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अपहरणकर्ताओं से बदला लेने में लग गए 17 साल, बचपन से ही सीने में जल रही थी बदले की आग

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revenge from the kidnappers
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आज हम आपको एक ऐसी रियल लाइफ स्टोरी बताने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आपको लगेगा कि आप कोई बॉलीवुड स्टोरी सुन रहे हैं। कहानी ये है कि एक 7 साल के बच्चे का अपहरण हो जाता है और उसकी आंखों के सामने उसके पिता को गोली मार दी जाती है। इसके बाद जब ये बच्चा अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकलता है तो जिस तरह से बदला लेता है वो वाकई हैरान कर देने वाला है। दरअसल, जब ये बच्चा बड़ा हुआ तो वकील बन गया। इसके बाद उसने उन सभी आरोपियों को सजा दिलाई जिन्होंने बचपन में उसका अपहरण किया था। आगरा की ये कहानी फिल्मी लगती है, लेकिन ये सच है।

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ये है पूरा मामला

कारोबारी के सात वर्षीय भतीजे हर्ष गर्ग का 17 साल पहले अपहरण कर फिरौती के लिए बंधक बना लिया गया था। इसके अलावा, उसके वकील पिता को विरोध करने पर गाली-गलौज का सामना करना पड़ा। इस मामले में आरोपी गुड्डन काछी, राजेश शर्मा, राजकुमार, फतेह सिंह उर्फ ​​छिगा, अमर सिंह, बलवीर, रामप्रकाश और भीम उर्फ ​​भिकारी को कोर्ट ने दोषी करार दिया है। अपर जिला जज नीरज कुमार बख्शी ने दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस दौरान कोर्ट को चारों आरोपियों को दोषी ठहराने लायक कोई सबूत नहीं मिला। अभियोजन पक्ष की ओर से एडीजीसी नाहर सिंह तोमर ने घटना के संबंध में महत्वपूर्ण साक्ष्य पेश किए और तर्क दिया कि यह घटना राजस्थानी गिरोह के सहयोग से अंजाम दी गई थी।

बच्चे को किया अगवा

इस मुकदमे में शिकायतकर्ता व्यवसायी अविनाश गर्ग हैं। 10 फरवरी, 2007 को वे अपनी दुकान पर बैठे थे। रात के करीब सात बजे राजस्थानी नंबर की एक जीप उनके पास आकर रुकी। जीप से तीन पुलिस अधिकारी उतरे। हर्ष गर्ग, उनका सात वर्षीय भतीजा, दुकान में वादी के पास खड़ा था, तभी अपहरणकर्ता ने उसे उठा लिया और घसीटकर ले जाने लगे। जब वादी रवि कुमार गर्ग ने विरोध किया तो अपहरणकर्ता ने उसे गोली मार दी। उन्होंने आरोप लगाया कि जब उन्होंने उसका अपहरण किया तो उन्होंने उसे धमकी दी कि अगर उन्हें वांछित राशि नहीं मिली तो वे उससे हर्जाना वसूलेंगे।

revenge from the kidnappers
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55 लाख की मांगी गई फिरौती

आरोपियों ने 55 लाख की फिरौती मांगी थी। हालांकि, अपहरण के 26 दिन बाद पुलिस ने अपराधियों को पकड़ लिया और पीड़िता को मध्य प्रदेश के शिवपुरी में बरामद कर लिया। मार्च और अप्रैल 2007 में पूछताछ के दौरान आरोपी राजेश शर्मा, राजकुमार, रामप्रकाश, फतेह सिंह, बलवीर उर्फ ​​राजवीर, भीकम, अमर सिंह निवासी बसेड़ी धौलपुर, गुड्डू काछी निवासी खेरागढ़ आदि को पुलिस ने हिरासत में लिया था। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ सबूत मिलने के बाद आरोप पत्र कोर्ट में पेश किया। पुलिस का दावा है कि गुड्डू काछी का लंबा आपराधिक इतिहास है। उसके खिलाफ कई मामले लंबित हैं।

पंद्रह की गवाही, अपहृत की रही अहम

न्यायधीश नाहर सिंह तोमर ने अभियोजन पक्ष की ओर से पंद्रह गवाहों को बुलाया। इसमें सेवानिवृत्त भरत सिंह, राम कैलाश, देवेंद्र सिंह कुशवाह, गिरेंद्रपाल सिंह, पुलिसकर्मी रामप्रसाद, भाई रवि गर्ग, भतीजे हर्ष गर्ग, और डॉ. अशोक कुमार यादव और डॉ. केएम तिवारी ने गवाही दी। यह महत्वपूर्ण था क्योंकि वादी के भाई और भतीजे दोनों ने गवाही दी। एक वकील के रूप में, हर्ष ने खुद अपना मामला पेश किया।

वकालत की पढ़ाई की

24 वर्षीय हर्ष गर्ग ने बताया कि वे अपनी वकालत के अलावा न्यायिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपने पक्ष में एक दमदार तर्क दिया है। वे हिम्मत से काम लेते रहे और तब तक नहीं रुके जब तक कि आरोपियों को न्याय के कठघरे में नहीं खड़ा कर दिया गया। उन्होंने बताया कि जब वे सात साल के थे, तब उनका अपहरण कर लिया गया था। उनके पिता को गोली मार दी गई थी। वे आज तक उस अनुभव को भूल नहीं पाए हैं। उनके पिता रवि गर्ग वर्तमान में मनरेगा लोकपाल हैं।

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मिल गया पाताल लोक का रास्ता! यूट्यूबर ने अंडरग्राउंड नजारे को अपने कैमरे में किया कैद, नजारा देख हैरान रह जाएंगे आप

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The youtuber found the way horrifying Hades
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हमारे पवित्र ग्रंथों में पाताल लोक के बारे में कई तरह की कल्पनाएं हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने पाताल लोक को देखा है? जाहिर है, पाताल लोक जीवित प्राणियों के लिए दुर्गम है। क्योंकि यहां राक्षस रहते हैं और पाताल लोक धरती की सतह से कई फीट नीचे है। इसके विपरीत, देवता आकाश में निवास करते हैं और मनुष्य पृथ्वी पर रहते हैं। हालांकि, अगर आप पाताल लोक के बारे में जानने के लिए बेताब हैं, तो एक YouTuber ने आपकी इच्छा पूरी कर दी है। दरअसल पाताल लोक से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहा है, जिसे देखने के बाद ऐसा लगता है मानो आप सचमुच पाताल लोक की भूमिगत दुनिया में आ गए हों।

कुछ युट्यूबर्स जमीन में एक छोटे से छेद के माध्यम से जमीन में प्रवेश करते हैं, हालांकि उनमें से कई जल्दी ही पछताने लगते हैं। बाहर निकलना भी चुनौतीपूर्ण है। अंदर एक भयानक दृश्य भी दिखाई देता है। आइये आपको बताते हैं कि इस वीडियो में ऐसा क्या है।

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इंस्टाग्राम पर वायरल वीडियो

इस वायरल वीडियो को इंस्टाग्राम पर @60saniyedebilimm नाम के अकाउंट से शेयर किया गया है।  इस वीडियो का कैप्शन है, वैज्ञानिकों को संकरी गुफाओं की खोज में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। संकरी जगहों में प्रवेश करना काफी मुश्किल होता है। यहां घुप अंधेरा होता है और ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेना भी मुश्किल होता है।

वीडियो में दिखा खौफनाक नजारा

आप खुद इस वीडियो में देख सकते हैं कि एक लड़की पहाड़ पर बने छोटे से छेद में फंसी हुई है। वो बाहर नहीं निकल पा रही है और न ही उसका हेलमेट उसे जमीन के अंदर जाने की इजाजत दे रहा है। ऐसे में वो अपना हेलमेट उतार देती है। इसके बाद बड़ी मुश्किल से वो अंदर जाती है। जमीन के नीचे ‘पाताल लोक’ जैसी इस गुफा में एक और आदमी नजर आता है, जिसके गले तक पानी भरा हुआ है। अचानक पानी का स्तर बढ़ जाता है, तो उसका चेहरा भी डूब जाता है। ये बेहद भयानक नजारा था।

 

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गुफा के अंदर का नजारा है बेहद डरावना

इसके बाद वह किसी तरह आगे बढ़ता है और उसके सामने एक छोटा सा रास्ता दिखाई देता है। वह अंदर रेंगता है, हालांकि ऐसा लगता है कि अंदर जाना बेहद असंभव है। इस बीच एक लड़की कैमरा लेकर गुफा में घुसती है। उसका पूरा शरीर रगड़ खा रहा है। फिर रेंगने वाला गुफा के दूसरी तरफ अपना रास्ता बनाने में कामयाब हो जाता है, जहां एक सहायक कर्मचारी उसका इंतजार कर रहा होता है। हेलमेट पहनी महिला भी उसके पीछे-पीछे बाहर निकलती है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। आप सुनकर चौंक जाएंगे कि इस वीडियो को महज दो दिन में 4 करोड़ 95 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है। साथ ही लाखों लोगों ने लाइक किया है

वीडियो के कमेंट में लोगों ने जताई चिंता

वीडियो पर कमेंट करते हुए डेनियल रूसो नाम के शख्स ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि इन लोगों को अपनी जिंदगी प्यारी नहीं है, ऐसा क्यों? अमेरिका में एक घर है जो उल्टा पड़ा है। इसमें एक शख्स फंस गया था और उसे फायर ब्रिगेड भी वहां से नहीं निकाल पाई। ऐसे में उसकी मौत हो गई। ऐसे में इतना खतरनाक काम करने की क्या जरूरत थी? मेकडेम नाम के यूजर ने लिखा है कि इसके लिए वाकई एक खास हिम्मत की जरूरत होती है, जो मुझमें नहीं है।

यूजर्स को सताई चिंता

लिंडसे नाम की यूजर ने कमेंट किया है कि अगर ये लोग अंदर ही फंसे रहे तो क्या होगा? वहीं एक अन्य यूजर ने कमेंट किया है कि मेरे जैसे क्लॉस्ट्रोफोबिक व्यक्ति को ये रील क्यों मिली? आपको बता दें कि क्लॉस्ट्रोफोबिया एक तरह का डर, एक तरह का एंग्जाइटी डिसऑर्डर है, जो किसी भी व्यक्ति को हो सकता है।

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पाकिस्तान ने भारत के भगोड़े मुस्लिम उपदेशक जाकिर नाइक को क्यों बुलाया? जानें प्लान

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Muslim preacher Zakir Naik
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इस्लाम के प्रचार की आड़ में बातचीत के जरिए दुश्मनी भड़काने वाला भगोड़ा जाकिर नाइक अपने विवादित बयानों की वजह से आए दिन सुर्खियों में रहता है। इस समय उसके बारे में बेहद अप्रत्याशित खबर आ रही है। खबर है कि वह पाकिस्तान जा रहा है। इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक को पाकिस्तान ने आमंत्रित किया है। भारत में जाकिर नाइक पर मनी लॉन्ड्रिंग और भड़काऊ बयान देने के लिए गैरकानूनी गतिविधि कार्यवाही अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए थे। पाकिस्तान से मिले आमंत्रण की जानकारी जाकिर नाइक ने दी है। जाकिर नाइक का पाकिस्तान दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब कुछ दिन पहले ही उसने भारत में वक्फ बोर्ड के मुद्दे पर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की है। जाकिर नाइक के एक्स हैंडल से किए गए पोस्ट के मुताबिक, वह कराची, लाहौर और इस्लामाबाद में भाषण देगा। वह 5-6 अक्टूबर को कराची में, 12-13 अक्टूबर को लाहौर में और 19-20 अक्टूबर को इस्लामाबाद में जनता को संबोधित करेगा।

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बेटा भी रहेगा साथ

जाकिर की यात्रा 5 अक्टूबर को कराची से शुरू होगी और 20 अक्टूबर को इस्लामाबाद में समाप्त होगी। जाकिर नाइक के बेटे फारिक नाइक उनके साथ पाकिस्तान जाएंगे और तीनों जगहों पर भाषण देंगे। नाइक के मुताबिक कराची में कार्यक्रम बाग-ए-कायद में होगा, जो मोहम्मद अली जिन्ना की स्मारक के सामने स्थित है। भगोड़ा फिलहाल जाकिर नाइक मलेशिया में रहता है। जाकिर नाइक ने इस साल सितंबर में भारत में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर विवादित भाषण दिया था। नाइक ने अपने पोस्ट किए गए एक वीडियो में भारतीय मुसलमानों से वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करने का आग्रह किया था। जाकिर नाइक ने घोषणा की थी कि यह बदलाव इस्लाम विरोधी है और मोदी प्रशासन इसका इस्तेमाल अपने हितों के लिए करना चाहता है।

मोदी सरकार को बताया था मुस्लिम विरोधी

जाकिर नाइक ने दावा किया कि मोदी सरकार इस क्षेत्र पर कब्ज़ा करना चाहती है और इसे इस्लाम विरोधी और मुस्लिम विरोधी बताया। नाइक ने भारतीय मुसलमानों को लक्षित एक वीडियो संदेश में मुसलमानों से इस कानून को अस्वीकार करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि अगर सिर्फ़ 50 लाख मुसलमान इसका विरोध करें तो इस उपाय को रोका जा सकता है।

नाईक ने क्यों नहीं ली पाकिस्तान में शरण?

भारत में वांछित ज़ाकिर नाइक फरार है और फिलहाल मलेशिया में रह रहा है। भारत सरकार ने मलेशिया से नाइक के प्रत्यर्पण की मांग की है, लेकिन वहां की सरकार उसे संरक्षण दे रही है। हाल ही में ज़ाकिर नाइक ने एक पाकिस्तानी यूट्यूबर को बताया कि उसने पाकिस्तान के बजाय मलेशिया जाने का फैसला क्यों किया।

Muslim preacher Zakir Naik
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नाइक ने कहा, ‘मेरे लिए पाकिस्तान जाना आसान होता। मैं पहले भी पाकिस्तान जा चुका हूं और वहां मेरे कई समर्थक हैं। अगर मैं पाकिस्तान जाता तो भारत मुझे आईएसआई एजेंट करार दे देता और मेरे संस्थान को बंद करने के लिए झूठा प्रचार करता, जिससे इस्लाम की शिक्षाओं को फैलाने के मेरे प्रयासों में बाधा आती।

जाकिर नाइक पर क्या कहता है मलेशिया?

महाथिर मोहम्मद के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार ने इस्लामी उपदेशक को मलेशिया में स्थायी निवास का अधिकार दिया था। मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कहा है कि वे जाकिर नाइक के मामले में भारत की दलील पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि सबसे पहले, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले इस मामले को उठाया था, न कि भारत की तरफ से। लेकिन समस्या यह है कि मैं किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रहा हूँ; बल्कि मैं उग्रवाद की भावना और मजबूत तर्कों और समर्थन करने वाले आंकड़ों की बात कर रहा हूँ। जो किसी व्यक्ति, संगठन, गुट या पार्टियों द्वारा किए गए अत्याचारों की ओर इशारा करके उनके द्वारा किए गए अपराधों की जघन्यता को दर्शाता है।

उन्होंने कहा, ‘हम आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देंगे…इस पर हमारा रुख स्पष्ट है और हम आतंकवाद के खिलाफ इनमें से कई मुद्दों पर भारत के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस एक मामले की वजह से हमें अपने आगे के सहयोग और अपने द्विपक्षीय संबंधों में गतिरोध पैदा करना चाहिए।’

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गुजरात: 500 रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया पुलिसकर्मी, 10 साल बाद कोर्ट ने सुनाया 5 साल कैद का फैसला

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Gujarati policeman imprisonment
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भारत में रिश्वतखोरी हद से ज्यादा बढ़ गई है। इससे निपटने के लिए चाहे कितने भी प्रयास कर लिए जाएं, लेकिन कहीं न कहीं सभी जानते हैं कि अगर रिश्वत नहीं होगी तो सरकारी काम नहीं होगा। कई पुलिस कर्मी इसका फायदा उठाते हैं और लोगों से रिश्वत लेते हैं और उन्हें अपना काम जल्दी करवाने की सुविधा ऑफर करते हैं। ऐसा ही एक मामला गुजरात में भी हुआ था। जो करीब 10 साल पुराना है। दरअसल, मोरबी जिले के मालिया थाने का एक कांस्टेबल एक महिला से पासपोर्ट वेरिफिकेशन के लिए 500 रुपये की रिश्वत मांगता है। और फिर इस पुलिसकर्मी को एसीबी द्वारा 500 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ लिया जाता है। इसके बाद उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाता है। मामला 2014 का था लेकिन इस मामले में कोर्ट का फैसला 2024 में आया। फैसले में कोर्ट ने गुजरात के मोरबी जिले के रिश्वतखोरी मामले में आरोपी पुलिसकर्मी को दोषी पाया और उसे 5 साल कैद की सजा सुनाई।

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पासपोर्ट वेरिफिकेशन से जुड़ा था मामला

जानकारी के मुताबिक, शिकायतकर्ता मनोज की भाभी पूजा को अपने पति से मिलने के लिए 2014 में नैरोबी जाना था। जिसके लिए पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया में दस्तावेजीकरण चाहिए थे। पुलिस वेरिफिकेशन इस प्रक्रिया का हिस्सा है। 17 मार्च 2014 को पूजा को इस बारे में मालिया पुलिस स्टेशन से कॉल आया। जब पूजा पुलिस स्टेशन पहुंची, तो कांस्टेबल अमरतभाई ने उससे एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने का आदेश दिया और फिर उससे 500 रुपये का भुगतान करने की मांग की। पूजा ने सवाल किया कि उसे अब पैसे देने की क्या जरूरत है, जबकि उसने पहले ही सभी प्रक्रियाओं और खर्चों का भुगतान कर दिया था।

Gujarati policeman who took bribe gets five years imprisonment
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 पुलिसकर्मी ने मांगी रिश्वत

इसके बाद पुलिसकर्मी अमरत मकवाना ने दूसरे दिन फोन करके बताया कि जब तक वे 500 रुपए नहीं देंगे, तब तक उन्हें पासपोर्ट नहीं मिल पाएगा। हालांकि, पूजा ने मांगी गई रिश्वत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद मनोज ने एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत दर्ज कराई और जाल बिछाकर एसीबी दस्ते ने रिश्वत ले रहे पुलिसकर्मी को हिरासत में ले लिया।

कोर्ट ने सुनाई 5 साल की सजा

इस मामले में प्रधान सत्र न्यायाधीश और विशेष न्यायाधीश (एसीबी) दोनों ने दलीलें सुनीं। इस दौरान सरकारी वकील विजय जैनीन ने अदालत में सात मौखिक और पैंतीस लिखित साक्ष्य पेश किए। इसके आधार पर अदालत ने मालिया थाने के कांस्टेबल अमर्त मकवाना को दोषी पाया। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोपी अमरत मकवाना को अदालत ने दोषी पाया और पांच साल की कठोर सजा के साथ एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

रिश्वतखोरी में सबसे ऊपर भारत

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रिश्वतखोरी के मामले में भारत सबसे आगे है। राजनीति और नौकरशाही में सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार है। इसके अलावा पुलिस, सेना, न्यायपालिका और मीडिया में भी काफ़ी भ्रष्टाचार है। यहाँ रिश्वतखोरी की दर 39% है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के एक सर्वे के मुताबिक, रिश्वत देने वाले लगभग आधे लोगों से रिश्वत मांगी गई थी। वहीं, व्यक्तिगत संबंधों का इस्तेमाल करने वाले 32% लोगों ने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनका काम नहीं होता। चौंकाने वाली बात यह है कि रिश्वत देने वाले ज़्यादातर लोग अमीर लोग नहीं होते। सर्वेक्षण में 16 देशों के 20 हजार से अधिक लोगों ने स्वीकार किया कि उन्हें सार्वजनिक सेवाओं के लिए साल में कम से कम एक बार रिश्वत देनी पड़ती है।

Gujarati policeman who took bribe gets five years imprisonment
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भ्रष्टाचार में ये भी कम नहीं

सर्वेक्षण के अनुसार, सरकारी कर्मियों में पुलिस अधिकारी सबसे भ्रष्ट थे। 85 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना ​​था कि पुलिस भ्रष्ट होती है। साथ ही, 71 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि सभी या अधिकांश धार्मिक नेता भ्रष्ट थे, जबकि 14 प्रतिशत ने संकेत दिया कि कोई भी धार्मिक नेता भ्रष्ट नहीं था और 15 प्रतिशत को पता ही नहीं था कि वे भ्रष्ट थे। पुलिस के बाद, व्यवसायी (79%), सरकारी अधिकारी (84%), स्थानीय पार्षद (78%) और संसद सदस्य (76%) पाँच सबसे भ्रष्ट श्रेणियाँ थीं, जबकि कर अधिकारी (74%) छठे स्थान पर थे।

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तमिलनाडु में अचानक क्यों बढ़ गई पगड़ीधारी सरदारों की संख्या, जानिए दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर क्यों अपनाया सिख धर्म

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Tamil Nadu turbaned chieftains
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लोकसभा चुनाव 2024 में तमिलनाडु में काफी बदलाव देखने को मिले। बदलाव की वजह बने हिंदू धर्म छोड़कर सिख बने पगड़ीधारी सिख। धर्म बदलने के पीछे की वजह थी जातिगत उत्पीड़न, जी हां, हिंदू से सिख बने ये लोग जाति से दलित थे। इन लोगों ने न सिर्फ अपना धर्म बदला बल्कि राजनीतिक पार्टी भी बना ली। पार्टी का नाम रखह बहुजन द्रविड़ पार्टी। सिख धर्म अपनाने वाले ये सभी लोग लोकसभा चुनाव के मैदान में भी उतर आए हैं। सिर पर पगड़ी और कमर पर कृपाण बांधे इन लोगों ने चुनावी पर्चे बांटे। इस दौरान तमिलनाडु से एक नाम चर्चा में आया, वो थे सिख जीवन सिंह मल्ला। उनके सुर्खियों में रहने की वजह पंजाब की होशियारपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना था। तमिलनाडु के रहने वाले मल्ला पहले सिख नहीं थे। उन्होंने पिछले साल ही धर्म परिवर्तन किया था। पिछले साल जनवरी में उन्होंने सिख धर्म अपनाया था। पहले वो अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय से ताल्लुक रखते थे। मल्ला बहुजन द्रविड़ पार्टी के मुखिया भी हैं। 51 वर्षीय मल्ला सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं। वह तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के कडोडीपन्नई गांव के रहने वाले हैं।

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क्यों अपनाया सिख धर्म?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन सिख-हिंदू धर्मांतरित लोगों का दावा है कि दलित होने के कारण उन्हें कई अत्याचार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, यही वजह है कि उन्होंने दलितों के आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए एक क्षेत्रीय पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी का नाम बहुजन द्रविड़ पार्टी है। पार्टी ने लोकसभा के लिए सात उम्मीदवार उतारे थे। उम्मीदवारों में एक महिला और छह पुरुष शामिल थे। धर्मांतरण के अलावा, उन्होंने अपना नाम बदल लिया है, सड़कों पर चुनाव प्रचार किए और राहगीरों को पार्टी के पर्चे बांटे। इन व्यक्तियों का दावा है कि वे सामाजिक अन्याय और किसानों के अधिकारों के लिए सिखों की लड़ाई से प्रेरित हैं।

Tamil Nadu turbaned chieftains
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क्या है पार्टी का मकसद?

पार्टी के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष जीवन सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी पेरियार और कांशीराम की विचारधारा को पूरे देश में फैलाएगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, झारखंड और पूरे भारत में दलित और पिछड़े लोग अपने आत्मसम्मान के लिए अपनी सांस्कृतिक पहचान बदल रहे हैं और उनकी पार्टी इन लोगों की आजादी के लिए काम कर रही है।

मल्ला ने क्यों चुना होशियारपुर

वहीं, जब मल्ला से होशियारपुर को चुनने के पीछे की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम 1996 में यहां से चुनाव लड़े और सांसद बने। वे हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं। पेरियार और कांशीराम हमारी पार्टी के प्रतीक हैं। बीडीपी के प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह 1981 में कांशीराम के आंदोलन से जुड़े और 2003 तक बीएसपी से जुड़े रहे। पंजाब में मल्ला के राजनीतिक सफर में वे उनके निरंतर साथी रहे हैं।

know Why turbaned chieftains suddenly increase Tamil Nadu
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सालों से भेदभाव का शिकार दलित

बहुजन द्रविड़ पार्टी के उम्मीदवार पलानी सिंह ने कहना है कि तमिलनाडु में सामाजिक न्याय और स्वाभिमान पर चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा, “तमिलनाडु में दलितों ने अब तक बहुत भेदभाव और अत्याचार सहा है। जातिगत अत्याचारों की आड़ में कई हत्याएं की गई हैं, खासकर दक्षिण तमिलनाडु में। पीने के पानी के टैंकों में मलमूत्र मिलाया जाता था। दलितों पर होने वाले अत्याचारों से मुझे सिख बनने की प्रेरणा मिली। इसके अलावा, जब मैं किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली गया तो मेरी आंखें खुल गईं”

किसान आंदोलन में हुए थे शामिल

वहीं मल्ला की भी सें कहानी है। मल्ला हमेशा से सिख धर्म के सिद्धांतों में रुचि रखते रहे हैं। 2021 में, उन्होंने अपने राज्य के अन्य लोगों के साथ सिंघू सीमा की यात्रा की, ताकि विरोध कर रहे किसानों के साथ एकजुटता दिखाई जा सके। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए मार्च सिखों की दृढ़ता की परीक्षा थी। उन्होंने किसानों में अद्भुत दृढ़ संकल्प देखा, जो उनके विश्वास से मजबूत था। उन्होंने समझा कि उन्हें इसका हिस्सा बनने की जरूरत है।

7 तमिल सिखों को चुनावी मैदान में उतारा

तीन साल के अंतराल के बाद, जीवन कुमार ने आधिकारिक तौर पर अपना नाम बदलकर जीवन सिंह मल्ला रख लिया है। अभी, वे गुरबानी का पाठ करते हैं। उन्होंने अपने कोरमपल्लम घर को प्रार्थना और वार्ता के लिए तमिल सिखों के लिए एक सभा स्थल में बदल दिया है।

सिख धर्म अपनाकर बदला नाम

वहीं, पार्टी के प्रत्याशियों का दावा है कि उन्होंने सिख धर्म स्वीकार कर लिया है, लेकिन सिख धर्म के अनुसार नाम बदलने पर उन्हें कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, पलानी सिंह के मामले में, उन्हें अपने पिछले नाम पलानी सामी के नाम से चुनाव लड़ना पड़ा, क्योंकि आवश्यक दस्तावेजों के अभाव में वह नए नाम से चुनाव नहीं लड़ सके।

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पाकिस्तान में आज भी मौजूद हैं भगत सिंह से जुड़ी निशानियां, जानें किस हाल में सहेज कर रखी गई हैं उनकी यादें

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Bhagat Singh
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23 मार्च 1931 की तारीख भारत के इतिहास में काले अक्षरों में लिखी गई है। यह वो दिन है जब देश के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटकाया गया था। जिस जगह पर उन्हें फांसी दी गई थी, वो जगह आज भी मौजूद है, लेकिन भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में है। पाकिस्तान में इस जगह के सामने एक मस्जिद बनाई गई है। आइए आपको बताते हैं कि आज पाकिस्तान में मौजूद भगत सिंह की आखिरी निशानियां किस हालत में हैं।

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भगत सिंह और पाकिस्तान का रिश्ता

पाकिस्तान से भगत सिंह का रिश्ता काफी मजबूत है। खटकर कलां का पंजाबी गांव। इसे भारत में भगत सिंह का पैतृक गांव माना जाता है। लेकिन असल में उनका जन्म यहां नहीं हुआ था। भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। बंगा गांव लायलपुर शहर में है। यह शहर अब पाकिस्तान के नक्शे पर नहीं दिखेगा। इस शहर का नाम 1977 में सऊदी अरब के राजा फैसल के नाम पर बदलकर फैसलाबाद कर दिया गया। वहीं, खटकर कलां को पैतृक गांव का दर्जा एक और वजह से मिला है। भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह का जन्म खटकर कलां में हुआ था। भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह 1900 में अपने परिवार के साथ खटकर कलां से लायलपुर चले गए थे। भगत सिंह के माता-पिता उनकी फांसी के बाद वापस खटकर कलां चले गए। और आजादी के बाद उनके परिवार के बाकी सदस्य भी यहीं आकर बस गए।

जानें क्यों दी गई थी भगत सिंह को फांसी

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई? दरअसल देश की आज़ादी के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ़ मोर्चा खोला था। 1928 में लाहौर में अंग्रेज़ जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा मामले की सुनवाई के लिए स्थापित विशेष न्यायाधिकरण ने तीनों को मौत की सज़ा सुनाई थी। 23 मार्च 1931 को तीनों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इस मामले में सुखदेव को भी दोषी पाया गया था।

जानें कहां दी गई थी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी

23 मार्च को ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और “नाटकीय हिंसा” के लिए मौत की सज़ा दी थी। 23 मार्च को, तीनों को पाकिस्तान की लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी थी। आज भी, राष्ट्र उनके योगदान का सम्मान करता है, और आने वाली पीढ़ियों को किताबों, कहानियों, नाटकों, फिल्मों और अन्य मीडिया के माध्यम से उनके बलिदानों के बारे में बताया जाता है।

एक दिन पहले ही दे दी गई थी भगत सिंह को फांसी

सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के मामले में भगत सिंह को फांसी देने की तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस खौफ के तौर पर भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। फांसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु मस्ती में गाना गा रहे थे।

क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द

फांसी के समय मौजूद चुनिंदा अधिकारियों में यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी शामिल थे। जीतेंद्र सान्याल की किताब भगत सिंह में लिखा है कि फांसी से कुछ क्षण पहले भगत सिंह ने मजिस्ट्रेट को संबोधित करते हुए कहा था, “मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कैसे फांसी पर चढ़ते हैं।”

Bhagat Singh
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भगत सिंह की आखिरी निशानियां

लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में भगत सिंह के आखिरी निशानों के बारे में विस्तार से बताया है। कुलदीप नैयर ने शहीद भगत सिंह पर एक किताब लिखी है जिसका नाम है “शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग (The Martyr Bhagat Singh Experiments in revolution)। इस किताब की प्रस्तावना में उन्होंने स्पष्ट किया है कि जिस जगह पर भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उसकी अब क्या स्थिति है।

लेखक के अनुसार, “वह स्थान जहाँ भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई थी, अब खंडहर बन चुका है। उनकी कोठरियों की दीवारें ढहकर खेत में तब्दील हो चुकी हैं। क्योंकि वहाँ का प्रशासन नहीं चाहता कि भगत सिंह की कोई निशानी वहाँ अच्छी हालत में बची रहे।”

कोठरियों के सामने खड़ी कर दी मस्जिद

कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग में विस्तार से बताया है कि जिस स्थान पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी, वह अब बहुत बुरी स्थिति में है। इसके अलावा, जिन कोठरियों में उन्हें रखा गया था, उनकी दीवारें गिर गई हैं और वहाँ एक घर बन गया है। अगर कुलदीप नैयर की किताब पर यकीन किया जाए, तो भगत सिंह और उनके साथियों को जिन कोठरियों में रखा गया था, उनके सामने शादमा कॉलोनी नाम की एक कॉलोनी बनाई गई है। हालाँकि पुलिस मुख्यालय अभी भी वहाँ है, लेकिन वहाँ भगत सिंह के बारे में कोई नहीं जानता।

कुलदीप नैयर कहते हैं, “जब हम यहां पहुंचे तो इस जगह पर कुछ पुलिस मुख्यालय बचे थे। लेकिन जेल को तोड़कर कॉलोनी बनाई जा रही थी। मैंने शादमा के कुछ लोगों से पूछा कि क्या वे भगत सिंह को जानते हैं? उनमें से ज़्यादातर के पास अस्पष्ट जानकारी थी।”

जिस जगह दी गई थी फांसी, उसे चौराहे में बदल दिया गया 

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान सरकार भगत सिंह की फांसी से जुड़ी हर याद को मिटाना चाहती है। नैयर की किताब के मुताबिक, जिस जगह पर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देने संबंधित तख्ता था, वहां अब चौराहा बन गया है। गाड़ियों की धूल में ये तख्ते कब और कहां खो गए, किसी को पता नहीं।

आजादी के आंदोलन में बस एक पंजाबी मरा था!

कुलदीप नैयर के अनुसार, 1980 के दशक में लाहौर में एक विश्व पंजाबी सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिस सभागार में यह आयोजित किया गया था, वहां भगत सिंह की केवल एक तस्वीर लगी हुई थी। दूसरी ओर, कई पंजाबियों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। लेखक का दावा है कि जब उन्होंने पूछा कि वहां केवल एक ही तस्वीर क्यों लटकी हुई है, तो उन्हें बताया गया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान केवल एक पंजाबी की मृत्यु हुई थी।

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पंजाब की ये मुस्लिम लड़की चला रही गौशाला, गायों के प्रति प्रेम के कारण शादी के रिश्ते भी टूटे

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सनातन धर्म में गायों को बहुत ऊंचा दर्जा दिया गया है। गायों को गौ माता कहा जाता है। लेकिन आजकल यही गौ माता सड़कों पर घूमती नजर आती हैं और कूड़ा खाने को मजबूर हैं। ऐसे में एक मुस्लिम लड़की ने गायों के लिए जो किया है वो इंसानियत के लिए मिसाल बन गया है। दरअसल लुधियाना के पंजाबी इलाके में एक गौशाला है, जो चर्चा का विषय बन गई है। यह गौशाला लुधियाना जिले के पायल कस्बे में है। इस गौशाला को चलाने वाली महिला मुस्लिम सलमा हैं। उनकी गौशाला में दो या चार नहीं बल्कि 33 से ज्यादा गायें हैं। ऐसे में हर कोई ये जानकर हैरान है कि आखिर एक मुस्लिम महिला को गायों से इतना लगाव क्यों है और जिस धर्म का गायों से कोई नाता नहीं है, उसकी लड़की कैसे गाय पाल रही है? चलिए आपके इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से देते हैं।

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2007 से गाय पालना शुरू किया

सलमा की गौशाला में गायों और बैलों के नाम भी काफी दिलचस्प है। अगस्त 2007 में सलमा अपने घर एक बूढ़ी गाय लेकर आईं और उसने गौशाला शुरू की। इसके बाद उसने एक बैल भी अपने घर लाया। उसने उसका नाम नंदी रखा। कुछ दिनों बाद वे एक और आवारा गाय घर ले आईं। उसने उसका नाम गौरी रखा। इसके कुछ समय बाद ही उसकी गौशाला मुस्लिम गौशाला के रूप में प्रसिद्ध हो गई।

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मुस्लिम गौशाला के नाम पर क्या बोली सलमा?

जब सलमा से पूछा गया कि इसे मुस्लिम गौशाला क्यों कहा जाता है, तो उन्होंने जवाब दिया कि आम धारणा यह है कि मुसलमान सिर्फ़ मार-काट करते हैं। लेकिन, यह सच नहीं है। हमारे सीने में भी दिल होता है। हम जानवरों से भी प्यार करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक स्टोरी के अनुसार, सलमा 33 साल की हैं। उनके परिवार में उनके पिता और मौसी हैं। शादी के बारे में, उन्होंने घोषणा की कि वह केवल उसी व्यक्ति से शादी करेंगी जो इस गौशाला का नेतृत्व करने के लिए तैयार हो। यही एकमात्र कारण था कि उनके छह विवाह प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया था। उनसे पूछा गया कि एक मुस्लिम महिला को गौशाला का संचालन क्यों करना पड़ता है?

गौशाला का नहीं धर्म से कोई लेनादेना

सलमा का दावा है कि धर्म का इससे कोई संबंध नहीं है। मैं इन जीवों को बहुत पसंद करती हुं। वह स्पष्ट रूप से कहती है, ‘मैं इन्हें कोई अपना पूजनीय नहीं मानती, लेकिन ये जरूर मानती हूं कि इन्हें हमारी मदद की जरूरत है।’ वह आगे कहती है, “मुझे लगता है कि कुरान हमें सिखाता है कि हमें अल्लाह द्वारा बनाए गए हर जीवित प्राणी की सहायता करनी चाहिए।”

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परिवार को बायकॉट भी झेलना पड़ा

सलमा के अनुसार गाय पालने से हम कम मुसलमान नहीं हो जाते, उनका दावा है कि इसके परिणामस्वरूप उनके परिवार को कई बार सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा और इस मोहल्ले के अन्य मुस्लिम परिवारों ने मेरे पिता से बात करना भी बंद कर दिया। इसके बावजूद, उन्होंने इस बारे में कोई चिंता नहीं दिखाई।

सलमा खुद शाकाहारी हैं

सलमा शाकाहारी भोजन करती हैं। उसका दावा है कि हमें कई बार इस गौशाला को बंद करने का आदेश दिया गया। उनका दावा है कि हिंदू और सिख परिवारों ने भी इस गौशाला के बारे में हमसे कई बार शिकायत की है। उनकी शिकायत यह है कि इस गौशाला से बहुत बदबू आती है।

दिलचस्प हैं गायों के नाम

दिलचस्प बात यह है कि इस गौशाला में गायों के नाम भी दिलचस्प हैं। सलमा मूल रूप से हिंदू देवताओं के नाम पर गायें का नाम रखती है। जगदंबा, पार्वती, सरस्वती, राधा, लक्ष्मी और तुलसी इनमें से कुछ हैं। उसने 2012 के बाद से उन्हें नए नामों से पुकारना शुरू किया। उनकी वर्तमान गौशाला में अजा, आशू, जान, कुमकुम, गुलबदन और हनी शामिल हैं। इसके अलावा, बैलों को बादशाह नाम से भी जाना जाता है।

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देश के सबसे गरीब जिले अलीराजपुर का हाल देखकर आपकी आंखें हो जाएंगी नम, गरीबी इतनी है कि दो दिन भूखे रहना पड़ता है

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मध्य प्रदेश का अलीराजपुर जिला एक ऐसा इलाका है जहां मूलभूत सेवाओं की सख्त जरूरत है। क्योंकि यहां गरीबी इस कदर फैल चुकी है कि लोगों को खाने के लिए खाना तो दूर की बात है जरूरी सामान भी नहीं मिल पा रहा है। नीति आयोग द्वारा वर्ष 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भी अलीराजपुर भारत का सबसे गरीब जिला है। अलीराजपुर जिले की हालत इस हद तक खराब हो चुकी है कि यहां के लोगों को कई बार रोटी के साथ सब्जी की जगह पानी का सेवन करना पड़ता है क्योंकि उनके पास सब्जी खरीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं। अलीराजपुर की बात करें तो ये मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। जिसका गठन 2008 में आदिवासी जिले झाबुआ से हुआ था। गुजरात की सीमा से लगा ये जिला अपने नूरजहां आम, रजवाड़ा किला, ब्रिटिश काल के ‘विक्टोरिया ब्रिज’ के अवशेष और स्वतंत्रता सेनानी व शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली होने के कारण मशहूर है। इतना सब होने के बाद भी यहां के हालात दयनीय हैं लेकिन ये हालात ऐसे क्यों हैं, आइए आपको विस्तार से बताते हैं।

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अलीराजपुर की 90 प्रतिशत आबादी आदिवासी

अलीराजपुर की आबादी में लगभग 90% आदिवासी हैं। भील जनजाति यहां की अधिकांश आबादी का निर्माण करती है। राज्य के व्यावसायिक केंद्र इंदौर और इसके बीच की दूरी लगभग 200 किमी है। नीति आयोग के अनुसार, यह मध्य प्रदेश के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में दूसरा सबसे गरीब और अभावग्रस्त जिला है। राज्य के औसत 70.06% की तुलना में, इसकी साक्षरता दर 37% है। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सबसे बड़ा आदिवासी मिशन घोषित किया है, फिर भी अलीराजपुर के अधिकांश निवासियों को सरकारी कार्यक्रमों तक पहुँचने में कठिनाई होती है। 1984 में स्थापित अलीराजपुर के भील आदिवासियों के एक व्यापारिक संगठन, खेदुत मजदूर चेतना संगठन (KMCS) के एक सामाजिक कार्यकर्ता शंकर तड़वाल के अनुसार, अब जिले में युवा और बूढ़े दोनों ही रहते हैं।

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आजीविका के लिए गुजरात पलायन करते युवा

तड़वाल कहते हैं, “गुजरात में सभी वयस्क आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। आप इसे अलीराजपुर बस स्टैंड से दक्षिण गुजरात (210 किलोमीटर से अधिक दूर) के लिए रवाना होने वाली बसों में देख सकते हैं, जहाँ 56 सीटों वाली बस में 200 से अधिक लोग यात्रा करते हैं।” झाबुआ और अलीराजपुर तथा गुजरात सीमा पर कम से कम 50 ऐसे स्थान हैं जहाँ से हर घंटे गुजरात के विभिन्न शहरों के लिए बसें और अन्य वाहन निकलते हैं।

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गुजरात में कर रहें हैं मजदूरी

अलीराजपुर निवासी केरा ने बीबीसी से बातचीत के दौरान बताया कि देश के इस हिस्से में रहने वाले लोगों का जीवन कितना कठिन है। उनका कहना है कि नदी पार के इलाकों में किसी भी तरह की बुनियादी सुविधा नहीं है। न सड़कें हैं, न बिजली और न ही स्कूल। वे अपने परिवार के साथ मजदूरी करने गुजरात जाते हैं। फिर जब कुछ पैसे बच जाते हैं तो वापस आ जाते हैं।

उन्होंने आगे कहा, हम गुजरात में खेतों में मजदूरी करने जाते हैं। वहां एक से डेढ़ महीने रहते हैं और फिर घर लौट आते हैं। यहां हमें कोई मजदूरी नहीं मिलती। हमें बच्चों को भी साथ लेकर जाना पड़ता है। अपने बूढ़े पिता को घर पर अकेला छोड़कर।”

केएमसीएस द्वारा किए गए तथा इंदौर में आदिवासी अधिकार संगठन के कार्यकर्ता राहुल बनर्जी द्वारा लिखित एक अध्ययन में पाया गया कि 3 लाख से अधिक परिवारों के सदस्य हर साल लगभग 4 से 6 महीने के लिए अलीराजपुर से पलायन करते हैं, जिससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग 40 करोड़ रुपये की आय होती है।

कृषि एक अभिशाप

कृषि राजस्व में कमी इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर पलायन का मुख्य कारण है; अलीराजपुर में, एक सामान्य परिवार के पास 0.25 हेक्टेयर भूमि है। बनर्जी ने कहा, भूमि की गुणवत्ता ज़्यादातर खराब है, जबकि वन अत्यधिक क्षरित हैं, जिससे लघु वनोपज और पशुपालन से होने वाली अतिरिक्त आय कम हो गई है।” उन्होंने यह भी कहा कि “95.7% आबादी किसान या कृषि मज़दूर हैं।” विकास योजनाएँ कभी-कभी भ्रष्टाचार से भरी होती हैं और अनुचित तरीके से क्रियान्वित की जाती हैं।

दो साल में अलीराजपुर की तस्वीर बदलने का दावा

अलीराजपुर के जिला मजिस्ट्रेट राघवेंद्र सिंह ने बीबीसी द्वारा पूछे गए सवाल पर माना कि पलायन इसलिए होता है क्योंकि इलाके में पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं हैं। जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार, पूरे जिले में बहुत कम उद्योग हैं। इसके अलावा, उनका दावा है कि अलीराजपुर की भूमि में उर्वरता की कमी के कारण लोग कृषि से बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। उनके अनुसार, जिले की साक्षरता दर भी काफी पुरानी है। हालांकि, राघवेंद्र सिंह का दावा है कि जब अगले दो सालों में लोगों को नर्मदा नदी से पीने का पानी सीधे तौर पर मिलने लगेगा, तो अलीराजपुर के बारे में लोगों की धारणा बदल जाएगी।

सुविधाएं पहुंचाने में क्या है दिक्कत?

अलीराजपुर के जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार, यह समस्या मुख्य रूप से उन दुर्गम गांवों में है, जो नर्मदा के डूब क्षेत्र में हैं। उन्होंने कहा, यदि आप उत्तर भारत में गांवों की संरचना को देखें, तो यह पूरी तरह से अलग है।” इन बस्तियों में एक-दूसरे के पास बहुत ज़्यादा घर नहीं हैं। चूँकि एक स्थान पर दो घर हैं और दो घर काफ़ी दूरी पर स्थित हैं, इसलिए सरकारी अधिकारियों के लिए हर घर में सुविधाएँ प्रदान करना चुनौतीपूर्ण है।” इसके अलावा, उनका दावा है कि अन्य क्षेत्रों में भी तेज़ी से विकास हो रहा है, जिसकी झलक जिला कार्यालय से लेकर उन गांवों तक देखी जा सकती है जहाँ नई सड़कें बनाई गई हैं।

 क्यों खाली हैं अलीराजपुर के गांव?

आदिवासी कार्यकर्ता नितेश अलावा का दावा है कि अलीराजपुर जिला कई मापदंडों पर देश के अन्य हिस्सों से काफी कमजोर है। इसके लिए वह जनप्रतिनिधियों के रवैये को जिम्मेदार मानते हैं। नितेश अलावा कहते हैं कि साल के ज्यादातर महीनों में अलीराजपुर के गांव खाली ही नजर आते हैं, जहां सिर्फ बुजुर्ग लोग ही नजर आते हैं।

वे कहते हैं, पूरा गांव खाली हो जाता है। लोग अपने परिवार के साथ मजदूरी करने के लिए पलायन कर जाते हैं। ये लोग सिर्फ़ दो बार ही अपने गांव लौटते हैं। किसी पारिवारिक समारोह में या फिर दिवाली पर। खरीफ की फसल कटते ही गांव के लोग पलायन करना शुरू कर देते हैं।”

अलावा के अनुसार अलीराजपुर दो हैं, एक तो मुख्यालय और आसपास का इलाका जो ठीक-ठाक दिखता है और दूसरा वह जहां लोगों के पास पहनने के लिए कपड़े, मकान और अन्य बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।

राजनेता भी नहीं देते खास ध्यान

बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच सालों में राज्य में दो अलग-अलग सरकारें रही हैं: एक कांग्रेस पार्टी की अगुआई में और 15 महीने तक चली कमल नाथ की सरकार और दूसरी भारतीय जनता पार्टी की सरकार और शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में। हालांकि, यहां रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना ​​है कि क्षेत्र के नेता वोट मांगने के लिए आते ही नहीं हैं, इसलिए ये चुनाव अलीराजपुर के लोगों के लिए कोई खास महत्व नहीं रखते। यहां के कई लोग तो यह भी याद नहीं कर पाते कि उनका हाल ही में किसी सरकारी अधिकारी से सामना हुआ था या नहीं।

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सिर्फ एक रोल ने बदल दी किस्मत; रातों-रात बन गईं सुपरस्टार जानिए कौन है ये एक्ट्रेस

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Tripti Dimri.
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बॉलीवुड की चकाचौंध लोगों के सपने निगल लेती है. हर रोज काफी बड़ी संख्या में एक्टिंग का सपना लेकर लोग मुंबई पहुंचते हैं लेकिन हर किसी को सक्सेस नहीं मिल पाता. कुछ लोग, कुछ सालों में ही हार मान लेते हैं तो वहीं काफी लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपनी मेहनत और संघर्ष के बलबूते कामयाबी हासिल करते हैं. मशहूर एक्ट्रेस तृप्ति डिमरी भी उन्हीं में से एक हैं. आज के समय में तो उन्हें हर कोई जानता है लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें काफी कुछ करना और झेलना पड़ा है

कैसे बन गईं सुपरस्टार

बॉलीवुड में इंडस्ट्री में कई लड़के-लड़कियां अपने सपने लेकर आते हैं, लेकिन कुछ ही लोग के सपने साकार होते हैं, बाकि या तो अपना सपना छोड़ कुछ और करने लगते हैं या बस साइड रोल या बैकग्राउंड डांसर बनकर ही रह जाते हैं. तृप्ति डिमरी भी ऐसे ही कुछ सपने लिए मुंबई आई थीं और अब यहीं की हो कर रह गई हैं. काफी कम समय में ही इस एक्ट्रेस ने इंडस्ट्री में अपनी ऐसी पहचान बनाई कि आज उनको नेशनल क्रश का टैग मिल गया है. जी हाँ, एक्ट्रेस तृप्ति डिमरी ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत फिल्म ‘पोस्टर बॉयज़’ से की थी. इसके बाद वो बतौर एक्ट्रेस फिल्म ‘लैला मजनू’ में नजर आईं लेकिन एक्ट्रेस को असली फेम फिल्म ‘एनिमल’ से मिला और आज वो इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेस बन चुकी हैं.

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हालांकि, यहां तक पहुंचने के लिए उनको काफी कुछ झेलना भी पड़ा. रिश्तेदारों के तानों से लेकर काफी कुछ. हाल ही में तृप्ति डिमरी ने कैटरीना कैफ के ‘Kay Beauty’ यूट्यूब चैनल पर अपने स्ट्रगल के बारे में बताया है. तृप्ति बताती हैं कि ‘मैं उत्तराखंड से हूं, पर मेरा जन्म और परवरिश दिल्ली में हुई हैं. जब मैं मुंबई आई, तो मेरे लिए ये सब काफी मुश्किल था. रोज 50-60 लोगों के सामने जाकर ऑडिशन देना आसान नहीं था. स्ट्रगल बहुत होता है. समाज में और मेरे परिवार में भी कुछ लोग हैं, जिन्होंने मेरे माता-पिता को बुरा भला कहा’. तृप्ति ने आगे बताया, कभी उनके पेरेंट्स को कहा जाता था कि “आपने अपनी बेटी को इस पेशे में क्यों भेज दिया वो वहां जाकर बिगड़ जाएगी, वो आपकी नहीं सुनेगी, अपने लिए गलत फैसले करेगी. कोई भी उससे शादी नहीं करेगा.”

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बड़े पर्दे से लेकर ओटीटी पर बनाई पहचान

तृप्ति ने बताया, “मुझे पता था कि मैं अपने माता-पिता के पास वापस नहीं जा सकती थी.” एक वक्त ऐसा भी था जब मैं बहुत उलझन में थी क्योंकि जब कोई काम नहीं होता तो आप उम्मीद खोने लगते हैं. लेकिन जब मुझे फिल्म ‘लैला मजनू’ मिली और ये बात उन्होंने माता-पिता को बताई तो उनको उनपर गर्व हुआ था. वो बहुत खुश हुए. आपको बता दें कि तृप्ति डिमरी का जादू केवल बड़े पर्दे पर ही नहीं बल्कि ओटीटी प्लेटफार्म पर भी खूब चला. तृप्ति ने साल 2020 में आई फिल्म ‘बुलबुल’ से अपना ओटीटी डेब्यू किया और ये फिल्म सुपरहिट रही थी. वही साल 2022 में आई फिल्म ‘कला’ को भी दर्शको ने काफी पसंद किया था. ये फिल्म भी बड़ी हिट रही थी. तृप्ति डिमरी ने अपने 7 साल के करियर में 5 फिल्मों में काम किया है, जिनमें लगभग सभी फिल्में सफल रही हैं. इन्हीं में से एक फिल्म ने तृप्ति को रातों-रात सुपरस्टार तक बना दिया. वो फिल्म एनिमल थी जो पिछले साल सिनेमाघरो में आई थी. इस फिल्म में उनका कोई ज्यादा बड़ा रोल नहीं था लेकिन अपने 20 मिनट के रोल में भी तृप्ति अपना असर छोड़ने में कामयाब रही थी.

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वर्कफ्रंट पर तृप्ति

इसके अलवा अगर तृप्ति डिमरी के वर्कफ्रंट की बात करें तो वो आखिरी बार फिल्म बैड न्यूज़ में नजर आई थी. इसके अलवा उनके खाते में अभी कई फिल्मे हैं. वह जल्द ही राजकुमार राव के साथ नई फिल्म ‘विक्की विद्या का वो वाला वीडियो’ में नजर आने वाली हैं, जो 11 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. फिलहाल दोनों फिल्म के प्रमोशन में बिजी चल रहे हैं. इस फिल्म के बाद तृप्ति, सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ ‘धड़क 2’ और कार्तिक आर्यन-विद्या बालन के साथ हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ भी नजर आने वाली हैं, जिसे लेकर उनके फैंस काफी एक्साइटेड हैं.

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Online Gaming में 96 लाख का भयंकर नुकसान, जिम्मेदार कौन? सरकार, सेलिब्रिटी या इंफ्लुएंसर्स

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Celebrities who promote online betting, Himanshu 96 lakh
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अगर आप भी क्रिकेटर्स, बॉलीवुड स्टार्स या फिर आज कल के इंफ्लुएंसर्स पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं तो आपकी हालत भी ऐसी ही हो सकती है…आप बर्बाद हो सकते हैं…कंगाल हो सकते हैं….आपके पास सुसाइड के अलावा कोई ऑप्शन नहीं होगा. ये लोग चंद पैसों के लिए आपकी जिंदगी से खेल रहे हैं…आपको सट्टेबाजी का लत लगा रहे हैं…ये पैसे लेकर टीवी और इंटरनेट पर आपको सट्टेबाजी की सलाह देते हैं और आप उनकी सलाह मानकर इन सट्टेबाजी कंपनियों के फैलाए जाल में फंस जाते हैं.

यह एक ऐसा दलदल है जिसमें लोग अपने मुनाफे के चक्कर में लाखों-करोड़ों रुपये गंवा देते हैं और जिंदगी भर पछताते रहते हैं..यही हुआ है वीडियो में दिख रहे शख्स हिंमाशु के साथ…एक मिडिल क्लास फैमिली से आने वाले हिंमाशु ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में 96 लाख रुपये गंवा चुके हैं…आखिर क्या है पूरा मामला…ऑनलाइन गेमिंग की लत कैसे हिंमाशु को ले डूबी? ऑनलाइन सट्टेबाजी पर सरकार का क्या रूख है? हिंमाशु के इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है ?

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ऐसे ऑनलाइन सट्टेबाजी के दलदल में फंसते गए हिमांशु

सोशल मीडिया पर इन दिनों यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें पीड़ित हिमांशु अपने  साथ हुई घटना का जिक्र कर रहे हैं. न्यूज 18 चैनल के शो में इस लड़के ने अपनी गेमिंग की लत के बारे में जो बताया उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. JEE Mains जैसा टफ़ इक्जाम क्वालीफाई करने वाले हिमांशु को ऑनलाइन गेमिंग की इतनी भयंकर लत लगी कि उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पैसे को ऑनलाइन जुए में गंवा दिया…

हिमांशु बताते हैं कि मेरी मां एक टीचर हैं जब उन्हें मेरी इस लत की वजह से हुए कर्जे के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया…मेरा भाई भी मेरे से सीधे मुंह बात नहीं करता है…मेरी हालत ऐसी हो गई है कि अगर मुझे आज सड़क पर कुछ हो जाए तो कोई मुझे देखने तक नहीं आएगा. अपनी कहानी सुनाते वक्त हिमांशु पूरे टाइम रो रहे थे…उन्होंने बताया कि इस लत की वजह से उसके परिवार ने उनसे मुंह मोड़ लिया है.

जब हिमांशु से पूछा गया कि उनके पास इतने पैसे कहां से आएं? तो उन्होंने जवाब दिया कि लोगों से पैसे लिए, फ्रॉड किया…उनका परिवार अब उन्हें देखना नहीं चाहता, जिससे उनमें भावनात्मक तनाव और ज्यादा बढ़ गया. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह शर्म और अपराधबोध से व्याकुल होकर आत्महत्या का प्रयास कर चुका है…यह घटना उन सट्टा एप्लिकेशंस की काली सच्चाई को उजागर करती है, जहां जीतने का सपना कई लोगों के लिए रात के दुःस्वप्न में बदल जाता है. हिमांशु ने खुद बताया कि यह लत उन्हें टीवी पर एक ऐड देखने के बाद लगी थी…

Cricketers promoting online betting
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हिमांशु बताते हैं कि यूपी में एक पुलिसवाले हैं, उन्होंने मुझे गेम खेलने के लिए बुलाया, लेकिन उनके पैसे का नुकसान हो गया। उन्होंने मुझे पुलिस स्टेशन में सात दिनों तक रखा और टॉर्चर किया.

सरकार सिर्फ दिखावा करती है!

अब जरा सोचिए, टीवी पर विज्ञापन देख कर इतने पढ़े लिखे लोग भी इस दलदल में फंस जा रहे हैं…वह निकलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन निकल नहीं पा रहे हैं और अपनी सारी जमा पूंजी गंवा दे रहे हैं..परिवार, समाज, मां, भाई-बहन सबसे उनका नाता टूट जा रहा, सब उनसे मुंह मोड़ ले रहे हैं…20-25 साल की उम्र में जिंदगी तबाह हो जा रही है…ये तो हिंमाशु की कहानी है, जो सभी के सामने  आ गई…लेकिन ऐसे कई हिमांशु आज भी भारत की गलियों में भटक रहे हैं…कर्जदारों से जान बचाकर भाग रहे हैं…सुसाइड कर रहे हैं  लेकिन न तो सरकार को कोई सुध है और न ही कोई उन्हें संभालने वाला है.

हमारी सरकार न तो ऑनलाइन गैंबलिंग को रोकने के लिए कोई कदम उठा रही है और न ही लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया जा रहा है. 2023 की शुरुआत में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने एक सख्त सलाह जारी की जिसमें गेमिंग के रूप में सट्टेबाजी और जुए सहित ऐसी अवैध गतिविधियों के विज्ञापन, प्रचार और इसके समर्थन पर रोक लगाई गई. एडवाइजरी के अनुसार ‘पब्लिक गैम्ब्लिंग एक्ट, 1867 के तहत सट्टेबाजी और जुआ सख्त रूप से वर्जित है और देश भर के अधिकांश क्षेत्रों में इसे अवैध माना जाता है. इसके बावजूद गेमिंग की आड़ में ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म और ऐप सीधे तौर पर सट्टेबाजी और जुए का विज्ञापन करते रहते हैं और सरकार कान में तेल डालकर सोयी रहती है.

21 हजार करोड़ से ज्यादा का है ऑनलाइन सट्टेबाजी का बाजार

ऑनलाइन गेमिंग में सट्टेबाजी पर सरकार की चुप्पी के पीछे भी कई कारण हो सकते हैं…पहले तो ये समझिए कि भारत में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार साल 2022 में 2.6 अरब डॉलर यानी 21 हजार करोड़ रुपये का था…जिसमें करीब 7 फीसदी की वृद्धि होनी की उम्मीद जताई गई थी…कई रिपोर्ट्स में यह बताया गया है कि  साल 2029 तक भारत में ऑनलाइन खेल सट्टेबाजी बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 18.9 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है. सरकार ऑनलाइन गेमिंग, कैसीनो और घुड़दौड़ पर पूरे अंकित मूल्य का 28% जीएसटी के रुप में लेती है.

कहने को तो लोगों को सट्टेबाजी से रोकने के लिए यह कदम उठाया गया लेकिन सच्चाई इसके आस पास भी नजर नहीं आती. अगर सरकार को सच में लोगों की फिक्र होती तो पब्लिक गैंबलिंग एक्टर, 1867 के तहत अब तक कई कंपनियों, क्रिकेटर्स, बॉलीवुड स्टार्स और इंफ्लुएंसर्स पर कार्रवाई हो चुकी होती…लोगों को जागरुक करने और इस दलदल में न फंसने की सलाह देते हुए सरकार की ओर से कदम उठाया जा चुका होता…नेता लोगों से अपील कर चुके होते लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिससे यह कहा जा सके कि सरकार लोगों को ऑनलाइन गेमिंग सट्टेबाजी से रोकने के लिए कदम उठा रही है.

Bollywood actors who promote online gambling
Source- Google

‘इंफ्लुएंसर्स आपको बेवकूफ बना रहे हैं’

वहीं, बॉलीवुड स्टार्स, क्रिकेटर्स और इंफ्लुएंसर्स, जिनके करोड़ों में फैन फॉलोइंग है, वे चंद पैसों के लिए अपने ही फॉलोवर्स की पीठ में छुरा भोंक रहे हैं और उन्हें ऑनलाइन सट्टेबाजी के दलदल में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं. आज के समय में आप लोगों को ऐसे फर्जी स्टार्स से सावधान रहने की जरुरत है…यह समझिए कि वे आपको मुफ्त में कोई सलाह नहीं दे रहे हैं..उनके हर शब्द के पीछे पैसा है…पैसों के पीछे अंधे हुए ये लोग आपके बारे में कभी अच्छा सोच ही नहीं सकते, यह आपको समझने की जरुरत है…

लोग कहते हैं कि शराब पीने के बाद लोग बेसुध हो जाते हैं लेकिन यह गलत है…नशा शराब का नहीं, किसी भी चीज का हो सकता है…ट्रेडिंग का नशा हो सकता है…ऑनलाइन गेमिंग का नशा हो सकता है…सट्टेबाजी का नशा हो सकता है…संभल कर जिंदगी न जी-जाए तो हर चीज में नशा है…ऐसे में खुद को संभालिए…अगर आपके जान पहचान में कोई ऐसा कर रहा है तो उसे समझाइए…दूर के परिचित भी इस दलदल में फंसे दिखें तो उन्हें निकालने का प्रयास करिए…क्योंकि समय रहते कदम न उठाए गए तो जीवन में अफसोस के सिवा कुछ और नहीं बचेगा.

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