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ट्रंप का अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर दीवार बनाने का प्रस्ताव कितना सही? यहां पढ़ें इससे जुड़ा इतिहास

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Donald Trump's proposal build wall US-Mexico border
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डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने राष्ट्रपति काल के दौरान उठाए गए सबसे विवादित और चर्चित कदमों में से एक अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने का प्रस्ताव था। यह प्रस्ताव तब से विवादों में घिरा हुआ है जब से ट्रंप ने 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान इसे अपने अभियान का केंद्रीय मुद्दा बनाया था। उनका दावा था कि यह दीवार अवैध अप्रवासियों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोकेगी और देश की सुरक्षा में मदद करेगी। हालांकि, इस कदम के आलोचक इसे न केवल मानवता विरोधी बल्कि ऐतिहासिक विडंबना भी मानते हैं, क्योंकि अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा मूल रूप से मेक्सिको का था, जिसे समय के साथ छीन लिया गया।

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अमेरिका-मेक्सिको का साझा इतिहास

संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको का इतिहास बेहद जटिल और संघर्षपूर्ण रहा है। 19वीं सदी के मध्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई मैक्सिकन क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसका सबसे प्रमुख उदाहरण 1846-1848 का यूएस-मेक्सिको युद्ध है, जिसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैक्सिको से वर्तमान कैलिफ़ोर्निया, नेवादा, न्यू मैक्सिको, एरिज़ोना और टेक्सास के बड़े क्षेत्रों को जब्त कर लिया। यह क्षेत्र अब संयुक्त राज्य अमेरिका का अभिन्न अंग है, लेकिन कभी मैक्सिकन संस्कृति और पहचान का केंद्र था।

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इस ऐतिहासिक संदर्भ में, ट्रम्प का दीवार बनाने का प्रस्ताव कई लोगों को विडंबना और असंगति से भरा लगता है। मैक्सिकन इतिहास और अमेरिका के इस भूमि के साथ लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को देखते हुए, ऐसी दीवार बनाना जो इन दोनों देशों के बीच दूरी और विभाजन को बढ़ाए, एक बड़ा विरोधाभास लगता है।

ट्रंप के तर्क

डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों का दीवार बनाने का मुख्य तर्क यह है कि इससे अवैध अप्रवासियों की आमद रुक जाएगी, जिनमें से कई अपराधी, ड्रग तस्कर और हिंसक गतिविधियों में शामिल लोग हैं। ट्रंप ने कहा कि यह दीवार अमेरिका की सीमा सुरक्षा को मजबूत करेगी और देश को बाहरी खतरों से बचाने में मदद करेगी। इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन ने दीवार को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के मुद्दे के रूप में पेश किया।

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हालांकि, दीवार के निर्माण और इसकी प्रभावशीलता पर अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं। आलोचकों का मानना ​​है कि दीवार जैसे उपाय अवैध अप्रवास को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके बजाय, वे कूटनीति और आर्थिक सहयोग के माध्यम से इस समस्या को हल करने का सुझाव देते हैं।

आलोचना और विरोध

ट्रंप के दीवार प्रस्ताव का विरोध करने वाले कई आलोचकों का मानना ​​है कि यह न केवल आर्थिक रूप से अव्यावहारिक है, बल्कि इससे अमेरिका और मेक्सिको के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध भी खराब हो सकते हैं। मेक्सिको से अप्रवासी अक्सर आर्थिक कठिनाइयों और हिंसक स्थितियों से बचने के लिए अमेरिका आते हैं। आलोचकों का यह भी कहना है कि दीवार बनाना केवल एक अस्थायी समाधान है और अप्रवास के मूल कारणों को समझकर समाधान खोजने की जरूरत है।

इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने इस दीवार को लेकर मेक्सिको के साथ एक और विवाद खड़ा कर दिया था, जब उसने कहा था कि दीवार का खर्च मेक्सिको सरकार उठाएगी। मेक्सिको सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया था और इस कदम को अपमानजनक बताया था।

ऐतिहासिक विडंबना

इस पूरे मामले की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस ज़मीन पर यह दीवार बनाई जा रही है, वह कभी मेक्सिको का हिस्सा थी। आलोचकों का कहना है कि अमेरिका, जिसने खुद मेक्सिको के कई हिस्सों पर कब्ज़ा किया था, अब उसी ज़मीन पर दीवार बनाकर सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। यह दीवार दोनों देशों के बीच सिर्फ़ भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दरार पैदा करेगी।

क्या वाकई समस्याएँ हल होंगी?

अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने का डोनाल्ड ट्रंप का प्रस्ताव सिर्फ़ सुरक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अमेरिका के इतिहास, राजनीति और सामाजिक संबंधों पर भी गहरे सवाल खड़े करता है। यह कदम न सिर्फ़ अमेरिका और मेक्सिको के बीच की सीमा को प्रभावित करता है, बल्कि उनके साझा इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को भी प्रभावित करता है। दीवार बनाने से क्या वाकई समस्याएँ हल होंगी या इससे सिर्फ़ विभाजन को बढ़ावा मिलेगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन अभी के लिए यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना हुआ है।

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क्या पैकेट बंद दूध को गर्म करना सेहत के लिए हानिकारक है? जानिए दूध उबालने का सही तरीका?

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पैकेज्ड दूध को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि इसे गर्म करना चाहिए या नहीं। बाजार में मिलने वाला पैकेज्ड दूध मुख्य रूप से पाश्चराइज्ड होते हैं, जिसे पहले से ही एक निश्चित तापमान पर गर्म किया जाता है और फिर ठंडा करके पैक किया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य दूध में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं को नष्ट करना होता है, ताकि इसे पीना सुरक्षित रहे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या हमें बाजार में बिकने वाले पैकेज्ड दूध को उबालना चाहिए या नहीं। आइए आपको इसका जवाब बताते हैं।

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पैकेज्ड दूध को उबालना एक गलती है!

shivammalik09 इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर एक वीडियो प्रकाशित किया गया है। यह वीडियो पैकेज्ड दूध को उबालने से आगाह करता है क्योंकि यह अस्वस्थ हो सकता है। यह वीडियो बताता है कि दूध के पैकेट के पीछे लेबल से पता चलता है कि दूध को पाश्चुराइज्ड है – यानी, खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म कर दिया गया है और दूध को उबाला गया है। इसके अलावा, इससे इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। इस परिदृश्य में पैकेज्ड दूध का उपयोग करते समय आपके पास दो विकल्प हैं: या तो इसे गर्म करने के बाद तुरंत इस्तेमाल करें, या दूध को सीधे वैसे ही इस्तेमाल कर सकते हैं।

 

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पाश्चराइजेशन का महत्व

पैकेट वाला दूध आमतौर पर पाश्चराइज्ड होता है, यानी इसे पहले से ही उच्च तापमान पर गर्म किया जा चुका होता है और फिर उसे तुरंत ठंडा किया जाता है। यह प्रक्रिया दूध में हानिकारक बैक्टीरिया को मार देती है और इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखती है। इसलिए, पाश्चराइज्ड दूध को बिना गर्म किए भी पी सकते हैं क्योंकि यह पहले से ही सुरक्षित होता है।

उबालने के नुकसान

इस वीडियो में यह भी बताया गया है कि पैकेज्ड दूध को बार-बार उबालने से उसकी पौष्टिकता कम हो जाती है। दरअसल, दूध को बार-बार उबालने से उसमें मौजूद कुछ पोषक तत्व जैसे विटामिन बी12 और प्रोटीन की मात्रा कम हो सकती है। इसलिए अगर पैकेज्ड दूध को सीधे ही फ्रेशनेस के साथ इस्तेमाल किया जाए तो उसे बार-बार गर्म करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, ज्यादा उबालने से दूध का स्वाद बदल सकता है और कई बार यह थोड़ा गाढ़ा या चिपचिपा भी हो सकता है, जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आता।

सही तरीका क्या है?

अगर आप पैकेज्ड दूध को गर्म करना चाहते हैं, तो उसे बहुत देर तक उबालने से बचें। इसे हल्का गर्म करके पीना बेहतर है, ताकि इसके पोषक तत्व बरकरार रहें। खासकर अगर आप बच्चों या बुजुर्गों को दूध दे रहे हैं, तो गुनगुना दूध पीना फायदेमंद हो सकता है। आपको बता दें, पैकेज्ड दूध पाश्चुरीकृत होता है और बिना उबाले भी पीने के लिए सुरक्षित है। हालांकि, अगर आप इसे गर्म करना चाहते हैं, तो इसे हल्का गर्म करना बेहतर है, क्योंकि इसे ज्यादा उबालने से दूध में मौजूद पोषक तत्व खत्म हो सकते हैं।

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फीस न भर पाने से IIT में नहीं हुआ एडमिशन, सुप्रीम कोर्ट ने कराया दलित अतुल दाखिला, कहा- ‘ऑल द बेस्ट’

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अगर आपकी मेहनत और लगन सच्ची हो तो गरीबी भी आपको सफलता पाने से नहीं रोक सकती। यह साबित कर दिखाया है यूपी के दलित अतुल कुमार ने। दरअसल, अतुल को आईआईटी धनबाद में इसलिए दाखिला नहीं मिला क्योंकि वह महज 17,500 रुपये नहीं जुटा पाया। छात्र के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन फीस भरने की डेडलाइन चूक गई। छात्र का आईआईटी में दाखिला पाने का सपना अधूरा रह गया। हालांकि, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी धनबाद को दलित छात्र को दाखिला देने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मेधावी अतुल की योग्यता का आकलन किया और डेडलाइन बीत जाने के बाद भी उसे दाखिला लेने की इजाजत दे दी।

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आईए जानते हैं अतुल कुमार की कहानी?

खबरों की मानें तो मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के टिटोडा गांव के रहने वाले अतुल कुमार ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की। पहले चरण में अतुल को आईआईटी धनबाद के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग में सीट मिल गई। हालांकि, अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण वह कॉलेज की समय सीमा तक अपनी फीस जमा नहीं कर पाए। फीस जमा करने की अंतिम तिथि 24 जून थी। अतुल दलित परिवार से आते हैं; उनकी मां गृहिणी हैं और पिता एक फैक्ट्री में मजदूर हैं। जब तक परिवार गांव से पैसे जुटा पाता, तब तक फीस जमा करने और कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन करने की समय सीमा बीत चुकी थी।

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खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

अतुल कुमार का कहना है कि वह सिर्फ ऑनलाइन वेबसाइट पर ही दस्तावेज जमा कर पाया। इसके बाद उसने झारखंड हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उम्मीद टूटने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 30 सितंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने छात्र का हौसला बढ़ाया और कहा कि कोर्ट पूरा सहयोग करेगा। उन्होंने कॉलेज को नोटिस जारी किया। सीजेआई ने कहा कि हम ऐसे प्रतिभाशाली लड़के को जाने नहीं दे सकते। उसने हर जगह न्याय की गुहार लगाई है। हम उसका आईआईटी धनबाद में एडमिशन का आदेश देते हैं। उसे उसी बैच में दाखिला मिलेगा जिसमें उसे एडमिशन मिलना था। उसके एडमिशन में एकमात्र बाधा यह थी कि वह फीस नहीं दे सकता था।

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ऑल द बेस्ट…अच्छा करो

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव से आए 18 वर्षीय छात्र से कहा, ” ऑल द बेस्ट। अच्छा करो।” राहत महसूस कर रहे अतुल ने कहा कि पटरी से उतरी ट्रेन अब पटरी पर आ गई है। मुझे सीट मुहैया कराई गई है। मैं बहुत खुश हूं। कोर्ट ने कहा कि मेरी सीट सिर्फ आर्थिक समस्याओं के कारण नहीं छीनी जा सकती। अतुल ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से मदद मिलने की उम्मीद है।

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जानें दुनिया के सबसे ज्यादा फाइटर जेट वाले टॉप 10 देशों के बारे में, भारत और पाकिस्तान की रैंकिंग भी है देखने वाली

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किसी भी देश की ताकत उसकी सेना के आकार और उसके पास मौजूद तकनीकी हथियारों के प्रकार से मापी जाती है। आजकल तकनीक में बहुत बदलाव आ गया है जिसके कारण हर देश आधुनिक तकनीकी हथियारों का इस्तेमाल करता है और लड़ाकू विमानों में भी निवेश करता है। क्योंकि लड़ाकू विमानों की संख्या किसी देश की वायु रक्षा और सामरिक ताकत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। इन विमानों का इस्तेमाल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने, देश की सीमाओं की रक्षा करने और हवाई श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए किया जाता है। आइए जानते हैं दुनिया के सबसे ज़्यादा लड़ाकू विमानों वाले टॉप 10 देश और जानें इस सूची में भारत और पाकिस्तान कहां हैं:

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संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 2,850+

अमेरिका के पास दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे आधुनिक वायुसेना है। इसके पास F-22 रैप्टर, F-35, F-15 और F-16 जैसे उन्नत लड़ाकू विमान हैं।

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रूस

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 1,500+

रूस के पास Su-27, Su-30, Su-35 और MiG-29 जैसे आधुनिक और उन्नत लड़ाकू विमान हैं, जो इसे वायु शक्ति में शीर्ष पर रखते हैं।

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चीन

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 1,200+

चीन की वायु सेना तेज़ी से बढ़ रही है। J-20 और J-10 जैसे घरेलू विमानों और कुछ रूसी विमानों के साथ, चीन वायु शक्ति के मामले में तीसरे स्थान पर है।

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भारत

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 600+

भारत की वायु सेना में सुखोई Su-30MKI, मिराज 2000, तेजस, मिग-29 और राफेल जैसे विमान शामिल हैं। भारतीय वायु सेना दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी वायु सेना है और दुनिया में चौथे स्थान पर है।

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उत्तर कोरिया

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 570+

उत्तर कोरिया के पास पुरानी पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, जिनमें मिग-21 और मिग-29 शामिल हैं। यद्यपि इसकी वायु सेना संख्या में बड़ी है, लेकिन इसे तकनीकी रूप से बहुत पिछड़ा माना जाता है।

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मिस्र

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 570+

मिस्र की वायु सेना में F-16, मिग-29 और राफेल जैसे विमान शामिल हैं। इसे मध्य पूर्व की सबसे मजबूत वायु सेनाओं में से एक माना जाता है।

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दक्षिण कोरिया

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 460+

दक्षिण कोरिया की वायु सेना F-35 और F-15K जैसे अत्याधुनिक विमानों से लैस है और उत्तर कोरिया के साथ अपने संबंधों के कारण लगातार अपनी वायु शक्ति को मजबूत कर रही है।

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पाकिस्तान

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 410+

पाकिस्तान की वायु सेना में JF-17 थंडर, F-16 और मिराज III जैसे लड़ाकू विमान शामिल हैं। चीन के सहयोग से विकसित पाकिस्तान का JF-17 थंडर उसकी वायु सेना की रीढ़ है।

जापान

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 370+

जापान की वायु सेना में F-15 और F-35 जैसे विमान शामिल हैं। जापान लगातार अपनी वायु सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है, खास तौर पर चीन और उत्तर कोरिया के साथ क्षेत्रीय तनाव के कारण।

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फ्रांस

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 350+

फ्रांस की वायु सेना राफेल और मिराज 2000 जैसे अत्याधुनिक विमानों से लैस है। यह यूरोप की सबसे प्रभावशाली वायु सेनाओं में से एक है।

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भारत और पाकिस्तान की तुलना

भारत के पास लगभग 600+ लड़ाकू विमान हैं, जो इसे पाकिस्तान से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बनाते हैं। भारतीय वायु सेना के पास तकनीकी रूप से उन्नत विमानों का मिश्रण है, जिनमें राफेल, सुखोई Su-30MKI और मिराज 2000 प्रमुख हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास लगभग 410+ लड़ाकू विमान हैं। हालाँकि पाकिस्तान की वायु सेना की संख्या भारत से कम है, लेकिन पाकिस्तान JF-17 थंडर और F-16 जैसे विमानों की मदद से अपनी वायु शक्ति को संतुलित करने की कोशिश करता है।

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आपको बता दें, दुनिया की सबसे बड़ी वायु सेनाओं की सूची में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन सबसे ऊपर हैं। भारत इस सूची में चौथे स्थान पर है और दक्षिण एशिया में इसकी वायुसेना सबसे बड़ी है। पाकिस्तान की वायुसेना भी मजबूत है, लेकिन संख्या और तकनीक के मामले में यह भारत से पीछे है।

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जानें गुरु घासीदास की कहानी, जिन्होंने सतनामी समुदाय की स्थापना की और छत्तीसगढ़ में अपना प्रभाव छोड़ा

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गुरु घासीदास का नाम छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय में अत्यधिक श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में समाज के सबसे निचले तबके में सुधार लाने और छुआछूत, जातिवाद, और भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। इसके अलावा गुरु घासीदास ने सतनामी समुदाय की स्थापना की, जो छत्तीसगढ़ के दलित और शोषित वर्गों को धार्मिक और सामाजिक सुधार के माध्यम से एक नई पहचान और सम्मान दिलाने का उद्देश्य रखता था।

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प्रारंभिक जीवन

गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी गांव में हुआ था। उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था, जिसे उस समय समाज में सबसे निचले पायदान पर माना जाता था और जिसे जातिगत भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता था। उनके परिवार और समुदाय को छुआछूत और सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ा, जिसने गुरु घासीदास के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

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आध्यात्मिक यात्रा और ज्ञान प्राप्ति

गुरु घासीदास बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता, जातिगत पूर्वाग्रह और धार्मिक पाखंड को देखा और पहचाना। इन घटनाओं ने उन्हें सत्य और धर्म की खोज के लिए प्रेरित किया। ज्ञान प्राप्ति से पहले उन्होंने कठोर तपस्या और ध्यान किया। घासीदास ने अपने शिष्यों को यह ज्ञान बांटना शुरू किया और सत्य, अहिंसा, समानता और भाईचारे का संदेश दिया।

सतनाम का संदेश

गुरु घासीदास की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा ‘सतनाम’ का प्रचार करना था। उन्होंने सतनाम को अस्तित्व की अंतिम वास्तविकता बताया और इसे अपने अनुयायियों के साथ साझा किया। सतनाम का अर्थ है ‘सत्य का नाम’, जो ईश्वर के वास्तविक नाम को दर्शाता है। उन्होंने यह विश्वास बढ़ाया कि केवल एक ईश्वर है, और उसका नाम सत्य है। उन्होंने मूर्ति पूजा, धार्मिक आडंबर और जाति-आधारित भेदभाव की निंदा की और लोगों से सत्य के मार्ग पर चलने का आग्रह किया।

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गुरु घासीदास ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज के सभी वर्गों, खासकर दलितों और शोषितों को एकजुट करने का प्रयास किया। धार्मिक और सामाजिक सुधार के माध्यम से उन्होंने एक ऐसे समाज का निर्माण करने का प्रयास किया, जहाँ जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

सतनामी समुदाय की स्थापना

गुरु घासीदास ने सतनामी संप्रदाय की स्थापना की, जो दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित था। सतनामी संप्रदाय का मुख्य उद्देश्य समाज में समानता और समता को बढ़ावा देना था। गुरु घासीदास ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सभी मनुष्य समान हैं और भगवान के सामने ऊंच-नीच के लिए कोई जगह नहीं है।

उन्होंने जातिगत भेदभाव को खारिज करते हुए समतामूलक समाज की कल्पना की। सतनामी संप्रदाय ने दलित समुदाय को, खासकर छत्तीसगढ़ में, एक नई दिशा और पहचान दी। यह संप्रदाय गुरु घासीदास के जीवनकाल में ही बहुत लोकप्रिय हो गया और समाज के निचले तबके के बीच समानता और धार्मिक सुधार का प्रतीक बन गया।

सामाजिक सुधार

गुरु घासीदास ने न केवल धार्मिक सुधार किए बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया। उन्होंने छुआछूत, भेदभाव और जाति उत्पीड़न का कड़ा विरोध किया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया और समाज में महिलाओं के सम्मान की बात की। उनका जीवन और संदेश समानता, न्याय और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित था।

गुरु घासीदास का प्रभाव

छत्तीसगढ़ और उसके आस-पास के इलाकों में गुरु घासीदास का प्रभाव बहुत गहरा है। उनकी शिक्षाओं ने सतनामी समुदाय को एक मज़बूत धार्मिक और सामाजिक पहचान दी। आज भी छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय के लोग गुरु घासीदास के आदर्शों का पालन करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलते हैं।

गुरु घासीदास एक महान समाज सुधारक और धार्मिक नेता थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय को न केवल धार्मिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी सशक्त बनाया। उन्होंने सत्य, समानता और भाईचारे का संदेश दिया और जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और सतनामी संप्रदाय उनके आदर्शों पर आधारित है, जो समाज में समानता और न्याय का प्रतीक है।

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सपने में आती हैं समुद्र की लहरें या नदी का तट, तो जानिए स्वप्न शास्त्र में इसे शुभ माना जाता है या अशुभ

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सपनों में प्राकृतिक तत्वों का दिखना अक्सर विभिन्न भावनाओं और मानसिक स्थितियों का प्रतीक होता है। अगर आपको सपने में समुद्र की लहरें या नदी का किनारा दिखाई देता है, तो इसका विशेष रूप से शुभ और गहरा अर्थ होता है। ये सपने आमतौर पर जीवन में आने वाले बदलावों, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संकेत होते हैं। आइए जानते हैं इन सपनों के कुछ मुख्य अर्थ:

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सपने में समुद्र की लहरें या नदी का किनारा दिखाई देना

अगर आपको सपने में समुद्र की लहरें या नदी का किनारा दिखाई देता है तो यह जीवन में बदलाव, प्रगति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संकेत है। ये सपने शुभ माने जाते हैं और जीवन में आने वाले अच्छे अवसरों और समृद्धि की ओर इशारा करते हैं। चाहे ये सपने चुनौतियों का सामना करने के बारे में हों या मानसिक शांति और संतुलन पाने के बारे में, ये संकेत देते हैं कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और जीवन में अच्छे बदलावों का अनुभव करने वाले हैं।

सपनों में पानी: भावनाओं और आत्मा की शुद्धि

पानी को हमेशा से भावनाओं और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता रहा है। यदि आप सपने में समुद्र या नदी देखते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपनी भावनाओं से जुड़ रहे हैं और आध्यात्मिक शांति की तलाश कर रहे हैं। यह आपकी आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में संतुलन प्राप्त करने का संकेत है।

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उठती लहरें देखना 

सपने में अगर समुद्र की लहरें ऊंची उठती हुई दिखाई देती हैं, तो यह संकेत है कि जीवन में कुछ चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ आ सकती हैं। हालाँकि, यह आपको मजबूत बनने और इन चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार करने का संदेश देता है। यह उन्नति और सफलता का संकेत देता है, लेकिन इसके लिए थोड़ी मेहनत और धैर्य की आवश्यकता होगी।

नदी का किनारा देखना 

यदि आप सपने में नदी का किनारा देखते हैं, तो इसका मतलब है कि आप जीवन में शांति, स्थिरता और सकारात्मकता का अनुभव करने जा रहे हैं। नदी का किनारा जीवन की यात्रा और मानसिक संतुलन का प्रतीक है।

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शांत नदी देखना 

सपने में शांत नदी का किनारा दर्शाता है कि आप जीवन में शांति और आराम की स्थिति में हैं। यह दर्शाता है कि आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर रहे हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं।

बहती नदी देखना 

सपने में यदि नदी बह रही है, तो यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, नई शुरुआत और अवसरों का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि आपकी जीवन यात्रा में सब कुछ सही दिशा में बह रहा है और आप अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। नेड्रिक न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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Flying Beast से तलाक की खबरों पर रितु राठी ने तोड़ी चुप्पी, वीडियो शेयर कर दिया रियलिटी चेक

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इन दिनों सोशल मीडिया पर यूट्यूबर फ्लाइंग बीस्ट उर्फ ​​गौरव तनेजा और रितु राठी के तलाक की खबरें छाई हुई हैं। बची-खुची कसर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो ने पूरी कर दी जिसमें एक महिला प्रेमानंद महाराज के सामने अपने पति की ‘धोखाधड़ी’ पर सवाल उठाती नजर आ रही थी। दावा किया गया कि यह महिला कोई और नहीं बल्कि रितु राठी ही हैं। इन अटकलों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ कहा जा रहा था। लेकिन अब खुद रितु राठी ने एक वीडियो अपलोड कर इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ी है। रितु ने अपने वीडियो में पुष्टि की है, ‘हां, मैं उस वीडियो में हूं।’ चलिए जानते हैं कि रितु ने तलाक की खबरों को लेकर क्या सफाई दी है।

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पति को विलेन बनाए जानें पर बोली रितु

गौरव तनेजा और रितु की शादी को 8 साल हो चुके हैं और इस कपल के वीडियो वायरल होते रहते हैं। इंस्टाग्राम पर भी इस कपल के एक मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। गौरव तनेजा की पत्नी रितु राठी ने आज सुबह इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर कर अपने ‘तलाक’ पर चुप्पी तोड़ी है। रितु एक प्रोफेशनल पायलट और कंटेंट क्रिएटर हैं। अपने लेटेस्ट वीडियो में उन्होंने साफ किया है कि जो कुछ भी हो रहा है वो उनके और उनके पति के बीच का है, इसलिए कोई उनके पति को विलेन न बनाए। रितु ने ये भी कहा कि वो ‘बेचारी’ नहीं हैं। बता दें कि रितु से पहले गौरव ने भी अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में कहा था कि ‘मर्दों को बहुत जल्दी विलेन बना दिया जाता है।’

 

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‘तलाक का रियलिटी चेक’

वीडियो के कैप्शन में उन्होंने लिखा है, ‘तलाक का रियलिटी चेक।’ इस पोस्ट में रितु ने अपने पति गौरव को भी टैग किया है। वीडियो में उन्होंने कहा, पति-पत्नी के बीच छोटी-सी बहस हुई। उसे लगा कि वो सही है, मुझे लगा कि मैं सही हूं। वो अडिग है और मैं भी। लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि आप मुझे बताएंगे कि वो किस तरह का आदमी था? मैं उस आदमी को बहुत अच्छे से जानती हूं। मुझे ये सुनने की जरूरत नहीं है कि वो सच्चा है या वफादार। मैंने उसे हर परिस्थिति में देखा है।

प्रेमानंद महाराज के दरबार का वीडियो वायरल

गौरव तनेजा की पत्नी रितु राठी का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वो अकेले ही प्रेमानंद महाराज के दरबार में पहुंची हैं और खूब रो रही हैं। उन्होंने महाराज जी से कहा कि मैं अपने पति से बहुत प्यार करती थी, लेकिन उन्होंने मुझे धोखा दिया। जिसके बाद मैं उनसे अलग रहती हूं और अपनी नौकरी के जरिए अपनी दोनों बेटियों का पालन-पोषण कर रही हूं। इस वीडियो के बाद कपल के अलग होने की खबर सामने आई।

फ्लाइंग बीस्ट ने भी की पोस्ट

इन अफवाहों के बाद ही में फ्लाइंग बीस्ट के नाम से मशहूर गौरव तनेजा ने एक पोस्ट शेयर कर कहा कि पुरुषों को बहुत जल्दी विलेन बना दिया जाता है। वे रोते नहीं हैं और अपनी बात नहीं कहते हैं। सोशल मीडिया पारिवारिक मामलों पर चर्चा करने के लिए नहीं है।’ इस पोस्ट से साफ पता चल रहा है कि अफवाहों को लेकर उन्हें कितना ट्रोल किया जा रहा है और वे इस बात से कितने परेशान हैं।

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पद्म भूषण के बाद अब मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से किया जाएगा सम्मानित, कुछ इस तरह रही डिस्को डांसर की जिंदगी

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Mithun Chakraborty Dadasaheb Phalke Award
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दिग्गज अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। अभिनेता को यह पुरस्कार 8 अक्टूबर 2024 को 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के दौरान प्रदान किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अभिनेता को यह सम्मान दिए जाने की घोषणा की है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर यह जानकारी साझा की है। इतना ही नहीं, मिथुन को पहले पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। लेकिन मिथुन को आज जो नाम मिला है, उसे पाने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी।

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ट्वीट कर दी जानकारी

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा- कोलकाता की गलियों से सिनेमा की दुनिया में ऊंचाइयों तक पहुंचने तक। मिथुन दा के सिनेमाई सफर ने हर पीढ़ी को प्रेरित किया है। मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि दादा साहब फाल्के चयन जूरी ने भारतीय सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए मिथुन चक्रवर्ती को सम्मानित करने का फैसला किया है।

आईए मिथुन चक्रवर्ती के बारे में कुछ खास बातें जानें:

असली नाम गौरांग, नक्सलवादी थे

16 जून 1950 को कोलकाता में जन्मे मिथुन चक्रवर्ती का असली नाम गौरांग था। मिथुन दो भाइयों में छोटे थे। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने रसायन विज्ञान में स्नातक किया। उस समय नक्सलवाद चरम पर था, इसलिए मिथुन भी कुछ लोगों की गलत संगत के कारण अपने परिवार को छोड़कर नक्सली समूह का हिस्सा बन गए। इसी बीच कोलकाता में मिथुन के बड़े भाई की बिजली का करंट लगने से मौत हो गई। भाई की मौत के बाद परिवार अकेला रह गया, इसलिए मिथुन वापस लौटे और जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। जान को खतरा होने के बावजूद मिथुन ने नक्सलवाद से नाता तोड़ लिया। इसी बीच उन्होंने फिल्मों में अपना लक आजमाने का ट्राइ किया।

पहली ही फिल्म से जीता नेशनल अवॉर्ड

फिल्म इंडस्ट्री में मिथुन का सफर प्रेरणादायक रहा है। उनकी हिट फिल्मों में डिस्को डांसर, अग्निपथ शामिल हैं। कोलकाता में जन्मे मिथुन पेशे से एक्टर, प्रोड्यूसर और राजनेता हैं। एक्टर ने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। इनमें हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, पंजाबी फिल्में शामिल हैं। मिथुन ने साल 1977 में फिल्म मृगया से एक्टिंग में डेब्यू किया था। अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला था।

मिथुन का करियर

अपने करियर के शुरुआती दौर में उन्हें मामूली भूमिकाएँ ही मिलीं। मिथुन ने दो अनजाने, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में काम किया, लेकिन स्क्रीन पर उनकी भूमिका कम ही रही। 1979 में रिलीज़ हुई कम बजट की फ़िल्म सुरक्षा ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। प्रेम विवाह फ़िल्म ने भी उनके करियर को काफ़ी आगे बढ़ाया। हिट फ़िल्मों में हमसे बढ़कर कौन, द एंटरटेनर, शानदार, त्रिनेत्र, अग्निपथ, हमसे है ज़माना, वो जो हसीना, डिस्को डांसर और टैक्सी चोर शामिल हैं। 1978 में, अभिनेता ने बंगाली फ़िल्म नदी ठेके सागरे से अपनी शुरुआत की।

शादीशुदा होते हुए कर ली थी श्रीदेवी से शादी

फिल्म इंडस्ट्री में 1984 में फिल्म जाग उठा इंसान के दौरान मिथुन और श्रीदेवी के अफेयर की खूब चर्चा हुई थी। दोनों इतने करीब आ गए थे कि उन्होंने गुपचुप तरीके से शादी भी कर ली थी। एक इंटरव्यू में मिथुन ने खुद इस बात को स्वीकार किया था। मिथुन और श्रीदेवी की शादी के बारे में पता चलने पर उनकी पत्नी योगिता बाली ने आत्महत्या की कोशिश की थी। इसके बाद मिथुन श्रीदेवी से अलग हो गए और अपने परिवार के पास चले गए।

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एक साल में सबसे ज्यादा फिल्में देने का वर्ल्ड रिकॉर्ड

मिथुन से जुड़ा एक रोचक किस्सा ये भी है कि साल 1989 में मिथुन चक्रवर्ती की 17 फिल्में एक साथ रिलीज हुईं, जिनमें इलाका, मुजरिम, प्रेम प्रतिज्ञा, लड़ाई, गुरु और बीस साल बाद जैसी फिल्में शामिल हैं। मिथुन चक्रवर्ती एक साल में सबसे ज्यादा फिल्में करने वाले बॉलीवुड एक्टर होने का वर्ल्ड रिकॉर्ड रखते हैं।

116 कुत्तों के मालिक हैं मिथुन, ऊटी के सबसे बड़े होटल के मालिक

मिथुन चक्रवर्ती के घर में करीब 38 कुत्ते हैं, जबकि ऊटी में उनके घर में 78 कुत्ते हैं। ऊटी के सबसे मशहूर होटलों में से एक मोनार्क मिथुन चक्रवर्ती का है। मसिनागुड़ी में उनके 16 बंगले और कॉटेज हैं। मैसूर में भी उनके 18 कॉटेज और कई रेस्टोरेंट हैं। फिल्मों और बिजनेस के अलावा मिथुन 2014 से राजनीति में भी सक्रिय हैं।

मिथुन चक्रवर्ती का नेट वर्थ करीब 400 करोड़

मिथुन चक्रवर्ती एक बेहतरीन एक्टर होने के साथ-साथ बिजनेस और राजनीति की दुनिया में भी किसी स्टार से कम नहीं हैं। कहा जाता है कि उनका बहुत बड़ा होटल बिजनेस है जिससे वो खूब पैसा कमाते हैं। कहा जाता है कि ऊटी में उनका सबसे बड़ा होटल है। एक्टर की कमाई की बात करें तो मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्मों, बिजनेस और दूसरी चीजों से करीब 400 करोड़ की प्रॉपर्टी बनाई है।

नैशनल अवॉर्ड से लेकर पद्म भूषण तक सम्मान

2024 में मिथुन को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ मिलने वाला है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘मृग्या’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। इसके अलावा, उन्हें 1993 की फिल्म ‘ताहादेर कथा’ के लिए दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार और 1996 की फिल्म ‘स्वामी विवेकानंद’ के लिए तीसरा राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। इन सबके अलावा, अप्रैल 2024 में उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार मिला।

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कलयुगी ‘भरत’ को कुर्सी देकर फंस गए ‘राम’ ? थाली में सजाकर नहीं मिलेगी केजरीवाल को सीएम की कुर्सी

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Aatishi vs Arvind Kejriwal, Delhi Politics
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हमारे देश की राजनीति में अजीब सी बिडंबना रही है…शीर्ष पर बैठे नेता को हमेशा ही अपनी कुर्सी के खिसकने का डर सताते रहा है…मोदी, अमित शाह जैसे नेता भी इससे अछूते नहीं रहे हैं. इस डर पर काबू करने के लिए शीर्ष नेताओं की ओर से कई तरह के तिकड़म लगाए जाते हैं, उभर रहे नेताओं के पर कतरे जाते हैं, दिग्गज नेताओं को साइडलाइन कर दिया जाता है. ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाया जाता है जो उनके इशारे पर काम करते रहें लेकिन जब कुर्सी सौंपने की बारी आती है तो ऐसे लोगों को चिह्नित किया जाता है, जिससे शीर्ष नेतृत्व को भी खतरा न हो और कुर्सी भी सुरक्षित रहे.

बावजूद इसके कई बार कुर्सी के लिए मारामारी हुई है. नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन जैसे नेताओं को भी कुर्सी, किसी और को देनी भारी पड़ चुकी है. केजरीवाल ने काफी सोच-समझ कर आतिशी को दिल्ली की कुर्सी थमाई है लेकिन सीएम बनते ही आतिशी इतनी एक्टिव हो चुकी हैं कि आने वाले समय में क्या होगा इस पर सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या आतिशी को सीएम बनाना केजरीवाल के लिए भारी पड़ने वाला है? अभी तक एक बार भी मंदिर नहीं जाने वाली आतिशी, सीएम बनने के बाद मंदिर क्यों जा रही हैं? आतिशी के सीएम बनते ही आम आदमी पार्टी सरकार की कैबिनेट इतनी एक्टिव कैसे हो गई कि नेता, दिल्ली की सड़कों पर उतर कर मुआयना करने लगे ? आखिर क्या है कहानी…

राजनीति में ‘भरोसा’ मतलब अपने पैर पर कुल्हाड़ी

बचपन से ही हम ये कहावत सुनते आ रहे हैं कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता…बेटा-बाप का नहीं होता… दामाद-ससुर का नहीं होता…कोई किसी का नहीं होता. अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेता किसी भी रिश्ते की तिलांजलि दे सकते हैं. इसके  कई उदाहरण हम भारतीय राजनीति में भी देख चुके हैं. ऐसे में आतिशी पर भरोसा जताना भी केजरीवाल को भारी पड़ सकता है…वो कैसे चलिए समझते हैं.

आतिशी काफी पढ़ी लिखी नेताओं में से एक हैं या ये भी कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी की सबसे पढ़ी लिखी नेता हैं. शराब कांड में जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जेल में था, तो आतिशी और सौरभ भारद्वाज जैसे नेताओं ने सरकार से लेकर जमीन तक सब कुछ संभाला था. सबसे ज्यादा मंत्रालय आतिशी के पास थे और उन्होंने सभी मंत्रालयों के काम बखूबी संभाले. स्वाती मालीवाल केस में आतिशी के एक्टिवनेस ने उन्हें शीर्ष नेतृत्व के और करीब ला दिया. यही कारण था कि जब चुनने की बारी आई तो केजरीवाल ने आतिशी को चुना. सीएम बनने के बाद अपने पहले प्रेस कांफ्रेंस में आतिशी ने बगल में एक कुर्सी खाली रखी, खुद को भरत के समान बताया. इससे पहले सिसोदिया खुद को लक्ष्मण के समान बता चुके हैं. इसका सीधा मतलब यही है कि केजरीवाल, इन लोगों की नजरों में प्रभु श्री राम हैं जो शराब कांड में दिल्ली के तिहाड़ जेल में वनवास पर गए थे.

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आतिशी ने भी अपनाया सॉफ्ट हिंदुत्व फार्मूला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वामपंथ के करीब मानी जाने वाली आतिशी, सीएम बनते ही सीधे Connaught Place के प्राचीन हनुमान मंदिर पहुंच गईं. उससे पहले शायद ही उन्हें कभी मंदिरों में ऐसे दर्शन करते हुए देखा गया था. इसे आम आदमी पार्टी के सॉफ्ट हिंदुत्व वाली छवि को बढ़ाने  के एक प्रयास के रूप में देखा गया. उसके बाद आतिशी ने सरकार की कई ऐसी योजनाओं को मंजूरी दी है, जिसका सीधा लाभ आने वाले समय में Delhi Vidhansabha Chunav 2025 में देखने को मिलेगा. कोरोना वॉरियर्स को 1-1 करोड़ रुपये की सम्मान राशि देने का मामला हो या फिर दिल्ली की महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के जरिए 1000 रुपये हर महीने देने का मामला हो, आतिशी के हस्ताक्षर से अब दिल्ली के सारे काम हो रहे हैं.

दिल्ली सरकार के मंत्री आतिशी के इशारे पर काम कर रहे हैं. आज दिल्ली कैबिनेट, सड़कों पर उतरी और स्थिति का आंकलन किया तो य़ह आतिशी के इशारे पर ही किया गया. तमाम राजनीतिक विश्लेषक भी ये मानने लगे हैं कि आतिशी, केजरीवाल की बेहतर उत्तराधिकारी साबित हो सकती हैं. आम आदमी पार्टी के कई नेता भी आतिशी की कार्यशैली की पहले ही तारीफ कर चुके हैं. भले ही आतिशी का राजनीतिक करियर काफी लंबा न रहा हो लेकिन इतने कम समय में पार्टी कैडर्स की पसंद बनना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है. दूसरी ओर पूरी तरह से बेदाग छवि वाली आतिशी को अब दिल्ली का सीएम बनाया गया है तो पार्टी कैडर्स अब उनमें अपनी उम्मीद ढूंढने लगे हैं.

थाली में सजाकर नहीं मिलेगी केजरीवाल को कुर्सी

आम आदमी पार्टी के जो नेता पिछले कुछ हफ्तों तक जमीन पर नहीं उतरे थे…वे अब जमीन पर उतर कर स्थिति का जायजा ले रहे हैं…आने वाले कुछ ही महीनों में दिल्ली में चुनाव है, यह इसका असर भी हो सकता है लेकिन इसके पीछे आतिशी की रणनीति को भी नकारा नहीं जा सकता. इससे इतना तो साफ हो गया है कि आतिशी, शीर्ष नेतृत्व के आगे खुद की तगड़ी दावेदारी पेश करने की तैयारी में हैं. आने वाले चुनाव में वो थाली में सजा कर सीएम की कुर्सी केजरीवाल को परोसेंगी, इसकी संभावना काफी कम नजर आती है.

कलयुग के राम और लक्ष्मण शराब घोटाले के मामले में तिहाड़ की यात्रा के बाद जमानत पर बाहर हैं. ऐसे में कलयुग के भरत पर भी चीजों को लेकर उतना ही भरोसा किया जा सकता है, जितना भरोसा रावण को विभीषण पर था और बाली को सुग्रीव पर था. इससे इतर अगर देखें तो अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर दिल्ली की जनता का भरोसा पहले की अपेक्षा थोड़ा डगमगा गया है. पार्टी को 2013 में इसलिए 28 सीटें मिली थी क्योंकि लोगों के मन में ये विश्वास था कि ये बिल्कुल नए तरीके की पार्टी है, जो कांग्रेस और बीजेपी की तरह नहीं है.

2014 लोकसभा चुनाव में सातों सीटें हारने के बाद पार्टी विधानसभा में 67 सीटें जीतने में कामयाब रही. उस समय नायब इमाम की मुस्लिम लोगों से वोट देने की अपील पर पार्टी ने कहा था कि हमें आपके फ़तवे की ज़रूरत नहीं है. ये वो जज्बा था जिसने पार्टी को बिल्कुल अलग दिखाया लेकिन 2018-19 आते ही पार्टी ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली. हनुमान चालीसा का पाठ हो या फिर मंदिरों का भ्रमण…यह सब 2018-19 के बाद से ही शुरु हुआ. उसके बाद एक एक करके आम आदमी पार्टी की सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे, शीर्ष नेता जेल भी गए. यही कारण है कि पार्टी को लेकर लोगों के विश्वास में भी कमी आई है और लोग यह समझ चुकें हैं कि आप पार्टी भी कोई अलग तरह की पार्टी नहीं है.

आतिशी पर ही फोड़ा जाएगा ठीकरा

ऐसे में इसका असर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भी देखने को मिलेगा. पार्टी की सीटें कम भी होती हैं तो उसका ठीकरा केजरीवाल और सिसोदिया पर नहीं बल्कि आतिशी पर ही फोड़ा जाएगा लेकिन पार्टी अगर रिकार्ड मार्जिन से जीतती है तो उसका क्रेडिट आतिशी को नहीं मिलेगा, आतिशी भी यह बात बखूबी समझती हैं. आपको बता दें कि पूरी की पूरी आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के इर्द गिर्द घूमती है. इन्हीं में इतना पावर है कि विधायकों को इधर उधर कर सकें. ऐसे में आने वाले समय में दिल्ली में भी नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी या हेमंत सोरेन और चंपई सोरेन जैसा कांड होगा, या आतिशी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओ को दफन कर देंगी, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है.

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योगी के सलाहकार अवनीश अवस्थी की बढ़ीं मुश्किलें, पहले 50 करोड़ का झमेला, अब पूर्वांचल एक्सप्रेसवे घोटाले में आया नाम

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Yogi's advisor Avnish Awasthi
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यूपी के चर्चित आईएएस अधिकारी और वर्तमान में योगी के सलाहकार अविनाश अवस्थी की मुश्किलें इन दिनों कम होती नजर नहीं आ रही हैं। पिछले दिनों मीडिया में एक खबर फैली जिसमें कहा जा रहा था कि उत्तर प्रदेश के एक पूर्व आईएएस के उत्तराखंड स्थित घर से 50 करोड़ की चोरी हो गई। हालांकि इस मामले में सीधे तौर पर आईएएस का नाम कोई नहीं लेता दिखा, लेकिन आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने बेखौफ होकर इस मामले में अविनाश अवस्थी का नाम लेकर सियासी हलचल मचा दी। इस चोरी की चर्चा के बीच अविनाश अवस्थी ने ट्वीट कर कहा कि वह उन पर आरोप लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, लेकिन इस बंगले की चोरी की शिकायत प्रधानमंत्री से भी की गई है।

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क्या था मामला?

अवनीश अवस्थी की एक्स पर पोस्ट के अनुसार, “मैंने देखा है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ और ‘यूट्यूब’ पर वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें मुझ पर कई झूठे आरोप लगाए गए हैं। मैं इन गलत दावों का कड़ा विरोध करता हूं। मैं यह बताना चाहता हूं कि इस घटना में शामिल सभी पक्षों को गंभीर कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अपने पेशे की शुरुआत से ही मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहा हूं। चूंकि मेरा 37 साल का सिविल सेवा करियर बेदाग रहा है, इसलिए मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए जा रहे हैं। तथ्यों से परे, बिना किसी विश्वसनीय स्रोत के फैलाए गए ऐसे हानिकारक प्रयास और अफवाहें गलत हैं। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

अखिलेश के ट्वीट से मचा बवाल

जानकारी के अनुसार, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के ट्वीट के बाद यह मामला सामने आया। इसी बीच राजनीतिक कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने अधिकारी का खुलकर नाम लेते हुए एक पोस्ट किया, जिसके बाद विवाद और बढ़ गया। अमिताभ ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट कर लिखा कि हाल ही में उत्तराखंड के भीमताल में यूपी के पूर्व नौकरशाह और वर्तमान में यूपी सरकार के सलाहकार के बंगले से 50 करोड़ की कथित चोरी की खबर आई है। इसके लिए मैंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर इन तथ्यों से अवगत कराया है और सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर निष्पक्ष जांच की मांग की है।

पोस्ट कर मांगी माफी

अमिताभ की इस पोस्ट के बाद राजनीतिक चर्चा और तेज हो गई है। मुख्यमंत्री योगी के सलाहकार अवनीश अवस्थी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर द्वारा उन पर लगाए गए इस तरह के बेबुनियाद आरोपों की कड़ी निंदा की है और उन्हें नोटिस जारी करने की धमकी दी है। वहीं, अवनीश अवस्थी के नोटिस के बाद अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी ने अवनीश अवस्थी से बिना शर्त माफी मांगी है। उन्होंने यह भी कहा है कि उन्होंने अपनी पिछली पोस्ट डिलीट कर दी है।

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पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे में घोटाला

इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोगी अवनीश अवस्थी का नाम पूर्वांचल एक्सप्रेसवे घोटाले में सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस घोटाले के बारे में शिकायत मिली है, जिसमें दावा किया गया है कि इस हाईवे प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई है। खबरों में बताया गया है कि पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट में गड़बड़ी के दावे पहले भी किए जा चुके हैं। इस बार जांच में 535 करोड़ रुपये की हेराफेरी का मामला सामने आया है। अवस्थी के निर्देश पर कई वित्तीय गड़बड़ियां की गई हैं। इस घोटाले को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठ रहे हैं।

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे में 535 करोड़ की अनियमितता की जांच हो: अमिताभ

वहीं, आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर के हवाले से कहा गया है कि उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) ने एक्सप्रेसवे के निर्माण में बड़ी वित्तीय अनियमितताएं की हैं। ठेकेदारों को गलत तरीके से भुगतान किया गया और परियोजना की लागत में भी धोखाधड़ी की गई। इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए अमिताभ ठाकुर ने प्रधानमंत्री से इस मामले की जांच के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है।

ठाकुर ने ऑडिट रिपोर्ट का दिया हवाला

ऑडिट रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि हाईवे प्रोजेक्ट के छह क्षेत्रों में 10.4 करोड़ रुपये का भुगतान गलत तरीके से किया गया। इसके अलावा, कुछ अन्य मामलों में 438.8 करोड़ रुपये का भुगतान अनियमित तरीके से किया गया। ऑडिट में कुल मिलाकर 535 करोड़ रुपये से अधिक के वित्तीय उल्लंघन पाए गए हैं। इस मामले में राज्य प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में इतनी वित्तीय अनियमितता कैसे हो सकती है। इस तरह की पहल में अनियमितताओं की खबरें पहले भी कई बार सामने आ चुकी हैं।

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