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इन पांच मुद्दों से समझिए पंजाब और हरियाणा में क्यों है इतना विवाद

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हरियाणा को पंजाब से अलग करने के 58 साल बाद भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण न तो दोनों राज्यों के बीच किसी भी विवाद का कोई समाधान निकल पाया है और न ही निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना है। पिछले पांच दशकों में ऐसे कई मौके आए जब केंद्र, हरियाणा और पंजाब में एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन की सरकारें रहीं, लेकिन विवाद सुलझाने के लिए कोई खास पहल नहीं की गई। एक ही सरकार होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से दोनों राज्यों के बीच विवाद सुलझ नहीं सके। दोनों राज्यों के बीच न सिर्फ राजधानी बल्कि एसवाईएल नहर का निर्माण, चंडीगढ़ के प्रशासक पद के लिए हरियाणा से नियुक्त, हरियाणा द्वारा हिंदी राज्यों की मांग और हरियाणा के अलग हाईकोर्ट जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर अंतरराज्यीय विवाद है। काफी समय से चल रहे इन विवादों के समाधान की संभावना दिखाई नहीं दे रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि पंजाब और हरियाणा में किन मुद्दों पर घमासान है।

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हिंदी भाषी क्षेत्रों पर हो रहा विवाद

1 नवंबर 1966 को भाषाई आधार पर पंजाब का विभाजन हुआ। उस दौर में पंजाब को 3 हिस्सों में बांटा गया, पहला हिस्सा हरियाणा और दूसरा हिमाचल प्रदेश था। भाषाई आधार पर पंजाबी भाषा वाले क्षेत्र को पंजाब और हिंदीभाषी क्षेत्र को हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ। भाषायी आधार पर हुए बंटवारे में हरियाणा को अबोहर फाजिल्का के 109 हिंदी भाषी क्षेत्र (गांव) नहीं मिले जिस पर आज भी विवाद बरकरार है। पंजाब के फाजिल्का, अबोहर, लालडू और डेराबस्सी पर हरियाणा लंबे समय से दावा ठोकता रहा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर कह चुके हैं की  हिंदी भाषी क्षेत्र हरियाणा को नहीं दिए गए, जिससे बाकी मुद्दों में देरी हुई।

हरियाणा-पंजाब का चंडीगढ़ पर विवाद

आजादी से पहले पंजाब की राजधानी लाहौर होती थी, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चली गई। ऐसे में मार्च 1948 में पंजाब के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी को नई राजधानी बनाने के लिए चिह्नित किया।जिसे चंडीगढ़ का नाम दिया गया।विवाद तब शुरू हुआ, जब 1966 में हरियाणा को पंजाब से अलग कर नया राज्य बनाने के बावजूद दोनों प्रदेशों की राजधानी चंडीगढ़ को ही बनाया गया। संसाधनों के हिसाब से दोनों राज्यों में चंडीगढ़ इकलौता शहर था जो किसी नए राज्य की राजधानी बन सकता था।पंजाब को संसाधनों का 60 प्रतिशत हिस्सा मिला, जबकि हरियाणा को 40 प्रतिशत।

हालांकि, यह ऑफर केवल थोड़े समय के लिए था। बाद में हरियाणा को नए शहर को एक अलग राजधानी के रूप में विकसित करने के लिए पांच साल का समय दिया गया था। नई राजधानी के लिए केंद्र ने 10 करोड़ रुपये का अनुदान प्रस्ताव दिया था। लेकिन हरियाणा सरकार नई राजधानी बनाने में असफल रही। जब 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौते के तहत चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हुई तो हरियाणा में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई।उस दिन के बाद से हरियाणा और पंजाब चंडीगढ़ पर अपना दावा ठोक रहे हैं।

SYL को लेकर विवाद

साल 1966 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट के बाद से पंजाब और हरियाणा दो अलग-अलग राज्य बनाए गए। हरियाणा के गठन के बाद पंजाब के हिस्से में जो 7.2 MAF पानी था। अब इसे हरियाणा के साथ बांटा गया और 3.5 MAF का हिस्सा दिया गया। वहीं, पंजाब ने राइपेरियन सिद्धांतों का हवाला देते हुए दोनों नदियों का पानी हरियाणा को देने से इनकार कर दिया।

हरियाणा को सतलुज और उसकी सहायक नदी ब्यास के जल का हिस्सा प्रदान करने के लिये, सतलुज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर (SYL नहर) की योजना तैयार की गई थी।इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर की परिकल्पना की गई थी, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने अपने क्षेत्र में इस परियोजना को पूरा कर लिया है, लेकिन पंजाब, जिसने 1982 में निर्माण शुरू किया था, ने बाद में इसे रोक दिया। जब पंजाब में इसका विरोध बढ़ा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अकाली दल प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। समझौते के बाद नहर पर काम फिर से शुरू हुआ लेकिन कुछ उग्रवादियों ने कई इंजीनियरों और मजदूरों की हत्या कर दी और परियोजना एक बार फिर रुक गई। ऐसे में किसी न किसी रुकावट के चलते एसवाईएल का निर्माण अधर में लटका हुआ है।

पंजाब का कहना है कि राज्य के पास अतिरिक्त पानी न होने के कारण किसी और राज्य से इसे साझा नहीं किया जा सकता। वहीं हरियाणा का कहना है कि राज्य के लोग एसवाईएल का पानी पाने के लिए सालों से इंतजार कर रहे हैं।

अलग विधानसभा परिसर

विधानसभा के मौजूदा भवन में 60 प्रतिशत हिस्सा पंजाब विधानसभा के पास है और 40 प्रतिशत हिस्से में हरियाणा विधानसभा बनी हुई है। लेकिन हरियाणा राज्य के लिए एक अलग विधानसभा परिसर के निर्माण के लिए भारत सरकार से जमीन मांग रहा था। पिछले साल ही यूटी प्रशासन ने चंडीगढ़ में हरियाणा को अपना अलग विधानसभा भवन बनाने के लिए 10 एकड़ जमीन देने का फैसला लिया है। जिसे लेकर पंजाब सरकार ने नारज़गी ज़ाहिर की।

राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर विवाद

हरियाणा सरकार की ओर से कई बार कहा जा चुका है कि पंजाब के राज्यपाल की तरह हरियाणा के राज्यपाल को भी चंडीगढ़ यूटी प्रशासन के प्रशासक पद पर नियुक्त होने का मौका मिलना चाहिए। साथ ही यूटी चंडीगढ़ में हरियाणा के अधिकारियों का अनुपात बढ़ाया जाए। अभी यह 60-40 है। यानी 60 फीसदी अधिकारी पंजाब से हैं और 40 फीसदी हरियाणा से। हालांकि, पंजाब सरकार का कहना है कि अनुपात में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है। इस मुद्दे पर हरियाणा और पंजाब के बीच बहस भी चल रही है।

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