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अब इस चीज को लेकर भी कम हो जाएगी चीन पर निर्भरता, भारत के हाथ लगा बड़ा खजाना!

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अब इस चीज को लेकर भी कम हो जाएगी चीन पर निर्भरता, भारत के हाथ लगा बड़ा खजाना!

12 मार्च 2020 को ही केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में एक बड़ी जानकारी दी थी। उन्होनें बताया था कि लिथियम के स्रोत का कर्नाटक के मंड्या जिले में पता लगा है, जो कि जिले के मार्लागाला-अल्लापटना क्षेत्र में मिला है। साल भर के भूगर्भीय रिसर्च के साथ ही खोजबीन के बाद अब इस बात का पता चला है कि 1600 टन लिथियम अयस्क वहां मौजूद है। अब सवाल ये है कि केंद्र सरकार को लिथियम की इतनी दरकार क्यों पड़ी। आइए जानते हैं…

लिथियम के लिए दूसरे देशों पर निर्भर भारत

दरअसल, एक रेअर अर्थ एलीमेंट है, लिथियम जिसकी 100 फीसदी जरूरत भारत अभी तक चीन और अन्य लिथियम निर्यातक देशों के जरिए पूरा करता था। हर साल लिथियम बैटरी का भारत आयात करता है। आपके फोन, टीवी, लैपटॉप या फिर रिमोट हर जगह ये बैटरी इस्तेमाल में लाई जाती है। केंद्र सरकार ने साल 2016-17 में 17.46 करोड़ से अधिक की लिथियम बैटरी का आयात किया। इसका मूल्य 384 मिलियन यूएस डॉलर्स मतलब कि 2818 करोड़ रुपए रहा। 2017-18 में 31.33 करोड़ बैटरी का आयात किया जो कि 727 मिलियन डॉलर्स मतलब कि 5335 करोड़ रुपए का था।

इसी तरह से 2018-19 में बैटरी आई 71.25 करोड़ और इसकी कीमत थी 1255 मिलियन डॉलर्स मतलब कि 9211 करोड़ रुपए। साल 2019-20 में 45.03 करोड़ बैटरी आने पर 929 मिलियन डॉलर्स मतलब कि करीब 6820 करोड़ रुपये लगा।

क्यों शुरू की गई इसकी खोज?

लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल स्पेस टेक्नोलॉजी में काफी ज्यादा होता है और खर्चे को कम करने के लिए लिथियम के स्रोत की खोज देश भर में शुरू की गई। इंडियन गवर्नमेंट के परमाणु ऊर्जा विभाग के एटॉमिक मिनरल्स डायरेक्टोरेट फॉर एक्सप्लोरेशन एंड रिसर्च ने ये कोड शुरू की। भारत में जो लिथियम का अयस्क मिला है अगर उस पर गौर किया जाए तो उनके नाम है लेपिडोलाइट (Lepidolite), स्पॉडूमीन (Spodumene) और एम्बील्गोनाइट (Amblygonite)। भारत में कहां-कहां लिथियम के स्रोत पाए जाने के आसार? आइए इसे जान लेते हैं।

छत्तीसगढ़ के कोरबा में काटघोड़ा-गढ़हाटारा इलाके में, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर के नाको ग्रेनाइट क्षेत्र में, बिहार में नवादा जिले में पिछली मेघहटारी इलाके में, जमुई जिले में हर्णी-कल्वाडीह छरकापतल, तो वहीं परमनिया-तेतरिया क्षेत्र में, राजस्थान में सिरोही जिले के सिबागांव इलाके में, मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स जिले में उमलिंगपुंग ब्लॉक क्षेत्र में और झारखंड में कोडरमा के धोराकोला-कुशहना क्षेत्र में लिथियम के स्रोत पाए जाने के आसार है।

लिथियम आयन पर दूसरे देशों पर भारत निर्भर है और जो देश इसके सबसे बड़े स्रोत हैं उनके नाम है बोलिविया, अर्जेंटीना, चिली, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन। इन देशों के बीच इस खनिज के निर्यात का कॉम्प्टीशन चलता है।

किन चीजों में होता है इस्तेमाल? 

लिथियम आयन बैटरी का इलेक्ट्रिक गाड़ियों, लैंडर-रोवर, मोबाइल बैटरी, स्पेसक्राफ्ट यानी सैटेलाइट्स, घड़ी का सेल, मौजूदा वक्त में हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान में बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है और अलग अलग तरह के मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स अलावा दवाइयों में भी इसे इस्तेमाल में लाया जाता है।

दुनिया के पावरफुल पासपोर्ट की लिस्ट: अमेरिका नहीं ये देश है टॉप पर, जानिए भारत-पाक किस पायदान पर?

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दुनिया के पावरफुल पासपोर्ट की लिस्ट: अमेरिका नहीं ये देश है टॉप पर, जानिए भारत-पाक किस पायदान पर?

दुनिया के लिहाज से सबसे शक्तिशाली शब्द का इस्तेमाल किया जाए तो जेहन में अमेरिका का ख्याल सबसे पहले आता है। लेकिन पासपोर्ट के मामले में अमेरिका थोड़ा पीछे रह गया। यह खिताब जापान के पास है। Henley & Partners की साल 2021 की पासपोर्ट इंडेक्स ग्लोबल रैंकिंग में जापान के पासपोर्ट को दुनिया में सबसे शक्तिशाली बताया गया है। जहां तक भारत की बात करें तो इस सूची में 2020 के मुकाबले भारत एक पायदान फिसल गया और 85वें नंबर पर जा पहुंचा तो वहीं पाकिस्तान का सूची में नीचे से चौथा स्थान है। भारत से ऊपर 70वां स्थान चीन को मिला है।

कैसे होती हैं रैकिंग?

किसी भी देश के पासपोर्ट की रैंकिंग या यूं कहे उसकी ताकत इस बेस पर तय की जाती है कि बिना पूर्व वीजा के उसके धारक कितने देशों में यात्रा कर सकते हैं यानि कि संबंधित देश के नागरिकों को कितने देश वीजा ऑन एराइवल की अपने यहां सुविधा देते हैं। ज्यादातर वीजा ऑन एराइवल मित्र देशों को दिया जाता है यानि कि ऐसे देश जहां के नागरिकों से कोई खतरा नहीं होता है उस देश को। इसका डेटा इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन यानि IATA देती है।

जानिए कौन-सा देश किस नंबर पर?

पासपोर्ट इंडेक्स ग्लोबल रैंकिंग 2021 में शीर्ष के तीन स्थान पर पहले पर जापान है जिसके नागरिकों को वीजा ऑन एराइवल की सुविधा दुनिया के 191 देशों में है। पहले वीजा मिलने का इंतजार 191 देशों में जाने के लिए यहां के लोगों को नहीं करना होगा। दूसरे नंबर पर सिंगापुर है। 190 देशों में वीजा फ्री एक्सेस की सुविधा यहां के लोगों को मिली हुई है। तो वहीं संयुक्त रूप से दक्षिण कोरिया और जर्मनी तीसरे स्थान पर है जिसमें 189 देशों में दक्षिण कोरिया के लोगों को वीजा ऑन एराइवल मिली हुई है। इस तरह से एशियाई देश ही टॉप 3 पर काबिज हैं।

भारत-चीन-पाक इन नंबर पर

Henley पासपोर्ट इंडेक्स में भारत का पासपोर्ट 85वें स्थान पर है। भारतीय 58 देश बिना किसी पूर्व वीजा के एंट्री ले सकते हैं और इस पायदान पर भारत के साथ तजाकिस्तान है। भारत का स्थान साल 2020 में 84वां था।

5 अन्य देशों के साथ अमेरिका सातवें स्थान पर काबिज है। इन देशों में न्यूजीलैंड, नार्वे, बेल्जियम, स्विटजरलैंड, यूनाइटेड किंगडम को शामिल किया गया हैं और इन देशों समेत अमेरिका के नागरिक दुनिया के 185 देशों में वीजा फ्री एक्सेस की सुविधा पाते हैं।

चीन इस लिस्ट में 70वें पायदान पर है जहां के नागरिक 75 देशों में बिना वीजा एंट्री ले सकते हैं। जानकारी दे दें कि चीन के ऊपर जासूसी के आरोप में कई बड़े मामले दर्ज है। जिसकी वजह से उसके नागरिकों को कई देशों में वीजा मिलने में दिक्कत आती है।

वहीं, इस लिस्ट में पाकिस्तान नीचे से चौथे स्थान पर है। पाकिस्तान 107वें पायदान पर है। पाकिस्तानी नागरिकों को सिर्फ 32 देशों में ही बिना वीजा एंट्री मिल पाती है। शक्तिशाली पासपोर्ट की सूची में टॉप 10 देशों के नाम कुछ इस तरह से हैं-
1-जापान, 2-सिंगापुर
3-जर्मनी, दक्षिण कोरिया
4-फिनलैंड, इटली, लग्जमबर्ग, स्पेन
5-ऑस्ट्रिया, डेनमार्क
6-फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्वीडन
7-बेल्जियम, न्यूजीलैंड, नार्वे, स्विटजरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट
8-ऑस्ट्रेलिया, चेक रिपब्लिक, ग्रीस, माल्टा
9-कनाडा
10-हंगरी

आज भी सायरा बानो, दिलीप कुमार की उतारती हैं नजर, जानिए इनकी दिलचस्प लवस्टोरी

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आज भी सायरा बानो, दिलीप कुमार की उतारती हैं नजर, जानिए इनकी दिलचस्प लवस्टोरी

फिल्मी दुनिया की शानदार अदाकारा सायरा बानो का जन्‍म 23, अगस्त,1944 को मंसूरी में हुआ था. इन्होंने बॉलीवुड इंडस्ट्री में कई एक से बढ़कर एक फिल्म में दी हैं. 17 की उम्र में सायरा ने अपनी पहली फिल्म की थी, जिसमें उनके साथ शम्मी कपूर ने काम किया था और इनके काम को काफी पसंद किया गया था, जिसके चलते वो रातों-रात स्टार भी बन गई थीं. आइए सायरा बानो की जिंदगी से जुड़ी दिलचस्प बाते आपको बताते हैं…

22 साल की सायरा 44 साल के दिलीप कुमार को अपना दिल दे बैठी थीं, जिसके बाद उन्होंने अपनी प्रेम कहानी को शादी के बंधन में बांधकर रिश्ते को और मजबूत बना लिया था. इन दोनों की ही प्रेम कहानी बहुत दिलचस्‍प है. दोनों के बीच इतने सालों का अंतर होने के बाद भी सायरा दिलीप साहब की बेहद दीवानी थीं और वो उनके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्‍त बिताना चाहती थीं. शादी के कई सालों के बाद भी आज सायरा दिलीप कुमार की नजर उतारती हैं.

सूत्र के अनुसार जब सायरा से ये सवाल किया गया कि बहुत बार ये सुना गया है कि दिलीप साहब को बचपन से ही काफी जल्दी नजर लग जाती थी, जिसके चलते उनकी दादी पहले उनकी नजर उतरती थीं, फिर उनकी माता और अब क्या आप भी उनकी नजर उतारती हैं?, तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा था कि ”बिलकुल, आज भी असल में दिलीप साहब बचपन से बेहद खूबसूरत रहे हैं. आज भी वो वैसे ही खूबसूरत हैं. उनको चाहने वाले दुनिया भर में हैं.”

उन्होंने आगे बताया कि ”आज भी उन्हें बहुत जल्दी नजर लग जाती है. उनकी दादी और मां उनकी नजर कुछ और तरीके से उतारती थीं, क्योंकि किसी फकीर बाबा ने कहा था कि 15 साल की उम्र तक इस बच्चे को बुरी नजर से बचाकर रखना. इसलिए वे उनके माथे पर राख लगा देती थीं, लेकिन मैं उनकी नजर उतारने के लिए उनका सदका करती हूं. जिसमें गरीबों को अनाज और कपड़े देने के साथ उनकी जरूरतों की कुछ और चीजें दे देती हूं.”

खूबसूरत अभिनेत्री सायरा बानो, दिलीप साहब को दीवानों की तरह चाहती थीं, जिसके बारे में जब दिलीप को पता चला तब वो सायरा में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे, क्योंकि उस दौरान वो दो बार प्यार में असफल हो चुके थे. बताया जा रहा है कि दोनों की उम्र में काफी अंतर होने के चलते वो कतरा रहे थे, लेकिन उसके बाद भी सायरा ने हार नहीं मानी और तो और उन्हें खुश करने के लिए उन्होंने उर्दू और पर्शियन भाषा तक सीखी. इतना ही नहीं सायरा ने दिलीप साहब को इंप्रेस करने के लिए बहुत सी ऐसी-ऐसी चीजें की, जिससे वो भी सायरा को पसंद करने लगे, जिसके बाद साल 1966 में दोनों ने किसी को भी बताए बिना शादी कर ली.

Republic Day: भारत के संविधान को गैंस चैंबर में रखने की वजह जानते हैं आप?

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Republic Day: भारत के संविधान को गैंस चैंबर में रखने की वजह जानते हैं आप?

हमारे देश की सीमाओं की सुरक्षा तो भारतीय सेना करती है। लेकिन सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान की रक्षा कौन करता है ये एक बड़ा सवाल है। सेना के हाथ में तो संविधान की रक्षा नहीं है तो कौन उसकी सुरक्षा में। आज हम आपको संविधान से जुड़ी एक ऐसी रोचक बात बताएंगे जिसके बारे में कम लोग ही जानते होंगे।

कैसे सुरक्षित रखा जाता हैं संविधान?

दुनिया में भारत का ही एक ऐसा संविधान है जो हस्तलिखित है यानि कि कागज पर हाथ से लिखा हुआ। संविधान के इस मूल प्रति के पन्ने पर सोने की पत्तियों वाली फ्रेम बनी है और हर अध्याय के आरंभिक पृष्ठ पर कलाकृति भी की गई है। पहले फलालेन के कपड़े में संविधान की मूल प्रति को रैप करके नेफ्थलीन बॉल्स के साथ रख दिया गया। संसद भवन के पुस्तकालय में साल 1994 में इसे वैज्ञानिक विधि से प्रिपेयर किए गए चेम्बर में सेफ्टी के साथ रख दिया गया।

क्यों किया जाता हैं ऐसा?

दरअसल, ऐसा करने से पहले यह देखा गया कि दुनिया में अन्य संविधानों को कैसे सुरक्षित रखा गया है। जानकारी मिली कि अमेरिकी संविधान सबसे सुरक्षित है। वॉशिंगटन के लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस में इस एक पेज के संविधान को हीलियम गैस के चेम्बर में रखा गया। इसके बाद गैस चेम्बर बनाने की पहल हुई अमेरिका के गेट्टी इंस्टीट्यूट और भारत की नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी के साथ ही भारतीय संसद के बीच करार के बाद। वैसे भारतीय संविधान की साइज की बात करें तो ये बड़ा और भारी है ऐसे में चेम्बर बड़ा हो गया जिससे कई कोशिशों के बाद भी हीलियम गैस को रोका नहीं जा सका। तब जाकर नाइट्रोजन गैस का चेम्बर तैयार किया गया।

किस गैस से कागजों को रखा जाता सुरक्षित?

संविधान की मूल प्रति की कागजों को सेफ्टी से रखने के लिए ऐसी गैस की जरूर थी जो कि इनर्ट यानी कि नॉन-रिएक्टिव हो। नाइट्रोजन गैस ऐसा ही है। भारतीय संविधान को काली स्याही से लिखा गया है ऐसे में ये आसानी से उड़ सकती थी यानि कि ऑक्सीडाइज हो सकती थी। ह्युमिडिटी 50 ग्राम प्रति घन मीटर के करीब रखने की जरूरत थी इसको बचाने के लिए और इसके लिए बनाया गया एयरटाइट चेम्बर जिसमें ह्युमिडिटी मेन्टेन रखने के लिए गैस मॉनिटर्स लगा दिए गए।

चेम्बर की नाइट्रोजन गैस हर साल खाली की जाती है और संविधान की सुरक्षा को बड़ी बारीकी से परखा जाता है। इस चेम्बर की हर दो महीने में चेकिंग भी की जाती है और इस पर सीसीटीवी कैमरे से लगातार निगरानी की जाती है।

कैसे काम करता हैं WHO? कैसे होती है संगठन की फंडिंग? जानिए सबकुछ…

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कैसे काम करता हैं WHO? कैसे होती है संगठन की फंडिंग? जानिए सबकुछ…

कोरोना वायरस की महामारी जब से फैली है तब से एक संस्था का नाम काफी बार दोहराया जा रहा है और वो संस्था है विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO, जो कि संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा है। इस संगठन के 194 सदस्य देशों में 150 कार्यालय है। पूरे संगठन में लगभग 7 हजार कर्मचारी कार्यरत है। हम आगे जानेंगे कि WHO का क्या उद्देश्य है और क्या अहम काम हैं इसके। इस संगठन के बारे में आज हम जानेंगे सबकुछ विस्तार से जानते है…

कब बना ये संगठन?

विश्व स्वास्थ्य संगठन एक वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी है, जिसका मुख्य काम दुनियाभर में स्वास्थ्य समस्याओं पर अपनी नजरें गड़ाए रखना है। उन समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करना है। WHO को 7 अप्रैल 1948 में स्टैब्लिश किया गया। ऐसे में मौजूदा वक्त में हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसका हेडक्वार्टर स्विट्जरलैंड के जिनीवा शहर में है। WHO की स्थापना के दौरान 61 देशों ने इसके संविधान पर हस्ताक्षर किए जिसकी पहली मीटिंग साल 1948 में 24 जुलाई को हुई।

किन-किन बीमारियों पर किया काम?

WHO ने अपनी स्थापना के बाद से कई बड़ी बीमारियों के अंत में बड़े अहम रोल निभाए। स्मॉल पॉक्स बीमारी को खत्म करने में संगठन की बड़ी भूमिका रही और फिलहाल WHO एड्स, इबोला, टीबी जैसी बीमारियों की रोकथाम पर अपने काम को जारी किए हुए हैं। संचारी रोग नियंत्रण, नवजात, मातृ, बाल और किशोर स्वानस्यी, असंचारी रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम की दिशा में यह संगठन काम करता है।

कौन हैं WHO का मौजूदा डायरेक्टर?

वर्ल्ड हेल्थ रिपोर्ट के लिए WHO जिम्मेदार होता है, पूरी दुनिया से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का जिसमें एक सर्वे किया जाता है। जनरल ट्रेड्रॉस एडोनम जो WHO के मौजूदा डायरेक्टर है और जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल 1 जुलाई 2017 से शुरू किया। 3 मार्च, 1965 को पैदा हुए टेड्रोस इथोपिया के हैं और वो एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं। टेड्रोस इंटरनेशनल लेवल के Recognized मलेरिया रिसर्चर भी हैं।

भारत कब बना इसका सदस्य?

अब विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत के संदर्भ में थोड़ा जान लेते हैं। इस संगठन का भारत भी सदस्य देश है। 12 जनवरी, 1948 को भारत WHO का सदस्य बना था। जिसका मुख्यालय देश की राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में है। इसके अलावा जानना ये भी होगा कि WHO का दक्षिण-पूर्व एशिया का Regional office भी नई दिल्ली में ही स्थित है। भारत में WHO के किए गए स्वास्थ्य संबंधी कोशिशों पर गौर कर लेते हैं।

भारत में इन बीमारियों पर काम

साल 1967 में भारत में दर्ज चेचक के कुल मामले विश्व के कुल मामलों के करीब 65% थे। जिसमें 26,225 मामलों में मरीज की मौत हुई जिससे भविष्य के संघर्ष की तस्वीर दिखने लगी। साल 1967 में गहन चेचक उन्मूलन कार्यक्रम यानि Intensified Smallpox Eradication Programme WHO ने शुरू किया। WHO और Indian government के Coordinated effort से चेचक का उन्मूलन साल 1977 में किया गया।

World Bank के financial और technical से साल 1988 में WHO की शुरू की गई Global Polio Eradication Initiative के संदर्भ में पोलियो रोग के खिलाफ भारत ने मुहिम शुरू की। पोलियो अभियान-2012 की अगर बात करें तो Indian government ने यूनिसेफ, WHO, रोटरी इंटरनेशनल, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और Centers for Disease Control and Prevention की साझेदारी से 5 साल से कम एज के हर एक बच्चे को पोलियो से बचाव के लिए टीका लगवाने की जरूरत के बारे में Universal awareness में योगदान दिया। जिसका ये असर हुआ कि भारत को एंडेमिक देशों की लिस्ट से साल 2014 में बाहर किया गया।

कहां से होती हैं संगठन की फंडिंग?

WHO की Organisational Challenges की तरह की हो सकती है। अगर इस बारे में जानने की कोशिश करें तो देशों से Secured financing के बजाय WHO मुख्य तौर पर Rich countries और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के पेड फंड्स पर डिपेंडेंट है। ऐसे में मौजूदा वक्त में WHO का 80% वित्त उन कार्यक्रमों से जुड़े हैं जिन्हें फंड देने वालों द्वारा चुना जाता है। WHO के अहम कार्यक्रम Under financed हैं क्योंकि इन कार्यक्रमों को तय करने में फंड देने वाली संस्थाओं के साथ ही रिच और डेवलप्ड कंट्रीज के बीच हितों का टकराव होता है।

ऐसे में Global health sector में एक Representative के तौर WHO का रोल वर्ल्ड बैंक जैसे अन्य Inter-governmental bodies और Large establishments के द्वारा Replaced किया गया है।

पश्चिम अफ्रीका में साल 2014 में फैली इबोला महामारी को खत्म करने में के अपर्याप्त प्रदर्शन के बाद इसकी प्रभावकारिता पर सवाल खड़े होने लगे। WHO में Financing, Planning, Employees और Officials की कमी भी इस संगठन की एक बड़ी चुनौती है।

कब और कैसे इंटरनेट बंद कर देती हैं सरकार? यहां जान लें पूरा प्रोसेस

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कब और कैसे इंटरनेट बंद कर देती हैं सरकार? यहां जान लें पूरा प्रोसेस

क्या आप जानते हैं कि देश में जब भी अशांति जैसे हालात पैदा हो जाते हैं तो सरकार को कुछ फैसले तुरंत लेने होते हैं। अब जब से इंटरनेट और फिर सोशल मीडिया का दौर चल पड़ा है तब से ही सरकार अशांति जैसे हालातों में इंटरनेट सेवाएं बंद करने का एक अहम फैसला लेती है। ऐसे में कई सवाल सामने है जैसे कि यह सेवाएं सरकार बंद क्यों करती है? इंटरनेट सेवाएं बंद हो जाने पर नुकसान कितना होता है? सरकार इंटरनेट सेवाएं किस क़ानून के तहत बंद करती है? तो आज हम इंटरनेट से जुड़ी कुछ ऐसी बातों को जानें जो सरकार से संबंधित है।

इन सेवाएं को सरकार बंद क्यों करती है?

इंटरनेट शटडाउन में सरकार ऐसे तर्क देती है कि अशांति के हालात में भीड़ इकट्ठा होने से रोकना है। अपने निर्णय राज्य सरकार और केंद्र सरकार खुद लेती हैं। राज्य सरकारों के लगाए इंटरनेट शटडाउन का Department of Telecommunication किसी भी तरह का कोई डाटा नहीं रखता है। या फिर ये कहा जा सकता है कि कोई रिकॉर्ड ही नहीं रखता है। एक संस्था है Software Freedom Law centre जो इंटरनेट शटडाउन का पूरा ब्यौरा रखती है।

कितनी बार बंद हुआ इंटरनेट?

देश में इंटरनेट शटडाउन साल 2012 से 2019 तक 278 बार हुआ है। इनमें 160 बार व्यवस्था बिगड़ने से पहले तो वहीं 118 व्यवस्था बिगड़ने के बाद किया गया। इस संबंध में और भी आंकड़े सामने आ चुके हैं। इंटरनेट शटडाउन 180 बार जम्मू कश्मीर में, 67 बार राजस्थान में और उत्तर प्रदेश में 19 बार किया गया।

कितना होता है इससे नुकसान?

अब बात इंटरनेट सेवाएं बंद होने से होने वाले नुकसान की। अगर पिछले 5 साल पर गौर किया जाए तो INDIAN COUNCIL FOR RESEARCH ON INTERNATIONAL ECONOMIC RELATIONS के मुताबिक भारत में इंटरनेट सेवाएं कुल 16000 घंटे बंद हुई, जिससे 300 करोड़ डॉलर का नुकसान हो चुका है। कुल 67% इंटरनेट शटडाउन देश में हो चुका है जो कि किसी भी देश में अब तक ज्यादा इंटरनेट शटडाउन है।

इन धाराओं के तहत बंद किया जाता हैं इंटरनेट?

अब करते हैं कानून की बात, जिसके तहत इंटरनेट सेवाओं को सरकार बंद कर पाती है। दरअसल, एक रूल है The Temporary Suspension Of Telecom Services (Public Emergency Or Public Safety) Rules 2017 जिसके तहत कोई भी राज्य सरकार इंटरनेट शटडाउन कभी भी कर सकती है।

अगर बात केंद्र सरकार की करें तो वो भी इसी कानून के तहत इंटरनेट शटडाउन कभी भी कर सकती है। District Magistrate / Sub Divisional Magistrate भी Code Of Criminal Procedure (CRPC), 1973 Section 144 के तहत ये सेवाएं बंद कर सकता है। The Indian Telegraph Act 1885 Section 5(2) के अंतर्गत केंद्र और और राज्य सरकार पब्लिक इमरजेंसी या फिर पब्लिक के भलाई के लिए या देश की युनिटी और सम्प्रभुता को बरकरार रखने के लिए भी इंटरनेट शटडाउन का कदम उठा सकती है।

क्या है पूरा प्रोसेस?

ये तो हुई कानून की बात लेकिन अब हम जानेंगे कि देश में इंटरनेट पर बैन करने का प्रोसेस क्या है? तो सबसे पहले इंटरनेट बैन करने का केंद्र या राज्य के गृह सचिव ऑर्डर देते हैं फिर एसपी या उससे ऊपर के रैंक के ऑफिसर के जरिए यह ऑर्डर भेजा जाता है। सर्विस प्रोवाइडर्स को ऑफिसर इंटरनेट सर्विस ब्लॉक करने को कहता है। फिर केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल तक ऑर्डर को अगले वर्किंग डे के अंदर ही भेजना होता है। इसकी समीक्षा रिव्यू पैनल को 5 वर्किंग डेज में करनी होती है। कैबिन सेक्रेटरी के अलावा लॉ सेक्रेटरी, टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी केंद्र सरकार के रिव्यू पैनल में होते हैं तो वहीं राज्य सरकार के आदेश के लिए रिव्यू पैनल में होते हैं चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी के अलावा एक अन्य सेक्रेटरी को शामिल किया जाता है।

कैसे रखा गया दिल्ली का नाम? क्यों ये ही बनी देश की राजधानी? जानिए इससे जुड़ा पूरा इतिहास

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कैसे रखा गया दिल्ली का नाम? क्यों ये ही बनी देश की राजधानी? जानिए इससे जुड़ा पूरा इतिहास

दिल्ली ये अपने आप में भारी भरकम इतिहास समाए बैठी है और दिन ब दिन घनी होती जा रही है। दिल्ली के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसे कई बार बसाया गया और कई बार ये उजड़ी। जहां तक नई दिल्ली की बात करें तो ये भारत की राजधानी है। नई दिल्ली, दिल्ली महानगर के अंदर आती है और दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के ग्यारह ज़िलों में से ये एक जिला है। आइए दिल्ली शहर और नई दिल्ली से जुड़ी कुछ अहम बातें जानते हैं…

कहां से आया दिल्ली नाम?

सबसे पहले बात करते हैं दिल्ली के नामकरण की। ज्यादातर शहरों या फिर देश के नाम के पीछे कोई न कोई हिस्ट्री जरूर होती है। ऐसे में कुछ कहानी दिल्ली के नाम से भी जुड़ी हैं। एक कहानी के मुताबिक, 50 ईसा पूर्व में ढिल्लू नाम के एक राजा के द्वारा यहां एक शहर बसाया गया और उसी के नाम पर शहर को दिल्ली कहा जाने लगा। एक किस्सा ये है कि दिल्ली नाम प्राकृत भाषा के ढीली शब्द से आया। जिसका इतिहास है कि दिल्ली के लिए ढीली शब्द को यूज में 8वीं सदी में तोमर शासक ने ऐसा इस वजह से क्योंकि दिल्ली के लौह स्तंभ की नींव ही कमजोर थी जिसे शिफ्ट करना पड़ा था। ऐसे सबूत हैं कि जो सिक्का तोमर वंश के शासनकाल में प्रचलन में था उसे देल्हीवाल कहते थे और इसी के नाम पर इस शहर को देल्ही या दिल्ली पुकारा जाने लगा। ऐसा भी माना जाता है कि ईसा पूर्व छठी सदी में यह शहर पहली बार बताया गया।

राजधानी कब बनी दिल्ली?

दिल्ली 13 फरवरी 1931 को अविभाजित भारत की राजधानी बनाई गई। 12 दिसंबर, 1911 को किंग जॉर्ज V ने एक शाही समारोह नई दिल्ली दरबार के दौरान नई राजधानी की नींव रखी। उन्होनें इस मौके पर अनाउंसमेंट कर दी कि दिल्ली अब कलकत्ता की जगह भारत की राजधानी होगी। फिर 20 सालों के इंतजार के बाद 13 फरवरी, 1931 को नई दिल्ली का लॉर्ड इरविन ने उद्घाटन किया। दिल्ली छावनी अंतरिम राजधानी के तौर पर साल 1912 से 1931 तक भारत की राजधानी रही। वहीं जब 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो नई दिल्ली को राजधानी बनाने का डिसिजन लिया गया।

दिल्ली ही क्यों राजधानी बनी?

इसके पीछे अंग्रेजों की एक अलग दलील थी। कोई 100 साल पहले भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने एक लेटर लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि कलकत्ता की जगह दिल्ली को अपने साम्राज्य की राजधानी ग्रेट ब्रिटेन को आखिर क्यों बनाना चाहिए। 25 अगस्त, 1911 को यह लेटर शिमला से लंदन भेजा गया। साथ ही सेक्रटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया को संबोधन दिया गया। हार्डिंग की इस बारे में दलील थी कि दिल्ली केंद्र में स्थित है ऐसे में यह ज्यादा फायदेमंद होगी।

इसके अलावा अंग्रेज शासकों ऐसा लगा कि देश का शासन अच्छे से चलाने के लिए कलकत्ता को नहीं बल्कि दिल्ली को राजधानी बनाया गया तो अच्छा होगा। ऐसा इस वजह से क्योंकि यहां से शासन चला पाना ज्यादा असरदार होगा। ऐसा सोचकर देश की राजधानी को दिल्ली ले जाने के आदेश अंग्रेज महाराजा जॉर्ज पंचम ने दिए।

आजादी के बाद का हाल जान लेते हैं…

आजादी के बाद नई दिल्ली को ही देश की राजधानी बनाया गया। दिल्ली के इतिहास में 1 नवंबर 1956 को एक अहम चैप्टर जोड़ा गया जब इस दिन राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 लागू होने के साथ ही इसे केंद्र शासित प्रदेश यानि कि Union Territory का दर्जा दिया गया। संविधान (उनहतरवां संशोधन) अधिनियम, 1991 के तहत दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश को औपचारिक तौर पर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बदला गया। प्रदेश में चुनी हुई सरकार को कई अधिकार दिए गए तो वहीं केंद्र सरकार के अंडर कानून और व्यवस्था की गई। 1993 में कानून का Actual enforcement आया।

दिल्ली की सत्ता किस किस के हाथों में रही?

अगर इसकी बात करें तो दिल्ली की गद्दी पर साल 1952 में कांग्रेस नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश सीएम थे तब चीफ़ कमिश्नर आनंद डी पंडित के साथ लंबे वक्त तक तनातनी चलने के बाद 1955 में सीएम को पद छोड़ना पड़ा।

फिर साल 1956 में केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को बनाया गया और दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिमंडल का प्रावधान ही खत्म किया गया। 1966 में दिल्ली नगरपालिका का दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट के तहत गठन हुआ और इसके प्रमुख उपराज्यपाल होते थे। विधायी शक्तियां नहीं थी नगरपालिका के पास। फिर साल 1990 तक दिल्ली में ऐसे ही शासन चलता रहा।

इसके बाद संविधान में 69वां संशोधन विधेयक को पारित कर दिया गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 के संशोधन के बाद लागू हो जाने से विधानसभा गठित हुआ। दिल्ली में और मौजूदा समय में दिल्ली विधानसभा में 70 सदस्य तय है। 5 साल के लिए विधायक चुने जाते हैं।

Corona Vaccination: रजिस्ट्रेशन से लेकर वैक्सीन लगने के बाद तक क्या-क्या होगा?…यहां जान लें पूरा प्रोसेस

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Corona Vaccination: रजिस्ट्रेशन से लेकर वैक्सीन लगने के बाद तक क्या-क्या होगा?…यहां जान लें पूरा प्रोसेस

कोरोना वैक्सीन के टीकाकरण का अभियान अब से कुछ घंटों के बाद ही शुरू हो जाएगा। जिस कोरोना महामारी ने 2020 में तांडव मचाया और आम जनजीवन को पूरी तरह से तहस-नहस करके रख दिया। उसके खिलाफ जंग में भारत आगे बढ़ रहा है और 16 जनवरी से वायरस की वैक्सीन मिलना देश में शुरू हो रही है। 

कल होगी महाअभियान की शुरूआत

16 जनवरी, शनिवार से देश में कोरोना वैक्सीनेशन का अभियान शुरू होने जा रहा है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पीएम मोदी इस अभियान की शुरुआत करेंगे। इसके साथ ही वो वैक्सीनेशन के लिए बनाई गई ऐप Co-Win भी लॉन्च करेंगे। देश में कोरोना टीकाकरण का अभियान कैसे चलेगा? पहले किस-किसको वैक्सीन मिलेगी? प्रोसेस क्या होगा? कैसे रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा? आइए इससे जुड़े आपके हर साल का जवाब हम आपको देते हैं…

सबसे पहले इन लोगों को मिलेगी वैक्सीन

16 जनवरी से टीकाकरण अभियान की शुरूआत हो रही है। हालांकि ये अभी आम लोगों को नहीं मिलेगी। सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाया जाएगा। जिसमें डॉक्टर, नर्स से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारी शामिल हैं। इसके अलावा फ्रंट लाइन पर काम करने  वाले लोगों जैसे पुलिसकर्मियों और नगर निगम कर्मचारियों को भी पहले चरण में वैक्सीन लगाई जाएगी। फिर इसके बाद उन लोगों को वैक्सीन मिलेगी, जिनकी उम्र 50 साल से अधिक हैं या वो दूसरी किसी बीमारी का शिकार हैं। उसके बाद बाकी आबादी को ये मिलेगी।

जानें रजिस्ट्रेशन का पूरा प्रोसेस

टीका लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन करना जरूरी होगा। इसके लिए सरकार ने ऐप तैयार की है, जिसका नाम कोविन है। इस ऐप को पीएम मोदी कल यानी शनिवार को लॉन्च करेंगे।  हालांकि ये फिलहाल आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होगी। 

रजिस्ट्रेशन के लिए कोई एक फोटो आईडी वाला पहचान पत्र देना होगा, जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर मतदाता पहचान पत्र, पैन कार्ड, पासपोर्ट समेत कुल 12 तहत के दस्तावेज में से किसी एक की जरूरत होगी। साथ ही रजिस्ट्रेशन के दौरान एक फॉर्म भी भरना होगा, जिसमें नाम, पता, उम्र, मेडिकल हिस्‍ट्री समेत कुछ जानकारी देनी होगी।

रजिस्ट्रेशन के बाद आएगा मैसेज

फिर रजिस्ट्रेशन के दौरान जो नंबर डाला होगा, उस पर मैसेज आएगा। इसमें टीकाकरण का दिन, समय और जगह की जानकारी मिल जाएगी। टीका लगवाने के लिए निर्धारित टीकाकरण केंद्र पर जाना होगा। इस दौरान इस बात का जरूर ध्यान रखें कि टीकाकरण केंद्र पर जाते समय अपना फोटो वाला पहचान पत्र जरूर लेकर जाएं, उसके बिना टीका नहीं लगेगा। 

वैक्सीन लगने के बाद आधे घंटे वहीं बैठना होगा

टीकाकरण केंद्र पर पहुंचने के बाद सबसे पहले थर्मल स्कैनिंग होगी। फिर वहां बैठे कर्मचारी रजिस्ट्रेशन नंबर मिलाएंगे। इस प्रक्रिया के पूरे हो जाने के बाद आपको टीका लगाने वाली जगह पर भेजा जाएगा। टीका लगने में कुछ मिनट का वक्त लगेगा। टीका लगाए जाने के बाद आधा घंटा वहीं पर बैठाकर रखा जाएगा। टीका लगने के बाद कोई साइड इफेक्ट तो नहीं हो रहा, ये देखने के लिए आधा घंटा वहां बैठाया जाएगा। फिर आपको घर भेज दिया जाएगा। 

हर व्यक्ति को वैक्सीन की दो डोज दी जाएगी, जो 28 दिनों के अंतराल पर मिलेगी। CoWin ऐप पर आपके टीकाकरण से संबंधित हर जानकारी होगी। इससे ये जानकारी भी मिलेगी कि वैक्सीन की कौन-सी डोज दी गई है। टीकाकरण के बाद सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा।  

रूपेश हत्याकांड पर सवाल पूछा तो तिलमिला गए नीतीश कुमार, बीच सड़क पर ही मिला दिया DGP को फोन, पूछा ये सवाल

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रूपेश हत्याकांड पर सवाल पूछा तो तिलमिला गए नीतीश कुमार, बीच सड़क पर ही मिला दिया DGP को फोन, पूछा ये सवाल

इंडिगो के एयरपोर्ट मैनेजर रूपेश सिंह हत्या मामले को लेकर बिहार की राजनीति लगातार गरमाई हुई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी पार्टियां आड़े हाथों ले रही हैं। इसको लेकर जब पत्रकारों ने सीएम नीतीश से सवाल किया, जिस पर वो भड़क उठे। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होनें तो बीच सड़क पर ही डीजीपी को भी फोन मिला दिया।

मंगलवार रात को हुई थी रूपेश की हत्या

आपको बता दें कि पटना में रूपेश सिंह की हत्या मंगलवार रात को हुई थी। जब रूपेश अपने काम से घर लौटे तो बाहर ही बदमाशों ने उन पर गोलियों से हमला कर दिया। इस दौरान उनकी मौत हो गई। क्यों और किसने रूपेश सिंह को मारा, इसकी जांच फिलहाल जारी है। लेकिन इस हत्याकांड को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं।

पत्रकारों के सवाल पर भड़के नीतीश

बिहार के सीएम नीतीश कुमार पटना के आर ब्लॉक से दीघा तक 6 किमी लंबी सिक्स लेन सड़क का उद्घाटन करने पहुंचे थे। इस दौरान ही उनसे पत्रकारों ने रूपेश हत्याकांड पर कुछ सवाल पूछ लिए, जिस पर वो भड़क गए। उन्होनें कहा कि अपराधों पर कार्रवाई की जा रही है, इसको भूलना नहीं चाहिए। रूपेश की हत्या दुखद है। पुलिस मामले की जांच कर  रही है। वो बोले कि क्या अपराधी किसी से इजाजत लेकर अपराध करता है।

इस दौरान नीतीश कुमार ने लालू यादव के शासनकाल का भी जिक्र किया। उन्होनें पत्रकारों से कहा कि किसी को इसके बारे में पता है कि ये हत्या किसने की, पुलिस को जरूर बताना चाहिए। उन्होनें कहा कि पत्रकारों को बताना चाहिए कि 2005 से पहले बिहार में क्या हालात थे? कितनी हिंसा और अपराध होते थे। क्या आज यहां वैसे स्थिति है? आज बिहार अपराध के मामले में 23वें नबंर पर है। सिर्फ इतना ही नहीं नीतीश ने तो पत्रकारों से ये भी सवाल कर दिया कि वो किसके समर्थक हैं।

DGP को मिला दिया फोन

नीतीश ने पत्रकारों से ये भी कहा कि अगर उनको किसी अपराध के बारे में जानकारी मिलती है, तो डीजीपी को बताएं। जिस पर पत्रकार बोले कि डीजीपी साहब तो फोन ही नहीं उठाते। फिर सीएम नीतीश ने खुद ही वहीं पर डीजीपी को फोन मिला दिया। डीजीपी एसके सिंघल ने दो रिंग में ही उनके फोन को उठा लिया। जिसके बाद नीतीश उनसे बोले कि डीजीपी साहब फोन उठाया करिए।

‘मेरी मम्मी पहली गोली मारेगीं’

इससे पहले बीजेपी नेता सुशील मोदी ने गुरुवार को छपरा में रूपेश के परिवारवालों से मुलाकात की थी। जब वो उनसे मिलने पहुंचे तो वहां का माहौल काफी भावुक हो गया। रूपेश की बेटी सुशील मोदी से लिपटकर रोने लगी। छोटी सी बच्ची अराध्या को इस तरह रोता देख सुशील मोदी की भी आंखें भर आई। इस दौरान बच्ची ने ये भी कहा कि अपराधी पकड़े जाएंगे, तो उसकी मम्मी उनको पहली गोली मारेगी।

#TandavReview: दमदार स्टारकास्ट, लेकिन कमजोर कहानी, जानिए कैसी है सैफ अली खान की 'तांडव' वेब सीरीज?

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#TandavReview: दमदार स्टारकास्ट, लेकिन कमजोर कहानी, जानिए कैसी है सैफ अली खान की 'तांडव' वेब सीरीज?

कोरोना काल के दौरान जहां महीनों तक थिएटर बंद रहे तो ऐसे में OTT प्लेटफॉर्म ही लोगों के मनोरंजन का साधन बना। OTT प्लेटफॉर्म पर बीते साल कई बढ़िया फिल्में और वेब सीरीज आई। इस साल भी लोगों को OTT प्लेटफॉर्म पर बढ़िया कंटेंट मिलने की काफी उम्मीदें हैं।

रिलीज हुई मल्टीस्टारर वेब सीरीज तांडव

इस साल कई ऐसी वेब सीरीज रिलीज होगीं, जिसका लोग काफी बेसब्री से इंतेजार कर रहे हैं। ऐसी ही एक मल्टीस्टारर वेब सीरीज ‘तांडव’ रिलीज हो गई है। इस पॉलिटिकल वेब सीरीज का इंतेजार लोग इसके ट्रेलर को देखने के बाद कर रहे थे। तांडव की स्टारकास्ट काफी तगड़ी हैं, सैफ अली खान के साथ डिंपल कपाड़िया, सुनील ग्रोवर और मोहम्मद जीशान अयूब, गौहर खान, कुमुद कुमार मिश्रा, डीनो मोरिया, कृतिका कामरा जैसे कई सितारे इसका हिस्सा हैं।

कुछ ऐसी है वेब सीरीज की कहानी 

बात अब वेब सीरीज की कहानी की करते हैं। तांडव वेब सीरीज की कहानी समर प्रताप सिंह (सैफ अली खान) के इर्द गिर्द घूमती हैं। समर प्रधानमंत्री का बेटा होता हैं और वो सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। समर एक चालाक शख्स है, जो साथ में भ्रष्ट और खतरनाक भी है। समर का साथ देता है गुरपाल (सुनील ग्रोवर)। गुरपाल अपने मालिक के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। गुरपाल एक ऐसा व्यक्ति है, जो काफी निर्दयी है। वो किसी की भी जान तक ले सकता है।

समर के पिता देवकी नंदन (तिग्मांशु धूलिया) तीन बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं और चौथी बार भी जीत हासिल कर कुर्सी पर बैठने ही की तैयारी में होते हैं। लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत की खबर आ जाती है। जिसके बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी का दावेदार उनका बेटा समर माना जाता है। लेकिन इसके बाद बाजी कुछ ऐसी पलटती है कि वो प्रधानमंत्री नहीं बन पाता और अनुराधा किशोर (डिंपल कपाड़िया) इस कुर्सी पर अपना कब्जा जमा लेती है।

हम हमेशा से ही ये बात सुनते आ रहे हैं कि राजनीति सीधे लोगों के बस की बात नहीं। इसमें प्रवेश करने के लिए आपको निर्दयी और भ्रष्ट होना पड़ता है। ऐसा ही कुछ तांडव में भी दिखाया गया है। इसके लेखक गौरव सोलंकी और डायरेक्टर अली अब्बास जफर है।

स्टूडेंट लीडर के रोल में जीशा आयूब

इसमें छात्र राजनीति के बारे में भी दिखाया गया। शिव शेखर (जीशान आयूब) इसमें एक निडर स्टूडेंट के रोल में नजर आ रहे हैं। संयोग की बात ये है कि जहां एक तरफ असल में किसानों का आंदोलन बीते 50 दिनों से चल रहा है। वहीं इस वेब सीरीज में भी किसानों से जुड़े मुद्दे को दिखाया गया है। युवा छात्र नेता शिवा शेखर किसान आंदोलन के साथ खड़ा होकर सोशल मीडिया पर स्टार बन जाता है। उसके भाषण की गूंज प्रधानंत्री कार्यालय तक पहुंचती है।

तांडव की कहानी की शुरुआत धीमी है। शुरू के कुछ एपिसोड में ऐसा आपको लगेगा। लेकिन पांचवें एपिसोड के बाद ये रफ्तार पकड़ लेती हैं। इसलिए इसे देखते हुए आपको धैर्य रखना बहुत जरूरी है। वेब सीरीज की कहानी में वो दम नहीं देखने को मिलेगा, लेकिन इसकी स्टार कास्ट काफी दमदार है।

ऐसी है सितारों की एक्टिंग

अगर आपको पॉलिकिटल ड्रामा कहानियों में दिलचस्पी है, तो इस वेब सीरीज को देखने में कोई बुराई नहीं। एक्टिंग भी सभी किरदारों की अच्छी हैं। डिंपल कपाड़ियों ने अपने रोल को जबरदस्त तरीके से निभाया। इसके अलावा सैफ की भी एक्टिंग अच्छी हैं। सुनील ग्रोवर ने भी अपने किरदार को बखूबी निभाया।