Sikhism in Washington: 1907 की राख से उठे सिख, आज वाशिंगटन की पहचान हैं

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Sikhism in Washington: अगर आप आज वाशिंगटन के किसी गुरुद्वारे में जाएं चाहे वो वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा हो या सिएटल का गुरुद्वारा सिख केंद्र, वहां की रौनक, श्रद्धा और भाईचारा देखकर शायद आप अंदाज़ा भी न लगा पाएं कि इस समुदाय ने यहां तक पहुंचने के लिए कितने ज़ख्म सहे हैं, कितनी दीवारें तोड़ी हैं।

यह कहानी है उन सिखों की, जो करीब 125 साल पहले भारत से अमेरिका आए थे…सपनों की तलाश में, बेहतर जिंदगी की उम्मीद में। लेकिन यहां कदम रखते ही उन्हें जिस हकीकत का सामना करना पड़ा, वो किसी भी मायने में आसान नहीं थी।

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शुरुआत: जब सिखों ने अमेरिका का रुख किया

सब कुछ शुरू हुआ 19वीं सदी के आखिर में, जब पंजाब से कई सिख अमेरिका आए। ब्रिटिश राज की वजह से भारत में हालत खराब थे राजनीतिक दबाव, आर्थिक तंगी और नौकरियों की कमी। ऐसे में कई नौजवानों ने अमेरिका की तरफ रुख किया, खासकर वेस्ट कोस्ट के शहरों जैसे सैन फ्रांसिस्को, सिएटल, एस्टोरिया और वैंकूवर। उस वक्त यह लोग खेती, रेल लाइन बिछाने और लकड़ी की मिलों में काम करते थे।

पर उनका अलग पहनावा पगड़ी और बिना कटे बाल उन्हें बाकी लोगों से अलग बना देता था। नस्लीय भेदभाव, जो पहले से ही चीनी और जापानी प्रवासियों के खिलाफ था, अब सिखों की तरफ भी मुड़ गया।

बेलिंगहैम की वो डरावनी रात- Sikhism in Washington

4 सितंबर 1907 की रात वाशिंगटन राज्य के बेलिंगहैम शहर में कुछ ऐसा हुआ जिसने सिख इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ दिया। उस वक्त सिख मज़दूर बड़ी तादाद में यहां की लकड़ी मिलों में काम कर रहे थे। सख्त मेहनत करने की आदत और शराब से दूरी रखने की वजह से ये मालिकों की पहली पसंद बन चुके थे।

लेकिन यही चीजें कुछ स्थानीय गोरे मजदूरों को खटकने लगीं। एक गैंग, जिसमें करीब 400 लोग थे और जो ‘एशियाटिक एक्सक्लूजन लीग’ से जुड़े थे, उन्होंने सिखों के घरों पर हमला कर दिया। सिखों को घसीट कर बाहर निकाला गया, मारा-पीटा गया और शहर छोड़ने पर मजबूर किया गया। कई सिख उत्तर में ब्रिटिश कोलंबिया चले गए, कुछ दक्षिण की ओर कैलिफोर्निया की तरफ निकल पड़े।

इसी साल, 2 नवंबर 1907 को वाशिंगटन के एवरेट शहर में भी सिखों पर ऐसा ही हमला हुआ। अमेरिका के कई हिस्सों में एशियाई विरोधी कानूनों ने सिखों को ज़मीन खरीदने, अपने परिवारों को साथ लाने और यहां बसने के अधिकार से भी वंचित कर दिया।

अन्याय के खिलाफ खड़ी होती एक आवाज: गदर आंदोलन

अमेरिका में मिले इस अन्याय और भारत में पहले से चल रहे ब्रिटिश जुल्म ने सिखों के भीतर एक अलग ही चेतना जगा दी। उन्होंने महसूस किया कि जब तक भारत आज़ाद नहीं होगा, तब तक दुनिया के किसी कोने में सिख सुरक्षित नहीं रहेंगे। इसी सोच ने जन्म दिया ग़दर पार्टी को…एक क्रांतिकारी आंदोलन जिसने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज़ उठाई।

ग़दर पार्टी में ज्यादातर लोग सिख थे जो अमेरिका के वेस्ट कोस्ट में बसे थे…ओरेगन, वाशिंगटन और कैलिफोर्निया में। बाबा सोहन सिंह भकना, जो अप्रैल 1909 में सिएटल पहुंचे थे, इस आंदोलन के शुरुआती नेताओं में से थे। वो ओरेगन की लकड़ी मिलों में काम करने के बाद धीरे-धीरे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए।

1915 में कैलिफोर्निया के स्टॉकटन में अमेरिका का पहला गुरुद्वारा बना—स्टॉकटन गुरुद्वारा, जो ना सिर्फ आध्यात्मिक केंद्र बना, बल्कि गदर आंदोलन की गतिविधियों का केंद्र भी।

भूप सिंह थिंड और अमेरिकी कानून से टकराव

सिखों के संघर्ष की एक और अहम कहानी है भगत सिंह थिंड की। 1913 में सिएटल पहुंचने के बाद उन्होंने ओरेगन की मिलों में काम किया और फिर 1918 में पहले पगड़ीधारी सिख के रूप में अमेरिकी सेना में शामिल हुए। पर जब उन्होंने नागरिकता के लिए आवेदन किया, तो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनका आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि वो “गोरों जैसे नहीं दिखते थे।”

1923 के थिंड बनाम यूनाइटेड स्टेट्स केस में कोर्ट ने कहा कि आम अमेरिकी की नजर में थिंड गोरे नहीं थे, इसलिए उन्हें नागरिकता नहीं दी जा सकती। नतीजा ये हुआ कि पहले से जिन सिखों को नागरिकता मिल चुकी थी, उनकी भी नागरिकता छीन ली गई।

1965 के बाद फिर खुला रास्ता

दशकों तक सिखों की संख्या अमेरिका में कम होती रही, लेकिन 1965 में पास हुए इमिग्रेशन एक्ट ने उनके लिए नए रास्ते खोले। इसके बाद बड़ी संख्या में सिख अमेरिका आने लगे। लेकिन 1984 में जो हुआ, उसने इस माइग्रेशन को और तेज कर दिया।

पंजाब में 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना ने सिखों के सबसे पवित्र स्थानों पर हमला किया। इसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों सिखों की जान गई। 1984 से 1994 के बीच भारत में सिखों के खिलाफ हुए दमन को आज पूरी दुनिया में सिख नरसंहार के नाम से जाना जाता है।

कई सिख इस दौर में भारत छोड़कर अमेरिका आए और वाशिंगटन समेत कई राज्यों में बस गए।

आज का सच: गर्व और पहचान

आज वाशिंगटन अमेरिका का तीसरा ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा सिख रहते हैं। आंकड़ों की बात करें तो 2021 के अमेरिकन कम्युनिटी सर्वे के मुताबिक सिर्फ वाशिंगटन डीसी मेट्रोपॉलिटन एरिया में 13,054 पंजाबी बोलने वाले लोग रहते हैं। लेकिन सिख समुदाय की जनगणना में कम भागीदारी के चलते यह संख्या हकीकत से कहीं कम है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसे 1.6 से गुणा किया जाए तो असली संख्या करीब 20,886 तक पहुंचती है।

पूरे अमेरिका में सिखों की अनुमानित संख्या 5 से 7 लाख के बीच है। लेकिन इनमें से बहुत से लोग जनगणना में अपनी पहचान को सही से दर्ज नहीं करा पाते, जिसकी वजह से उनकी वास्तविक संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।

शिक्षा में बदलाव: नई पीढ़ी के लिए नई शुरुआत

इतना ही नहीं सिखों को लेकर 2023 में वाशिंगटन डीसी में एक ऐतिहासिक फैसला हुआ। डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया स्टेट बोर्ड ऑफ एजुकेशन ने स्कूल पाठ्यक्रम में सिख धर्म को शामिल करने के पक्ष में मतदान किया। इसका मतलब है कि अब यहां के 49,800 से ज्यादा छात्र स्कूल में सिख धर्म और सिख अमेरिकियों के इतिहास के बारे में पढ़ेंगे।

यह कदम 17 अन्य अमेरिकी राज्यों की तरह है, जहां पहले से सिख धर्म को स्कूली शिक्षा में शामिल किया गया है। सिख कोएलिशन के शिक्षा निदेशक हरमन सिंह ने इसे “कट्टरता और डराने-धमकाने की घटनाओं को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम” बताया।

वहीं, वर्जीनिया स्टेट बोर्ड ऑफ एजुकेशन ने भी अप्रैल 2023 में इतिहास और सामाजिक विज्ञान के नए मानकों को पास किया, जिसमें सिख इतिहास भी शामिल है।

समुदाय की आवाज़

वाशिंगटन में सिख समुदाय के प्रमुख सदस्य दलजीत सिंह साहनी ने कहा, “ये नए मानक हमारे देश की राजधानी में सिख अमेरिकियों के अनुभवों को पहचान दिलाने का जरिया बनेंगे। समावेशी शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सिखों को भी देखा और सुना जाए।”

सिख कोएलिशन ने अपने बयान में कहा कि इन प्रयासों से अब 25 मिलियन से अधिक छात्रों को सिख धर्म और सिख इतिहास को जानने का मौका मिलेगा। इससे सिर्फ शिक्षा ही नहीं बदलेगी, समाज में समझदारी और सम्मान की भावना भी बढ़ेगी।

गुरुद्वारों से मजबूत होते रिश्ते

वाशिंगटन में सिखों की उपस्थिति आज सिर्फ जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ कई महत्वपूर्ण गुरुद्वारे भी हैं जो ना सिर्फ धार्मिक स्थल हैं, बल्कि कम्युनिटी सेंटर की तरह भी काम करते हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा (Gurudwara Singh Sabha of Washington)
  • सिएटल का गुरुद्वारा सिख केंद्र (Gurdwara Sikh Centre Of Seattle)
  • याकिमा वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा (Gurudwara Singh Sabha of Yakima Washington)
  • गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी (Gurudwara Sri Guru Tegh Bahadur Sahib Ji)

यह गुरुद्वारे नई पीढ़ी को ना सिर्फ उनकी जड़ों से जोड़ते हैं, बल्कि अमेरिका में उनके आत्मविश्वास, पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक भी बन चुके हैं।

संघर्ष से आगे बढ़ते कदम

वाशिंगटन में सिखों की कहानी सिर्फ एक प्रवासी समुदाय की गाथा नहीं है, बल्कि यह उस हौसले की कहानी है जो पीढ़ियों तक जिंदा रहा। भले ही शुरुआत में सिखों को नफरत, हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ा हो, लेकिन आज वो उसी ज़मीन पर अपने धर्म, पहचान और मूल्यों के साथ मजबूती से खड़े हैं।

और पढ़ें: Sikhism in British Columbia: जब ब्रिटिश कोलंबिया में सफेद जहाज़ से उतरे कुछ पगड़ीधारी फौजी बोले — ‘यह तो बिलकुल पंजाब जैसा है!’

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