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5 November 2023 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

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5 November ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 5 नवंबर 2023 (5 november ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.

‘करनहार’ और ‘करावनहार’ की स्मृति से कर्मातीत स्थिति का अनुभव

आज कल्याणकारी बाप अपने साथी कल्याणकारी बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे बहुत ही लगन से, प्यार से विश्व कल्याण का कार्य करने में लगे हुए हैं। ऐसे साथियों को देख बापदादा सदा वाह साथी बच्चे वाह! यह गीत गाते रहते हैं। आप सभी भी वाह-वाह के गीत गाते रहते हो ना? आज बापदादा ने चारों ओर के सेवा की गति देखी। साथ में स्व पुरुषार्थ की भी गति को देखा। तो सेवा और स्व-पुरुषार्थ दोनों के गति में क्या देखा होगा? आप जानते हो? सेवा की गति तीव्र है वा स्व पुरुषार्थ की गति तीव्र है? क्या है? दोनों का बैलेन्स है? नहीं है? तो विश्व परिवर्तन की आत्माओं को वा प्रकृति को ब्लैसिंग कब मिलेगी? क्योंकि बैलेन्स से जो आप सभी को ब्लैसिंग मिली हैं वह औरों को मिलेंगी। तो अन्तर क्यों? कहलाते क्या हो – कर्मयोगी वा सिर्फ योगी? कर्मयोगी हो ना! पक्का है ना? तो सेवा भी कर्म है ना! कर्म में आते हो, बोलते हो वा दृष्टि देते हो, कोर्स कराते हो, म्यूज़ियम समझाते हो – यह सब श्रेष्ठ कर्म अर्थात् सेवा है। तो कर्मयोगी अर्थात् कर्म के समय भी योग का बैलेन्स। लेकिन आप खुद ही कह रहे हो कि बैलेन्स कम हो जाता है। इसका कारण क्या? अच्छी तरह से जानते भी हो, नई बात नहीं है। बहुत पुरानी बात है। बापदादा ने देखा कि सेवा वा कर्म और स्व पुरुषार्थ अर्थात् योगयुक्त। तो दोनों का बैलेन्स रखने के लिए विशेष एक ही शब्द याद रखो – वह कौन सा? बाप ‘करावनहार’ है और मैं आत्मा, (मैं फलानी नहीं) आत्मा ‘करनहार’ हूँ। तो करन-‘करावनहार’, यह एक शब्द आपका बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा। स्व पुरुषार्थ का बैलेन्स या गति कभी भी कम होती है, उसका कारण क्या? ‘करनहार’ के बजाए मैं ही करने वाली या वाला हूँ, ‘करनहार’ के बजाए अपने को ‘करावनहार’ समझ लेते हो। मैं कर रहा हूँ, जो भी जिस प्रकार की भी माया आती है, उसका गेट कौन सा है? माया का सबसे अच्छा सहज गेट जानते तो हो ही – ‘मैं’। तो यह गेट अभी पूरा बन्द नहीं किया है। ऐसा बन्द करते हो जो माया सहज ही खोल लेती है और आ जाती है। अगर ‘करनहार’ हूँ तो कराने वाला अवश्य याद आयेगा। कर रही हूँ, कर रहा हूँ, लेकिन कराने वाला बाप है। बिना ‘करावनहार’ के ‘करनहार’ बन नहीं सकते हैं। डबल रूप से ‘करावनहार’ की स्मृति चाहिए। एक तो बाप ‘करावनहार’ है और दूसरा मैं आत्मा भी इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ। इससे क्या होगा कि कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं – कर्मातीत अवस्था।

आप सबका लक्ष्य क्या है? कर्मातीत बनना है ना! या थोड़ा-थोड़ा कर्मबन्धन रहा तो कोई हर्जा नहीं? रहना चाहिए या नहीं रहना चाहिए? कर्मातीत बनना है? बाप से प्यार की निशानी है – कर्मातीत बनना। तो ‘करावनहार’ होकर कर्म करो, कराओ, कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ। बिल्कुल अपने को न्यारा समझ कर्म कराना – यह कॉन्सेसनेस इमर्ज रूप में हो। मर्ज रूप में नहीं। मर्ज रूप में कभी ‘करावनहार’ के बजाए कर्मेन्द्रियों के अर्थात् मन के, बुद्धि के, संस्कार के वश हो जाते हैं। कारण? ‘करावनहार’ आत्मा हूँ, मालिक हूँ, विशेष आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ, यह स्मृति मालिकपन की स्मृति दिलाती है। नहीं तो कभी मन आपको चलाता और कभी आप मन को चलाते, इसीलिए सदा नेचुरल मनमनाभव की स्थिति नहीं रहती। मैं अलग हूँ बिल्कुल, और सिर्फ अलग नहीं लेकिन मालिक हूँ, बाप को याद करने से मैं बालक हूँ और मैं आत्मा कराने वाली हूँ तो मालिक हूँ। अभी यह अभ्यास अटेन्शन में कम है। सेवा में बहुत अच्छा लगे हुए हो लेकिन लक्ष्य क्या है? सेवाधारी बनने का वा कर्मातीत बनने का? कि दोनों साथ-साथ बनेंगे? ये अभ्यास पक्का है? अभी-अभी थोड़े समय के लिए यह अभ्यास कर सकते हो? अलग हो सकते हो? या ऐसे अटैच हो गये हो जो डिटैच होने में टाइम चाहिए? कितने टाइम में अलग हो सकते हो? 5 मिनट चाहिए, एक मिनट चाहिए वा एक सेकेण्ड चाहिए? एक सेकेण्ड में हो सकते हो?

पाण्डव एक सेकेण्ड में एकदम अलग हो सकते हो? आत्मा अलग मालिक और कर्मेन्द्रियां कर्मचारी अलग, यह अभ्यास जब चाहो तब होना चाहिए। अच्छा, अभी-अभी एक सेकेण्ड में न्यारे और बाप के प्यारे बन जाओ। पावरफुल अभ्यास करो बस मैं हूँ ही न्यारी। यह कर्मेन्द्रियां हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ। अभी एक सेकेण्ड में अभ्यास दोहराओ। (ड्रिल) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे क्योंकि सेवा वा कर्म को छोड़ सकते हो? छोड़ेंगे क्या? करना ही है। तपस्या में बैठना यह भी तो कर्म है। तो बिना कर्म के वा बिना सेवा के तो रह नहीं सकते हो और रहना भी नहीं है क्योंकि समय कम है और सेवा अभी भी बहुत है। सेवा की रूपरेखा बदली है। लेकिन अभी भी कई आत्माओं का उल्हना रहा हुआ है इसलिए सेवा और स्व पुरुषार्थ दोनों का बैलेन्स रखो। ऐसे नहीं कि सेवा में बहुत बिजी थे ना इसलिए स्व पुरुषार्थ कम हो गया। नहीं। और ही सेवा में स्व पुरुषार्थ का अटेन्शन ज्यादा चाहिए क्योंकि माया को आने की मार्जिन सेवा में बहुत प्रकार से होती है। नाम सेवा लेकिन होता है स्वार्थ। अपने को आगे बढ़ाना है लेकिन बढ़ाते हुए बैलेन्स को नहीं भूलना है क्योंकि सेवा में ही स्वभाव, संबंध का विस्तार होता है और माया चांस भी लेती है। थोड़ा सा बैलेन्स कम हुआ और माया नया-नया रूप धारण कर लेती है, पुराने रूप में नहीं आयेगी। नये-नये रूप में, नई-नई परिस्थिति के रूप में, सम्पर्क के रूप में आती है। तो अलग में सेवा को छोड़कर अगर बापदादा बिठा दे, एक मास बिठाये, 15 दिन बिठाये तो कर्मातीत हो जायेंगे? एक मास दें बस कुछ नहीं करो, बैठे रहो, तपस्या करो, खाना भी एक बार बनाओ बस। फिर कर्मातीत बन जायेंगे? नहीं बनेंगे?

अगर बैलेन्स का अभ्यास नहीं है तो कितना भी एक मास क्या, दो मास भी बैठ जाओ लेकिन मन नहीं बैठेगा, तन बैठ जायेगा। और बिठाना है मन को न कि सिर्फ तन को। तन के साथ मन को भी बिठाना है, बैठ जाए बस बाप और मैं, दूसरा न कोई। तो एक मास ऐसी तपस्या कर सकते हो या सेवा याद आयेगी? बापदादा वा ड्रामा दिखाता रहता है कि दिन प्रतिदिन सेवा बढ़नी ही है, तो बैठ कैसे जायेंगे? जो एक साल पहले आपकी सेवा थी और इस साल जो सेवा की वह बढ़ी है या कम हुई है? बढ़ गई है ना! न चाहते भी सेवा के बंधन में बंधे हुए हो लेकिन बैलेन्स से सेवा का बंधन, बंधन नहीं संबंध होगा। जैसे लौकिक संबंध में समझते हो कि एक है कर्म बन्धन और एक है सेवा का संबंध। तो बंधन का अनुभव नहीं होगा, सेवा का स्वीट संबंध है। तो क्या अटेन्शन देंगे? सेवा और स्व पुरुषार्थ का बैलेन्स। सेवा के अति में नहीं जाओ। बस मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त ‘करनहार’ हूँ। तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी। कई बच्चे कहते हैं – बहुत सेवा की है ना तो थक गये हैं, माथा भारी हो गया है। तो माथा भारी नहीं होगा। और ही ‘करावनहार’ बाप बहुत अच्छा मसाज़ करेगा। और माथा और ही फ्रेश हो जायेगा। थकावट नहीं होगी, एनर्जी एक्स्ट्रा आयेगी। जब साइन्स की दवाईयों से शरीर में एनर्जी आ सकती है, तो क्या बाप की याद से आत्मा में एनर्जी नहीं आ सकती? और आत्मा में एनर्जी आई तो शरीर में प्रभाव आटोमेटिकली पड़ता है। अनुभवी भी हो, कभी-कभी तो अनुभव होता है। फिर चलते-चलते लाइन बदली हो जाती है और पता नहीं पड़ता है। जब कोई उदासी, थकावट या माथा भारी होता है ना फिर होश आता है, क्या हुआ? क्यों हुआ? लेकिन सिर्फ एक शब्द ‘करनहार’ और ‘करावनहार’ याद करो, मुश्किल है या सहज है? बोलो हाँ जी। अच्छा।

अभी 9 लाख प्रजा बनाई है? विदेश में कितने बने हैं? 9 लाख बने हैं? और भारत में बने हैं? नहीं बने हैं। तो आप ही समाप्ति के कांटे को आगे नहीं बढ़ने देते। बैलेन्स रखो, डायमण्ड जुबली है ना तो खूब सेवा करो लेकिन बैलेन्स रखकर सेवा करो तो प्रजा जल्दी बनेंगी। टाइम नहीं लगेगा। प्रकृति भी बहुत थक गई है, आत्मायें भी निराश हो गई हैं। और जब निराश होते हैं तो किसको याद करते हैं? भगवान, बाप को याद करते हैं, लेकिन उसका पूरा परिचय न होने के कारण आप देवी देवताओं को ज्यादा याद करते हैं। तो निराश आत्माओं की पुकार आपको सुनने में नहीं आती? आती है कि अपने में ही मस्त हो? मर्सीफुल हो ना! बाप को भी क्या कहते हैं? मर्सीफुल। और सब धर्म वाले मर्सी जरूर मांगते हैं, सुख नहीं मांगेगे लेकिन मर्सी सबको चाहिए। तो कौन देने वाला है? आप देने वाले हो ना? या लेने वाले हो? लेकर देने वाले। दाता के बच्चे हो ना! तो अपने भाई बहिनों के ऊपर रहमदिल बनो, और रहमदिल बन सेवा करेंगे तो उसमें निमित्त भाव स्वत: ही होगा। किसी पर भी चाहे कितना भी बुरा हो लेकिन अगर आपको उस आत्मा के प्रति रहम है, तो आपको उसके प्रति कभी भी घृणा या ईर्ष्या या क्रोध की भावना नहीं आयेगी। रहम की भावना सहज निमित्त भाव इमर्ज कर देती है। मतलब का रहम नहीं, सच्चा रहम। मतलब का रहम भी होता है, किसी आत्मा के प्रति अन्दर लगाव होता है और समझते हैं रहम पड़ रहा है। तो वह हुआ मतलब का रहम। सच्चा रहम नहीं, सच्चे रहम में कोई लगाव नहीं, कोई देह भान नहीं, आत्मा-आत्मा पर रहम कर रही है। देह अभिमान वा देह के किसी भी आकर्षण का नाम-निशान नहीं। कोई का लगाव बॉडी से होता है और कोई का लगाव गुणों से, विशेषता से भी होता है। लेकिन विशेषता वा गुण देने वाला कौन? आत्मा तो फिर भी कितनी भी बड़ी हो लेकिन बाप से लेवता (लेने वाली) है। अपना नहीं है, बाप ने दिया है। तो क्यों नहीं डायरेक्ट दाता से लो। इसीलिए कहा कि स्वार्थ का रहम नहीं। कई बच्चे ऐसे नाज़-नखरे दिखाते हैं, होगा स्वार्थ और कहेंगे मुझे रहम पड़ता है। और कुछ भी नहीं है सिर्फ रहम है। लेकिन चेक करो – नि:स्वार्थ रहम है? लगावमुक्त रहम है? कोई अल्पकाल की प्राप्ति के कारण तो रहम नहीं है? फिर कहेंगे बहुत अच्छी है ना, बहुत अच्छा है ना, इसीलिए थोड़ा… थोड़े की छुट्टी नहीं है। अगर कर्मातीत बनना है तो यह सभी रूकावटें हैं जो बॉड़ी-कॉन्सेस में ले आती हैं। अच्छा है, लेकिन बनाने वाला कौन? अच्छाई भले धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो। न्यारे और बाप के प्यारे। जो बाप के प्यारे हैं वह सदा सेफ हैं। समझा!

अगर सेवा को बढ़ाते हो और बढ़ाना ही है तो स्थापना को भी नजदीक लाना है या नहीं? कौन लायेगा? बाप लायेगा? सभी लायेंगे। साथी हैं ना! अकेला बाप भी कुछ नहीं कर सकता, सिवाए आप साथी बच्चों के। देखो, बाप को अगर समझाना भी है तो भी शरीर का साथ लेना पड़ता है। बिना शरीर के साथ के बोल सकता है? चाहे पुरानी गाड़ी हो चाहे अच्छी हो, लेकिन आधार तो लेना पड़ता है। बिना आधार के कर नहीं सकता। ब्रह्मा बाप का साथ लिया ना, तभी तो आप ब्राह्मण बनें। ब्रह्माकुमार कहते हो, शिवकुमार नहीं कहते हो क्योंकि निराकार बाप को भी साकार का आधार लेना ही है। जैसे साकार ब्रह्मा का आधार लिया, अभी भी ब्रह्मा के अव्यक्त फरिश्ते के रूप में आधार लेने के बिना आपकी पालना नहीं कर सकते हैं। चाहे साकार में लिया, चाहे आकार रूप में लिया लेकिन आत्मा का आधार, साथ लेना ही पड़ता है। वैसे तो आलमाइटी अथॉरिटी है, जब जादूगर विनाशी खेल सेकेण्ड में दिखा सकते हैं तो क्या आलमाइटी अथॉरिटी जो चाहे वह नहीं कर सकता है? कर सकता है? अभी-अभी विनाश को ला सकता है? अकेला ला सकता है? अकेला नहीं कर सकता। चाहे आलमाइटी अथॉरिटी भी है लेकिन आप साथियों के संबंध में बंधा हुआ है। तो बाप का आपसे कितना प्यार है। चाहे कर सकता है, लेकिन नहीं कर सकता। जादू की लकड़ी नहीं घुमा सकता है क्या? लेकिन बाप कहते हैं कि राज्य अधिकारी कौन बनेगा? बाप बनेगा क्या? आप बनेंगे। स्थापना तो कर ले, विनाश भी कर ले लेकिन राज्य कौन करेगा? बिना आपके काम चलेगा? इसलिए बाप को आप सभी को कर्मातीत बनाना ही है। बनना ही है ना कि बाप जबरदस्ती बनाये? बाप को बनाना है और आप सबको बनना ही है। यह है स्वीट ड्रामा। ड्रामा अच्छा लगता है ना? कि कभी कभी तंग हो जाते हो, ये क्या बना? यह बदलना चाहिए – सोचते हो? बाप भी कहते हैं – बना बनाया ड्रामा है, यह बदल नहीं सकता। रिपीट होना है लेकिन बदल नहीं सकता। ड्रामा में इस आपके अन्तिम जन्म को पावर्स हैं। है ड्रामा, लेकिन ड्रामा में इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म में बहुत ही पावर्स मिली हुई हैं। बाप ने विल किया है इसीलिए विल पावर है। तो कौन सा शब्द याद रखेंगे? ‘करन-करावनहार’। पक्का या प्लेन में जाते-जाते भूल जायेंगे? भूलना नहीं।

अभी फिर से अपने को शरीर के बंधन से न्यारा कर्मातीत स्टेज, कर्म करा रहे हैं लेकिन न्यारा, देख रहे हैं, बात कर रहे हैं लेकिन न्यारा, मालिक और बाप द्वारा निमित्त आत्मा हूँ, इस स्मृति में फिर से मन और बुद्धि को स्थित करो। (ड्रिल) अच्छा।

चारों ओर के सदा सेवा के उंमग उत्साह में रहने वाले सेवाधारी आत्मायें, सदा स्व पुरुषार्थ और सेवा दोनों का बैलेन्स रखने वाली ब्लिसफुल आत्मायें, सदा नि:स्वार्थ रहमदिल बन सर्व आत्माओं प्रति सच्चा रहम करने वाली विशेष आत्मायें, सदा सेकेण्ड में अपने को कर्म बंधन वा अनेक रॉयल बंधनों से मुक्त करने वाले तीव्र पुरूषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-आज्ञाकारी बन बाप की मदद वा दुआओं का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव
बाप की आज्ञा है “मुझ एक को याद करो”। एक बाप ही संसार है इसलिए दिल में सिवाए बाप के और कुछ भी समाया हुआ न हो। एक मत, एक बल, एक भरोसा…..जहाँ एक है वहाँ हर कार्य में सफलता है। उनके लिए कोई भी परिस्थिति को पार करना सहज है। आज्ञा पालन करने वाले बच्चों को बाप की दुआयें मिलती हैं इसलिए मुश्किल भी सहज हो जाता है।स्लोगन:-नये ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहो तो कोई भी पुराना संस्कार इमर्ज नहीं हो सकता।

Also Read- बागेश्वर महाराज के प्रवचन: लाभ किसमें है? अमृत या भागवत, बाबा जी ने बता दिया उपाय. 

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