गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म पुरस्कार का ऐलान किया गया। सोमवार शाम को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार के नामों का ऐलान हुआ। इस बार इन सम्मान को पाने वालों की लिस्ट में कई बड़ी हस्तियों के नाम हैं, लेकिन कुछ नाम तो ऐसे भी हैं, जिनको शायद आप पहचानते भी ना हो। लेकिन हम जब आपको इनके बारे में बताएंगे, उनकी अलग-अलग प्रेरणा देने वाली कहानियों के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में जानकर आपको यकीनन गर्व महसूस होगा। आइए आपको आज हम पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में शामिल कुछ ऐसे ही नामों और उनकी कहानियों के बारे में बताते हैं…
अपनी पेटिंग से बनाई पहचान
बिहार के मधुबनी में रहने वाली एक महिला दुलारी देवी का नाम भी पद्म श्री पुरस्कारों की लिस्ट में शामिल है। महज 12 साल की छोटी से उम्र में दुलारी की शादी हो गई। इसके बाद अपने 6 महीने के बेटी की मौत का दुख लेकर वो 7 सालों के बाद मायके वापस आ गईं। यहीं से शुरू हुई उनके संघर्ष की कहानी। दुलारी ने घरों में जाकर झाड़ू-पोंछा करने का काम किया। लेकिन कुछ समय के बाद पेटिंग बनानी शुरू कर दी। इसके बाद उनका पेटिंग बनाने का सिलसिला थमा नहीं। दुलारी अब तक 7 हजार मिथिल पेटिंग बना चुकी हैं। साल 2012-13 में इनको राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। गीता वुल्फ की पुस्तक फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच में लिखी पुस्तक मिथिला में दुलारी की जीवन गाथा व कलाकृतियां सुसज्जित हैं। सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया में कई बड़ी हस्तियां दुलारी की पेटिंग की मुरीद हैं। वो महिला जिसने पढ़ाई-लिखाई की उम्र में शादी कर ली, आज वो लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी और अब उन्हें इस बड़े सम्मान से सम्मानित किया गया।
105 की महिला को भी मिला सम्मान
तमिलनाडु की एम. पप्पम्माल को पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 105 साल की एम. पप्पम्माल भवानी नदी के किनारे ऑर्गनिक फार्म चलाती हैं।
दो रुपये वाले डॉक्टर को पद्म श्री
उत्तरी चेन्नई में डॉ टी. वीराघवन को ‘दो रुपये वाले डॉक्टर’ के नाम से जाना जाता है। बीते साल अगस्त महीने में ही निधन हो गया। अब उनको पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। डॉ टी. वीराघवन 1973 से मरीजों का इलाज केवल 2 रुपये की फीस लेकर ही कर रहे हैं। बाद में अपनी फीस उन्होनें बढ़ाकर 5 रुपये कर दी थी। डॉ वीराघवन की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि आसपास के डॉक्टरों ने एकजुट होकर उनके खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया कि वो अपनी फीस कम से कम 100 करें। जिसके जवाब में उन्होनें फीस लेना बंद कर दिया।
आचार्य रामयत्न शुक्ल का नाम भी सूची में शामिल
काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और संस्कृत प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल का नाम भी शामिल है। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में प्रोफेसर के पद पर काम कर चुके हैं। 89 वर्ष की उम्र में भी आचार्य रामयत्न शुक्ल नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए मुफ्त शिक्षा की मुहिम चला रहे हैं।
छुटनी देवी ने कुप्रथा के खिलाफ किया संघर्ष
झारखंड की छुटनी देवी को उनकी समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। छुटनी देवी को 25 साल पहले डायन बताकर उन्हें घर से निकाल दिया गया था। इस अपमान के बाद भी वो टूटी नहीं। बीते 25 सालों से अपने मायके में रहकर वो इस अंधविश्वास और कुप्रथा के खिलाफ अभियान चला रही हैं। केवल झारखंड ही नहीं देश के अलग अलग हिस्सों में डायन प्रथा की शिकार महिलाएं उनसे मदद मांगने जाती हैं। छुटनी प्रतिदिन अपने खर्च पर गरीबों को भोजन भी कराती हैं।
गॉडफादर के रूप में जाने वाले डॉक्टर को सम्मान
बिहार के भागलपुर के रहने वाले डॉक्टर दिलीप कुमार की पहचान ‘गॉडफादर’ के रूप में होती हैं। समाज और चिकित्सा सेवा में अच्छा काम करने के लिए उनको पद्म सम्मान से नवाजा गया। 93 साल के डॉ दिलीप कुमार सिंह करीबन 68 साल में लाखों गरीबों का मुफ्त और कुछ से मामूली पैसा लेकर इलाज करते आ रहे हैं।
एक रुपये फीस लेने वाले सुजीत भी सम्मानित
78 साल के सुजीत चटोपाध्याय को भी सूची में शामिल हैं। सुजीत पूर्वी बर्धमान के अपने घर में पाठशाला चलाते हैं। वो पूरे साल की महज एक रुपये ही फीस लेते हैं। सुजीत को रिटायर हुए 15 साल से भी ज्यादा हो गए। वो थैलीसीमिया को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाते हैं।
कॉमिक के जरिए बनाया नाम
पश्चिम बंगाल के नारायण देबनाथ के नाम सबसे लंबी कॉमिक स्ट्रिप चलाने का रिकॉर्ड है। वो पिछले 70 से भी अधिक समय से बंगाली कॉमिक स्ट्रिप्स बनाते आ रहे हैं। वो ऐसे पहले और इकलौते भारतीय कॉमिक हैं, जिनको डीलिट मिला। 97 साल की उम्र में वो आज भी कॉमिक्स बनाने की कोशिशें करते रहते हैं।
संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए इन्हें मिला सम्मान
राजस्थान के लाखा खान को संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया। लाखा खान 6 भाषाओं में गाते हैं, जिनमें हिंदी, मारवाड़ी, सिंधी, पंजाबी और मुल्तानी शामिल हैं। वो मांगणियार समुदाय में प्यालेदार सिंधी सांरगी बजाने वाले इकलौते कलाकार हैं। 71 साल के लाखा खान यूरोप, ब्रिटेन, रूस और जापान समेत कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।