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सबसे जुदा है NaMo स्टाइल, ऐसा फैशन सेंस जो सबको दीवाना बना दे

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सबसे जुदा है NaMo स्टाइल, ऐसा फैशन सेंस जो सबको दीवाना बना दे

पीएम मोदी आज 17 सितंबर को अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। ये आज के समय में एक ऐसी शख्सियत बन चुके हैं जिनके कपड़ों से लेकर बोलने का स्टाइल भी फैशन स्टेटमेंट बन चुका है। एक ऐसे प्रखर वक्ता जिनकी हर चाल में एक स्टाइल है। मौजूदा दौर में उनके सादगी भरे परिधान भी देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी खूब पॉपुलर हैं। तो आज उनके जन्मदिन पर हम बात करते हैं नमो के फैशन स्टाइल की  जो थोड़ा हटके है।

भारत में लाए हाफ स्लीव कुर्ते का ट्रेंड 

भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू के बाद देश में फैशन की फ़िज़ाएं  घोलने वाले दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। इनकी बदौलत ही देश में हाफ स्लीव कुर्ते का ट्रेंड लाइमलाइट में आया है। पहले भारत की जनता आधी बाजू के कुर्ते पहनने से कतराती थी। लेकिन इन सबसे जुदा मोदी को इस बात से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता था। वे आधी बाजू के कुर्ते पहन ज्यादातर राजनैतिक समारोह में हिस्सा लेते रहते हैं। और आज आलम ये है कि इस स्टाइल के कुर्ते ने फैशन जगत में खलबली मचा रखी है। हर कोई मोदी कुर्ता का दीवाना है।

इस वजह से ट्रेंड में आया मोदी कुर्ता 

एक बार किसी इंटरव्यू में पीएम मोदी ने इस आधी बांह के कुर्ता पहनने की कहानी साझा की थी। उन्होंने बताया था कि वो अपने कपड़े हमेशा खुद धोते हैं। ऐसे में पूरी बांह का कुर्ता धोने में अधिक समय की बर्बादी होती थी। जिस वजह से उन्होंने कुर्ते की स्लीवस काटने की सोची। इससे इंसान कम्फर्टेबल भी रहता है और कपड़े धोने में ज्यादा समय भी व्यर्थ नहीं जाता। तो मोदी के कपड़े धोने की आदत ने मोदी कुर्ते को जन्म दिया। इसके अलावा मोदी के मास्क, टीशर्ट और बैज जैसी चीज़ें भी समय समय पर मार्केट में देखी गईं।

पगड़ियां जीतती हैं दिल

पीएम मोदी की कुर्ते के साथ अद्भुत पगड़ियां एक माहौल में अलग ही छटा बिखेरती हैं।  लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी प्रचार प्रसार में उनको अलग अलग राज्यों में कई प्रकार की पगड़ियां बांधे हुए देखा गया। कभी वो रंग बिरंगी पगड़ी में नज़र आते हैं। उनकी स्टाइलिश हैट मीडिया में कई बार सुर्खियां बटोरती देखी गईं हैं। ये जहां रहते हैं वहीं के माहौल में ढल जाते हैं।  इन्हें विदेशों में कई बार कोट पैंट में भी देखा गया। उनके जूते युवाओं में काफी लोकप्रिय है।

दवाइयों को कहें NO! ये आसान घरेलु टिप्स चमकदार बना देंगे आपका चेहरा

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दवाइयों को कहें NO! ये आसान घरेलु टिप्स चमकदार बना देंगे आपका चेहरा

बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा दिक्कत हमारी स्किन से जुड़ी होती है। क्योंकि बरसात में कई तरह के कीड़े मकोड़े निकलने लगते है। गंदा पानी जमा हो जाता है और उस पानी के कारण कई तरह की बीमारियां फैलने लगती है। लेकिन इसमें बड़ी चिंता होती है स्किन की देखभाल। आज हम आपको स्किन की देखभाल करने के लिए कुछ घरेलू टिप्स बताने जा रहे है।

1 – हमारी त्वचा को ग्लोंइंग बनाने के लिए सबसे जरूरी है हमारे शरीर में पानी की अधिक मात्रा का होना। पानी हमारे शरीर की कोशिकाओं को आसानी से हील करता है। और हमारी त्वचा में होनी वाली परेशानी को दूर करता है। इसके लिए जरूरी है कि आप रोजाना कम से कम 4 से 5 लीटर पिएं।

2 – कम से कम 8 घंटे की नींद ले- नींद हमारी सेहत और स्किन के लिए सबसे जरूरी है। अगर आप कम सोते है तो आपके शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है और मेलेनिन बढ़ने लगता है जिससे आपकी स्किन डार्क होने लगती है। तो कोशिश करें कि कम से कम 6 से 8 घंटे की नींद जरूर लें।

3 – नींबू का इस्तेमाल अपने खाने में जरूर करें – नींबू आपके शरीर को ग्लो करने में अहम भूमिका निभाता है। नींबू में विटामिन सी होता है जो स्किन को आसानी से हील करता है। ये हमारी स्किन के रोमछिद्रो को खोलता है जिससे त्वचा में आसानी से ऑक्सीजन का प्रवेश होता है। ये हमारी त्वचा के लिए काफी उपयोगी है।

4 – ग्रीन टी पियें – अगर आप चाय कॉफी पीने के शौक़ीन है तो उसे छोड़ कर ग्रीन टी का इस्तेमाल करें। क्योंकि चाय और कॉफी में मौजूद कैफीन आपके शरीर को नुकसान पहुंचाता है। उसके कारण नींद न आने की समस्या हो जाती है।

5 – ओमेगा थ्री एसिड युक्त चीजे खाएं – ओमेगी थ्री एसिड युक्त चीजों का इस्तेमाल आपको हमेशा जवान रख सकता है। इसके कारण आपकी स्किन मे झुर्रियां नहीं पड़ती है। टैनिंग नहीं होती है और ग्लोंइंग होती है।

6 – टमाटर का इस्तेमाल करें – टमाटर में जिंक और विटामिन सी मौजूद होता है। कच्चा टमाटर खाना आपके पेट के लिए काफी फायदेमंद होता है।अगर आप रोजाना कच्चा टमाटर खाते है तो आपके स्किन का ग्लो बढ़ने लगेगा। टमाटर के पेस्ट को फेस पर लगाने से बड़े से बड़ा पुराना दाग भी साफ हो जाता है।

7 – दालों का इस्तेमाल करें – दाल आपके स्किन के लिए ही नही बल्कि आपकी आंखो की रोशनी बढ़ाने में भी काफी मददगार होती है। दाल हमारे शरीर में नई कोशिका बनाती है। अगर आप रोजाना दाल पीते है तो आपकी स्किन का ग्लो बढ़ेगा।

इसके अलावा बिना वजह धूप में न निकलें। रोजाना रात को सोने से पहले आप अपना मुंह जरूर धोएं। इन रेमेडी से आप अपनी स्किन को हमेशा सुरक्षित रख सकते है।

उपयुक्त जानकारी रिसर्च के माध्यम से ली गई है नेड्रिक न्यूज इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।

एंड्रॉइड यूजर्स के साथ बड़ी धोखाधड़ी कर रही हैं ये 23 एप्स, इन्हें तुरंत करें फोन से अलविदा

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एंड्रॉइड यूजर्स के साथ बड़ी धोखाधड़ी कर रही हैं ये 23 एप्स, इन्हें तुरंत करें फोन से अलविदा

एंड्रॉइड यूजर्स का ऑपरेटिंग सिस्टम आसान होने के चलते कई एप मेकर्स इसका भरपूर फायदा उठाते हैं. इसलिए किसी भी नई एप को इंस्टाल करते टाइम ये एंड्रॉइड यूजर्स के लिए किसी रिस्क से कम नहीं होता. क्योंकि ये जानना मुश्किल है कि कब कौन सी एप आपके प्राईवेट डेटा पर नजर रख रही हो. इन्हीं सब को देखते हुए 23 ऐसी मोबाइल एप्स को खतरनाक एप्स की लिस्ट में डाला गया है जो आपको बिना भनक देते हुए आपका सारा डेटा धीरे धीरे उड़ाती रहती हैं. इस बात का यूजर्स को पता भी नहीं चल पाता क्योंकि ये एप्स अपना काम बड़ी ही सफाई से करती हैं. ऐसे में अगर आपने भी इन 23 एप्स में से कोई एप डाउनलोड कर रखी हो तो उसे अब फोन से अलविदा कहने का वक्त आ गया है.

साइबर सिक्यॉरिटी के रिसर्चर्स ने किया खुलासा

इस बात का खुलासा साइबर सिक्योरिटी और सॉफ्टवेयर फर्म Sophos के रिसर्चर्स ने किया है. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक ये सभी फ्लेसवेयर एप्स है और इन्होने गूगल प्ले स्टोर की पालिसी का उल्लंघन किया है. एक रिसर्चर बताते हैं कि गूगल के नए नियमों में बदलाव लाया गया है ताकि वो फेक और भ्रामक मार्केटिंग डिस्प्ले कॉपी पकड़ सके. लेकिन अभी भी इसमें कुछ खामियां है. जिसकी मदद से कुछ खतरनाक काम किये जा सकते हैं.

किसे कहते हैं फ्लेस्वेयर एप्स ?

फ्लेसवेयर भी एक मोबाइल एप्लीकेशन है, लेकिन इसमें सब्सक्रिप्शन फीस छिपी होती है. इन एप्स के जरिये उन यूजर्स का फायदा उठाया जाता है जिनको पता नहीं होता कि इस सब्सक्रिप्शन को कैंसल करना है. और ये एप सब्सक्रिप्शन ख़त्म होने के बाद यूजर्स के अकाउंट से भारी भरकम राशि काट लेते हैं. ये बिना किसी सूचना के आधार पर किया जाता है. पहले ये फ्री ट्रायल के नाम पर सारी बैंकिंग डीटेल्स ले लेते हैं. फिर फ्री सब्सक्रिप्शन की अवधि ख़त्म होते ही उतना पैसा काट लेते हैं. सबसे बड़ी धोखेबाजी तो ये है कि सब्सक्रिप्शन के दौरान न ही इसकी राशि बताई जाती है और न ही इसके ख़त्म होने का टाइम पीरियड बताया जाता है.

टर्म्स एंड कंडीशंस के नाम पर धोखा

दूसरा तरीका इन एप्स का ऐसे टर्म्स एंड कंडीशंस पेश करना होता है जिसको पढ़ना लगभग नामुमकिन सा होता है. कई बार तो बिना परमिशन लिए ही ये एप्स अपना काम करना शुरू कर देती हैं. ये सारी चीजें फ्रॉड की कैटेगरी में आती हैं. इसलिए इन 23 एप्स को तुरंत अपने फोन से हटा लें क्योंकि ये एप भी बिलकुल ऐसा ही फ्रॉड आपके साथ कर रही हैं.

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विश्व के सबसे बड़े वार्षिक सम्मेलन का TCIL बना हिस्सा, कामेंद्र कुमार समेत टेलिकॉम सेक्टर की कई हस्तियां थी मौजूद

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विश्व के सबसे बड़े वार्षिक सम्मेलन का TCIL बना हिस्सा, कामेंद्र कुमार समेत टेलिकॉम सेक्टर की कई हस्तियां थी मौजूद

हर साल विकास के मुद्दे पर चर्चा के लिए सूचना सोसायटी फोरम (ICT) विश्व की सबसे बड़ी वार्षिक सभा का आयोजन करता है. इस बार अगस्त के महीने में हुई इस सभा का हिस्सा बनने का गौरव TCIL (टेलीकम्युनिकेशन्स कंसलटेंट्स इंडिया लिमिटेड) के निदेशक (तकनीकी) श्री कामेंद्र कुमार को भी प्राप्त हुआ. जिसमें श्री कामेंद्र कुमार ने विश्व भर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े पैनलिस्ट से 17 सतत विकास लक्ष्यों में से समान गुणवत्ता शिक्षा और लाइफ टाइम लर्निंग के प्रचार के विषयों के बारे में चर्चा की. बता दें कि भारत सरकार के संचार मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली TCIL कंपनी पिछले दो दशकों से इस वार्षिक सम्मेलन को बढ़ावा दे रही है. इस सभा में श्री कामेंद्र कुमार के अलावा इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन (ITU) के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल डॉ. मॉलकॉम जॉनसन, AICTE के चेयरमैन डॉ अनिल सहस्रबुध, CMAI एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के प्रेजिडेंट प्रो. एनके गोयल समेत टेलिकॉम सेक्टर से जुड़ी कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं.

कब हुई थी शुरुआत ?

जैसा कि नाम से प्रतीत होता है कि WSIS ( सूचना सोसायटी पर वैश्विक सम्मलेन) एक UN द्वारा स्पोंसर किया हुआ सूचना पर सम्मेलन है. इसकी सबसे पहले शुरुआत दो चरणों में हुई थी जिसमें पहला सम्मेलन जिनेवा में 2003 में हुआ था, जबकि इसका दूसरा सम्मलेन साल 2005 में टुनिस में आयोजित किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों में इंटरनेट की पहुंच को बढ़ाना था ताकि अमीर देशों और गरीब देशों के बीच की डिजिटल दूरी को एक ही पैमाने पर लाया जा सके. 20 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में विशेष रूप से विकसित देशों में नई सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) को लागू किया गया था. ICT के उपयोग से आधुनिक समाज कई मायनों में बदल गया जिसे डिजिटल क्रांति के रूप में जाना जाता है, और इसलिए नए अवसरों और खतरों को उठाया गया था. दुनिया के नेताओं को आईसीटी का उपयोग करके कई समस्याओं को हल करने की उम्मीद थी.

ये भी देखें : रविशंकर प्रसाद ने सूर्य मंदिर को दी तमाम विकास कार्यों की सौगात, TCIL डायरेक्टर कामेंद्र कुमार भी मौजूद  

2006 से बदला स्वरुप

2006 से WSIS फोरम WSIS फॉलोअप को लागू करने के लिए विश्व सूचना सोसायटी दिवस (17 मई) के आसपास जिनेवा में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन डब्ल्यूएसआई सुविधाकर्ताओं द्वारा किया जाता है जिसमें आईटीयू, यूनेस्को, यूएनसीटीएडी और यूएनडीपी शामिल हैं और आईटीयू द्वारा इसकी मेजबानी की जाती है. 2010 तक फोरम आईटीयू भवन में आयोजित किया गया था, फिर इसके बाद ये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन भवन में आयोजित किया जाने लगा. हर साल फोरम 140 से अधिक देशों से 1000 से अधिक WSIS हितधारकों को आकर्षित करता है. इस साल कोविड महामारी के चलते इसे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आयोजित किया गया जिसका TCIL भी हिस्सा थी.

ये भी देखें : TCIL ने कुछ यूं मज़बूत किये भारत-अफ्रीका के रिश्तों के धागे, कामेंद्र कुमार ने संभाली कमान 

TCIL के नाम हैं कई उपलब्धियां

गौरतलब है कि TCIL ने अपने पैन-अफ्रीका टेली-एजुकेशन प्रोग्राम के माध्यम से शिक्षा को 2009 में बढ़ावा दिया था. उस दौरान इस परियोजना की कल्पना हमारे दूरदर्शी राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी जिसे TCIL ने साकार किया. इसके रखरखाव और संचालन को सितंबर 2017 तक यानी 8 वर्षों तक जारी रखा गया. इस नेटवर्क ने 48 देशों को कवर करने वाले अफ्रीकी संघ के लिए एमपीएलएस / आईपीएलसी / उपग्रह कनेक्टिविटी से युक्त विषम संचार नेटवर्क का उपयोग करके टेली कम्युनिकेशन लिंक के माध्यम से भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों से हजारों छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और चिकित्सा सेवाएं प्रदान कीं.

इसके अलावा 2018 में ई-विद्या भारती और ई-आरोग्य भारती नेटवर्क प्रोजेक्ट नामक परियोजना की शुरुआत TCIL द्वारा की गई जिसने भारत और अफ्रीका के बीच की दूरी को कम करने के लिए हमारे देशों के बीच एक डिजिटल सेतु के रूप में कार्य किया. सितंबर 2018 में दोनों देशों के बीच तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और संचार मंत्री मनोज सिन्हा की मौजूदगी में TCIL के प्रबंध निदेशक ए शेषगिरी राव ने इस नेटवर्क के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे.

इसके अलावा, भारत में भी टीसीआईएल यूपी (1500 स्कूल), दिल्ली (1100 स्कूल), उड़ीसा (600 स्कूल), केंद्रीय विद्यालय (केंद्रीय विद्यालय), जैसे राज्यों के हजारों स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा और डिजिटल आभासी सहयोग प्रदान करने में शामिल है.

जिनके शरीर पर है टैटू, उनका ब्लड निकालने से कतराते हैं डॉक्टर्स, जानें ऐसा क्यूं ?

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जिनके शरीर पर है टैटू, उनका ब्लड निकालने से कतराते हैं डॉक्टर्स, जानें ऐसा क्यूं ?

कई लोगों के अलग अलग शौक होते हैं जिन्हें वे जीते जी पूरा करने की ख्वाहिश रखते हैं. शरीर पर परमानेंट टैटू गुदवाना उन्हीं शौकों में से एक माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आपने शरीर में टैटू गुदवाया हुआ है तो आप ब्लड डोनर नहीं बन सकते हैं. जी हां जरूरत पड़ने पर अगर रक्त दान की नौबत आन पड़े या अपनी स्वेच्छा से आपको ब्लड डोनेट करना हो तो टैटू होने के चलते आप नहीं कर सकते. आइये जानें क्या है इसकी वजह ?

किन लोगों का नहीं हो सकता ब्लड डोनेशन ?

जिनके शरीर पर परमानेंट टैटू गुदा हो वे लोग चाहकर भी ब्लड डोनर नहीं बन सकते. हालांकि मौत के बाद इनके शरीर से ऑर्गन डोनेट किये जा सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि टैटू बनवाने में जिस नीडल का यूज होता है, कई बार वही नीडल टैटू बनवाने वाले व्यक्ति को हेपेटाईटिस का कैरियर बना देती है. यानि इन लोगों में हेपेटाईटिस होता है लेकिन इसके लक्षण दिखना मुश्किल होता है. इन लोगों को HIV होने का खतरा भी रहता है. ऐसे में टैटू बनवाये हुए लोगों का ब्लड निकालना खतरे से खाली नहीं है.

किन लोगों का नहीं हो सकता ऑर्गन डोनेशन ?

ऐसे कई लोग हैं जिनका ब्लड लेने से डॉक्टर्स बचते हैं. इसके अलावा क्रूट्सफेल्ड जेकब रोग (Creutzfeldt-Jakob disease-CJD) से ग्रसित लोगों का भी ऑर्गन डोनेट नहीं किया जा सकता. ऐसे लोगों का अंग किसी दूसरे के शरीर में नहीं लगाया जा सकता. क्योंकि ये रोग टिश्यूज के जरिये दूसरे व्यक्ति में फ़ैल सकता है. साथ ही इबोला वायरस डिजीज, ऐक्टिव कैंसर और एचआईवी से इंफेक्टेड लोगों को भी अंग दान के दायरे से बाहर रखा जाता है. ये बीमारियां डोनर के शरीर की सेल्स और टिश्यू को भी संक्रमित कर सकती हैं.

डेथ के बाद कब तक कर सकते हैं ऑर्गन डोनेट ?

मृत्यु के बाद इंसान के शरीर के अंग कई घंटों तक जीवित रहते हैं. इस दौरान अगर उन अंगों को निकाल कर किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में लगा दिया जाए तो उसे जीवनदान मिल सकता है. सबसे कम देर तक जो अंग शरीर में जीवित रहते हैं उनमें आखें शामिल हैं. वहीं सबसे ज्यादा देर तक इंसान की किडनी जीवित रहती है. जिसे किसी के शरीर में डाला जा सकता है.

इसके अलावा हार्ट 4 से 6 घंटा, लंग 4 से 6 घंटा, किडनी 48 से 72 घंटे, लीवर 12 से 24 घंटे, पैंक्रियाज 12 से 18 घंटे, आंत 6 से 12 घंटे, जबकि आंखें 4 से 6 घंटे के बीच मरने वाले के शरीर से निकाल देनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि एक व्यक्ति की आंखें सिर्फ एक ही व्यक्ति को रोशनी दे सकती हैं. बल्कि एक व्यक्ति के कॉर्निया से 3 से 4 लोगों की जिंदगी को रोशन किया जा सकता है.

संजय दत्त के परिवार के लिए नई नहीं है कैंसर बीमारी, इन दो अजीजों की भी निगल चुकी है जिंदगी

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संजय दत्त के परिवार के लिए नई नहीं है कैंसर बीमारी, इन दो अजीजों की भी निगल चुकी है जिंदगी

मंगलवार का दिन एक्टर संजय दत्त के लिए काफी अमंगल साबित हुआ है. मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद उनके फेफड़ों में थर्ड स्टेज कैंसर की पुष्टि हुई है. सूत्रों की मानें तो इसके इलाज के लिए संजय जल्द ही अमेरिका रवाना हो सकते हैं. इस खबर से उनके फैंस काफी मायूस हैं. और एक्टर की स्पीडी रिकवरी की मन्नतें मांग रहे हैं. लेकिन आपको ये जानकर काफी आश्चर्य होगा कि ये कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी दत्त परिवार का पीछा बरसों से नहीं छोड़ रही है. इस बीमारी ने दत्त के दो अजीजों को भी निगल लिया था.

कौन थे संजय दत्त के वो करीबी ?

दरअसल संजय दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा की मौत भी कैंसर से हुई थी. ये दोनों साल 1987 में वैवाहिक सूत्र बंधन में बंधे थे. इस शादी से उनकी एक बेटी त्रिशाला दत्त भी है. 1988 में उनका जन्म हुआ था. ऋचा के कैंसर की बात पता चलने पर लोगों की शादीशुदा जिंदगी में भूचाल आया था. उन्होंने अपनी पत्नी को बेस्ट से बेस्ट कैंसर का इलाज देने की कोशिश की थी. यहां तक इलाज के लिए ऋचा तीन साल के लिए यूएस चली गई. साल 1996 में कैंसर की वजह से ऋचा की मौत हो गई थी.

मां को भी खो चुके हैं दत्त

संजय दत्त की मां नर्गिस दत्त जैसी बॉलीवुड की लेजेंडरी अदाकारा को कौन नहीं जानता. इकलौते बेटे होने की वजह से संजय अपनी मां के लाडले थे. वे भी अपनी मां से बेहद प्यार करते थे. लेकिन उनकी जिंदगी अचानक से तब उजड़ गई जब उन्हें अपनी मां के कैंसर होने का पता चला. उन्होंने नर्गिस का दुनिया के बेहतरीन डॉक्टर से इलाज करवाया. कभी कभी कीमोथेरेपी के दौरान नर्गिस को इतनी पीड़ा होती थी कि वो दर्द से तड़प उठती थी. इसके बाद धीरे धीरे उनकी हालत बनने की जगह बिगड़ती चली गई. और नर्गिस को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा. लेकिन कुछ दिनों बाद उनकी दर्दनाक मौत हो गई थी. यहां तक वे अपने बेटे की पहली फिल्म रॉकी भी नहीं देख पायी थी .

हाल ही में मिली थी जानकारी

फ़िलहाल संजय दत्त को मंगलवार को लंग कैंसर होने की जानकारी मिली है. इस बीच संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त ने आधिकारिक रूप से अपना बयान जारी किया है. जिसमें उन्होंने संजय दत्त के फैंस और शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा किया है जो संजू बाबा के जल्द ठीक होने की कामना कर रहे हैं. बता दें कि हाल ही में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की वजह से संजय दत्त को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. इसके बाद मंगलवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि वह फिलहाल फिल्मों से कुछ समय का ब्रेक ले रहे हैं, लेकिन इसके बाद खबर सामने आई है कि संजय दत्त फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे हैं.

जानें, उस खूंखार डॉक्टर की पूरी कुंडली, जिसने 100 से ज्यादा लोगों को मारकर मगरमच्छ को खिला दिया

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जानें, उस खूंखार डॉक्टर की पूरी कुंडली, जिसने 100 से ज्यादा लोगों को मारकर मगरमच्छ को खिला दिया

डॉक्टर को भगवान का दूसरा रुप माना जाता है, क्योंकि लोगों की जिंदगी बचाने में इनका सबसे अहम योगदान रहता है। लेकिन डॉक्टर के पेशे में रहकर भी कुछ लोग इंसानियत को दागदार करने वाले काम कर जाते हैं। जिसके बाद से डॉक्टरों के प्रति लोगों में डर का माहौल भी पैदा हो जाता है। इसी बीच एक दरिंदे डॉक्टर की ऐसी खबर सामने आई है जिसे जान कर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। पिछले दिनों इस डॉक्टर ने कबूल किया था कि 50 लोगों की बेरहमी से जान लेने के बाद वह मडर्स की गिनती भूल गया था, लेकिन अब उसने कबूल किया है कि वह 100 से ज्यादा लोगों का मर्डर कर चुका है और उनमें से ज्यादातर लोगों को एक नहर में मौजूद मगरमच्छ का खाना बना दिया।

पेरोल पर निकल कर अंडग्राउंड हो गया था डॉक्टर

डॉक्टर जैसे बेहतर पेशे में रहकर लोगों की बेरहमी से जान लेने वाले हैवान देवेंद्र शर्मा को लेकर यह चौंकानेवाली जानकारी सामने आई है। इस डॉक्टर को बीते दिनों दिल्ली में पकड़ा गया है। वह किडनी केस में पिछले 16 साल से सजा काट रहा था और अब पेरोल पर बाहर आया था। खबरों के मुताबिक 20 दिनों के बाद उसे वापस जेल जाना था लेकिन वह अंडरग्राउंड हो गया था। जिसके बाद पुलिस की स्पेशल टीम ने उसे दिल्ली से गिरफ्तार किया और अब उसके कारनामों की पोल खुल रही है।

7 लाख प्रति किडनी ट्रांसप्लांट

देवेंद्र शर्मा को बीते बुधवार को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। साल 1984 में देवेंद्र शर्मा ने आर्युवेदिक मेडिसिन में अपनी ग्रेजुएशन पूरी करके राजस्थान में क्लीनिक खोला। फिर 1994 में उसने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख का निवेश किया। लेकिन वह कंपनी अचानक गायब हो गई। फिर नुकसान के बाद उसने 1995 में फर्जी गैस एजेंसी खोल ली।

खबरों के मुताबिक फर्जी गैस एजेंसी को चलाने के लिए उसने एक गिरोह बनाया। जो गैस सिलिंडर ले जाते ट्रको कों लूट लेते, ट्रक को ठिकाने लगा देते और ट्रक डाईवर को मार देते। इस गैंग के साथ मिलकर डॉ शर्मा ने कुल 24 मर्डर किए। इसके बाद वह किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उसने 7 लाख प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए।

साल 2004 में गया था जेल

डॉ देवेंद्र शर्मा चोरी के गाड़ियों का कारोबार भी करता था। बताया जा रहा है कि ये लोग जिस भी गाड़ी को बुक करते उसे लूट लेते। गाड़ी के ड्राइवर की बेरहमी से हत्या कर शव को यूपी के कासगंज के हजारा नहर में फेंक दिया जाता। जिसमें काफी संख्या में मगरमच्छ पाए जाते हैं। साल 2004 में वह पहली बार पुलिस के चंगुल में पकड़ा गया और लगभग 16 साल तक जेल में रहा। जेल में 16 साल बीताने के बाद उसके अच्छे स्वभाव के कारण साल 2020 में उसे 20 दिन की पेरोल मिली। लेकिन पेरोल पर निकलते ही वह अंडरग्राउंड हो गया। खबरों के मुताबिक वह दिल्ली के मोहन गार्डन में छिपा था, जहां से पुलिस की स्पेशल टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

1989 का वो प्रस्ताव जिसमें बीजेपी ने पहली बार किया था राम मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन, जानिए…

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1989 का वो प्रस्ताव जिसमें बीजेपी ने पहली बार किया था राम मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन, जानिए…

दशकों तक चली लंबी लड़ाई के बाद अब आखिरकार राम मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी आ गई है. 5 अगस्त का दिन यादगार होने वाला है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला की नगरी अयोध्या पहुंचकर मंदिर निर्माण की नींव रखेंगे. पिछले साल दिए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता एकदम साफ हो गया था और अब 5 अगस्त को मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है.

राम मंदिर का मुद्दा सिर्फ कानूनी ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक तौर पर भी कई मायनों में काफी अहम रहा. राम मंदिर आंदोलन ने देश की राजनीति की दशा और दिशा को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. इस आंदोलन में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह समेत कई नेताओं ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इसी आंदोलन से निकली भारतीय जनता पार्टी (BJP) आज केंद्र ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भी विराजमान है.

लेकिन क्या आपके इसके बारे में जानते हैं कि आखिर कब पहली बार बीजेपी के एंजेंडे में राम मंदिर का मुद्दा शामिल हुआ था? आइए आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं…

ये बात साल 1989 की है, जब हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में बीजेपी का अधिवेशन हुआ था. उस दौरान लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष थे. इसी अधिवेशन में राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसके बाद से ये बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल हो गया और अहम बिन्दु बन गया.

इसके बाद इसी साल जून में बीजेपी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ये फैसला लिया गया कि पार्टी अब राम मंदिर आंदोलन के लिए खुलकर समर्थन करेगी. वहीं इससे पहले तक विश्व हिंदू परिषद (VHP) इस आंदोलन का नेतृत्व किया करती थी. फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर 25 सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमवार से लेकर अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की. इस दौरान लाखों कारसेवक आडवाणी के साथ अयोध्या रवाना हुए थे. 

23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन लालू यादव सरकार ने रथ यात्रा को रोका और आडवाणी को हिरासत में ले लिया. आडवाणी की रथ यात्रा को रोके जाने के बावजूद लाखों कारसेवक अयोध्या के लिए कूच कर चुके थे. उस दौरान उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार सत्ता पर काबिज थी. उन्होनें कारसेवकों की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए थे.

इसके बाद 1991 के जुलाई में उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए तो बीजेपी के हाथों में सत्ता की चाबी लग गई. कल्याण सिंह यूपी के नए मुख्यमंत्री बने. वहीं केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई और नरसिम्हा राव को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया गया, जिसके बाद देशभर में दंगे भड़क गए.

वहीं इसके बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उस दौरान कल्याण सिंह ने ये कहा था कि उनकी सरकार का मकसद पूरा हो गया और राम मंदिर के लिए सरकार की कुर्बानी देना कोई भी बड़ी बात नहीं है.

मंदिर आंदोलन से जुड़ने के बाद से ही बीजेपी का लगातार राजनीतिक उत्थान होता चला गया. साल 1996, 1998 और 1999 के चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटली बिहारी वाजपेयी की सरकार पहले 13 दिन, फिर उसके बाद 13 महीनों तक चली. इसके बाद आखिर में वाजपेयी साढ़े चार सालों के लिए देश के प्रधानमंत्री बने. वहीं 2004 में बीजेपी को चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 में बीजेपी की दोबारा से सत्ता में वापसी हुई और लगातार दूसरी बार अब पूर्ण बहुमत हासिल कर सत्ता पर काबिज है.

जब सुशांत ने अपने इस दोस्त को सुसाइड करने से रोका था, कही थी ये बात…जानिए पूरा किस्सा?

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जब सुशांत ने अपने इस दोस्त को सुसाइड करने से रोका था, कही थी ये बात…जानिए पूरा किस्सा?

सुशांत सिंह राजपूत ने टेलीविजन और फिल्मों दोनों में ही अपनी एक्टिंग के दम पर एक अलग पहचान बनाई. महज 34 साल की उम्र में सुशांत इस दुनिया को छोड़कर चले गए. उनकी यूं अचानक आई सुसाइड की खबर ने ना सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया. सुशांत की सुसाइड की वजह डिप्रेशन बताई जा रही है. लेकिन उनके करीबियों और तमाम चाहने वालों के लिए ये मानना मुश्किल हो रहा है कि सुशांत जैसे जिंदादिल इंसान इतना बड़ा कदम उठा सकता है.

सुशांत की मौत का मामला जबरदस्त सुर्खियों में बना हुआ है. सुशांत केस में रोजाना एक के बाद एक नए चौंका देने वाले खुलासे हो रहे है. इसी बीच सुशांत के एक पुराने दोस्त ने एक किस्सा शेयर कर बताया है कि कैसे सुशांत ने उनको एक बार सुसाइड करने से रोका था और उनकी जान बचाई थी.

दोस्त ने बताया पूरा किस्सा

सुशांत के दोस्त गणेश हिवारकर ने एक इंटरव्यू में इसके बारे में बताया. गणेश ने बताया कि वो सुशांत के मुंबई में सबसे काफी पुराने दोस्तों में से एक थे. शुरुआती दिनों में वो सुशांत को डांस भी सिखाते थे. उन्होनें बताया कि साल 2007 में मैंने अपने पर्सनल प्रॉब्लम और दूसरी परेशानियों की वजह से खुदकुशी करने की कोशिश की थी. उस समय सुशांत मेरे काफी करीब था, तो मैंने उसे इसके बारे में बताया था.

गणेश आगे बताते हैं कि इसके बाद सुशांत मेरे घर पर आया. वो मेरे साथ बैठा और मुझको शांत कराया. सुशांत ने मुझे ऐसे ख्यालों को दूर करने को कहा. सुशांत ने बोला कि ऐसी कोई भी परेशानी नहीं होती, जिसके लिए सुसाइड करनी पड़े. इससे ये तो साफ होता है कि सुशांत जिंदगी जीने में विश्वास रखते थे. तो ऐसा क्या हो गया जो खुद उनको इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा, यही राज इस समय पूरा देश जानना चाहता है. गौरतलब है कि 14 जून 2020 को सुशांत का शव मुंबई स्थित उनके घर पर लटका हुआ मिला था. 

राम मंदिर के बाद अब कृष्ण जन्मभूमि विवाद क्या है ?

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राम मंदिर के बाद अब कृष्ण जन्मभूमि विवाद क्या है ?

अयोध्या के राम जन्मभूमि का विवाद तो सुलझ गया लेकिन क्या आप मथुरा में स्थित कृष्ण जन्मभूमि के बारे में जानते हैं। चलिए आज हम इसके बारे में विस्तार से जानते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर मंदिर से जुड़ा विवाद या फिर उससे जुड़ तथ्य क्या है। हालांकि हम आपको ये साफ कर देना चाहते हैं कि किसी भी जाति वर्ग या धर्म से जुड़े लोगों की भावनाएं को ठेस पहुंचाने का हमारा कोई इरादा हमारा कतई नहीं है।

औरंगजेब ने तुड़वाया था मंदिर! 

कृष्णजी की जन्मभूमि जिसे प्रेम नगरी भी कहा जाता है और जो मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह के बगल में ही स्थित है। ये दोनों धार्मिक स्थल अगल-बगल ही है। यहां पूजा अर्चना भी होती और पांच वक्त की नमाज़ भी अदा की जाती है, वो भी नियमित रूप से। इन सौहार्द्रपूर्ण स्थित को अनदेखा तो नहीं किया जा सकता है लेकिन गौर इस बात पर भी करनी चाहिए कि इतिहासकार ऐसा दावा करते हैं कि बादशाह औरंगज़ेब ने 17वीं सदी में एक मंदिर तुड़वाया और उसी के ऊपर मस्जिद बनी थी।

कई साल तक कोर्ट में चला था मामला 

हिंदू संगठन की तरफ से भी ऐसा कहा गया कि कृष्ण जी का ठीक मस्जिद के स्थान पर ही जन्म हुआ था। मथुरा का सबसे पुराना मंदिर केशव देव जी महाराज मंदिर इस मंदिर परिसर के ठीक बाहर है। वैसे देखने वाली बात ये है कि कृष्ण परिसर को लेकर कई साल तक कोर्ट में मामला चला था पर 1968 में दोनों धर्मों के विद्वानों ने एक समझौता कर लिया जो कोर्ट के बाहर हुआ। जिसे कोर्ट की मान्यता भी मिल चुकी है। ऐसा समझौता हुआ कि मंदिर-मस्जिद से जुड़े सभी मामले खत्म किए जाएं और एक मंदिर की स्थापना हो और मस्जिद में भी काम चले और इस तरह से इस सारे झगड़े को ख़त्म कर दिया गया।

‘मथुरा में नहीं है कोई विवाद’

कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा ने अयोध्या विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि को लेकर कहा था कि मथुरा एक शांत नगर है, यहां किसी भी तरह का विवाद नहीं है। वैसे देखा जाए तो वे ठीक ही कह रहे थे क्योंकि पूरी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक कृष्ण जन्मभूमि न्यास के पास है। पूरी प्रॉपर्टी, जिसमें मंदिर के साथ ही लगा ईदगाह भी है, कागजों में हमेशा से न्यास की ही है ऐसे में अब यहां कोई विवाद नहीं रहा।

वैसे मथुरा की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ऐसा कि साफ साफ दो धर्मों के बीच के सौहार्द्रा को देखा जा सकता है। मथुरा की सड़कों पर बिल्कुल वहीं रौनक दिखती है आम दिनों में जैसा की किसी तीर्थस्थान पर होता है। यहां हज़ारों यात्री आते हैं। खासकर जन्माष्टमी में तो माहौल यहां और ज्यादा खुशनुमा और रंगीन हो जाता है।