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Dhirendra Shastri Controversy: हिंदुओं पर दोहरा संदेश देने वाले धीरेंद्र शास्त्री, क्...

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Dhirendra Shastri Controversy: बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री, जो अक्सर धार्मिक संदेश और हिंदू समाज पर अपने विचारों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं, हाल ही में दो अलग-अलग बयानों के कारण विवाद में हैं। TV9 भारतवर्ष को दिए इंटरव्यू में उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका मिशन “सोए हुए हिंदुओं को जगाना” है। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि हिंदू समाज जाति, क्षेत्र, भाषा और वर्ग के नाम पर बंट चुका है। उन्होंने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, गुर्जर, जाट और शर्मा आदि का जिक्र करते हुए सवाल उठाया कि अगर हिंदू सच में एकजुट होते तो देश हिंदू राष्ट्र बन जाता और विभिन्न घटनाओं जैसे कन्हैयालाल की हत्या, पालघर में संतों की मौत और बांग्लादेशी हिंदुओं की दुर्दशा नहीं होती।

उन्होंने यह भी उदाहरण दिया कि इजरायल अपने यहूदियों को सुरक्षित रखने के लिए दुनिया भर से लाता है, लेकिन भारत में रहने वाले हिंदुओं को उनके अधिकार नहीं मिल रहे। इस इंटरव्यू में उनका पूरा फोकस हिंदुओं को एक पहचान में जोड़ने और उनकी अस्मिता बचाने पर था।

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पॉडकास्ट में जाति पर उल्टा बयान- Dhirendra Shastri Controversy

लेकिन कुछ ही समय बाद एक पॉडकास्ट में शुभांकर मिश्रा के सवाल पर धीरेंद्र शास्त्री ने जाति को लेकर एकदम अलग रुख अपनाया। जब मिश्रा ने पूछा कि क्या जात-पात खत्म होने पर ही हिंदू समाज में असली एकता संभव है, और क्या अंतरजातीय विवाह इसके लिए एक समाधान हो सकता है। इस पर पंडित शास्त्री ने स्पष्ट कहा कि वे जाति खत्म करने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना था कि यह देश की सामाजिक व्यवस्था और आरक्षण प्रणाली के कारण असंभव है और ऐसा करने से गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि जातियों के बीच घृणा को खत्म करना जरूरी है, न कि पूरी जाति व्यवस्था को हटाना।

दोहरे संदेश ने खड़ा किया विवाद

TV9 वाले बयान में शास्त्री हिंदुओं को जाति से ऊपर उठने और एकजुट होने की अपील कर रहे थे। वहीं, पॉडकास्ट में वे जाति संरचना को बनाए रखने और केवल घृणा कम करने की बात कर रहे हैं। इस दोहरे संदेश ने सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर सवाल खड़े कर दिए हैं:

  • क्या धीरेंद्र शास्त्री अपने संदेश परिस्थिति के अनुसार बदलते हैं?
  • क्या यह हिंदू एकता के लिए वास्तविक प्रयास है या केवल राजनीतिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखने की रणनीति?

असली मंशा अभी विवादित

धीरेंद्र शास्त्री के दोहरे बयानों ने यह स्पष्ट किया कि जाति और हिंदू एकता के मुद्दे पर उनकी स्थिति विवादित है। हालांकि वे हिंदुओं को जागरूक करने की बात करते हैं, लेकिन यह सवाल खुला है कि क्या वे सच में हिंदू समाज की एकता चाहते हैं या अलग-अलग अवसरों पर अपनी विचारधारा के अनुसार संदेश बदलते हैं।

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Ambedkar vs Right-wing politics: बाबासाहेब की विरासत पर सवाल, कैसे दक्षिणपंथी राजनीति...

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Ambedkar vs Right-wing politics: जैसे-जैसे भारत अपनी राजनीतिक धुरी पर नाटकीय रूप से घूम रहा है, देश की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना में तेजी से बदलाव नजर आ रहे हैं। एक ओर, यह परिवर्तन राष्ट्रवादी और हिंदू वर्चस्ववादी एजेंडों के साथ जुड़ा है, वहीं दूसरी ओर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की विरासत धीरे-धीरे खतरे में दिखाई दे रही है। गांधी की तरह अपेक्षाकृत आसानी से सार्वजनिक स्मृति में जगह बनाने के बाद, आंबेडकर की विचारधारा एक चुनौती के रूप में सामने आती है।

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आज के संदर्भ में, भाजपा के नेता और मंत्री सार्वजनिक रूप से डॉ. आंबेडकर को सम्मानित करते दिखते हैं। वहीं सोशल मीडिया और व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स पर उनके नाम से भ्रामक उद्धरण और कट्टर दक्षिणपंथी संदेश फैलाए जा रहे हैं। मीडिया अक्सर उन्हें केवल संविधानदाता और ‘सौम्य दलित नेता’ के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि उनके असली दृष्टिकोण हिंदू वर्चस्ववाद और जाति व्यवस्था के खिलाफ उनका प्रतिरोध लगभग नजरअंदाज कर दिया गया है।

महाराष्ट्र में दलित आंदोलन और अंबेडकर का उदय (Ambedkar vs Right-wing politics)

1900 के दशक की शुरुआत में महाराष्ट्र का औद्योगिक क्षेत्र एक नई सामाजिक संरचना का जन्म दे रहा था। बॉम्बे की मिलों में लगभग 1.5 लाख मज़दूर काम करते थे और उनमें लगभग 10% महार समुदाय से थे। बावजूद इसके, महारों को अच्छी मजदूरी वाले काम नहीं मिलते थे। बुनाई जैसे कामों से उन्हें अलग रखा जाता था क्योंकि “टूटा हुआ धागा मुँह से जोड़ना पड़ता है” और जातिगत पूर्वाग्रहों के चलते उन्हें ‘अशुद्ध’ माना जाता था।

दिहाड़ी मज़दूरी, सफाई, कोयला, रेलवे और गोदी जैसे कठिन कामों में महारों की बड़ी उपस्थिति थी, लेकिन उनका शोषण जारी था। यही सामाजिक और आर्थिक हालात दलितों को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर रहे थे विशेषकर उन सुधारकों के आध्यात्मिक वादों से, जो सिर्फ “हिंदू एकता” की बात करते थे लेकिन जाति पर सवाल नहीं उठाते थे। इसी समय डॉ. आंबेडकर ने राजनीतिक मैदान में प्रवेश किया।

प्रारंभिक प्रयास और प्रतिरोध

आंबेडकर से पहले भी दलितों को संगठित करने के कुछ प्रयास हुए थे। गोपाल बाबा वलंगकर और शिवराम जनबा कांबले ने सेना में महारों की भर्ती के लिए याचिकाएँ दायर की थीं। वहीं, विट्ठल रामजी शिंदे जैसे राष्ट्रवादी मराठाओं ने ‘डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन’ के माध्यम से दलितों का उत्थान करने का प्रयास किया। लेकिन व्यवहार में यह दलितों को हिंदू महासभा या कांग्रेस के व्यापक हिंदू-एकीकरणवादी एजेंडों में शामिल करने की कोशिश थी।

शिंदे के प्रभाव में आए प्रारंभिक दलित नेता किसन फागुजी बनसोडे और अक्काजी गवई थे। इन नेताओं ने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में काम किया, लेकिन बाद में राजनीतिक और धार्मिक विचारों में शिंदे के हिंदू-एकीकरणवादी एजेंडे को अपनाया। डॉ. आंबेडकर ने हालांकि उनसे दूरी बनाए रखी और नागपुर में अपने समर्थन का केंद्र विकसित किया।

1920 में, अखिल भारतीय बहिष्कृत परिषद में डॉ. आंबेडकर ने शिंदे और गवई के ‘डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन’ के हिंदू पुनरुत्थानवादी एजेंडे की तीखी निंदा की। यह घटना उनके नेतृत्व के उदय और दलित आंदोलन के स्वतंत्र होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

आंबेडकर की राजनीति: हिंदू दक्षिणपंथ के लिए सबसे बड़ी बाधा

आंबेडकर कभी भी हिंदू दक्षिणपंथ या उदार ब्राह्मण सभ्यताओं के दोस्त नहीं थे। 1920 में ही उन्होंने साफ़ कहा कि: “अस्पृश्यता को दूर करने के लिए उच्च जातियों की विधायिका कभी कानून नहीं बनाएगी… वे कर सकते हैं, लेकिन वे करेंगे नहीं।” उनकी सोच उन्हें चुनावी प्रतिनिधित्व जैसे सांकेतिक उपायों से आगे ले गई। वे अलग निर्वाचिकाओं के समर्थन में खड़े हुए, जिससे गांधी से टकराव हुआ और अंततः पूना पैक्ट हुआ।

गांधी और आंबेडकर का टकराव सिर्फ राजनीतिक नहीं था यह दो विचारों का टकराव था।
गांधी जाति व्यवस्था के मूल ढांचे को बचाना चाहते थे, जबकि आंबेडकर उसे पूरी तरह खत्म करना चाहते थे। आंबेडकर बार-बार ‘हिंदू राज’ को खतरा बताते थे और हिंदू समाज को समानता और स्वतंत्रता का दुश्मन मानते थे।

कश्मीर और पाकिस्तान पर आंबेडकर की स्पष्ट दार्शनिक दृष्टि

1940 के दशक में उनकी किताब “Pakistan: Or The Partition of India” आज भी उस दौर की राजनीति का सबसे सटीक विश्लेषण मानी जाती है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रवाद की शक्तियों को भावनाओं के आधार पर संभाला नहीं जा सकता। कश्मीर पर भी उनका दृष्टिकोण आज के हिंदू दक्षिणपंथी आख्यान से बिल्कुल अलग था। उनके विचारों को चुनिंदा उद्धरणों से तोड़ा-मरोड़ा गया है, जबकि वे न तो पाकिस्तान समर्थक थे, न ही हिंदू राष्ट्र के सहयोगी।

दक्षिणपंथ और दलित आंदोलन

हिंदू दक्षिणपंथी संगठन जैसे आरएसएस ने 1970 के दशक के बाद से दलित आंदोलन को अपने पक्ष में जोड़ने की कोशिश की। हालांकि, डॉ. आंबेडकर ने कभी स्वीकार नहीं किया कि बौद्ध धर्म हिंदू धर्म का एक संप्रदाय मात्र है। उनके व्यक्तित्व और विचारधारा को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, और सोशल मीडिया तथा अन्य प्रचार माध्यमों में उन्हें मुस्लिम-विरोधी और उग्र राष्ट्रवादी के रूप में दिखाने की कोशिश की गई।

लेकिन वास्तविकता यह है कि आंबेडकर का आंदोलन अब भी जीवित है। एनआरसी-सीएए विरोधी प्रदर्शनों और अन्य सामाजिक आंदोलनों में उनकी तस्वीरें और विचार लगातार प्रकट होते रहे। सोशल मीडिया पर अध्ययन मंडलियाँ, चर्चा समूह और हास्य पेज उनकी विरासत को जीवित रख रहे हैं।

डॉ. आंबेडकर की विरासत केवल संविधान बनाने तक सीमित नहीं थी। यह दलित समाज को संगठित करने, जातिवादी वर्चस्व का विरोध करने और सामाजिक न्याय स्थापित करने की एक व्यापक लड़ाई थी। आज, हिंदू दक्षिणपंथ की राजनीतिक रणनीतियाँ उनकी छवि को कमजोर करने या अपने एजेंडे में शामिल करने की कोशिश कर रही हैं।

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Buddhist monks shaved heads: बौद्ध भिक्षु सिर क्यों मुंडवाते हैं? जानिए इस परंपरा के ...

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Buddhist monks shaved heads: क्या आपने कभी सोचा है कि बौद्ध भिक्षुओं के सिर पर बाल क्यों नहीं होते? आखिर क्यों वे अपना सिर पूरी तरह मुंडवा लेते हैं? दिखने में यह एक साधारण-सी प्रैक्टिस लगती है, लेकिन इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक सोच और हजारों साल पुरानी परंपरा छिपी है। दरअसल, बौद्ध भिक्षु बनने का मतलब है दुनियावी शोर-शराबे, दिखावे और इच्छाओं से दूरी बनाकर एक शांत, अनुशासित और आध्यात्मिक जीवन अपनाना। इस नए जीवन की शुरुआत ही सिर मुंडवाने से होती है, जिसे बौद्ध परंपरा में बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है।

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भिक्षु बनने का मतलब: एक नए जीवन की शुरुआत

जब कोई व्यक्ति भिक्षु बनता है, तो वह अपने पुराने जीवन को पीछे छोड़ देता है। परिवार, नौकरी, सामाजिक पहचान और भौतिक सुख सबसे दूरी बना लेता है। यह एक आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें मन की शांति और आत्मज्ञान प्राथमिक लक्ष्य बन जाते हैं। सिर मुंडवाना इसी नई शुरुआत का सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम माना जाता है।

बाल अहंकार और दिखावे का प्रतीक (Buddhist monks shaved heads)

बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बाल इंसान में घमंड, दिखावे और सौंदर्य की आसक्ति को बढ़ाते हैं। सुंदर बाल या अलग-अलग हेयरस्टाइल व्यक्ति को अपनी खूबसूरती या सामाजिक छवि के प्रति जागरूक रखते हैं। भिक्षुओं के लिए यह सब मन को भटकाने वाला माना जाता है। इसलिए जब वे भिक्षु बनने की दीक्षा लेते हैं, तो अपने बालों को त्यागकर यह दर्शाते हैं कि, “अब मैं अहंकार और दिखावे से मुक्त होकर आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहा हूँ।”

भौतिक जीवन से दूरी का प्रतीक

सिर मुंडवाना इस बात का संकेत भी है कि भिक्षु अब सामान्य सामाजिक जीवन से पूरी तरह अलग हो चुका है। यह एक तरह का आध्यात्मिक त्याग है कि “अब मेरा जीवन साधना, सेवा और शांति के लिए समर्पित है।” यह बदलाव न सिर्फ बाहरी रूप में दिखता है, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी व्यक्ति को नई राह पर स्थापित करता है।

बुद्ध ने भी बाल त्यागकर किया था ज्ञान का मार्ग शुरू

बौद्ध धर्म में इस प्रथा का सबसे बड़ा कारण बुद्ध का उदाहरण है। कहानी के अनुसार, जब सिद्धार्थ महल और राजसी जीवन छोड़कर ज्ञान की खोज में निकले, तो उन्होंने तलवार से अपने बाल काट लिए। यह उनका पहला बड़ा त्याग था, जो दर्शाता था कि वे अब राजकुमार नहीं, बल्कि एक साधक हैं। आज भी भिक्षु उसी परंपरा का पालन करते हुए सिर मुंडवाते हैं ताकि बुद्ध के मार्ग के और करीब आ सकें।

दिखावे और फैशन से मुक्ति

जब सिर पर बाल नहीं होते तो भिक्षु को न तो हेयरस्टाइल की चिंता रहती है, न फैशन के पीछे भागने की। यह साधारण-सा परिवर्तन उनके मन से कई तरह के तनाव और बाहरी चिंताओं को खत्म कर देता है। क्योंकि जितना कम ध्यान रूप-रंग पर लगेगा, उतनी अधिक ऊर्जा ध्यान और साधना में लगाई जा सकेगी। यही कारण है कि मुंडन को साधना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है।

विनय पिटक में सख्त नियम

वहीं, बौद्ध भिक्षुओं के लिए बने नियमों की पुस्तक विनय पिटक में सिर मुंडवाने को अनिवार्य बताया गया है। इसमें ये बातें खास तौर पर लिखी हैं जैसे:

  • बाल रेज़र से हटाए जाएँ
  • बालों को रंगना या स्टाइल करना मना है
  • बालों को संवारना या उनका ध्यान रखना भी अनुचित माना गया है

इन नियमों का पालन भिक्षु के अहंकार को नियंत्रित करने और सरलता बनाए रखने के लिए किया जाता है।

समानता और समुदाय का प्रतीक

मुंडा हुआ सिर भिक्षुओं की पहचान भी है। इससे सभी भिक्षु बिना किसी भेदभाव के एक समान दिखते हैं। न धन का फर्क, न जाति का, न सामाजिक स्तर का सभी एक ही समुदाय का हिस्सा माने जाते हैं। यह समानता बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है।

मानसिक शांति और ध्यान में आसानी

कई अध्ययनों और अनुभवों से पता चला है कि जब व्यक्ति दिखावे और रूप-रंग से मुक्त होता है, तो मन अधिक शांत और स्थिर रहता है। भिक्षुओं का जीवन भी इसी सिद्धांत पर आधारित है। मुंडन से वे मानसिक रूप से हल्के और केंद्रित महसूस करते हैं, जिससे ध्यान लगाना आसान होता है।

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Best Smartphone 20k Budget: 20–30 हजार के बजट में वाइफ को देना चाहते हैं बेस्ट फोन? य...

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Best Smartphone 20k Budget: अगर आप इस समय अपनी वाइफ के लिए ₹20,000 से ₹30,000 तक के बजट में एक शानदार स्मार्टफोन गिफ्ट करने की सोच रहे हैं, तो बाजार में कई ऐसे मॉडल मौजूद हैं जो फीचर्स, लुक और परफॉर्मेंस तीनों में संतुलन बनाकर चलते हैं। कैमरा-क्वालिटी से लेकर बैटरी और प्रोसेसर तक, हर एक कैटेगरी में ये फोन अपनी कीमत के हिसाब से बेहतरीन साबित हो रहे हैं। आइए जानते हैं इस रेंज में कौन से स्मार्टफोन सबसे ज्यादा चर्चा में हैं और क्यों ये आपकी वाइफ के लिए परफेक्ट गिफ्ट बन सकते हैं।

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MOTOROLA G96 5G किफायती रेंज में दमदार परफॉर्मेंस (Best Smartphone 20k Budget)

अगर आपके बजट की शुरुआत 18 हजार के आसपास है, तो Motorola G96 5G एक बढ़िया विकल्प बनकर उभरता है। फ्लिपकार्ट पर 4.4 रेटिंग हासिल कर चुका यह फोन ₹17,999 में उपलब्ध है। इसमें 6.6 इंच का फुल HD+ डिस्प्ले है, जो स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया स्क्रोलिंग के लिए काफी स्मूथ अनुभव देता है।
फोन में Snapdragon 7s Gen 2 प्रोसेसर दिया गया है, जिससे मल्टीटास्किंग आसानी से हो जाती है। फोटोग्राफी पसंद करने वाली महिलाओं के लिए इसका 50MP डुअल रियर कैमरा और 32MP फ्रंट कैमरा एक मजबूत पैकेज पेश करता है। साथ ही 5500mAh की बैटरी पूरे दिन का बैकअप देती है।

Vivo T4R 5G ब्यूटी + कैमरा का धमाकेदार कॉम्बो

Vivo हमेशा से कैमरा और डिजाइन में अलग पहचान रखता है, और इसका Vivo T4R 5G इसका ताजा उदाहरण है। फ्लिपकार्ट पर 4.5 की शानदार रेटिंग के साथ ₹19,499 की कीमत में ये फोन 8GB RAM और 128GB स्टोरेज के साथ मिलता है।
50MP डुअल रियर और 32MP फ्रंट कैमरा इसकी सबसे बड़ी ताकत है। साथ ही 5700mAh बैटरी और Dimensity 7400 प्रोसेसर इसे लंबे समय तक टिकाऊ और तेज बनाते हैं। 6.7 इंच का बड़ा डिस्प्ले Netflix, Reels और फोटो एडिटिंग के अनुभव को और बेहतर कर देता है।

iQOO Z10R 5G गेमिंग और पावर-यूज़र्स के लिए खास

Amazon पर 4.3 रेटिंग के साथ लिस्टेड यह फोन ₹19,498 में उपलब्ध है। iQOO इस फोन में 6.7 इंच क्वाड कर्व्ड AMOLED डिस्प्ले देता है, जो इसे बाकी फोन से अलग और प्रीमियम बनाता है। Dimensity 7400 प्रोसेसर और 5700mAh बैटरी हेवी यूजर्स या गेमिंग पसंद करने वालों के लिए एक परफेक्ट कॉम्बिनेशन पेश करती हैं। 32MP फ्रंट कैमरा भी काफी शार्प सेल्फी लेता है।

Nothing Phone 2 Pro स्टाइलिश और यूनिक लुक वाली चॉइस

अगर आपकी वाइफ को यूनिक और मॉडर्न डिजाइन वाला फोन पसंद है, तो Nothing Phone 2 Pro एक बेहतरीन गिफ्ट बन सकता है। फ्लिपकार्ट पर 4.4 रेटिंग के साथ यह ₹18,999 में उपलब्ध है। इसमें 6.7 इंच डिस्प्ले, Dimensity 7300 Pro प्रोसेसर और 50MP ट्रिपल रियर कैमरा मिलता है। 16MP फ्रंट कैमरा भी साफ और नैचुरल सेल्फी देता है। इसका Glyph इंटरफेस और ट्रांसपेरेंट डिजाइन युवा यूज़र्स के बीच काफी पसंद किया जाता है।

OnePlus Nord CE4 सुपर फास्ट चार्जिंग + प्रीमियम अनुभव

OnePlus का Nord CE4 उन लोगों के लिए है जिन्हें एक संतुलित, तेज और प्रीमियम फोन चाहिए। Amazon पर 4.3 रेटिंग के साथ यह ₹18,999 में 8/128GB वेरिएंट के साथ मिलता है। फोन की 100W फास्ट चार्जिंग सिर्फ कुछ ही मिनटों में बैटरी को फुल कर देती है। 5500mAh बैटरी और Snapdragon 7 Gen 3 प्रोसेसर इसे और भी पावरफुल बनाते हैं। 6.7 इंच AMOLED डिस्प्ले इसके प्रीमियम फील को और बढ़ाता है।

Motorola Edge 60 Pro ₹30,000 रेंज में सबसे पावरफुल विकल्प

अगर आपका बजट 30 हजार के करीब है, तो Motorola Edge 60 Pro शायद इस लिस्ट का सबसे पावरफुल और प्रीमियम फोन है। इसकी कीमत ₹27,990 है, लेकिन फीचर्स फ्लैगशिप लेवल के हैं।
Dimensity 8350 Extreme Edition प्रोसेसर, 6.7 इंच P-OLED कर्व्ड डिस्प्ले, 50MP ट्रिपल कैमरा सेटअप (3x ऑप्टिकल ज़ूम) और 6000mAh बैटरी ये सब इसे हाई-एंड यूज़र्स के लिए परफेक्ट बनाते हैं। 90W फास्ट चार्जिंग भी इसकी बड़ी खासियत है।

OnePlus Nord CE5 5G 7100mAh बैटरी के साथ पावरहाउस

CE5 OnePlus का नया मॉडल है और इसमें 7100mAh की बैटरी मिलती है, जो लगातार 2 दिन का बैकअप दे सकती है। 6.77 इंच Super Fluid AMOLED डिस्प्ले, Mediatek 8350 Apex प्रोसेसर और 50MP कैमरा इसे ₹24,999 की कीमत पर एक शानदार चॉइस बनाते हैं।

Disclaimer: स्मार्टफोन्स की कीमतें और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मिलने वाले ऑफर्स समय-समय पर बदलते रहते हैं। इस वजह से किसी भी मॉडल का प्राइस आपके पढ़ने के समय अलग हो सकता है। सलाह दी जाती है कि अंतिम खरीदारी से पहले संबंधित ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जाकर ताज़ा कीमत और उपलब्ध ऑफर्स जरूर चेक कर लें।

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Sikhism in Mauritius: मॉरीशस की सुनहरी रेत में बसी पंजाबी कहानी

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Sikhism in Mauritius: मॉरीशस, जो हिंद महासागर में स्थित एक छोटा सा द्वीप देश है, आज भी अपनी विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है। यहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग मिलजुलकर रहते हैं। वहीं, सिख धर्म यहां कोई बड़ा धार्मिक ग्रुप नहीं, लेकिन 0.3 फीसदी पॉपुलेशन के साथ ये चौथा सबसे बड़ा रिलिजियस कम्युनिटी है। करीब 3,500-3,800 सिख यहां रहते हैं, ज्यादातर पंजाबी बैकग्राउंड से, जो IT, बैंकिंग और टूरिज्म में नाम कमा रहे हैं। लेकिन उनकी कहानी सिर्फ नंबर्स की नहीं है। आईए विस्तार से जानते हैं मॉरीशस में बसे सिख धर्म के बारे में।

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इतिहास: इंडेंटर्ड लेबर्स से लेकर प्रोफेशनल्स तक का सफर (Sikhism in Mauritius)

मॉरीशस की सिख हिस्ट्री 19वीं सदी के इंडियन लेबर्स से शुरू नहीं होती। 1835 से 1910 तक लगभग 4.5 लाख भारतीय मजदूर शुगर कैन खेतों में काम करने आए। इनमें अधिकांश बिहार और यूपी के थे, लेकिन कुछ पंजाब, बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु से भी आए। मजदूरों को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ा, और उनके संघर्ष से ही मॉरीशस ने आज की प्रगति हासिल की। यहां सिखों का आना धीरे-धीरे हुआ वो भी स्पोरैडिक इमिग्रेशन से। एक दिलचस्प किस्सा तो ये कि ब्रिटिश गवर्नर का बॉडीगार्ड एक सिख था, जो लोकल बिहारी औरत से शादी करके यहीं बस गया।

1980 के दशक तक सिख कम्युनिटी छोटी थी और  1989 में तो लोग किसी के घर में ही वीकेंड पर ‘गुरुद्वारा’ सेटअप करके मिलते थे। फिर 90 के दशक में प्रोफेशनल्स आए IT, फाइनेंस सेक्टर में। आज मॉरीशस-इंडिया के बीच एक्सचेंजेस चलते हैं, जैसे मिलिट्री ट्रेनिंग या कल्चरल प्रोग्राम्स। ये छोटी कम्युनिटी ने क्रेओल लैंग्वेज (फ्रेंच-बिहारी-इंग्लिश का मिक्स) सीख ली, लेकिन पगड़ी और लंगर की परंपरा बरकरार रखी।

पॉपुलेशन: 0.3% लेकिन इंपैक्ट बड़ा

मॉरीशस की टोटल पॉपुलेशन 12.6 लाख के आसपास है, तो सिखों की संख्या 3,500 से 3,800 बताई जाती है। ये आंकड़ा आधिकारिक सेंसस से आता है, जहां सिख धर्म चौथा सबसे बड़ा ग्रुप है, हिंदू (48%), क्रिश्चियन (32%), मुस्लिम (17%) के बाद। ज्यादातर पोर्ट लुई और क्वाट्र बर्नेस जैसे एरियाज में रहते हैं। पंजाबी फैमिलीज में हिंदू-सिख मिक्स है, लेकिन 90% सिख। ये नंबर्स छोटे लगते हैं, लेकिन इन्होंने GDP में योगदान दिया वो भी टूरिज्म और फाइनेंस में। एक रिपोर्ट कहती है कि सिख प्रोफेशनल्स ने मॉरीशस को इंडिया से जोड़ा, जैसे बैंकिंग एक्सचेंजेस से।

सिंगल गुरुद्वारा लेकिन सेंट्रल हब

अब मॉरीशस में गुरुद्वारों की बात करें तो यहां गुरुद्वारों की तादाद ज्यादा नहीं सिर्फ एक मेन गुरुद्वारा है, जो कम्युनिटी का हार्ट है। नाम है गुरुद्वारा श्री गुरु सिंग सभा, पोर्ट लुई में, बाल्ला गैरेज के पास सोडनाक एरिया में। छोटा सा डोम वाला स्ट्रक्चर, लेकिन अंदर की वाइब कमाल की लंगर सर्विस और कीर्तन सेशन। गुरुद्वारा बनने से पहले 1989 में घरों में ही सत्संग होते थे। इतना ही नहीं, यहां विसिटर्स के लिए रूम्स भी हैं। एक ब्लॉग में लिखा है कि ये गुरुद्वारा सिख हिस्ट्री की पिक्चर्स से सादा है, लेकिन कम्युनिटी की एकजुटता दिखाता है। सिख कम हैं तो गुरुद्वारा भी सिंगल, लेकिन फेस्टिवल्स पर धूम मच जाती जैसे बैसाखी पर अखंड पाठ।

प्रसिद्ध हस्तियां: खेर जगत सिंह

मॉरीशस के पंजाबी समुदाय की सबसे प्रमुख और रोचक हस्ती थी खेर जगत सिंह। उनका जन्म अमृतसर में हुआ था और मात्र तीन महीने की उम्र में वे मॉरीशस आ गए। उनके पिता ब्रिटिश सेवा में जेल इंस्पेक्टर थे और उन्होंने मॉरीशस की एक स्थानीय महिला से विवाह किया।

खेर जगत सिंह ने पत्रकारिता और राजनीति दोनों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र स्थापित किए, जैसे ‘The Mauritian Times’, ‘The Nation’ और ‘Advance’।

राजनीति में उनकी सक्रियता ने मॉरीशस के शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक नीतियों को आकार दिया। स्वतंत्रता के बाद वे स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति मंत्री रहे। 1980 में ब्रिटिश महारानी द्वारा उन्हें नाइटेड किया गया। उनकी मृत्यु 1985 में केवल 53 वर्ष की उम्र में हुई, लेकिन उनका योगदान आज भी मॉरीशस के समाज में याद किया जाता है।

कुल मिलाकर, मॉरीशस के सिख छोटे परिवार जैसे हैं, लेकिन उनका कंट्रीब्यूशन बड़ा। गुरुद्वारा से लंगर, पॉपुलेशन से प्रोफेशनल स्किल्स, सब कुछ इंस्पायर करता है। जैसे गुरु नानक जी कहते थे, ‘सच्चा सौदा’ यहां वो जी रहा है।

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Mayawati Controversy: मायावती और कंट्रोवर्सी एक ही सिक्के के दो पहलू… जानिए दाम...

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Mayawati Controversy: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, जो बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) की मुखिया हैं, हमेशा ही राजनीति की गलियों में विवादों और कंट्रोवर्सीज़ का हिस्सा रही हैं। मायावती का नाम जब भी लिया जाता है, उनका राजनैतिक सफर और विवादों का जिक्र साथ-साथ चलता है। चाहे वह उनकी व्यक्तिगत संपत्ति हो, पार्टी के फंड्स का इस्तेमाल, या फिर उनके शासनकाल की नीतियाँ, मायावती के खिलाफ आरोपों की लिस्ट काफी लंबी रही है।

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कई लोग मायावती को एक सशक्त नेता के रूप में मानते हैं, जिन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। लेकिन दूसरी ओर, उनकी राजनीतिक यात्रा में कई ऐसे मोड़ आए, जब उनके खिलाफ गंभीर आरोप सामने आए। यह आरोप कभी व्यक्तिगत थे, कभी पार्टी की नीति और कभी उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण उठे।

यमुना एक्सप्रेसवे का 126 करोड़ का लैंड गेम‘: CBI की नजर में

यमुना एक्सप्रेसवे लैंड डील घोटाला 2012 में शुरू हुआ था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना का उद्घाटन किया। आरोप था कि 57 हेक्टेयर ज़मीन को 85 करोड़ रुपये में खरीदा गया और फिर YEIDA (यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) को 126 करोड़ रुपये में बेचा गया, जिससे भारी मुनाफा हुआ। यह लैंड डील को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए, जिनमें पूर्व YEIDA CEO पीसी गुप्ता और 19 कंपनियों का नाम शामिल था। इस मामले में 2018 में एफआईआर दर्ज की गई और बाद में 2019 में CBI को जांच सौंप दी गई। इस घोटाले को अखिलेश यादव ने मायावती के शासनकाल में “लैंड डील घोटाला” करार दिया, और इसे उनके राज में भ्रष्टाचार के बड़े उदाहरण के रूप में पेश किया। जांच अब भी जारी है।

अखिलेश के आरोप, 40,000 करोड़ रुपये के घोटाले (Mayawati Controversy)

अखिलेश यादव ने 2012 में मुख्यमंत्री बनते ही मायावती के शासन (2007-2012) पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, खासकर स्टैच्यू-मेमोरियल्स और पार्क्स के निर्माण में 40,000 करोड़ रुपये के घोटाले का दावा किया। इसमें NRHM (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के फंड्स में अनियमितताएं, नोएडा लैंड डील्स (फार्महाउस अलॉटमेंट स्कैम), HSRP टेंडर (हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट्स), और सीड डिस्ट्रीब्यूशन जैसे प्रोजेक्ट्स शामिल थे, जिनमें CBI और ED की जांचें चल रही थीं।

संपत्ति विवाद

मायावती पर हमेशा यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के दौरान अपनी संपत्ति को बेतहाशा बढ़ाया। वर्ष 2007 में जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं, तो उनकी संपत्ति का मूल्य अचानक बढ़ गया। मीडिया में यह खबरें आईं कि उन्होंने बहुत बड़े पैमाने पर सरकारी खजाने का दुरुपयोग किया है। इस संदर्भ में कई बार उनके खिलाफ सख्त जांच की मांग उठी, लेकिन उन्होंने इन आरोपों को हमेशा नकारा। मायावती ने खुद को एक गरीब परिवार से आने वाली नेता बताया और कहा कि यह संपत्ति उनके वफादार समर्थकों की मदद से संभव हुई है।

विवादित मूर्तियाँ और पार्क

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 2007 से 2012 तक अपने शासनकाल में लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनवाए थे। इन पार्कों में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम, पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी और अपनी भी कई मूर्तियां स्थापित की गई थीं। ये मूर्तियां मुख्य रूप से पत्थर और कांसे की थीं। इन परियोजनाओं पर कुल खर्च 1,400 करोड़ रुपये से अधिक आया था, जिनमें से 685 करोड़ रुपये केवल मूर्तियों पर खर्च किए गए थे। प्रवर्तन निदेशालय ने इस पूरे मामले में सरकारी खजाने को 111 करोड़ रुपये का नुकसान होने का आरोप लगाया था।

विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार का पैसा बेवजह मूर्तियों और पार्कों पर खर्च किया गया जबकि राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य जरूरी सेवाओं की स्थिति खराब थी। बीएसपी सरकार के इन फैसलों को लेकर आलोचकों का कहना था कि यह कदम केवल मायावती और कांशीराम की छवि को चमकाने के लिए उठाया गया था, जबकि सरकारी खजाने का सही इस्तेमाल नहीं हुआ। इस मुद्दे पर मायावती ने हमेशा सफाई दी कि ये काम समाज के सबसे वंचित वर्ग के उत्थान के लिए किए गए थे, ताकि उन्हें भी सम्मान मिले।

नोएडा फार्महाउस घोटाला

2010 में मायावती सरकार ने नोएडा में औद्योगिक विकास के लिए किसानों से ज़मीन अधिग्रहित की, लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठे। किसानों को 880 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से भुगतान किया गया, जबकि वही ज़मीन बाज़ार में 15,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर में बिक रही थी। इस सस्ती कीमत पर अधिग्रहित ज़मीन बाद में प्रभावशाली व्यक्तियों को फार्महाउस बनाने के लिए सौंप दी गई, जो इस ज़मीन का गलत तरीके से फायदा उठाने वाले थे। यह घोटाला भ्रष्टाचार की एक बड़ी मिसाल बन गया, जिसमें सरकारी ज़मीन को बाज़ार दर से बहुत कम कीमत पर खास लोगों को दिया गया, जबकि किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिला। इस मामले ने मायावती सरकार पर भारी आलोचना और घोटाले के आरोप लगाए।

सामाजिक न्याय और विवादों का मिश्रण

मायावती ने हमेशा समाज के निचले तबकों के अधिकारों की बात की है, खासकर दलितों और पिछड़ों के लिए। हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद उनके खिलाफ कई बार यह आरोप लगे कि उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए इन वर्गों का इस्तेमाल किया। उनका ध्यान एकतरफा राजनीति पर था, जहां उन्होंने अपनी पार्टी के विरोधियों को कमजोर करने के लिए कभी भी कठोर कदम उठाने से परहेज नहीं किया।

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लाल रत्न का कमाल! जो देगा आपको करियर में जबरदस्त उछाल, जानें कौन सा है ये नगीना

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Red stone career growth: आजकल हर कोई अपने करियर को लेकर चिंतित है। पढ़ाई-लिखाई के बावजूद, कई लोग सही करियर ग्रोथ पाने के लिए संघर्ष करते हैं। ज्योतिषी भी करियर ग्रोथ के लिए कई तरह के रत्नों की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कौन से रत्न करियर ग्रोथ में मददगार साबित हो सकते हैं? अगर नहीं, तो आइए इस लेख में जानें।

करियर के लिए धारण करें यह लाल रत्न

लाल रत्न जो करियर में ज़बरदस्त तरक्की ला सकते हैं, उनमें माणिक्य और लाल मूंगा शामिल हैं। ये दोनों रत्न अपने अनोखे गुणों के कारण करियर में सफलता और उन्नति के लिए शुभ माने जाते हैं। माणिक्य सूर्य का रत्न है, जो शक्ति, अधिकार, प्रसिद्धि और नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं, लाल मूंगा मंगल का रत्न है, जो ऊर्जा, साहस, दृढ़ संकल्प और परिश्रम का प्रतिनिधित्व करता है।

करियर के लिए मूंगा क्यों महत्वपूर्ण है?

यह स्टोन साहस, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को मजबूत करता है, जो करियर में उन्नति के लिए काफी आवश्यक हैं।वही यह शारीरिक और मानसिक ऊर्जा को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति कार्यस्थल पर अधिक सक्रिय और मेहनती बनता है।दूसरी और यह पुलिस, सेना, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रॉपर्टी डीलिंग और टेक्नोलॉजी क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। इसके अलवा इसे धारण करने से करियर में स्थिरता आती है और उन्नति के नए अवसर मिलते हैं। इस रत्न को अंगूठी और गले में पहना जा सकता हैं।

कौन मूंगा नहीं पहना सकता है? 

अक्सर मन में एक सवाल उठता है कि कौन मूंगा पहना सकता है और कौन नहीं क्योंकि आमतौर पर ये रत्न ज्योतिषी और कुंडली के मुताबिक पहना जाता है यदि मूंगा (Red Coral) रत्न का ज्योतिषीय संबंध मंगल ग्रह से है, और इसे पहनने से पहले कुंडली का गहन विश्लेषण करना जरूरी है। खासकर उन व्यक्तियों को, जिनकी कुंडली में मंगल कमजोर, संकट में (जैसे राहु, केतु या शनि के साथ युति या दृष्टि) या मारक भावों (6वें, 8वें, 12वें) का स्वामी हो और अशुभ स्थिति में हो, मूंगा धारण नहीं करना चाहिए।

अतिरिक्त रूप से, जिनका लग्न (Ascendant) वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला और कुंभ है, उनके लिए भी मूंगा सामान्यतः शुभ प्रभाव नहीं लाता, क्योंकि इन लग्नों में मंगल ग्रह मारक या हानिकारक हो सकता है। यदि मूंगा अनुकूल नहीं है, तो यह व्यक्तियों में क्रोध, तनाव और अन्य नकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न कर सकता है।

Uttarakhand ends Patwari system: उत्तराखंड में 200 साल पुरानी पटवारी पुलिस व्यवस्था ख...

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Uttarakhand ends Patwari system: उत्तराखंड में करीब दो सौ साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था अब इतिहास बनने की ओर बढ़ रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने एक बड़ा और लंबे समय से अटका फैसला लागू करते हुए राज्य के 1,983 राजस्व गांवों को नियमित पुलिस के दायरे में लाने की मंजूरी दे दी है। इसे राज्य की कानून व्यवस्था में सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा रहा है। हालांकि, यह कदम अचानक नहीं उठा। इसकी पृष्ठभूमि में अदालत के पुराने आदेश, बढ़ते अपराध, संसाधनों की कमी और कई विवादित केस शामिल हैं जिन्होंने राजस्व पुलिस व्यवस्था की कमजोरी एक-एक कर सामने रख दी थी।

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कैसे बदलेगा उत्तराखंड का पुलिस मैप? (Uttarakhand ends Patwari system)

सरकार के मुताबिक अब इन गांवों में किसी भी अपराध की जांच, रिपोर्ट दर्ज करना, कार्रवाई करना और केस को आगे बढ़ाना सब कुछ सीधे रेगुलर पुलिस करेगी। यानी अब गांवों में एफआईआर लिखवाने के लिए पटवारी के चक्कर नहीं लगाने होंगे, न ही राजस्व कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ेगा।

धामी ने फैसले पर मुहर लगाते हुए कहा, “यह ऐतिहासिक निर्णय है। इससे पुलिस पर जनता का भरोसा बढ़ेगा और कानून व्यवस्था ज्यादा मजबूत होगी।”

क्यों खत्म की जा रही है 200 साल पुरानी पटवारी पुलिस व्यवस्था?

राजस्व पुलिस सिस्टम असल में अंग्रेजों की देन है। पहाड़ी इलाकों में कम आबादी और कम संसाधनों की वजह से अंग्रेजों ने पटवारियों को ही पुलिस की भूमिका दे दी थी। लेकिन समय बदल गया, अपराध बदल गए, तकनीक आगे बढ़ गई पर यह व्यवस्था जस की तस रह गई।

  • पटवारियों के पास न आधुनिक जांच कौशल
  • न वायरलेस सिस्टम
  • न फॉरेंसिक सपोर्ट
  • न साइबर क्राइम की समझ
  • और कई बार न समय, क्योंकि उन्हें राजस्व का काम भी देखना होता था।

ऐसे में अपराधियों को बच निकलने का मौका मिलता रहा और कई मामलों में जांच कमजोर पड़ती गई।

हाईकोर्ट का आदेश 7 साल बाद लागू

आपको बता दें, इस फैसले का बीज 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने बोया था। अदालत ने साफ कहा था कि राजस्व पुलिस सिस्टम अपराध नियंत्रण में फेल हो रहा है। लेकिन सरकार ने संसाधनों की कमी का हवाला देकर इसे रोक दिया। आपको बता दें, अंकिता भंडारी हत्याकांड (2022) के बाद जनता का दबाव बढ़ा। लोगों ने बार-बार पूछा,“जब क्राइम मॉडर्न हो गया है तो पुलिसिंग पुराने जमाने की क्यों?” अंततः सरकार ने इसे लागू करने का फैसला ले लिया।

1,983 गांव पुलिस के हवाले, क्या बदलने वाला है?

1. अपराधी अब बच नहीं पाएंगे

अब हर केस की जांच ट्रेनिंग प्राप्त पुलिस अधिकारी करेंगे। इससे केस में तेजी और निष्पक्षता की उम्मीद है।

2. ग्रामीण इलाकों में सीधे एफआईआर

पहाड़ों में कई बार छोटी शिकायतें सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं होती थीं क्योंकि पटवारी की उपलब्धता नहीं होती थी। अब हर रिपोर्ट थाने में दर्ज होगी।

3. पुलिस की जवाबदेही और बढ़ेगी

सरकार अब पूरे पहाड़ी क्षेत्र में एक समान पुलिस सिस्टम लागू करने जा रही है।

4. आधुनिक तकनीक की पहुंच गांवों तक

फॉरेंसिक, साइबर सेल और डिजिटल ट्रैकिंग जैसी सुविधाएँ अब गांव स्तर पर भी जांच का हिस्सा बनेंगी।

5. सीमांत इलाकों की सुरक्षा और मजबूत

चीन सीमा लगे इलाकों में भी अब आधुनिक पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा।

पूर्व डीजीपी का बयान- “देर से सही, पर फैसला सही”

उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल ने इस कदम को मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा, “राजस्व पुलिस प्रणाली पुरानी और अप्रभावी हो चुकी थी। अब अपराधों का स्वरूप बदल गया है, इसलिए आधुनिक पुलिसिंग ही समाधान है।” उन्होंने माना कि राजस्व पुलिस की सीमाएं अपराधियों को मौके देती थीं कि वे सबूत मिटाकर बच निकलें।

जानकारों का मत ‘बहुत पहले हो जाना चाहिए था’

वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड मामलों के जानकार जय सिंह रावत कहते हैं, “राजस्व पुलिस के पास न तकनीक थी, न कौशल। इस वजह से जांचें लंबी चलीं, केस कमजोर हुए और कभी-कभी न्याय तक नहीं मिल पाया। यह बदलाव देर से आया लेकिन बेहतर है कि आया।”

नुकसान और चुनौतियाँ भी कम नहीं

यह फैसला जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी चुनौतियाँ भी साथ लेकर आता है:

1. पुलिस फोर्स पर बढ़ेगा दबाव

नए गांवों में पुलिस की तैनाती, गाड़ियाँ, चौकियाँ और तकनीक सब कुछ चाहिए होंगे।

2. पहाड़ी इलाकों में थानों की दूरी

कई गांव अभी भी थाने से कई किलोमीटर दूर हैं। ऐसे में पुलिस के पहुँचने में समय लग सकता है।

3. पटवारी सिस्टम का सीमित होना

इससे पटवारियों की परंपरागत भूमिका कम हो जाएगी। इससे राजस्व कामकाज प्रभावित होने का खतरा भी है।

4. पुराने केसों का ट्रांजिशन

कौन सा केस किसके पास जाएगा? पुराने दस्तावेज कैसे ट्रांसफर होंगे? यह भी एक बड़ी प्रक्रिया है।

जनता की उम्मीदें- “अब असली पुलिसिंग गांवों तक आएगी”

ग्रामीण इलाकों में लोग मानते हैं कि अब कार्रवाई तेजी से होगी, भ्रष्टाचार कम होगा। साथ ही, जांच में पारदर्शिता आएगी और अपराधियों का डर बढ़ेगा

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BUMRAH BAUNA REMARK: ‘बौना’ से शुरू होकर बहन की गाली तक, साउथ अफ्रीका की ...

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BUMRAH BAUNA REMARK: क्रिकेट के मैदान पर कभी-कभी ऐसे पल आ जाते हैं जो सबको सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ईडन गार्डन्स में भारत-साउथ अफ्रीका के पहले टेस्ट में प्रोटियाज ने 30 रन से धमाकेदार जीत तो हासिल कर ली, लेकिन असली हंगामा तो जसप्रीत बुमराह के उस ‘बौना’ वाले कमेंट ने मचा दिया। स्टंप माइक पर कैद ये बात टेम्बा बावुमा को चुभ गई, वीडियो वायरल हो गया, और सोशल मीडिया पर बवाल छिड़ गया। हार के बाद बुमराह का बावुमा से वो ‘खेद भरी’ बातचीत देखकर लग रहा था, जैसे विवाद सेटल हो गया हो। लेकिन सवाल वही कि क्या वह अपने किए पर वाकई शर्मिंदा थे? आइए, इस विवाद की पूरी कहानी जानते हैं।

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स्टंप माइक का खुलासा: बौनाशब्द ने क्यों मचाया बवाल? (BUMRAH BAUNA REMARK)

मैच का पहला दिन ही ऐसा ट्विस्ट आया कि फैंस की भौंहें तन गईं। बुमराह की शानदार गेंद पर बावुमा के खिलाफ LBW अपील हुई, लेकिन अंपायर ने नकार दिया। DRS लेने की हो-हल्ले में बुमराह ने बावुमा को ‘बौना’ कहकर चिढ़ाया। ऊपर से ऋषभ पंत ने भी शब्द दोहराया, और बुमराह ने तो हद कर दी, एक भद्दी गाली तक दे डाली, जो बावुमा की बहन से जुड़ी लगी। स्टंप माइक ने सब रिकॉर्ड कर लिया, वीडियो सोशल मीडिया पर फैल गया, और #BUMRAH_BAUNA_REMARK ट्रेंड करने लगा। फैंस ने इसे हाइट पर तंज बताया। दरअसल भारत में ‘बौना’ तो छोटे कद वालों को चिढ़ाने का शब्द है, लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर ये रंगभेदी या अपमानजनक लगता है। वहीं इस पूरे विवाद के बाद आलोचनाओं की बौछार आ गई।

पूर्व खिलाड़ी वसीम जाफर ने ट्वीट किया, “लड़ाई में आदमी का कद-काठी मायने नहीं रखता, बल्कि उसके अंदर की जंग का जज्बा मायने रखता है। शानदार खेला, बावुमा!”

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फैंस ने लगाई लताड़

एक फैन ने लिखा, “पहली बार इंडिया की हार पर इतनी खुशी हुई। लंपटई गुंडई गालीबाजी की हार पर खुशी हुई। दक्षिण अफ्रीका के कप्तान बावुमा छोटे कद के हैं उन्हें बौना बोला गया, बहन की गाली दी गई। ख़तरनाक पिच पर अकेले टिके अर्धशतक लगाए। 124 रन चेज करने उतरी टीम इंडिया 93 पर सिमट गई।”

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बावुमा की नाबाद 55: विवाद से ऊपर उठी कप्तानी

विवाद के बीच बावुमा ने जवाब बल्ले से दिया। तीसरे दिन साउथ अफ्रीका की दूसरी पारी में उन्होंने नाबाद 55 रन ठोके, टीम को 153 रन तक पहुंचाया, और भारत के सामने 124 रन का टारगेट रखा। बुमराह की धारदार गेंदबाजी भी बावुमा को छू न सकी। फिर प्रोटियाज के गेंदबाजों ने कमाल कर दिया – भारत 93 रन पर ढेर। बावुमा की पहली पारी छोटी रही (कुलदीप यादव की गेंद पर 3 रन में आउट), लेकिन दूसरी में उन्होंने दिखा दिया कि कप्तानी सिर्फ बैज नहीं, गेम चेंजर है। ये जीत वर्ल्ड टेस्ट चैंपियंस के लिए कॉन्फिडेंस बूस्टर बनी, लेकिन विवाद ने जीत की चमक फीकी कर दी।

हार के बाद बुमराह का सॉरीमोमेंट: हाथ मिलाकर सेटल?

मैच खत्म होते ही नजारा दिल छू गया। भारत का आखिरी विकेट बुमराह का ही था। ड्रेसिंग रूम जाते वक्त बुमराह ने बावुमा के कंधे पर हाथ रखा, मुस्कुराते हुए कुछ फुसफुसाया। फिर हाथ मिलाया, रुके, दोबारा बात की, और अच्छे अंदाज में विदा ली। सोशल मीडिया पर स्पेकुलेशन शुरू हो गई कि क्या बुमराह माफी मांग रहे थे? फैंस ने कहा, “अच्छा किया, क्रिकेट स्पिरिट जिंदा रही।” लेकिन ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं आया, तो कयास ही चल रहे।

साउथ अफ्रीका का संयमित जवाब: आगे नहीं बढ़ाएंगे

वहीं इस पूरे विवाद को लेकर साउथ अफ्रीका टीम के पूर्व बल्लेबाज और मौजूदा बैटिंग कोच एश्वेल प्रिंस ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। जब दिन के खेल के बाद उनसे इस विवाद के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा, ‘इसकी बिल्कुल चर्चा नहीं होगी। यह पहली बार मेरे संज्ञान में आया है। मुझे नहीं लगता कि बीच में जो कुछ हुआ है उससे कोई समस्या होगी।’

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