड जल्दी लगती है। पुराने समय में हीटर और गर्म पानी की सुविधा न होने के कारण लोग स्नान टालते थे।
आधुनिक दौर में रोज स्नान क्यों जरूरी बना
हालांकि, औद्योगिक क्रांति के बाद हालात बदले। आधुनिक प्लंबिंग सिस्टम, गर्म पानी, साबुन और शैम्पू की उपलब्धता ने नहाना आसान बना दिया। स्वच्छता को बीमारियों से बचाव से जोड़ा गया और धीरे-धीरे रोज नहाना स्वास्थ्य का अहम हिस्सा बन गया। आज भले ही सर्दियों में नहाना मुश्किल लगे, लेकिन बदलती सुविधाओं के साथ यह आदत अब सामान्य बन चुकी है।
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