NDA की धमाकेदार जीत के बीच Tej Pratap Yadav की नई पार्टी फ्लॉप, क्या वाकई RJD को हुआ नुकसान?

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Tej Pratap Yadav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आते ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला NDA गठबंधन (BJP–JDU) बहुमत के साथ सत्ता में लौट आया, जबकि तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन (RJD–कांग्रेस–लेफ्ट) इस बार उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। लेकिन इन चुनावों का सबसे दिलचस्प चेहरा जिस पर सभी की नजरें टिकी रहीं, वह रहे लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव। परिवार और पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) बनाई, लेकिन क्या उनकी इस बगावत ने वास्तव में महागठबंधन को चोट पहुंचाई?

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परिवारिक विवाद बना राजनीति का मोड़- Tej Pratap Yadav

तेज प्रताप यादव पहले से ही बिहार की राजनीति में एक विवादित लेकिन चर्चित चेहरा रहे हैं। 2015 में महुआ सीट से पहली बार RJD विधायक बने। 2020 में उन्होंने सीट बदली और हसनपुर से चुनाव लड़कर जीत भी दर्ज की। मगर 2025 आते-आते हालात बिल्कुल बदल गए।

मई 2025 में एक सोशल मीडिया पोस्ट पर तेजस्वी और RJD नेतृत्व से उनकी तकरार इतनी बढ़ी कि लालू यादव ने उन्हें पार्टी और परिवार, दोनों से बाहर का रास्ता दिखा दिया। तेज प्रताप ने इसे ‘‘अन्याय’’ बताते हुए नई पार्टी JJD बना ली और 43 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर पूरे चुनाव मैदान में उतर पड़े। इनमें 22 उम्मीदवार JJD के अपने थे और ज्यादातर यादव बहुल इलाकों में खड़े किए गए, यही वो सीटें थीं, जहाँ RJD का वोटबैंक सबसे मजबूत माना जाता है।

JJD का प्रदर्शन रहा बेहद खराब

नतीजे आने के बाद साफ हो गया कि तेज प्रताप यादव की नई पार्टी जनता को प्रभावित नहीं कर पाई। महुआ सीट पर खुद तेज प्रताप तीसरे नंबर पर रहे।

  • LJP (RV) उम्मीदवार संजय कुमार सिंह—87,641 वोट
  • RJD के मुकेश रौशन—42,644 वोट
  • तेज प्रताप (JJD)—35,703 वोट

तेज प्रताप तीसरे नंबर पर रहे और करीब 51,938 वोटों से पीछे रह गए। दिलचस्प बात यह है कि अगर RJD और JJD के वोट भी जोड़ दिए जाएं, तब भी वे NDA के उम्मीदवार को नहीं हरा पाते। बाकी सीटों पर भी JJD की हालत और भी खराब रही। एक भी उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाया, यानी अधिकांश को कुल वोटों के 1/6 के आसपास वोट भी नहीं मिले।

क्या JJD ने RJD को नुकसान पहुंचाया?

परफॉर्मेंस के आधार पर देखें तो JJD का असर नगण्य दिखाई देता है। लेकिन कुछ सीटों पर वोट-कटवा फैक्टर जरूर नजर आया।

उदाहरण के तौर पर बख्तियारपुर सीट—

  • JJD उम्मीदवार को मिले 791 वोट
  • RJD यह सीट LJP (RV) से केवल 981 वोट से हार गई

यहां साफ लगता है कि JJD के वोट सीधे RJD के खाते से ही कटे। इससे यह परसेप्शन बना कि तेज प्रताप की बगावत ने यादव वोटों में दरार डालने का काम किया। हालांकि आंकड़ों में JJD कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं पहुंचा पाई, लेकिन माहौल और संदेश के स्तर पर तेज प्रताप का अलग होना महागठबंधन के लिए निश्चित ही नुकसानदेह साबित हुआ।

चुनाव में सबसे बड़ा निष्कर्ष

बिहार की राजनीति हमेशा समीकरणों और जातीय राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती रही है। तेज प्रताप यादव जैसे बड़े राजनीतिक परिवार के सदस्य का अलग रास्ता चुनना, मंचों से RJD को खुलेआम चुनौती देना और यादव बहुल इलाकों में नई पार्टी उतारना इन सबने महागठबंधन की छवि को झटका दिया।

NDA की शानदार जीत के पीछे कई कारण रहे, लेकिन तेज प्रताप के विद्रोह ने महागठबंधन की मजबूती को कमजोर करने में जरूर योगदान दिया चाहे वह आंकड़ों में साफ दिखे या सिर्फ वोटरों की धारणा में।

और पढ़ें: Bihar Election Results 2025: एनडीए की जीत और आरजेडी की करारी हार, क्या संजय यादव ने बिगाड़ी तेजस्वी की बाज़ी?

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