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Digital Voter ID Card: अब चुटकियों में ऐसे डाउनलोड कर सकते हैं आप अपना वोटर ID कार्ड, यहां जान लें पूरा प्रोसेस….

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Digital Voter ID Card: अब चुटकियों में ऐसे डाउनलोड कर सकते हैं आप अपना वोटर ID कार्ड, यहां जान लें पूरा प्रोसेस….

नेशनल वोटर्स डे यानी 25 जनवरी को इलेक्शन कमीशन ने डिजिटल वोटर आइडी कार्ड e-EPIC लॉन्च किया। जिसके जरिए अब लोग अपने वोटर आईडी कारक्ड को ऑनलाइन डाउनलोड कर सकेंगे, जिससे काफी आसानी हो जाएगी। इस सुविधा के मिलने के बाद लोगों को वोटर आईडी कार्ड के हार्ड कॉपी रखने की झंझट खत्म हो जाएगी। कोई भी अपने वोटर कार्ड को मोबाइल फोन या फिर कंप्यूटर में डाउनलोड कर सकेगा। आइए इसके बारे में आपको विस्तार से पूरी जानकारी दे देते हैं…

PDF फॉर्मेट में डाउनलोड होगा वोटर ID कार्ड

सबसे पहले आपको ये बता देते हैं कि आखिर डिजिटल वोटर कार्ड या फिर e-EPIC आखिर है क्या? ई-वोटर कार्ड PDF के फॉर्मेट में डाउनलोड होगा। जिसको कोई भी एडिट नहीं कर सकता। हां, लेकिन अगर आपको इसके प्रिंट की जरूरत है, तो आप इस PDF का प्रिंट निकलवा सकेंगे। डिजिटल वोटर आईडी कार्ड को आप अपने फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप में आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके अलावा इसे डिजिटल लॉकर में भी स्टोर किया जा सकेगा।

वोटिंग के दौरान आएगा काम

जब भी आपको कभी वोटर कार्ड की जरूरत होगी, तो उसकी हार्ड कॉपी रखनी नहीं पड़ेगी। डिजिटल वोटर आईडी से आपका काम चल सकेगा। वहीं वोटिंग के दौरान भी ये काफी काम आएगा। इस साल कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उस दौरान ये डिजिटल कार्ड काम आएगा। इसके दूसरे फायदों के बारे में अगर बात करें तो वोटर को बार-बार नया कार्ड बनवाने की परेशानी खत्म हो जाएगी।

नहीं बंद होगा फिजिटल कार्ड का यूज

अब तक आधार कार्ड, पैन कार्ड समेत कई अन्य दस्तावेज डिजिटल फॉर्मेंट में उपलब्ध थे। अब वोटर आईडी कार्ड भी हो गया। ऐसे में एक सवाल ये भी है कि क्या डिजिटल कार्ड आने से फिजिटल वोटर कार्ड का यूज बंद हो जाएग। तो आपको बता दें कि ऐसा नहीं है।डिजिटल कार्ड के आने से फिजिकल इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड की डिलीवरी में होने वाला इंतजार का वक्त खत्म हो जाएगा।

दो चरणों में शुरू हुई ये सुविधा

इस सुविधा की शुरुआत चुनाव आयोग ने दो चरणों में की। पहले चरण की बात करें तो इसके मुताबिक 25 से 31 जनवरी के बीच में केवल नए वोटर्स ही डिजिटल कार्ड डाउनलोड कर सकेंगे। वो वोटर्स जिन्होनें हाल ही में वोटर कार्ड के लिए आवेदिन किया होगा और जिनके मोबाइल नंबर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर रजिस्टर्ड हैं, वो इसको फिलहाल डाउनलोड कर सकते हैं।

वहीं दूसरा चरण एक फरवरी से शुरू होगा। जिसमें बाकी सभी वोटर्स अपना कार्ड डाउनलोड कर पाएंगे। लेकिन इसके लिए वोटर के फोन नंबर का चुनाव आयोग की वेबसाइट से लिंक होना जरूरी है। जिन लोगों का नंबर लिंक नहीं, उनको चुनाव आयोग में डिटेल्स को दोबारा वेरिफाई कराना होगा।

जानिए कैसे करें डाउनलोड?

अब आपको ये बता देते हैं कि आखिर इस डिजिटल कार्ड को डाउनलोड करने की प्रक्रिया क्या है?

इसके लिए सबसे पहले आपको https://voterportal.eci.gov.in/ वेबसाइट पर जाना होगा। यहां पर आपको लॉग इन करना पड़ेगा। उसके बाद आपको डाउनलोड e-EPIC पर क्लिक करना होगा, जहां से इसको डाउनलोड किया जा सकेगा। नया ऑनलाइन वोटर आईडी कार्ड डाउनलोड करने के लिए वोटर्स को पहले (KYC) प्रोसेस पूरा करना होगा।

वहीं इससे उन लोगों को भी फायदा होगा जो अपना वोटर आईडी  कार्ड खो चुके हैं या फिर उनका कार्ड खराब हो गया। ऐसे वोटर्स फ्री में डुप्लीकेट कार्ड डाउनलोड कर पाएंगे। अब तक इसके लिए 25 रुपये देने पड़ते हैं। वहीं डिजिटल कार्ड की सुरक्षा के लिए QR कोड भी रखा गया है।

Budget 2021: बजट बनाने वाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की टीम में कौन-कौन शामिल? जानिए इसके बारे में…

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Budget 2021: बजट बनाने वाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की टीम में कौन-कौन शामिल? जानिए इसके बारे में…

एक फरवरी यानी सोमवार को देश का बजट पेश किया जाएगा। वैसे तो हर साल ही लोगों को इस दिन का बेसब्री से इंतेजार रहता है। लेकिन इस बार का बजट इसलिए भी बेहद खास होगा क्योंकि ये कोरोना महामारी के संकट के बीच पेश किया जा रहा है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने लोगों के जीवन पर गहरा असर डाला। वहीं महीनों तक लगे लॉकडाउन की वजह अर्थव्यवस्था पर भी काफी गहरी चोट पड़ी। ऐसे में सरकार इस बार बजट में क्या ऐलान करेगी, इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं…

एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारण तीसरी बार बजट पेश करने जा रही है। क्या आप जानते हैं कि बजट तैयार करने वाली निर्मला सीतारमण की टीम में कौन-कौन हैं? आइए आपको इसके बारे में बता देते हैं…

कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन

बजट बनाने वाली टीम में कुल 6 सदस्य शामिल हैं। इस बार दो नए चेहरे भी इसका हिस्सा है। सबसे पहले बात करते हैं कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन की। दिसंबर 2018 में ये मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाए गए थे। कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने फाइनेंशियल इकनॉमिक्स में PHD की हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस से उन्होनें ये डिग्री ली। देश के CEA बनने से पहले सुब्रमण्यन इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में पढ़ाते भी थे। इनको बैंकिंग के साथ कॉर्पोरेट प्रशासन और आर्थिक नीति का एक्सपर्ट माना जाता है।

टीवी सोमनाथन

टीम में दूसरा नाम टीवी सोमनाथन का है। सोमनाथन व्यय विभाग के सचिव हैं। इन्होनें कोलकत्ता यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स में PHD की है। सोमनाथन 1987 बैच के तमिलनाडु कैडर के IAS अधिकारी हैं। ये प्रधानमंत्री कार्यालय में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। साल 2015 में सोमनाथन ने प्रधानमंत्री कार्यालय में बतौर संयुक्त सचिव काम किया। इसके अलावा वो विश्व बैंक के साथ भी काम कर चुके हैं।

अजय भूषण पांडेय

अजय भूषण पांडेय भी इस टीम में शामिल हैं। वो राजस्व विभाग के सचिव हैं। अजय भूषण पांडेय महाराष्ट्र कैडर के 1984 बैच के IAS अधिकारी हैं। वो भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के CEO भी रह चुके हैं, जिसमें ये अपना लोहा मनवा चुके हैं। पांडेय ने IIT कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और मिनेसोना यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में PHD की हुई हैं।

देबाशीष पांडा

वहीं टीम में आखिरी नाम देबाशीष पांडा का है। ये वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के सचिव हैं। वित्तीय सेक्टर से जुड़े सारे ऐलान इनकी ही जिम्मेदारी में आते हैं। देबाशीष पांडा 1987 यूपी बैच के IAS अधिकारी हैं। इन पर वित्तीय सिस्टम की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए RBI के साथ मिलकर काम करने की जिम्मेदारी है।

तरुण बजाज

वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज भी बजट बनाने वाली टीम में शामिल हैं। वो 1988 हरियाणा बैच के IAS अधिकारी हैं। वित्त मंज्ञालय से पहले तरुण बजाज प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम कर चुके हैं। साथ ही बजाज ने कई राहत पैकेज पर भी काम किया है। आत्मनिर्भर भारत के तीन पैकेज में भी इन्होनें अहम भूमिका निभाई।

तुहीन कांत पांडे

टीम में अगला नाम तुहीन कांत पांडे का हैं। ये निवेश व सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव हैं। तुहीना कांत पांडे 1987 बैच के ओडिशा कैडर के IAS अधिकारी हैं। 2019 के अक्‍टूबर में इनको DIPPM का सचिव बनाया गया।

Kisan Andolan: कहीं जबरन हटाया, तो कहीं बिजली गुल…जानिए हिंसा के बाद अब क्या है किसान आंदोलन का ताजा हाल?

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Kisan Andolan: कहीं जबरन हटाया, तो कहीं बिजली गुल…जानिए हिंसा के बाद अब क्या है किसान आंदोलन का ताजा हाल?

गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा इस वक्त चर्चाओं में बनी हुई है। हिंसा के बाद किसान आंदोलन का क्या होगा, ये हर कोई जानना चाहता है। 2 महीनों से भीषण ठंड के इस मौसम में किसान नए कृषि कानून के खिलाफ सड़कों पर जमे थे। लेकिन इस बीच ट्रैक्टर रैली के दौरान जबरदस्त हिंसा हो गई, जिसके चलते किसानों की काफी बदनामी भी हो रही है।

ऐसे में क्या ये किसान अब अपने इस आंदोलन से पीछे हट जाएंगे, या फिर अपनी इस लड़ाई को यूं ही जारी रखेंगे, ये सवाल इस वक्त सबसे ज्यादा उठ रहा है।

दो संगठनों ने वापस लिया आंदोलन

हालांकि इस हिंसा के बाद किसान संगठनों के बीच दरार पड़ती हुई नजर आने लगी है। बीते दिन दो संगठनों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने गाजीपुर और नोएडा बॉर्डर पर चल रहे अपने प्रदर्शन को वापस लिया। वहीं किसान संगठनों ने एक फरवरी को संसद मार्च का फैसला लिया गया, जिसे अब स्थगित कर दिया गया। इसके अलावा दूसरे बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन का अब क्या हाल है…आइए इसके बारे में आपको बता देते हैं…

बागपत पर पुलिस ने खत्म कराया आंदोलन

उत्तर प्रदेश के बागपत में चल रहे किसान आंदोलन को खत्म कराया गया। पुलिस ने देर रात इस आंदोलन को खत्म कराया। जहां पुलिस का ये कहना है कि इस कार्रवाई को शांतिपूर्ण किया गया। वहीं दूसरी ओर इसकी वीडियो भी सामने आ रही है, जिसमें पुलिस किसानों पर लाठीचार्ज करती नजर आ रही है। यहां पर आंदोलन 19 दिसंबर से चल रहा था, जिसे अब पुलिस ने खत्म कराया। मौके पर भारी पुलिसबल तैनात है।

गाजीपुर बॉर्डर पर बिजली काटने का आरोप

इसके अलावा बताया ये जा रहा है कि गाजीपुर बॉर्डर पर कल रात से बिजली गुल है। जिसके चलते भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार पर आंदोलन को अस्थिर करने का आरोप लगाया। राकेश टिकैत ने कहा कि पुलिस ने रात को प्रदर्शन वाली जगह की बिजली काट दी, जिसकी वजह से डर का माहौल बना हुआ है। हम लोग रात से जाग रहे हैं। सरकार चाहती है कि हम अपना आंदोलन खत्म कर दें।

कई किसान नेता फंसे

गौरतलब है कि रिपब्लिक डे के मौके पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा को लेकर कई किसान नेता भी फंसते हुए नजर आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने रैली के दौरान मचे उपद्रव को लेकर FIR में अब तक 37 किसान नेताओं के नाम शामिल किए। वहीं इसके अलावा लाल किले पर हुई हिंसा को लेकर पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू और गैंगस्टर लक्खा सिंह के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया।

22 साल की उम्र में बना मिलियन डॉलर का मालिक, कहलाता था कामयाब क्रिमिनल और गरीबो का मसीहा…

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22 साल की उम्र में बना मिलियन डॉलर का मालिक, कहलाता था कामयाब क्रिमिनल और गरीबो का मसीहा…

आपने कई कोकीन स्मगलर के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे कोकीन स्मगलर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पूरी दुनिया में केवल एक ही था और उसने सभी रिकॉर्ड्स तोड़ दिए और वो गरीबों के लिए रॉबिनहुड था. इतना ही नहीं उस पर ये तक आरोप लगा कि अपने देश के संविधान को प्रभावित करने का माद्दा रखता है.

हम आपको एक समय पहले दुनिया का 7वां सबसे अमीर आदमी बन जाने वाले क्रिमिनल पाब्लो एस्कोबार के बारे में बताने जा रहे हैं. इसके पास इतने पैसे थे कि उसे एक पैसों का गोदाम बनवाना पड़ा और फिर जब उसका ये गोदाम भर गया तो उसे जमीन खोद कर पैसे रखने पड़े, तो आइए आपको पाब्लो एस्कोबार के गरीबी से अमीरी तक के सफर और उसकी चर्चित जिंदगी के बारे में विस्तार से बताते हैं.

वर्ल्ड हिस्ट्री का सबसे कामयाब और सबसे अमीर क्रिमिनल माना जाने वाला पाब्लो एस्कोबार का जन्म 1 दिसंबर 1949 में एक बेहद गरीब किसान परिवार में हुआ जो अपने माता पिता की तीसरी संतान था. गरीबी इतनी ज्यादा थी कि वो कॉलेज की फी तक नहीं भर पाता था और इसलिए उसका नाम भी काट दिया गया.

पाब्लो एस्कोबार से जब गरीबी ने पढ़ाई छीन ली तो उसने पैसे कमाने का ऐसा रास्ता चुना जो काला था, ये वो रास्ता था जिस पर अगर कोई एक बार चला जाए तो यहां से बाहर केवल मौत ही निकाल सकती है. वहीं हर तरफ अंधेरा था लेकिन पाब्लो एस्कोबार को तो पैस कमाने थे इसके लिए उसने शुरुआत कब्र से पत्थर चुराकर उन्हें स्मगलरों को बेचने का काम से की और फिर यहीं से उसके ‘क्रिमिनल करियर’ की जैसे शुरुआत हो गई.

बता दें कि पाब्लो एस्कोबार जब 20 साल का भी नहीं हुआ था तब उसने सड़कछाप अपराधों को अंजाम दिया, इसमें गांजे और सिगरेट जैसी मदक पदार्थों से जुड़े काम भी थे. अपनी इस उम्र में वो गांजे की सप्लाई, बैन सिगरेट और फर्जी लॉटरी टिकट को बेचता और गाड़ियों की चोरी करता. जिसके चलते 1970 के दशक में वो एक चोर और एक बॉडीगार्ड के रुप में पहचाना जाने लगा था.

22 साल की उम्र में मिलियन डॉलर का मालिक

जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई वैसे-वैसे उसके अपराध भी बड़े होने लगे और वो किडनैपिंग जैसे क्राइम में भी हाथ आजमाने लगा. किडनैपिंग की वारदात में जब वो सक्रिय रहने लगा तो उसने अपने ही होम टाउन मेडिलीन के एक बेहद अमीर एग्जीक्यूटिव की किडनैपिंग की. इस दौरान उससे फिरौती के 1 लाख डॉलर यानि आज के दौर का 6 लाख डॉलर यानी करीब 4 करोड़ रुपये हासिल किए और इस तरह महज 22 साल की उम्र में ही उसके पास मिलियन डॉलर की दौलत थी.

26 साल की उम्र में पाब्लो ने मेडिलीन के सबसे बड़े ड्रग माफिया की हत्या कर दी, वो भी तब जब वो माफिया से 14 किलो कोकीन की डील के लिए उससे मुलाकात करने गया. जिसके बाद वो खुद इस कारोबार में घुस गया. अगर बात की जाए पाब्लो के निजी जिंदगी कि तो उसने मार्च 1976 में 15 साल की मारिया विक्टोरिया से शादी की उस वक्त उसकी  उम्र 27 साल थी. इसके बाद उसे 2 बच्चे जुआन एस्कोबार और मैनुएला एस्कोबार हुए.

उसके बाद आया सिविल वॉर का दौर जब पाब्लो के साम्राज्य का उभार हुआ. इस वक्त कोलंबिया में सरकार-पैरामिलिट्री फोर्स और लेफ्ट विंग गुरिल्लाओं के बीच संघर्ष जारी था और इस सिविल वॉर से कोलंबिया दुनिया में अपनी छवी कराब करता जा रहा था तो दूसरी तरफ इसी दौर में पाब्लो ने अपनी खूनी लड़ाई और तेज कर दी. अपने क्राइन के बीच में उसे कोई रोड़ा नहीं चाहिए था और इस मामले में सरकारी अफसरों से निपटने के लिए वो अपने एक ही रूल को फौलो करता था वो ये सरकारी अफसरों के सामने वो दो ही ऑप्शन रखता था वो ये कि ‘मेरी रिश्वत खाओ या मेरी गोली’. उसके लोग सरकारी अफसरों से पूछा करते ‘प्लाता ऑर प्लोमो?’ यानी सिल्वर या सीसा? जिसका असली मतलब था रिश्वत या मौत? उस दौर इस सवाले ने पूरे कोलंबिया में दहशत पैदा कर दिया था. जहां इस सवाल के जवाब देने पर हजारों सरकारी अफसरों की जान गई तो वहीं हजारों बहुत अमीर हो गए.

ऐसा माना जाता था कि करीब 4 से 5 हजार मौतों का जिम्मेदार था एस्कोबार. पाब्लो के भाई रॉबर्टो एस्कोबार की एक बुक ‘इन द अकाउंटेंट्स स्टोरी’ में पाब्लो के कई राज खोले गए हैं. जिसके अनुसार उसके धंधे का तरीका बहुत अलग था. वो कोकीन प्लेन के टायरों में छिपा देता था और इस काम के लिए पायलटों को 5 लाख डॉलर एक फ्लाइट के लिए देता था और इस तरकीब से उसने कई टन कोकीन स्मगल करवाए. एक फ्लाइट से कम से कम 5 से 11 टन कोकीन की स्मगलिंग की जाती और एक बार में 5 लाख डॉलर से अधिक की कमाई होती थी.

आपको बता दें कि एस्कोबार ने इतनी बेशुमार दौलत कमाई कि उस वक्त फोर्ब्स मैगजीन ने उसे दुनिया का 7वां सबसे अमीर आदमी बताया। एस्कोबार के भाई के मुताबिक उसके पास इतना पैसा था कि उसके गोदाम कैश से भरे रहते और जब और ज्यादा कैश आया तो जमीन खोदकर कैश गड़वाया गया.

एस्कोबार ने धीरे-धीरे अमेरिका में भी पैर पसारने शुरू कर दिए और यहां 80 फीसदी कोकीन उसी के यहां से सप्लाई की जाने लगी. कहने वाले कहते हैं कि एक बार तो हद ही हो गई जब एक यात्रा के दौरान सर्दी लगने पर उसने अपने परिवार को ताप देने के लिए 3 मिलियन डॉलर के नोट जलाकर खाक कर दिए थे यानि कि 13 करोड़ रुपये उसने आग में जला डाले.

बाद में अमेरिकी एजेंसिया उसके पीछे पड़ी और ऐसे में प्रत्यर्पण से बचने का रास्ता उसने पॉलिटिक्स से निकाला. वो कोलंबिया की लिबरल पार्टी में शामिल हुआ और फिर 1982 में वहां की संसद के निचले सदन के ऑल्टरनेट मेंबर के रूप में चुन लिया गया. इस दौरान स्पेन में उसका ड्रग का काला कारोबार अपने चरम पर था.

कोई शख्स क्राइम का बादशाह ही क्यों न हो एक बार उसे जेल तो जाना ही पड़ता है. ज्यादातर बार ऐसा ही होता है. एक समय में हिंसक बने रहना पोब्लो के लिए ठीक नहीं था ऐसे में उसने हिंसा छोड़ने की घोषणा की और साल 1991 में सरेंडर कर लग्जूरियस प्राइवेट जेल ‘ला कैथीड्रल’ में कैद कर लिया गया लेकिन जेल में जिस तरह से वो जी रहा था ऐसे में ये कहना बेहद मुश्किल था कि क्या वाकई में वो सजा काट रहा था क्योंकि उसकी जिंदगी जेल में भी ऐशो आराम से बीत रही थी और इसकी खूब चर्चा थी। तो दूसरी तरफ उसके सरेंडर करने को लेकर विवाद भी खड़ा हो गया था.

दरअसल, कोलंबिया के नए संविधान के तहत कोलंबियाई नागरिकों के प्रत्यर्पण पर रोक की व्यवस्था शुरू कर दी गयी थी और इसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया. कहा ये जाने लगा कि एस्कोबार ने संविधान बनाने वालों को भी प्रभावित कर दिया. और तो और जेल जाने का असर ना तो उसके काले कारोबरा पर पड़ा और न ही उसके राजनीतिक करियर पर बल्कि दोनों ही अपनी रफ्तार से चलते रहे. एक दौर ऐसा आया कि कोलंबिया का पूरा हुलिया ही बदल गया. लोग दहशत की जिंदगी जीने लगे। साल 1992 में कोलंबिया में 27 हजार मौतें हुईं और ये मौतें कुछ वहां के गृह युद्ध और कुछ एस्कोबार के असर का नतीजा थीं.

एस्कोबार की एक पहचान गरीबों का रॉबिनहुड के तौर पर भी थी. एस्कोबार एक ही साथ दो व्यक्तित्व अपने साथ रखता था. एक क्रिमिनल के तौर पर और दूसरा गरीबों का रॉबिनहुड. गरीब उससे प्यार करते और वो उन गरीबों से. एस्कोबार हमेशा ही गरीबों के लिए काम करता. उसके लिए घर और दूसरी बुनियादी जरूरतों के लिए पैसे बांटे. गरीब उसे एक अच्छे व्यक्ति के रूप में पहचान थे।

एस्कोबार को आसान मौत नहीं मिली. पुलिस प्रशासन की बात की जाए तो इस कार्रवाई में उसे भी काफी मशक्कत करनी पड़ी. कोलंबियाई पुलिस की एक नयी ब्रांच ‘सर्च ब्लॉक’ ने साल 1993 के 2 दिसंबर को एस्कोबार को मार गिराया। रेडियो ट्राएंगुलेशन टेक्नॉलजी के मुताबिक मेडिलीन में मिडल क्लास इलाके में एस्कोबार छिपा था जहां दो गुटों में शूटआउट हुआ. ऐसे में एस्कोबार और उसके बॉडीगार्ड ने छत पर चढ़कर भागने की कोशिश की लेकिन तभी उन्हें मार गिराया गया. इस बात की पुष्टि तो नहीं कि एस्कोबार को गोली लगी थी या फिर उसने खुद को गोली मार ली लेकिन हां उसके परिवार के कई सदस्य उसके सुसाइड करने की संभावना पर हामी भरती हैं.

उससे लोग कितना प्यार करते थे ये तब और उजागर हुआ जब 1993 में उसकी मौत के बाद उसकी विदाई में 25 हजार से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए। उसने अपनी जिंदगी में खूनी खेल रचा, बेशुमार दौलत कमायी लेकिन गरीबों का बेइंतहां प्यार भी हासिल किया लेकिन एक बात बार बार जरूर दोहराई जाएगी कि उसके जैसा क्रिमनल शायद ही कोई दूसरा हुआ हो और भविष्य में कभी हो पाए.

जानिए कैसा रहेगा 28 जनवरी को आपका दिन

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जानिए कैसा रहेगा 28 जनवरी को आपका दिन

जैसा कि हम सभी जानते हैं ग्रहों का प्रभाव हमारे जीवन में पड़ता है, जिसके चलते हमें कभी अच्छे तो कभी बुरे दिनों का सामना करना पड़ता। वहीं आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आज का राशिफल आपके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन लेकर आ सकता है। तो आइए आपको बताते हैं आज के दिन के बारे में आपके सितारे क्या कहते हैं और 28 जनवरी का दिन आपके लिए कैसा रहेगा…

मेष राशि- दिन आपका सामान्य रहेगा। कामों में थोड़ी बाधाएं आएगीं। मेहनत के नतीजे मिलेंगे। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

वृषभ राशि- आपका दिन मिला जुला रहेगा। आज आपके काम को सराहा जाएगा। जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ने के आसार है। परिवार में सामान्य माहौल रहेगा।

मिथुन राशि- दिन की शुरुआत बढ़िया होगी। रुका हुआ धन मिलने के आसार है। आपका मन प्रसन्न रहेगा। जरूरतमंद की मदद करने से अधिक लाभ मिलेगा।

कर्क राशि- सामाजिक कार्यों में आपका मन लगेगा। आर्थिक समस्याएं कम होगी। दिन आपका ठीक ठाक लगेगा। किसी दूसरे के विवाद में पड़ने से बचें।

सिंह राशि- आपका दिन उतार चढ़ाव से भरा बीतेगा। बिजनेस में जोखिम भरे फैसले लेने से बचें। परिवार में सुख शांति का माहौल रहेगा। बुजुर्गों के आशीवार्द से रुके काम पूरे होंगे।

कन्या राशि- दिन आपका सामान्य रहेगा। किसी खास व्यक्ति से आज सरप्राइज मिल सकता है। यात्रा पर जाने से आपको बचना चाहिए। स्वास्थ्य का खास ध्यान रखें।

तुला राशि- दिन आपका बढ़िया बीतेगा। किस्मत का भरपूर साथ मिलेगा। आपके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होगी। किसी भी चीज  को लेकर ज्यादा तनाव लेने से बचें।

वृश्चिक राशि- दुश्मनों से थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। आपका दिन सामान्य रहेगा। स्वास्थ्य थोड़ा कमजोर रहने की आशंका है। दोस्तों के साथ अच्छा वक्त बिताएंगे।

धनु राशि- आज के दिन आपको संभलकर रहने की जरूरत है। सोशल मीडिया का संभलकर इस्तेमाल करें। किसी अनजान व्यक्ति के साथ अपनी निजी चीजें साझा ना करें। हर परेशानी में आपको दोस्तों का साथ मिलेगा।

मकर राशि- दिन की शुरुआत परेशानियों से होगीं। मन उदास रहेगा। कोई भी फैसला भविष्य को ध्यान में रखकर लें। हर हालात में करीबियों का साथ मिलेगा।

कुंभ राशि- दिन आपका अच्छा बीतेगा। भाग्य का साथ मिलेगा। जीवनसाथी के साथ रोमांटिक पल बिताएंगे। आज के दिन किसी से बेवजह उलझने से बचें।

मीन राशि- दिन आपका मिला जुला रहेगा। व्यापार में उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा। जल्दबाजी में कोई फैसला लेने से बचें। परिवार में सुख शांति का माहौल रहने के आसार है।

अमित शाह: वो शेयर ब्रोकर जिसकी कर्मठता ने उसे बनाया ‘राजनीति का चाणक्य’

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अमित शाह: वो शेयर ब्रोकर जिसकी कर्मठता ने उसे बनाया ‘राजनीति का चाणक्य’

अमित शाह 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई के एक संपन्न गुजराती परिवार में जन्मे थे। बीजेपी के अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद उन्होने पार्टी की पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी है। तीन तलाक, कश्मीर से आर्टिकल 370 का रद्द होना ये कुछ ऐसे ऐतिहासिक फैसले हैं जिनको अमल करने के पीछे का मास्टरमाइंड शाह को ही माना जाता है। आश्चर्यजनक बात तो ये है कि राजनीति की ये अद्भुत कला उन्हें विरासत में नहीं मिली। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने सही समय पर अचूक दांव खेल कर बड़े बड़े राजनीतिज्ञ के हौसले पस्त कर दिए है। तो आइये जानें सियासी अखाड़े के इस धुरंधर का बेहतरीन सफर।

ऐसा रहा बचपन 

16 साल की उम्र तक शाह अपने पैतृक गांव गुजरात के मानसा में रहे और स्कूल की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वो अपने परिवार समेत अहमदाबाद शिफ्ट हो गए। उन्होंने अहमदाबाद से बायोकेमिस्ट्री में बीएससी करी है। इसके बाद युवावस्था में ही पारिवारिक जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने खुद को अपने पिता के प्लास्टिक के पाइप के कारोबार में व्यस्त कर लिया। वक़्त तेज़ी से आगे बढ़ा और शाह को स्टॉक मार्केट की ओर खींच लाया। जहां उन्होंने शेयर ब्रोकर के रूप में काम किया। लेकिन वक़्त को तो कुछ और ही मंजूर था। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और फिर वहीं हमेशा के लिए पैर जमा लिए।

कुछ यूं हुई पीएम मोदी से मुलाकात 

साल 1980 में 16 साल की उम्र में वे RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़ गए थे और ABVP (अखिल भारतीय विद्या परिषद्) के कार्यकर्ता के तौर पर उभरे थे। अपनी सीखने की ललक और कार्यक्षमता के चलते उन्हें मात्र दो साल में एबीवीपी की गुजरात इकाई का जॉइंट सेक्रेटरी बना दिया गया। साल 1986 में वे पीएम मोदी से मिले और यही मुलाकात दोनों की पक्की यारी में तब्दील हो गई।

चुनावों का संभाला जिम्मा 

1987 में शाह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की और बीजेपी की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा में शामिल हो गए। 1997 में उनकी BJYM के कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की गई। और 1989 में वे बीजेपी अहमदाबाद शहर के सचिव बनाये गए। शाह को राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रचार प्रसार के लिए भी याद किया जाता है। उसी दौरान उनकी लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात हुई थी। आडवाणी उस समय गुजरात के गांधीनगर से लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरे थे। शाह ने उस समय चुनाव संयोजक की पहली बार भूमिका निभाई और 2009 तक लगातार उठाते रहे।

वित्त निगम को घाटे से उबारा 

1995 में शाह गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष बने। अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने न सिर्फ इसके मुनाफे में 214 प्रतिशत की वृद्धि की, बल्कि कार्यकाल के दौरान निगम को घाटे से बाहर भी उबारा। उनके अध्यक्ष रहते हुए पहली बार पत्ता खरीद फरोख्त, कार्यशील पूंजी अवधि लोन और ट्रक ऋण शुरुआत की गई। 36 साल में शाह अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के युवा अध्यक्ष बने। यहां भी उन्होंने अपने पद की महत्वता कायम रखते अपनी पूरी तरीके से निभाई। और महज एक साल के भीतर 20.28 करोड़ का घाटा पूरा किया।

ऐसे बने पार्टी के फेवरेट 

साल 1997 में पहली बार वो चुनावी लड़ाई में उतरे और सरखेज विधानसभा से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर विधायक पद के लिए नामांकन भरा। और भारी भरकम वोटों से विजयी हुए। और ये जीत का अंतर हर चुनाव में लगातार बढ़ता ही गया। उनकी अद्वितीय रणनीति के चलते उन्हें 2001 में बीजेपी की राष्ट्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ का संयोजक नियुक्त किया गया। इस दौरान उनकी कार्यकुशलता को सबसे ज्यादा लाइमलाइट मिली जिसके चलते उन्हें पितामह की उपाधि मिल गई।

वर्तमान में है केंद्रीय ग्रहमंत्री की कमान 

शाह की मेहनत और दृणता को देखते हुए बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष से उन्हें इस साल केंद्रीय गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अपने बेहतरीन नेतृत्व के चलते उन्होंने पार्टी को यूपी की 80 में से 71 सीटों पर जीत दिलवाई थी। ये कहना बिलकुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2019 में बीजेपी की सत्ता वापसी का कहीं न कहीं श्रेय अमित शाह को भी जाता है।

क्या है सिख फॉर जस्टिस, जो दिल्ली हिंसा के बीच सुर्खियों में आया? क्यों भारत में लगा हुआ है इस पर बैन?

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क्या है सिख फॉर जस्टिस, जो दिल्ली हिंसा के बीच सुर्खियों में आया? क्यों भारत में लगा हुआ है इस पर बैन?

72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर जो कुछ भी देश की राजधानी दिल्ली में घटा, उसने दुनिया के सामने भारत का सिर शर्म से झुका दिया। 2 महीनों से जारी किसानों के आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। दिल्ली की जगह-जगह से जो तस्वीरें सामने आई, वो हैरान कर देने वाली थीं।

किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान जो हिंसा हुई, उस पर हर कोई अपनी अपनी राय देता हुआ नजर आ रहा है। कोई सरकार पर आरोप लगा रहा है, तो कोई इसका कसूरवार किसानों और किसान संगठनों के नेताओं को ठहरा रहा है। तो वहीं कुछ लोगों का ये भी मानना है कि किसान आंदोलन की आड़ में कुछ उपद्रवियों ने ये हंगामा किया। इस पूरे मामले की जांच तो फिलहाल जारी है।

पहले ही हिंसा की बात कही थी इस संगठन ने

लेकिन इसी बीच एक संगठन का नाम और सामने आ रहा है और वो है सिख फॉर जस्टिस का। भारत में ये संगठन प्रतिबंधित है। संगठन की ओर से पहले ही एक बयान जारी करके कहा गया था कि भारत सरकार को किसानों को ट्रैक्टर रैली निकालने देनी चाहिए, नहीं तो रिपब्लिक डे पर अगर दिल्ली में हिंसा हुई तो इसकी जिम्मेदार सरकार होगी। 

खालिस्तानी झंडा फहराने पर इनाम की भी घोषणा की थी

वहीं, बीते दिन हिंसा के दौरान लाल किले पर संगठन ने अपना एक झंडा भी फहराया, जिसको लेकर इस समय काफी बहसबाजी हो रही है। लाल किले पर इस तरह झंडा फहराना एक बड़ी बात हैं और ये जांच का भी विषय है कि क्या झंडा फहराने के पीछे कोई साजिश थी। वहीं इसी बीच ये बात भी निकलकर सामने आ रही है कि सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने पहले ही लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले को इनाम देने की बात कह दी थीं। हालांकि लाल किले पर प्रदर्शनकारियों ने जो झंडा फहराया वो खालिस्तान का नहीं था।

इन सबके बीच सिख फॉर जस्टिस संगठन लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। तो आइए आपको बता देते हैं कि आखिर ये संगठन क्या है और क्यों भारत में इसे बैन किया हुआ है…?

जानिए सिख फॉर जस्टिस संगठन के बारे में…

साल 2007 में सिख फॉर जस्टिस संगठन अमेरिका में बनाया गया था। संगठन का मुख्य तौर पर एजेंडा पंजाब में अलग से खालिस्तान बनाने का है। अमेरिका में वकील और पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ले चुका गुरपतवंत सिंह पन्नू संगठन का मुख्य चेहरा हैं। पन्नू लगातार सुर्खियों में बना रहता है। रिपब्लिक डे से पहले ही गुरपतवंत सिंह पन्नू ने हिंसा की धमकी तक दी थीं।

क्यों भारत में लगा हुआ है इस पर बैन?

अब आपको ये बता देते हैं कि आखिर भारत में ये संगठन प्रतिबंधित क्यों हैं? दरअसल, 2019 में गृह मंत्रालय ने देशविरोधी कैंपेन चलाने का आरोप लगाते हुए संगठन पर बैन लगा दिया। UAPA एक्ट के तहत ये संगठन बैन हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार SFJ संगठन पंजाब में लोगों को भड़काने की कोशिश करता है। साथ में इसने दुनिया की कई जगहों पर खालिस्तान की मांग को लेकर प्रदर्शन किए, जिससे भारत की छवि खराब हुई।

किसान आंदोलन के दौरान भी सिख फॉर जस्टिस संगठन लगातार चर्चाओं में बना हुआ है।कई बार ऐसे आरोप लग चुके हैं कि किसान आंदोलन से कई ऐसे संगठन भी जुड़ गए हैं, जिनको खालिस्तान का समर्थन हासिल है। केंद्र की सत्ताधानी सरकार भी कई बार इस तरह के आरोप लगा चुकी हैं, जिस दौरान सिख फॉर जस्टिस संगठन का भी नाम आया। वहीं इसके अलावा हाल ही में NIA ने पंजाब के कई किसान नेताओं और संगठनों को नोटिस भी भेजा था, जिन पर इस संगठन के साथ जुड़े होने और किसानों को भड़काने के आरोप लगे थे।

सरदार पटेल ने नवाब से ऐसे छीना था जूनागढ़, रियासतों के विलय में निभाई थी अहम भूमिका

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सरदार पटेल ने नवाब से ऐसे छीना था जूनागढ़, रियासतों के विलय में निभाई थी अहम भूमिका

31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल ने देश की सेवा में अहम योगदान दिया है। उनका जन्म गुजरात में हुआ था और आजादी के बाद वे देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे हैं। महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। प्रखर व्यक्तित्व और अदम्य साहस की बदौलत ही उन्होंने भारत को एक धागे में पिरोने का काम किया। उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 में ली थी। आजादी के बाद बंटवारे के समय में सरदार पटेल ने भारतीय रियासतों के विलय से स्वतंत्र भारत को नए रूप में गढ़ने में अहम भूमिका निभाई थी।

राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है जन्मदिवस 

भारत की बागडोर को एक सूत्र में संभालने वाले पटेल ने लंदन में बैरिस्टर की पढाई की थी। लेकिन वो शुरुआत से ही महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे जिसके बाद उनके मन भारत की आजादी में योगदान देने की एक लौ जली। जिसके बाद उन्होंने खुद को स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को समर्पित कर दिया। आजादी में योगदान देने के लिए साल 2014 से हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय पर भड़के थे पटेल 

जूनागढ़ के नवाब महावत खान की रियासत के ज्यादातर हिस्सों का हक़ हिन्दुओं का था। लेकिन वहां अल्लाबख्श को अपदस्थ करके जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारे से शाहनवाज भुट्टो को दीवान बनाया गया। इस दौरान जिन्ना की नज़र कश्मीर पर थी। वो नेहरू के साथ जूनागढ़ के बहाने कश्मीर की सौदेबाजी करना चाहते थे। जिसके बाद जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय का एलान किया। इस बात पर सरदार पटेल काफी भड़क गए।

उन्होंने आक्रोशित होकर जूनागढ़ में सैन्य बल भेज दिया। हैरानी की बात तो ये रही कि वहां की जनता ने भी नवाब का साथ नहीं दिया।  अपने खिलाफ बढ़ते आंदोलन को देख महावत कराची भाग गया। जिसके बाद आखिरकार नवंबर 1947 के पहले सप्ताह में शाहनवाज भुट्टो ने पाकिस्तान के बजाय हिंदुस्तान में जूनागढ़ के विलय की घोषणा कर दी। इस तरह सरदार पटेल की बदौलत 20 फरवरी, 1948 में जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।

पटेल ने चलाया था ऑपरेशन पोलो 

देश की सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद को माना जाता था। उसका एरिया इतना बड़ा था कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल को मिलाया जाए तब भी हैदराबाद के बराबर वो नहीं टिक सकते थे। हैदराबाद के निजाम अली खान आसिफ ने अपनी रियासत को न ही पाकिस्तान और न ही भारत में शामिल होने का फैसला किया। बता दें कि हैदराबाद की 85 प्रतिशत हिंदू आबादी दी लेकिन सेना के वरिष्ठ पदों पर वहां मुस्लिमों का राज था। 15 अगस्त 1947 में निजाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। और पाकिस्तान से हथियारों की खरीद फरोख्त में लग गए। हैदराबाद के निजाम के इस फैसले के बाद सरदार पटेल ने ऑपेरेशन पोलो के तहत सैन्य कार्रवाई का फैसला किया। और 13 सितंबर 1948 में हैदराबाद पर आक्रमण कर दिया। आख़िरकार 17 सितंबर को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए और इस तरह हैदराबाद भारत में समां गया।

गलवान घाटी में शहीद सैनिकों को भारत में मिला सम्मान, तो चिढ़ गया चीन, जानिए ड्रैगन की बौखलाहट की असल वजह…

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गलवान घाटी में शहीद सैनिकों को भारत में मिला सम्मान, तो चिढ़ गया चीन, जानिए ड्रैगन की बौखलाहट की असल वजह…

भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। पिछले साल अप्रैल-मई में दोनों देशों के बीच तनातनी शुरू हुई थी। भारत-चीन फिलहाल बातचीत के जरिए विवाद को सुलझाने की कोशिश तो कर रहे हैं। लेकिन ड्रैगन बार-बार बातचीत का ठोंग रचकर आंखों में धूल झोंकने का काम करता आ रहा है। बातचीत की टेबल पर विवाद सुलझाने की बात करने वाला चीन बार-बार उकसाने वाली कार्रवाई लगातार करता रहता है।

बीते साल जून के महीने में भारत चीन के हालात उस वक्त काफी बिगड़ गए थे, जब दोनों देश के सैनिकों में खूनी झड़प हो गईं। इस दौरान भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए। वहीं चीन ने तो आज तक अपने यहां पर नुकसान के बारे में दुनिया से छिपाकर रखा है। चीन ने अब तक ये नहीं बताया कि उसके कितने सैनिक इस झड़प में मारे गए। 

शहीद सैनिकों को वीरता पुरस्कार देने पर चिढ़ा चीन 

यही वजह है कि जब भारत ने गलवान घाटी में शहीद हुए अपने सैनिकों को सम्मान दे रहा है, तो उससे ड्रैगन को मिर्ची लग रही है। दरअसल, गणतंत्र दिवस के मौके पर गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिकों को वीरता पुरस्कार देने का ऐलान किया, तो इससे चीन को चिढ़ मच गई और इसे तनाव बढ़ाने वाला कदम बताने लगा। बता दें कि गणतंत्र दिवस से पहले गलवान घाटी में शहीद 20 सैनिकों को वीरता पुरस्कार देने का ऐलान हुआ। 

बताया उकसाने वाला कदम

चीनी सरकार के भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा कि नौवें दौर की बातचीत से विवाद सुलझाने के लिए सकारात्मकता देखने को मिली थीं। चीन लगातार चीजों को शांत करने के लिए गुडविल संदेश दे रहा है, लेकिन भारत के उकसाने वाले कदमों से दुनिया और हमारे लोगों को यही संदेश जाएगा कि भारत सीमा विवाद नहीं सुलझाना चाहता। वो सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं चाहता। 

चीनी एक्सपर्ट ने ग्लोबल टाइम्स से कहा कि कोरोना महामारी, आर्थिक मंदी और किसानों के आंदोलन की वजह से घिरा भारत, चीन विरोधी कदम उठाकर लोगों के ध्यान को भटकाना चाह रहा है। उन्होनें ये भी कहा कि सर्दी खत्म होने के बाद भी ये गतिरोध जारी रहेगा और चीन को अलर्ट रहने की जरूरत है। 

तो इसलिए चीन को लगी मिर्ची

ऐसा माना जा रहा है कि चीन ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि उसने अपने सैनिकों को वो सम्मान नहीं दिया, जो भारत के सैनिकों को मिल रहा है। जिसके चलते चीन को ये डर सताने लगा कि इसके चलते उसके सैनिक भी सम्मान और हक मांग सकते हैं। बीते साल गलवान घाटी में मारे गए अपने सैनिकों का आंकड़ा चीन ने नहीं बताया। उनको चुपचाप ही दफना दिया गया था। 

जानिए दिल्ली के जामा मस्जिद का क्या है असली नाम और पाकिस्तान के बादशाही मस्जिद से कैसे है इसका नाता!

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जानिए दिल्ली के जामा मस्जिद का क्या है असली नाम और पाकिस्तान के बादशाही मस्जिद से कैसे है इसका नाता!

देश के सबसे बड़े मस्जिदों में से एक और मशहूर राजधानी दिल्ली का जामा मस्जिद चर्चाओं का विशेष बना रहता है, हजारों की गिनती में यहां लोग रोजाना आते हैं. वहीं, शुक्रवार यानी जुमने के दिन तो यहां का नजारा अद्भुत होता है क्योंकि इस दिन बढ़ी संख्या में लोग नमाज अदा करने आते हैं. इन सबके बारे में तो शायद आपको बाखूबी जानकारी होगी, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जामा मस्जिद का नाम जो दुनिया भर में मश्हूर है वो इसका असली नाम नहीं है.

दरअसल, इसका असली नाम कुछ और है. तो आइए आपको इसके बारे में बताने के साथ ही ये भी बताते हैं कि जामा मस्जिद का इतिहास क्या है, इसे कब और किसने बनवाया था…

कब और किसने बनवाया

साल 1650 में दिल्ली के जामा मस्जिद के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था, जो 6 साल बाद यानी 1656 में बनकर तैयार हुआ था. इस मस्जिद को मुगल सम्राट शाह जहां ने बनवाया था. वहीं, इसका उद्घाटन वर्तमान के उज्बेकिस्तान के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी ने किया था.

कितनी बड़ी मस्जिद और कितना हुआ था खर्चा

इतिहासकार के अनुसार जामा मस्जिद को करीब 5 हजार से ज्यादा मजदूरों ने मिलकर बनाया था. उस दौरान इस मस्जिद को बनवाने में तकरीबन दस लाख रुपये का खर्चा आया था. इस मस्जिद में प्रवेश के लिए 3 बड़े-बड़े दरवाजे हैं. इसमें 40 मीटर यानि कि लगभग 131.2 फीट ऊचाई के 2 मीनारें हैं. यहां के बरामदे में लगभग 25,000 लोग एक साथ आ सकते हैं.

पाकिस्तान के बादशाही मस्जिद से ये है जामा मस्जिद का नाता

दिल्ली के जामा मस्जिद से पाकिस्तान के लाहौर में स्थिति बादशाही मस्जिद मिलता जुलता है. दरअसल, शाह जहां के बेटे ने औरंगजेब ने बादशाही मस्जिद के वास्तुशिल्प का काम बनवाया था. वहीं, सदाउल्लाह खान की देखरेख में दिल्ली के जामा मस्जिद का निर्माण कार्य किया गया था, जोकि उस दौरान शाह जहां शासन में वजीर यानी की प्रधानमंत्री थे.

जब अंग्रेजों ने किया इस मस्जिद पर कब्जा

साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जीत की प्राप्ति के बाद अंग्रेजो द्वारा जामा मस्जिद पर कब्जा कर अपने सैनिकों का वहां पर पहरा लगा दिया था. इतिहासकार के अनुसार शहर को सजाने के लिए अंग्रेज जमा मस्जिद को तोड़ना चाहते थे, लेकिन देशवासियों के विरोध के आगे अंग्रेजों को हार मानकर झुकना पड़ा था.

आपको बता दें कि हैदराबाद के आखिरी निजाम असफ जाह-7 से साल 1948 में मस्जिद के एक चौथाई भाग की मरम्मत हेतु 75,000 रुपये मांगे गए थे. हालांकि निजाम असफ ने 3 लाख रुपये आवंटित करते हुए कहा कि मस्जिद का अन्य भाग भी पुराना नहीं दिखना चाहिए.

ये है जामा मस्जिद का असली नाम

दुनियाभर में जामा मस्जिद के नाम से मशहूर इस मस्जिद का वास्तविक नाम मस्जिद-ए-जहां नुमा(Masjid e Jahan Numa) है. इसका अर्थ है-(मस्जिद जो पूरी दुनिया का नजरिया दे).

जामा मस्जिद में हुए धमाके

जुमे की नमाज के ठीक बाद एक के बाद एक 2 धमाके 14 अप्रैल 2006 में हुए थे. इस दौरान 9 लोग घायल हुए थे. हालांकि ये धमाके कैसे हुए इसके लेकर कुछ पता नहीं चल पाया था. वहीं, नवंबर 2011 में दिल्ली पुलिस ने भारतीय मुजाहिद्दीन से ताल्लुक रखने वाले 6 लोगों की गिरफ्तारी की थी. बताया जाता है कि इनका धमाके में हाथ था.

15 सितंबर, 2010 में जामा मस्जिद के गेट नंबर तीन पर खड़ी एक बस पर एक मोटरसाइकिल पर आए बंदूकधारियों ने फायरिंग शुरू कर दी थी. इस दौरान दो ताइवानी पर्यटक घायल भी हुए थे.