सहारनपुर हिंसा ने कैसे चंद्रशेखर आजाद रावण को ‘दलितों’ का रहनुमा बना दिया ?

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Saharanpur Violence details in Hindi – भारत में जातिव्यवस्था का बोलबाला काफी लम्बे समय से ही चला आ रहा है. जातिव्यवस्था के चलते भारतीय समाज में दलितों को इंसान होने तक के अधिकार के लिए भी लड़ना पड़ा है. हमारे देश के इतिहास में कई ऐसे आन्दोलन, लड़ाई देखने को मिल जायेंगी, जो दलितों और उच्च जातियों के बीच हुई है. आज हम एक ऐसी ही घटना के बारे में आपको बतायेंगे, जिसमे जातिगत हिंसा से दलितों और ठाकुरों के घर तक जला दिए गए. और इसके साथ ही इस हिंसा के चलते कुछ इंसानों की मौत भी हो गयी.

‘लोग कहते है कि आंदोलन, प्रदर्शन और जुलूस से क्या होता है ? इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित है.’ प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई इन पंक्तियों मतलब अपने हकों के लिए आवाज उठाना है, लेकिन हर आंदोलन, प्रदर्शन और जुलूस का अंजाम अच्छा ही जरूरी नहीं….आईये आज हम आपको उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के शब्बीरपुर गावं की दलितों और ठाकुरों में हुई, हिंसा के बारे में बताएंगे. जिस घटना ने जातिगत हिंसा का भव्य रूप ले लिया था.  इस घटना में दलितों और ठाकुरों के घरों के साथ दुकाने तक जला दी गयी थी.

 और पढ़ें : जब दलित होने के कारण बाबा साहेब को रामनवमी के रथ में हाथ नहीं लगाने दिया गया 

दलितों और ठाकुरों के बीच हिंसा का कारण

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले (Saharanpur Violence details in Hindi) के शब्बीरपुर गावं की दलितों और ठाकुरों के बीच हुई घटना का मुख्य जातिव्यवस्था है. इस घटना की शुरुवात 5 मई 2017 को हुई थी, जब महाराणा प्रताप जी की स्मृति में ठाकुरों द्वारा निकले गए जलूस पर दलितों में आपति जताई थी. इसके बाद हुई झड़पों में एक ठाकुर लडके की मौत हो गयी थी. इस घटना के कुछ घंटे बाद, शब्बीरपुर गावं में दलितों के लगभग 50 घर जला दिए गए थे. देखते ही देखते दलितों और ठाकुरों की हिंसा ने भव्य रूप ले लिया था. जब तक पुलिस आकर कंट्रोल अपने हाथ में लेती, तब तक तो काफी देर हो चुकी थी. दलित और ठाकुर (Dalit vs Thakurs clash in Uttar Pradesh) के कुछ लोगो कि मौत हो चुकी थी.

हम आपको बता दे कि शब्बीरपुर गावं में कुछ हिस्से में दलितों के परिवार रहते है, जहाँ से दलितों के घर खत्म होते है वहीं से ठाकुरों के घर शुरू हो जाते है. दोनों समुदायों को देख नहीं लगता की यह अलग अलग है. दोनों समुदायों को शकले, पहनावा और घर एक जैसे ही है लेकिन उनके बीच एक अंतर है जिसका नाम है जाति. जिसके कारण इन दोनों समुदायों के बीच जातिगत हिंसा हुई है. अलह अलह लोगो ने अलग अलग अनुमान लगाए थे. कुछ लोगो का कहना था कि इस हिंसा को अंजाम बीजेपी ने दिया है तो कुछ लोगो का कहना था कि यह काम मायावती की पार्टी का है.

दलितों के जले हुए घर देखकर लगता है कि इस हिंसा में दलितों (Saharanpur Violence details in Hindi) का ज्यादा नुकसान हुआ है. बीबीसी की टीम द्वारा जब वहां के लोगो का इंटरव्यू लिया तो शब्बीरपुर गावं के रहने वाले एक दलित शिव राज ने भावुक होकर कहा कि “मुसलमान हमें हिंदू समझ कर काटते हैं, हिंदू चमार समझ कर. हम कटते ही रहते हैं.” यह कहते हुए वह बहुत लाचार लग रहे थे, इसके साथ ही जब गाव में ठाकुरों के घरो तक पहुंचा गया तो पता लगा कि ठाकुरों के घरो को भी जलाया गया है.

सहारनपुर हिंसा में भीम आर्मी

इस घटना के बारे में ठाकुर समुदाय से पुछा गया, तो उन्होंने बताया कि घटना वाले दिन भीम आर्मी के लोगो ने बहुत दहशत मचाई थी. इस घटना के बाद भीम आर्मी (Bheem Army) के संस्थापक दलितों के नेता चंदेशेखर आजाद और उसके कुछ साथियों से पुलिस ने पूछताछ भी की थी.

चंदेशेखर आजाद रावण (Chandrashekhar Azad Ravan), आजाद समाज पार्टी के दलित नेता है जो खुद को अम्बेडकरवादी बताते है. इन्होने सतीश कुमार और विनय रतन सिंह के साथ 2014 में भीम आर्मी की स्थापना की थी, जिसके बाद यह दलित- बहुजन अधिकार के कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे. हम आपको बता कि इस जातिगत हिंसा के बाद ही भीम आर्मी का सस्थापक चंदेशेखर आजाद उभर कर आए थे, इस हिंसा के बाद यह एक दलित नेता के रूप में जाने गए. इसके बाद भीम आर्मी के 30 से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी किया गया. पुलिस अधिकारी अमिताभ यश इस बात की पुष्टि करते हैं कि भीम आर्मी का हिंसा में हाथ था.

लेकिन जब भीम आर्मी से बीबीसी की टीम ने बात कि तो उनका कहना था कि उनका इस हिंसा में कोई हाथ नहीं था, उनका उदेश्य तो केवल दलितों को उनके हक दिलाना और उन्हें शिक्षा प्रदान करवाना है.

 और पढ़ें : ‘दलितों का होना चाहिए अपना मीडिया’, बाबा साहेब ने ऐसा क्यों कहा था? 

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