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इतिहास का सबसे बड़ा सेक्स स्कैंडल जिसने 250 परिवारों की जिंदगियां उजाड़ दी, 28 साल बाद आया फैसला

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इतिहास का सबसे बड़ा सेक्स स्कैंडल जिसने 250 परिवारों की जिंदगियां उजाड़ दी, 28 साल बाद आया फैसला

‘न्याय में देरी होना न्याय से वंचित होने के समान है’, ये प्रचलित कथन शायद हर किसी ने सुना होगा.  निर्भया केस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां उनके परिवारवालों को करीब 7 साल बाद न्याय मिल सका. लेकिन सन 1992 यानि 90 के दशक में अजमेर की सोफिया गर्ल्स स्कूल की लगभग 250 से ज्यादा हिंदू लड़कियों से हुआ रेप केस देश के इतिहास में एक गहरे काले धब्बे के समान है. जिसके जिद्दी दागों को लाख धुलने की कोशिशें कर ली जायें लेकिन इस वक़्त के साथ अब वो अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं. करीब 28 साल पहले हुई इस घिनौनी वारदात का सच आज कोर्ट ने सुनाया है. इसका खुलासा एक संतोष गुप्ता नामक पत्रकार ने किया था. जिसके बाद उस दौरान इंटरनेट न होने के बावजूद ये खबर आग की तरह तेजी से फैली थी. आइये जानें ये पूरा मामला जिसने देश दुनिया को हिला कर रख डाला था.

फ़ार्म हाउस में की ये शर्मनाक हरकत

ये कहानी शुरू होती है यूथ कांग्रेस के लीडर फारूक चिश्तीनाम नाम के व्यक्ति से जो अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम (केयरटेकर) का रिश्तेदार और वंशज भी था. उसने सबसे पहले सोफिया गर्ल्स स्कूल की एक लड़की को फंसाया और लड़की की धोखे से बलात्कार कर अश्लील फोटो खींच ली. इन फोटो के जरिये वो लड़की को ब्लेकमेल करने लगा और उसकी सहेलियों को भी फ़ार्म हाउस पर लाने को कहा. जिसके बाद उन सहेलियों के साथ भी यही शर्मनाक कृत्य हुआ. धीरे धीरे ये घटना एक चेन में बदल गई जिसका शिकार करीब 250 लड़कियों को बनाया गया. बताया जाता है कि इन लड़कियों को गाड़ी लेने आया करती थी और कुछ देर बाद घरों पर छोड़ कर भी जाती थी. कहा जाता है कि इस कांड के पीछे राजनीति के कई नामी हस्ती भी शामिल थे. जो धीरे धीरे ब्लैकमेलिंग चेन से जुड़ते गए और आखिरी में कुल 18 लोग इसमें शामिल हो गए.

बयान देने को नहीं थी राजी

इस बलात्कार के मुख्य आरोपियों में फारूक के अलावा दो यूथ कांग्रेस लीडर फारूक चिस्ती, नफीस चिस्ती और अनवर चिस्ती का नाम भी सामने आया था. एक अधिकारी के मुताबिक पॉवर होने के चलते पीड़ितों को बयान देने के लिए प्रेरित करना उस दौरान काफी बड़ी चुनौती बन गया था. कोई भी लड़की बयान देने को राजी ही नहीं थी. केस लड़ने, आरोपितों के ख़िलाफ़ बयान देने और पुलिस-कचहरी के लफड़ों में पड़ने से अच्छा उन्होंने यही समझा कि चुप रहा जाए. इसी कड़ी में समाज में शर्मसार होने के डर से कई पीड़ित लड़कियों ने आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया था. एक समय अंतराल में करीब 6-7 लड़कियां ने आत्महत्या की. इस केस के सामने आने के बाद कई दिनों तक अजमेर बंद रखा गया था. सड़क पर प्रदर्शन चालू हो गए थे. अधिकारियों को डर था कि कहीं ये केस सामने आने के बाद एक हिंदू मुस्लिम दंगे में न तब्दील हो जाए.

मुंह खोलने वाले को मिली धमकियां

इन 28 सालों में केस में क्या कुछ नहीं बदला. जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद कुछ पीड़िताएं अपने बयान से मुकर गयीं. इसके अलावा एक रिपोर्ट के अनुसार ये भी कहा गया कि इस केस में सिर्फ उन्हीं लोगों को पकड़ा गया जिनका BJP से कोई कनेक्शन नहीं था. बाद में एक NGO ने इस केस की रहस्यमयी परतों को खोलने का जिम्मा उठाया और फोटोज और वीडियोज के जरिये 30 लड़कियों को पहचाना गया. उन सभी से जाकर बात की गई लेकिन बदनामी के डर से सिर्फ 12 ही लड़कियां सामने आने को तैयार हुई. बाद में इनमें से सभी को धमकियां मिलने के चलते 10 लड़कियां और केस से पीछे हट गई. बाद में बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया. इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना. जिसमें से ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया.

अब तक केस में क्या हुआ ?

केस खुलने के बाद 18 पहचाने गए आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम नाम के आरोपी ने आत्महत्या कर ली. यूथ कांग्रेस नेता फारूक चिश्ती को मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया गया. 1998 में सेशन कोर्ट ने 8 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया. लेकिन इनमें से 4 को राजस्थान हाई कोर्ट ने बरी कर दिया. इसके बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मोइजुल्लाह उर्फ पट्टन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमशुद्दीन उर्फ मैराडोना की सजा कम करते हुए मात्र 10 सालों के कारावास की सजा सुना दी. 2007 में मानसिक विक्षिप्त घोषित आरोपित फारूक चिश्ती को अजमेर की एक फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने दोषी मान कर सज़ा सुनाई और राजस्थान हाईकोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार भी रखा. इसके बाद 2018 में सुहैल चिश्ती शिकंजे में आया. इस मामले का एक आरोपी अलमास महाराज अभी भी फरार है जिसके खिलाफ CBI ने रेड कार्नर नोटिस जारी कर रखा है. कुछ लोगों का कहना है कि वो अमेरिका में रह रहा है. चिश्तियों में अभी सिर्फ़ सलीम और सुहैल ही जेल में है. बताया जाता है कि इस केस का सबसे बुरा असर लड़कियों की शादी पर पड़ा था. लोग पूरे शहर की लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठाने लगे थे.

पीड़ित लड़कियों और उनके परिवारों से सबने रकम ऐंठे. ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे? इस घूसखोरी सिस्टम और पॉवर ने हर तरीके से सिस्टम को बर्बाद कर दिया जिसके चलते इस फैसले को आने में करीब 28 सालों का वक्त लग गया.

डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड यूजर के लिए लागू हो गए हैं नए नियम, तुरंत जान लें वर्ना पड़ सकते हैं लेने के देने

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डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड यूजर के लिए लागू हो गए हैं नए नियम, तुरंत जान लें वर्ना पड़ सकते हैं लेने के देने

अगर आप एक डेबिट या क्रेडिट कार्ड यूजर है तो ये खबर आपके लिहाज से बेहद जरूरी है. दरअसल हाल ही में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने अपने डेबिट और क्रेडिट कार्ड के नियमों में कुछ जरूरी बदलाव किये हैं. इन नियमों को जनवरी में जारी किया गया था, लेकिन कोरोना वायरस की गंभीरता को देखते हुए अब ये तारीख बढ़ा दी गई है. अब कार्ड जारीकर्ताओं को इन सभी नियमों को लागू करने के लिए 30 सितंबर 2020 तक का समय बढ़ा दिया गया है. आइये जान लेते हैं क्या है RBI ये नए नियम.

घरेलु ट्रांजैक्शन की मिलेगी अनुमति

RBI ने कहा है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड जारी करते समय अब ग्राहकों को घरेलु ट्रांजैक्शन कि अनुमति देनी चाहिए. इसका मतलब है कि जरूरी न होने पर एटीएम मशीन से पैसे निकालते और पीओएस टर्मिनल पर शॉपिंग के लिए विदेशी ट्रांजेक्शन की अनुमति नहीं मिलेगी.

ऑनलाइन लेनदेन के लिए दर्ज करानी होगी प्रेफरेंस

अगर आपको इंटरनेशनल लेनदेन, ऑनलाइन लेनदेन या कांटेक्टलेस कार्ड से लेनदेन के लिए अलग से प्रेफरेंस बतानी होगी. अगर आपको इसकी जरूरत नहीं है तो ये सर्विस आपको नहीं दी जायेगी. साथ ही इसके लिए अलग से आपको आवेदन करना होगा.

ग्राहकों के ऊपर होगा निर्भर

आपको अपने कार्ड से घरेलु ट्रांजैक्शन चाहिए या इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन ये ग्राहक के ऊपर निर्भर करेगा. ये फैसला कस्टमर करेगा कि उसे कौन सी सर्विस एक्टिवेट करनी है और कौन सी डीएक्टिवेट करनी है. कार्ड्स के लिए, जारीकर्ता अपने जोखिम की धारणा के आधार पर निर्णय ले सकते हैं.

  • कस्टमर जब चाहे अपने लेन देन सीमा को भी तय कर सकता है.
  • अगर कार्ड के स्टेटस में बदलाव होगा तभी कार्डधारक को तुरंत SMS अलर्ट मिलना चाहिए.

ये सारी गाइडलाइन्स मार्च में कोरोना के चलते लागू किये लॉकडाउन को देखते हुए 30 सितंबर तक आगे बढ़ा दी गई है.

रात में क्यों अजीब अजीब तरह की आवाजें निकालते हैं कुत्ते, कोई बुरा संकेत नहीं बल्कि ये है वजह

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रात में क्यों अजीब अजीब तरह की आवाजें निकालते हैं कुत्ते, कोई बुरा संकेत नहीं बल्कि ये है वजह

अक्सर आपने कुत्तों को रात में तेज आवाज में भौंकते और रोते हुए सुना होगा. कुछ लोग इसे सामान्य घटना मानते हैं तो कुछ इसे अनहोनी से जोड़ कर देखते हैं. किसी का मानना है कि कुत्तों का रोना घर में आने वाली बड़ी दुर्घटना का संकेत होता है. जिस वजह से इन कुत्तों को तुरंत घर के आसपास से भगा दिया जाता है. आइये जानें इन सब के पीछे की असल सच्चाई.

ज्योतिषों का ये है मानना

कई ज्योतिषों का कहना है कि सबसे ज्यादा कुत्ते तब रोते हैं जब उनके आसपास कोई आत्मा भटक रही हो. जी हां, कुत्ते इन आत्माओं को देख सकते हैं. जबकि ऐसी शक्ति इंसान के पास नहीं है. कुत्ते उन्हें अपने पास से भगाने के लिए रोने लगते हैं. इसके अलावा ज्योतिषों का कहना है कि अगर किसी दिन सुबह सुबह भी कुत्ता रोने लगे तो कोई जरूरी काम करने से बचना चाहिए. साथ ही अगर पालतू कुत्ते की आंखों में आंसू आ जाए तो घर में किसी अनहोनी की आशंका रहती है.

अब आते हैं विज्ञान पर

विज्ञान की थ्योरी इन सब से बिलकुल अलग है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कुत्ते रोते नहीं हौल करते हैं. रात में वो ऐसी आवाजें निकाल कर अपने किसी इलाके में दूर साथी को मैसेज देते हैं. साथ ही अपनी लोकेशन बताने के लिए वो ऐसा करते हैं. कभी किसी चोट लगने या दर्द होने पर भी वो रात में हौल करते हैं. ये उनके पीड़ा व्यक्त करने का एक तरीका होता है. इसके अलावा उन्हें अकेले रहना नहीं पसंद होता है इसलिए वो हौल करके अपने साथियों को अपने पास बुलाते हैं.

इंसानों की तरह करें मदद

तो अगली बार आप किसी भी कुत्ते को ऐसा करते देखें तो उनसे डर कर भागने की बजाय उनकी इंसानों की तरह मदद करें. उन्हें भी इंसानों की तरह दर्द, अकेलापन और कई तकलीफें महसूस होती हैं. ऐसे में उन्हें दुत्कारने की बजाय उनका सहारा बनें. उनके साथ थोड़ा वक्त बिताएं. उन्हें कुछ खाने पीने को दें. ताकि उन्हें आपसे अपनेपन का एहसास हो.

यहां इस्तेमाल किये जा रहे हैं आपके कूड़ेदान में फेंके गए मास्क, रोंगटे खड़े कर देगी हकीकत

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यहां इस्तेमाल किये जा रहे हैं आपके कूड़ेदान में फेंके गए मास्क, रोंगटे खड़े कर देगी हकीकत

कोरोना काल में मास्क तो हमारे डेली रूटीन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है. बाहर जाते वक्त, किसी से बात करते वक्त, काम करते वक्त हर समय एक मास्क ही हमारा प्रोटेक्टिव शील्ड है जो हमें इस महामारी से बचा सकता है. सरकार ने कोरोना से अल्ट्रा सेफ्टी के लिए हर महीने अपना मास्क बदलने की सलाह दी है. साथ ही इसको डिस्पोज करने की गाइडलाइन्स केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) ने भी जारी की हैं.

लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे ही अपना मास्क कूड़ेदान में फेंक दे रहे हैं. पर क्या आपको इस बात का जरा भी अंदाजा है कि आपके इन फेंके गए मास्क का कितना खतरनाक उपयोग हो रहा है ? नहीं न, आइये हम बताते हैं.

डिस्पोजेबल मास्क की असल सच्चाई

काफी लोग सोशल मीडिया पर मास्क को सही तरीके से लोगों से डिस्पोज करने की अपील करते दिख रहे हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह सामने आई है. दरअसल आपको ये जानकर एक गहरा धक्का लगेगा कि मास्क को बेचने में एक बड़ी धांधलेबाजी हो रही है. कई लोग इन डिस्पोजेबल मास्क को गरीबों में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. इन डिस्पोजेबल मास्क को धांधलेबाज किफायती या कम दामों में बेचकर गरीबों को दे देते हैं. और इन सब से अनजान गरीब व्यक्ति मास्क को पहनकर अपने काम पर चले जाते हैं.

लाखों बीमारियों का मंडरा रहा खतरा

इस मास्क को पहनने से गरीबों में कोरोना से बचने के बजाय सबसे ज्यादा इस महामारी की चपेट में आने की आशंका रहती है. सिर्फ कोरोना ही नहीं इसे पहनने से वे अन्य गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हो सकते हैं. साथ ही इससे देश में कोरोना की रफ़्तार दोगुनी स्पीड पकड़ सकती है. इस बात से अनजान मास्क खरीदने वाला व्यक्ति किसी दूसरे व अपने आसपास के लोगों में भी ये संक्रमण फैला सकता है. साथ ही लगातार मास्क लगाये रहने से उस व्यक्ति के शरीर में ये बीमारी और भी गंभीर रूप ले सकती है.

क्या है इससे बचने का उपाय ?

इन सभी से बचने के लिए मास्क को कूड़ेदान में फेंकने से पहले उसे बीच से दो टुकड़ों में काट दें. इसके अलावा मास्क में अगर दो डोरियां लगी हो तो पहले नीचे की डोरी खोलें. ऊपर की डोरी पहले खोलने पर मास्क पलट कर चेहरे या गर्दन पर लग जाएगा, जो खतरनाक हो सकता है.अगर इलास्टिक लगा है तो ध्यान से खींच कर उतारें. ध्यान रहे कि मास्क का रिबन या इलास्टिक पकड़ कर ही मास्क उतारना है. इसके अलावा मास्क को कहीं भी डिस्पोज न कर दें. इसे पहले तीन दिन पेपर बैग में रखें और फिर इसे काटकर सूखे कचरे में डाल सकते हैं.

कभी बलात्कार, तो कभी नरसंहार! क्या है कंगारू अदालतें जिनके अजीबोगरीब आदेश आज भी लोगों के लिए पत्थर की लकीर बने हुए हैं?

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कभी बलात्कार, तो कभी नरसंहार! क्या है कंगारू अदालतें जिनके अजीबोगरीब आदेश आज भी लोगों के लिए पत्थर की लकीर बने हुए हैं?

हाल ही में पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में एक आदिवासी महिला के गैरजातीय युवक के साथ अवैध संबंध रखने के जुर्म में उसके साथ गैंगरेप के आदेश की घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है. हैरानी की बात तो ये है कि कानून को ही कटघरे में खड़ा करने वाला ये आदेश किसी न्यायपालिका द्वारा नहीं बल्कि कंगारू अदालत की ओर से दिया गया. अब मन में सवाल ये उठता है कि देश में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट व अन्य निचली अदालतों के अलावा ऐसी कौन सी अदालत है जिसका आदेश देश के एक तबके के लिए उच्च न्यायालय से भी सुप्रीम है. ये कौन सी अदालत है जिसके बारे में न ही कोई स्कूली शिक्षा में जिक्र किया गया और न ही किसी किताब में इसका वजूद दिखता है. तो आइये जानें क्या है कंगारू कोर्ट्स जो कुछ लोगों के लिए आज भी तमाम कानूनों से बढ़कर है.

क्या है कंगारू कोर्ट ?

दरअसल इस तरह की अदालतें देहाती इलाकों में आयोजित की जाती हैं. इसे स्थानीय भाषा में सालिसी सभा भी कहा जाता है. ये अदालत कानून या न्याय के मान्यता प्राप्त मानकों की अवहेलना करता है. इन अदालतों में अभियुक्त के खिलाफ निर्णय पहले से ही आधारित होता है. इन अदालतों के फैसले असंवैधानिक और गैर कानूनी होते हैं. ये अपनी मन मर्जी से चलते हैं. उदाहरण के तौर पर किसी छोटे मोटे जुर्म के लिए ये अदालत किसी भी महिला को बदचलन बता देते हैं. या सामूहिक बलात्कार का आदेश दे देते हैं. कभी भी महिला की पिटाई करने वाले पुरुष को पेड़ों से बांधकर बदले में उसकी पिटाई करने का आदेश दे दिया जाता है.

पश्चिम बंगाल में ज्यादा सक्रिय

ये अदालतें सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में सक्रिय हैं. कई सरकारें आई और गयीं लेकिन इन अदालतों की जमीनी हकीकत नहीं बदली. तमाम राजनेता लोगों से इस सिस्टम को जड़ से उखाड़ने का चुनावी वादा करते हैं लेकिन असल हकीक़त तो ये है कि इन्हीं राजनेताओं के संरक्षण में इस तरह की अदालतें पल रही हैं. आये दिन इन ढोंगी अदालतों के तुगलकी फरमान जारी होते रहते हैं जिनमें हत्या और बलात्कार जैसे आदेश शामिल है. लेकिन इसके बावजूद ये आदेश देने वाले बच जाते हैं. गौरतलब है कि साल 2011 में कोर्ट पहले ही इन अदालतों को गैर कानूनी घोषित कर चुका है. लेकिन उच्च न्यायालय के आर्डर के बावजूद उनकी नाक के नीचे ही कंगारू अदालत आये दिन कानून की अवहेलना करने वाले आदेश जारी करती रहती हैं.

तमाम घटनाएं हैं उदाहरण

वर्तमान में बंगाल के बीरभूमि जिले में एक आदिवासी महिला के साथ गैंगरेप का आदेश इसका सबसे ताजा उदाहरण है. इससे पहले ओडिशा के मयुरभंज में ऐसी घटना सामने आई थी जहां अलग-अलग समुदायों के एक लड़के और एक लड़की के बीच प्रेम संबंध के विरोध में उनका कथित तौर पर सिर मुड़ाकर उन्हें सड़कों पर घुमाया गया. ऐसा ही कुछ राजस्थान में एक युवती के बचपन की शादी विरोध करने पर हुआ था जिसके बाद कंगारू अदालत ने उस पर 16 लाख रूपए का जुर्माना लगाया तथा उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया था. यही नहीं एक बार बंगाल के बीरभूम जिले में 75 साल के एक वृद्ध की दसों अंगुलियां काट दी गईं थी क्योंकि गांव वालों ने उस पर जादू टोना का आरोप लगाया था.

सदियों पुरानी है ये परंपरा

कुछ जानकारों की मानें तो इन अदालतों का चलन भारत में अंग्रेजों के शासन काल से भी पहले से चला आ रहा है. इस दौरान भारतीय दंड संहिता लागू होने के बावजूद स्थानीय पंचायतें, राजा और जमींदार समानांतर न्याय व्यवस्था चलाते हुए तमाम विवादों का निपटारा करते थे. उनका फैसला पत्थर की लकीर के समान होता था. लेकिन 21वीं सदी में ऐसी अदालतें समाज के लिए किसी धब्बे से कम नहीं है. जहां देश एक तरफ प्रगतिशील विचारधारा की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज के एक वर्ग की ऐसी सोच और हरकतें देश को गहरी खाई की ओर धकेलने में लगी हुई हैं. फ़िलहाल, पुलिस, प्रशासन और सरकार की सख्ती के बिना इन पर अंकुश लगाना संभव नहीं है.

गणेश चतुर्थी के दिन गलती से भी नहीं देखना चाहिए चांद, जानिए क्यों माना जाता है अशुभ?

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गणेश चतुर्थी के दिन गलती से भी नहीं देखना चाहिए चांद, जानिए क्यों माना जाता है अशुभ?

आज देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जा रहा है. गणपति बप्पा आज लोगों के घरों में विराज रहे हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के मुताबिक भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था. इस साल आज यानी 22 अगस्त को ये त्योहार मनाया जा रहा है. हर साल देशभर में गणेशोत्सव का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल भी गणेश चतुर्थी को लेकर उत्साह का माहौल है. हालांकि इस बार सभी त्योहारों की तरह गणेश चतुर्थी पर भी कोरोना वायरस का असर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है.

देशभर में मनाई जा रही गणेश चतुर्थी

भाद्रपास के शुक्ल पक्ष में शुरू होने वाला ये त्योहार 10 दिनों तक यानी अनंद चौदस तक चलता है. चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा लोगों के घरों में पधारते हैं और 10 दिनों बाद विदा करके विसर्जन किया जाता है. हालांकि आजकल कई लोग दो से तीन दिनों में भी विसर्जन कर देते हैं.

किसी भी पूजा या फिर शुभ कार्य से पहले गणपति बप्पा का नाम लिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिन घरों में गणेश जी का स्वागत किया जाता है और 10 दिनों तक श्रद्धा से पूजा की जाती है, उन घरों में बप्पा की विशेष कृपा होती है. गणपति बप्पा उनके सभी दुख दूर कर लेते हैं.

गणेश चतुर्थी के दिन नहीं करने चाहिए चांद के दीदार

गणेश चर्तुशी को लेकर कई तरह की मान्यताएं है. इनमें से एक ये भी है कि गणेश चतुर्थी के दिन गलती से भी चांद को नहीं देखना चाहिए. इन दिन चांद का दीदार करना अशुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन जो भी व्यक्ति चांद देखता है, उस पर झूठा आरोप लगता है. आइए आपको बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद ना देखने की वजह और इसके पीछे की कहानी क्या है…

ये है इसके पीछे की कहानी…

मान्यताओं के अनुसार जब गणपति बप्पा ने पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा की थी, तो प्रथम पूज्म कहलाए. सभी देवी-देवताओं ने उनकी वंदना की, लेकिन तब चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराएं. दरअसल, चांद को अपने सौंदर्य पर घमंड हो रहा था. चंद्रमा ने गणेश जी की बाकी देवताओं की तरह पूजा नहीं की, जिसकी वजह से उनको चांद पर गुस्सा आया और उन्होनें गुस्से में चांद को श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाएगा. फिर चंद्रमा को अपनी गलती का एहसास हो गया और तुरंत ही गणेश जी से माफी मांग ली. जिसके बाद गणेश जी ने कहा कि जैसे-जैसे सूर्य की किरणें तुम पर पड़ेगीं, तो तुम्हारी चमक लौट आएगी.

गणेश चतुर्थी के दिन चांद को ना देखने की ये वजह बताई जाती है. हालांकि अगर आपने गलती से भी चांद को देख लिया है, तो परेशान ना हो. भूल से अगर चांद को देख लें तो एक खास मंत्र का जाप कर लेना चाहिए, जो इस प्रकार है-

‘सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:. सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष:स्यमन्तक:।।’

विवादों के बाद संजीव कुमार की हुई TCIL के चेयरमैन के रूप में नियुक्ति, दूरसंचार विभाग ने दी जानकारी

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विवादों के बाद संजीव कुमार की हुई TCIL के चेयरमैन के रूप में नियुक्ति, दूरसंचार विभाग ने दी जानकारी

सार्वजनिक उद्यम चयन बोर्ड (PESB) ने मंगलवार को साक्षात्कार प्रक्रिया के बाद दूरसंचार कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (TCIL) का नेतृत्व करने के लिए महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) में तकनीकी निदेशक संजीव कुमार का चयन किया.

दूरसंचार विभाग ने दी जानकारी

इस बारे में दूरसंचार विभाग ने कहा कि “उनकी वरिष्ठता, आयु प्रोफ़ाइल, उपयुक्तता, अनुभव, शैक्षणिक पृष्ठभूमि, प्रबंधकीय क्षमताओं, नेतृत्व, और व्यापक दृष्टि के संबंध में साक्षात्कार के दौरान उम्मीदवारों के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए, खोज-सह-चयन समिति ने, एक अधिसूचना में एमटीएनएल के निदेशक (तकनीकी) संजीव कुमार के टीसीआईएल के लिए अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक की नियुक्ति के लिए सिफारिश की.”

साल 2016 से कर रहे थे काम

बता दें कि साल 2016 से कुमार MTNL में निदेशक (तकनीकी) के तौर पर काम कर रहे हैं. कुमार को टीसीआईएल के सीएमडी के पद पर नियुक्ति के लिए साक्षात्कार में आए आठ उम्मीदवारों की सूची में से चयन पैनल द्वारा चुना गया है. इस सूची में तीन उम्मीदवार नरेंद्र जैन निदेशक (वित्त),कामेंद्र कुमार, निदेशक (तकनीकी), अतुल कुमार रस्तोगी, कार्यकारी निदेशक, टीसीआईएल;  देवेंद्र कुमार अग्रवाल, सीनियर जीएम, रमाकांत शर्मा, सीजीएम, बीएसएनएल; से और एक उम्मीदवार प्रशांत राव, निदेशक (सिस्टम, इलेक्ट्रिकल एंड रोलिंग स्टॉक) गुजरात मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (जीएमआरसीएल) से थे.  सूत्रों की मानें तो भारतीय दूरसंचार सेवा (ITS) लॉबी बोर्ड और DoT द्वारा अपनाई गई स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नाखुश थी क्योंकि कुछ अधिकारियों का नाम शॉर्टलिस्ट में नहीं लिया गया था, और उनमें से एक जोड़ी विवादास्पद नियुक्ति को चुनौती देने की योजना बना रही है.

क्या है TCIL?

दूरसंचार कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (टीसीआईएल) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक मिनीरत्न पीएसयू है. ये एक प्रमुख प्रीमियर टेलीकम्युनिकेशंस और इंजीनियरिंग कंपनी है जो अनुकूल विकासशील देशों को अपनी विशाल और विविध दूरसंचार विशेषज्ञता उपलब्ध करा रही है. इस कंपनी ने अपनी दूरसंचार कंसल्टेंसी और टर्नकी परियोजनाओं के निष्पादन सेवाओं को भारत में दूरसंचार ऑपरेटरों, थोक उपयोगकर्ताओं और अन्य लोगों और मध्य पूर्व, अफ्रीका, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के 80 अन्य देशों में विस्तारित किया है.

टीसीआईएल की सफलता की कहानी इसके गुणवत्ता प्रबंधन और परियोजना निष्पादन में उत्कृष्टता के लिए निहित है. कंपनी की ऑर्गेनिक और इनऑर्गेनिक वृद्धि के कारण इसका स्टैंडअलोन और ग्रुप टर्नओवर कई गुना बढ़ गया है. इसकी सफलता के पीछे TCIL के निदेशक (तकनीकी) कामेंद्र कुमार का भी बहुत बड़ा हाथ है.

World Mosquito Day : क्या आप जानते हैं एक छोटा सा मच्छर ले सकता है आपकी जान, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीके…

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World Mosquito Day : क्या आप जानते हैं एक छोटा सा मच्छर ले सकता है आपकी जान, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीके…

कानों के पास आकर भीन-भीन आवाज कर अपने होने का एहसास दिलवाने वाले मच्छर हमारी जाने के लिए कितने खतरनाक होते हैं, वो तो आप जानते ही होंगे. घर का कोना हो या फिर बरसात में कोई पानी का भरा ड्रम, मच्छर पनपने लग जाते हैं. जिसके बाद आपकी आमदनी डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारी में निकल जाती है, तो फिर क्यों न ये सब जानते हुए हम पहले से ही सर्तक रहें.

आपको शायद इस बात की जानकारी न हो कि दुनियाभर में मच्छर का प्रकोप बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करता है. जिससे छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के कई अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन फिर भी हर साल हजारों मलेरिया और डेंगू के केस सामने आते हैं. आपको बता दें कि 20 अगस्त, 1897 में ब्रिटिश डॉ रोनाल्ड रॉस ने इस बात का पता लगाया था कि मच्छर के काटने की वजह से मलेरिया होता है. जिसके बाद से 20 अगस्त के दिन विश्व मॉस्किटो डे के रूप में मनाया जाता है. तो आइए आपको इस मौके पर बताते हैं कि मच्छर के काटने से होने वाली बीमारियों पर कैसे रोकथाम किया जा सकता है.

रिसर्ज की माने तो ऐसा कहा जाता है कि जितना कोई आपदा या दूसरी बीमारियां किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाती है उससे कई ज्यादा तो एक छोटे से मच्छर पहुंचाता है. आपको जानकारी के लिए बता दें कि एक छोटा सा मच्छर 1 बार में मानव का 0.1 मिलीमीटर तक खून चूसता है, जिससे डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियां होने की संभावाना होती है.

आंकड़ों के अनुसार मच्छर से होने वाली तरह-तरह की बीमारियों से हर साल लाखों-करोड़ों लोगों की जान जाती है. जिनमें अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा मृत्यु होती है. बता दें कि मच्छर के काटने से मलेरिया, डेंगू, पीला बुखार, एन्सेफलाइटिस जैसी बीमारियां किसी व्यक्ति की जान तक ले सकता है.

मच्छरों से बचाव के तरीके

अगर आप मच्छरों से खुद का और अपने परिवार का बचाव करना चाहते हैं तो अपने आस-पास न केवल अपने घर में बल्कि पूरे इलाके में साफ-सफाई का पूरी तरह से खासतौर पर ख्याल रखें. घर हो या फिर घर के बाहर की जगह में जलभराव न होने दें. घर के आस-पास की खुली नालियों को तत्काल रूप से बंद करा दें. घर में पानी की टंक्कियों, कूलर और ट्यूब-टायरों में बिल्कुल भी पानी न भरने दें. इसके अलावा खाने-पीने का भी खास ध्यान दें और विटामिन की अधिकता वाले ही फल और खाना खाएं. अगर आपको अपनी तबीयत जरा सी भी खराब लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

किराने की दुकान में काम करने वाले सूर्यकांत कैसे बन गए IPL के स्कोरकीपर ?

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किराने की दुकान में काम करने वाले सूर्यकांत कैसे बन गए IPL के स्कोरकीपर ?

कभी कभी जिंदगी पल भर में किस्मत को कुछ यूं जादुई तरीकों से बदलती है कि एक टाइम खुद को भी विश्वास करना थोड़ा मुश्किल सा हो जाता है. कुछ ऐसी ही कहानी इस बार यूएई में होने वाले IPL में स्कोरकीपर बनाये गए शख्स की है. पश्चिम बंगाल के चिनसुरा में रहने वाले इस शख्स के लिए इस बार का IPL उस सपने जैसा है जो हकीकत में बदल जाता है. आपको जानकर काफी हैरानी होगी कि इस बार IPL का स्कोरकीपर अपने जीवन में पहली बार एयरपोर्ट पर कदम रखेगा. आइये जानें कौन है ये शख्स?

किराने की दुकान में करते थे काम

इस शख्स का नाम सूर्यकांत पंडा है. उन्होंने सिर्फ 10वीं तक स्कूली शिक्षा हासिल की है और वे एक कुक के बेटे हैं. बचपन में काम की तलाश में उन्होंने ओडिशा से बंगाल की ओर रुख किया था. बंगाल में उन्होंने एक किराने की दुकान में काम करना शुरू किया. उनकी स्पोर्ट्स की तरफ बचपन से ही रुचि थी लेकिन आर्थिक समस्याओं के चलते वे अपने सपने को कभी पूरा नहीं कर पाए. उनका मन था कि वो क्रिकेटर बनें. हालांकि ऐसा नहीं है कि उन्होंने इसके लिए कोशिश नहीं की. इस समय 32 साल के हो चुके सूर्यकांत ने 2002 से 2003 के दौरान हुगली डिस्ट्रिक्ट एसोसिएशन के मैदान पर कुछ मैच खेले. लेकिन जिम्मेदारियों के चलते वो अपना गेम जारी नहीं रख सके.

मिल चुके हैं कई पुरूस्कार

सूर्यकांत हमेशा क्रिकेट से जुड़ना चाहते थे. वह हुगली जिला खेल संघ में स्कोरिंग करने लगे. 2015 में सीएबी की परीक्षा पास करने के बाद उनका स्कोरर के तौर पर चयन हो गया और फिर सीएबी द्वारा आयोजित अधिकांश मैचों के स्कोरर बन गए. सूर्यकांत को निरंतर प्रयास और दृढ़ संकल्प ने 2018 में सर्वश्रेष्ठ स्कोरर का पुरस्कार दिलाया. सीएबी के सचिव अविषेक डालमिया ने उन्हें पुरस्कृत किया. सूर्यकांत पंडा अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय मेंटर कौशिक साहा और रक्तिम साधु को देते हैं. रक्तिम साधु कहते हैं, ‘यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात है. वह सीखने और सिखाने में बेहद रुचि रखता है. मुझे उससे बहुत उम्मीदें हैं.’

सूर्यकांत ने जताई ख़ुशी

हुगली डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव विकास मल्लिक ने कहा, ‘पूरे हुगली स्पोर्ट्स एसोसिएशन को उनकी उपलब्धि पर गर्व है. वह खुद की मेहनत से यहां तक पहुंचा है. मुझे तब ज्यादा खुशी होगी, जब वह बीसीसीआई की परीक्षा पास कर लेगा. उसे देखकर कई अन्य भी प्रेरित हो सकते हैं.’ बता दें कि सूर्यकांत 19 अगस्त को बेंगलुरु और फिर 27 अगस्त को दुबई के लिए उड़ान भरेंगे. IPL के मुकाबले 19 सितंबर से 10 नवंबर तक खेले जायेंगे. उन्होंने कहा, ‘मैं फुटबॉलर बनना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब उन्होंने (सूर्य) मुझे बताया कि वह आईपीएल के लिए चुने गए हैं, तो मैं बहुत खुश हुआ. मैं उन्हें अपने कर्मचारी के रूप में कभी नहीं देखता, वह मेरे लिए भाई या दोस्त की तरह हैं.’

अब डॉक्टर को मेडिकल हिस्ट्री के पर्चे देने से मिलेगी छुट्टी! केंद्र सरकार के इस मिशन से आसान होने वाली है जिंदगी

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अब डॉक्टर को मेडिकल हिस्ट्री के पर्चे देने से मिलेगी छुट्टी! केंद्र सरकार के इस मिशन से आसान होने वाली है जिंदगी

हाल ही में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने अपने भाषण में कई चीजों का जिक्र किया था. जिसमें नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की भी एलान किया गया था. पीएम ने इस मिशन को डिजिटल इंडिया की दिशा में एक बड़ा कदम बताया था.

पीएम ने इस बारे में पूरी ब्रीफिंग तो नहीं दी लेकिन एक संकेत देते हुए ये जरूर बताया था कि कैसे इस मिशन के जरिये सरकार की पूरा मेडिकल सेक्टर ऑनलाइन करने की योजना है. पीएम का कहना था इसके जरिये डॉक्टर-मरीज से लेकर क्लिनिक, अस्पताल और मेडिकल स्टोर ऑनलाइन हो जायेंगे. आइये जानें केंद्र सरकार का ये डिजिटल हेल्थ मिशन आपकी जिंदगी पर कैसे प्रभाव डालेगा.

आईडी कार्ड से पता चलेगी मेडिकल हिस्ट्री

इस मिशन के तहत आपको एक यूनिक आईडी कार्ड यानि पहचान पत्र दिया जाएगा. ये बिल्कुल आधार कार्ड की तरह होगा. इस आईडी कार्ड की मदद से पेशेंट की पूरी मेडिकल हिस्ट्री पता की जा सकेगी. इससे पेशेंट को ये फायदा होगा कि देश के किसी कोने में इलाज कराते समय पेशेंट को किसी जांच रिपोर्ट या पर्ची की जरूरत नहीं होगी.

आपकी हेल्थ की सारी जानकारी इस आईडी कार्ड में पहले से स्टोर होंगी. डॉक्टर को आपकी पूरी हेल्थ कुंडली पता चल सकेगी कि आप पहले कौन सी बीमारी की चपेट में आ चुके हैं. और आपने कहां इलाज कराया है.

नहीं रखनी पड़ेंगी पर्चियां

इससे पहले मरीज को अपना डेटा रखने के लिए तमाम पर्चियां रखनी पड़ती थी. लेकिन इस मिशन के जरिये अब इन पर्चियों को रखने की झंझट से छुटकारा मिलेगा. हर मरीज का पूरा डेटा रखने के लिए अस्पताल, क्लीनिक और डॉक्टर्स को एक सेंट्रल सर्वर से लिंक किया जाएगा.

मतलब इस मिशन में अस्पताल, क्लिनिक और डॉक्टर भी रजिस्टर होंगे. फ़िलहाल सरकार इसे सबके लिए अनिवार्य करने की प्लानिंग नहीं कर रही है. सरकार की कोशिश है कि धीरे धीरे इसको सिस्टम में लाया जाए. इससे स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखने में आसानी होगी. बिल और डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की भी झंझट नहीं रहेगी.

ऑनलाइन और ऑफलाइन मिलेंगे विकल्प

अभी तक दवा लेने के लिए आपको डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत पड़ती थी. ऑनलाइन दवा लेने के लिए भी आपको डॉक्टर का ऑनलाइन पर्चा अपलोड करना पड़ता था. लेकिन अब इसकी कोई जरूरत नहीं होगी. ऑनलाइन दवा लेने के लिए अब सिर्फ आपको हेल्थ आईडी की जरूरत पड़ेगी. और इसे डालते ही आपकी सारी जानकारी फार्मेसी के पास चली जायेंगी.

और आपके घर इसकी ऑनलाइन डिलीवरी हो जायेगी. इसके अलावा ऑफलाइन भी दवा लेने के लिए आपको सिर्फ अपनी आईडी बतानी पड़ेगी. इसके अलावा हर मेडिकल स्टोर को भी इस मिशन से जोड़े जाने की प्लानिंग है ताकि हर मेडिकल स्टोर पर ये प्रिस्क्रिप्शन आसानी से एक्सेस किया जा सके.