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Sarhad Restaurant: पंजाब में वाघा-अटारी बॉर्डर के पास है अनोखा रेस्टोरेंट, परोसे जाते हैं पाकिस्तानी और भारतीय व्यंजन

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Sarhad Restaurant
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भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव और सीमाओं की चर्चा अक्सर सामने आती है, लेकिन पंजाब के अमृतसर में स्थित सरहद रेस्टोरेंट एक ऐसा स्थान है जो इन दोनों देशों के बीच की सांस्कृतिक और खाद्य विरासत को एक साथ जोड़ता है। यह रेस्टोरेंट वाघा बॉर्डर के करीब स्थित है और यहाँ भारतीय और पाकिस्तानी व्यंजन एक ही छत के नीचे परोसे जाते हैं। इस अनोखे रेस्टोरेंट का उद्देश्य न केवल लोगों को स्वादिष्ट खाना परोसना है, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना और आपसी सद्भाव को बढ़ावा देना भी है।

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रेस्टोरेंट की स्थापना और उद्देश्य

सरहद रेस्टोरेंट की स्थापना अमृतसर के करीब वाघा-अटारी बॉर्डर के निकट की गई थी, जिसे भारत और पाकिस्तान की सीमा पर सबसे प्रमुख स्थानों में से एक माना जाता है। इस रेस्टोरेंट का नाम भी ‘सरहद’ यानी ‘सीमा’ पर रखा गया है, जो भारत-पाकिस्तान के बीच की विभाजन रेखा को संदर्भित करता है।

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इस रेस्टोरेंट का मुख्य उद्देश्य केवल स्वादिष्ट खाना परोसना नहीं है, बल्कि भारतीय और पाकिस्तानी लोगों के बीच साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को सम्मानित करना और दोनों देशों के बीच की मित्रता को बढ़ावा देना है। यह रेस्टोरेंट एक ऐसा मंच है जहाँ लोग सीमाओं से परे दोस्ती, भाईचारे, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का आनंद ले सकते हैं।

पाकिस्तानी और भारतीय व्यंजन का संगम

सरहद रेस्टोरेंट का मेन्यू दोनों देशों की लोकप्रिय और पारंपरिक व्यंजनों से सजा हुआ है। पाकिस्तानी व्यंजनों में लाहौरी कुजिन का प्रमुख स्थान है, जो अपने विशेष मसालों और पारंपरिक स्वाद के लिए जानी जाती है। वहीं, भारतीय व्यंजनों में पंजाबी तड़का, अमृतसरी कुलचा, तंदूरी रोटियां और विविध शाकाहारी और मांसाहारी पकवान शामिल हैं।

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वास्तुकला और सजावट

सरहद रेस्टोरेंट की वास्तुकला और सजावट भी विशेष रूप से दोनों देशों की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। रेस्टोरेंट की इमारत और उसके इंटीरियर्स को पाकिस्तानी और भारतीय कला और डिज़ाइन से सजाया गया है। यहाँ के दीवारों पर पाकिस्तानी ट्रक आर्ट और भारतीय लोक कला के अद्भुत नमूने देखे जा सकते हैं। ये कला के रूप दोनों देशों की सांस्कृतिक संपदा को सुंदरता से प्रस्तुत करते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन

सरहद रेस्टोरेंट सिर्फ खाने-पीने की जगह नहीं है, बल्कि यहां समय-समय पर दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाले कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। दोनों देशों के बीच लोक संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

शांति और सद्भाव का संदेश

सरहद रेस्टोरेंट सिर्फ़ एक व्यावसायिक उपक्रम नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि कला, संस्कृति और भोजन के ज़रिए शांति और सद्भाव का संदेश सीमाओं के पार कैसे फैलाया जा सकता है। रेस्टोरेंट का मुख्य लक्ष्य यह दिखाना है कि चाहे राजनीतिक परिस्थितियाँ कैसी भी हों, लोग एक-दूसरे के साथ सद्भाव और भाईचारे के साथ रह सकते हैं। यह जगह दिखाती है कि भोजन और कला सांस्कृतिक विभाजन को पाटने का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकते हैं।

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1968 में लापता हुआ था IAF का विमान, 2024 में भारतीय सेना को मिले 4 शव, ऐसे हुआ था हादसा

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1968 में भारतीय वायुसेना का AN-12 विमान लापता हो गया था और अब 56 साल बाद भारतीय सेना को इसके मलबे के साथ 4 शव मिले हैं। एक सैन्य ऑपरेशन दल ने बर्फ से ढके पहाड़ों से ये शव बरामद किए हैं। यह ऑपरेशन ‘चंद्र भागा’ नाम के एक बड़े ऑपरेशन का हिस्सा था। विमान जम्मू-कश्मीर से उड़ान भरने के बाद खराब मौसम का सामना कर रहा था और उसी दौरान लापता हो गया था। इसके बाद कई सालों तक विमान के मलबे या उसमें सवार लोगों का पता नहीं चल सका।

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1968 में हुआ हादसा

7 फरवरी, 1968 को भारतीय वायुसेना का AN-12 विमान चंडीगढ़ से लेह के लिए नियमित मिशन पर था। विमान ने जम्मू-कश्मीर से उड़ान भरी और कुछ ही देर बाद लद्दाख की ऊंचाइयों के पास संपर्क टूट गया। विमान में वायुसेना के कर्मियों और चालक दल सहित 102 लोग सवार थे। विमान अचानक खराब मौसम में फंस गया और उसके बाद उसका पता नहीं चल पाया।

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विमान की खोज

घटना के बाद भारतीय सेना और वायुसेना ने तुरंत खोज और बचाव अभियान चलाया, लेकिन खराब मौसम, ऊंचे पहाड़ और दुर्गम इलाके के कारण विमान का कोई सुराग नहीं मिल सका। इसके बाद भी कई प्रयास किए गए, लेकिन विमान का मलबा और उसमें सवार लोग कभी नहीं मिले। करीब 30 साल बाद 1997 में भारतीय सेना को हिमालय की ऊंचाई वाले इलाकों में विमान का मलबा और कुछ मानव अवशेष मिले। लेकिन उस समय भी सभी शव और विमान के सभी हिस्से नहीं मिल पाए थे।

लंबे समय से चल रहा था सर्च ऑपरेशन

2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने विमान का मलबा खोजा था। इसके बाद सेना खासकर डोगरा स्काउट्स ने कई ऑपरेशन चलाए। 2005, 2006, 2013 और 2019 में चलाए गए सर्च ऑपरेशन में डोगरा स्काउट्स सबसे आगे रही। 2019 तक सिर्फ पांच शव बरामद हुए थे।

2024 में मिले 4 शव

2024 में, 56 साल बाद, भारतीय सेना के पर्वतीय अभियानों में शामिल दल को लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्र में हिमाच्छादित मलबे में 4 शव मिले। यह शव भारतीय वायुसेना के उस AN-12 विमान के सवार लोगों के हैं, जो 1968 में लापता हो गए थे। यह खोज हिमालय के दुर्गम और बर्फीले क्षेत्रों में की गई, जहाँ मौसम की अत्यधिक कठिनाइयों के कारण पहले कभी पूरी तरह से तलाशी नहीं ली जा सकी थी।

तीन जवानों की पहचान हुई

इस बार मिले चार शवों में से तीन शव सही सलामत मिले जबकि चौथे के अवशेष मिले। तीनों जवानों की पहचान उनके पास मिले दस्तावेजों से हुई। ये जवान हैं सिपाही नारायण सिंह (एएमसी), मलखान सिंह (पायनियर कोर) और थॉमस चेरियन (सीईएमई)।

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डोगरा स्काउट्स ने किया ऑपरेशन का संचालन

एक अधिकारी ने बताया, शव के साथ मिले दस्तावेजों से चौथे व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकी, लेकिन उसके परिजनों का पता लगा लिया गया है। चंद्रभागा ऑपरेशन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सेना अपने जवानों के परिवारों को सांत्वना देने के लिए कितनी दृढ़ संकल्पित है। उच्च ऊंचाई वाले ऑपरेशनों में अपनी विशेषज्ञता के लिए मशहूर डोगरा स्काउट्स ने इस ऑपरेशन का नेतृत्व किया है। इन शवों की बरामदगी से उन परिवारों को राहत मिली है, जो दशकों से इंतजार कर रहे थे। अन्य यात्रियों के अवशेषों की तलाश जारी है। यह ऑपरेशन 10 अक्टूबर तक जारी रहेगा।

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‘शर्मा जी’ तो निकले इस्लाम के समर्थक, भारत में सालों तक छिपा रहा सिद्दीकी परिवार, घर में मौलवियों की तस्वीरों से खुला राज

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Muslim family living Hindus was caught Bengaluru
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कर्नाटक के बेंगलुरु से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। रविवार को यहां पुलिस ने चार पाकिस्तानी नागरिकों को पकड़ा, जो शर्मा परिवार बनकर घूम रहे थे। पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, संदिग्धों में 48 वर्षीय राशिद अली सिद्दीकी, 38 वर्षीय आयशा और महिला के माता-पिता, 61 वर्षीय रुबीना और 78 वर्षीय हनीफ मोहम्मद शामिल हैं। वो अपना नाम शंकर शर्मा, आशा रानी, ​​राम बाबू शर्मा और रानी शर्मा रखे हुए थे।

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पास में थे भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड

शुरुआती जांच में पता चला है कि पाकिस्तानी नागरिक की पत्नी बांग्लादेश की है और वे पहले ढाका में रहते थे। रविवार को जब पुलिस ने घर पर छापा मारा तो परिवार सामान पैक करने में व्यस्त था। पूछताछ के दौरान सिद्दीकी ने खुद को शर्मा बताया और कहा कि वह 2018 से बेंगलुरु में रह रहा है। उसके पास से भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड भी मिला है। इसमें सभी नाम दर्ज हैं। जब पुलिस घर में दाखिल हुई तो दीवार पर मेहदी फाउंडेशन इंटरनेशनल जशन-ए-यूनुस लिखा हुआ था।

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घर में थीं मौलवियों की तस्वीरें

बेंगलुरू पुलिस के अनुसार, परिवार शंकर शर्मा, आशा रानी, ​​रामबाबू शर्मा और रानी शर्मा के नाम से बेंगलुरु में रह रहा था। जांच के दौरान चारों ने पुलिस को अपने पासपोर्ट और आधार कार्ड उपलब्ध कराए। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने घर की दीवार पर मक्का-मदीना और मेहंदी फाउंडेशन इंटरनेशनल जश्न-ए-यूनुस लिखा था। इसके अलावा, घर में कुछ मौलवियों की तस्वीरें भी लगी हुई थीं।

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पाकिस्तान में उत्पीड़न के बाद गया बांग्लादेश

राशिद सिद्दीकी ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह पाकिस्तान के लियाकताबाद का रहने वाला है। उसका परिवार लाहौर से है, और उसकी पत्नी भी लाहौर से है। उसने बताया कि उन्होंने साल 2011 में एक इंटरनेट समारोह में शादी की थी। उस समय वह बांग्लादेश में अपने रिश्तेदारों के साथ रह रही थी। सिद्दीकी ने बताया कि पाकिस्तान में उसे परेशान किया गया और उसे बांग्लादेश जाना पड़ा।

ऐसे पहुंचा भारत

सिद्दीकी जब बांग्लादेश गया था, तब वह वहां प्रचारक था। सिद्दीकी को 2014 में बांग्लादेश में धमकियाँ मिलनी शुरू हुईं। इसके बाद वह परवेज मेहंदी फाउंडेशन के संपर्क में आया और भारत आ गया। सिद्दीकी ने पुलिस को बताया कि वह भारत आने के लिए पश्चिम बंगाल के मालदा गया था। वह भारत आया और कुछ दिन दिल्ली में बिताए, उसके बाद बेंगलुरु जाकर बस गया। सिद्दीकी भारत में रहने के दौरान खाद्य पदार्थ बेचता था और तेल की आपूर्ति करता था।

पुलिस ने भेजा हिरासत में

सच्चाई सामने आने के बाद पुलिस ने इन चारों को गिरफ्तार कर लिया। बेंगलुरु पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां कोर्ट ने उन्हें 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया। साथ ही पुलिस ने आरोपियों के अन्य साथियों की तलाश शुरू कर दी है। वहीं, आईपीसी की धारा 420, 468, 471 और पासपोर्ट एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

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‘साइबर गुलामी’ में कैसे फंसे 30 हज़ार भारतीय? विदेशों में फंसे ज़्यादातर लोग पंजाबी हैं

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भारत में बढ़ती बेरोजगारी के कारण कई लोग विदेश में नौकरी पाने और खूब सारा पैसा कमाकर अपना जीवन खुशहाल बनाने की उम्मीद में जाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ घूमने के लिए विदेश जाते हैं और एक नए अनुभव की तलाश में टूरिस्ट वीजा पर निकल पड़ते हैं। लेकिन अब इन सभी लोगों के लिए एक बेहद हैरान करने वाली और चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है। मिली जानकारी के मुताबिक भारत से टूरिस्ट वीजा पर गए करीब 30 हजार नागरिकों के लापता होने की खबर सामने आई है, जो साइबर ठगी के एक नए और गंभीर पहलू की ओर इशारा कर रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इन लोगों को संभावित रूप से साइबर गुलाम बना लिया गया है और उन पर अपराध करने का दबाव बनाया जा रहा है।

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गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले आव्रजन ब्यूरो (बीओआई) ने एक डेटा तैयार किया है और उसमें पाया गया है कि जनवरी 2022 से मई 2024 के बीच भारत से 73,138 यात्रियों ने कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम के लिए विजिटर वीजा पर यात्रा की।

हजारों लोग भारत नहीं लौटे

इनमें से 29,466 भारतीय अभी तक वापस नहीं लौटे हैं। 20-39 आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग आधी यानी 17,115 है। यह जानकारी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से मिली। इनमें से 90 फीसदी लोग पुरुष हैं।

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सबसे ज्यादा लोग पंजाब से गए

भारत वापस न लौटने वालों में सबसे ज़्यादा पंजाब (3,667), महाराष्ट्र (3,233) और तमिलनाडु (3,124) से हैं। दूसरे राज्यों से जाने वालों की संख्या बहुत कम है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आशंका है कि इन लोगों पर दबाव बनाकर भारत में रहने वाले लोगों के साथ साइबर धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इन लोगों को नौकरी का लालच देकर साइबर गुलाम बनाया गया है।

साइबर गुलामी क्या है

साइबर गुलाम के तौर पर काम करने वाले लोग दबाव में रहते हैं। इस मामले में, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल व्यक्तियों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है। कई भारतीय हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पारंगत हैं। कई लोग इन घोटालों का शिकार हो जाते हैं और इस प्रक्रिया में हज़ारों रुपये गँवा देते हैं।

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राज्यों को वेरिफिरेशन करने का कहा 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि केंद्र सरकार की एक उच्च स्तरीय समिति ने अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इन लोगों का विवरण सत्यापित करने और इकट्ठा करने का आदेश दिया है। आपको बता दें कि भारत में हाल ही में साइबर अपराध के कई मामले सामने आए हैं, जहाँ पीड़ितों को विभिन्न धोखाधड़ी योजनाओं का उपयोग करके ठगा जा रहा है।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए यह जरूरी है कि सभी संबंधित एजेंसियां ​​तत्काल कार्रवाई करें ताकि इन नागरिकों को बचाया जा सके और साइबर अपराधों को रोका जा सके। यह न केवल इन नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी है बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि साइबर धोखाधड़ी के इस नए रूप से सावधान रहें।

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Jammu & Kashmir: अपने फैसलों के ‘गुलाम’ हो गए गुलाम नबी आजाद, न घर के रहे न घाट के!

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GHULAM NABI AZAD DOWNFALL, Jammu & Kashmir Election 2024
Source- Nedrick News

कहा जाता है कि आप राजनीति में जितना ज्यादा समय बिताते है…उतने ही अनुभवी और परिपक्व नेता बनते हैं…कब, कहां और क्या नहीं बोलना है..यह आप सीख जाते हैं…शरद पवार, शंकरन अच्युतानंदन और नवीन पटनायक जैसे अन्य कई नेता इसके साक्षात उदाहरण हैं…इस लिस्ट में दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद का नाम भी होता लेकिन उनके कई फैसलों ने उनके अनुभव का गुड़ गोबर कर दिया…50 सालों का उनका राजनीतिक अनुभव धरा का धरा रह गया और आज के समय में स्थिति ऐसी हो गई है कि न तो गुलाम नबी आजाद को कोई पूछ रहा है…न ही उनकी पार्टी को कोई पूछ रहा है और न ही उनके साथ कोई खड़ा होना चाहता है.

50 सालों तक कांग्रेस की वफादारी के बाद पिछले 2 सालों में उनके ऊपर बीजेपी का मुखबिर होने का जो टैग लगा, उससे सबकुछ बर्बाद हो गया…अब गुलाम नबी आजाद को न रातों में नींद आती है और न ही उनमें पहले जैसा जोश दिखता है….आखिर जम्मू कश्मीर के सीएम से लेकर केंद्र सरकार में कई बार मंत्रालय संभालने वाले आजाद ने कहां गलती कर दी कि आज जम्मू कश्मीर में उनका वजूद भी खत्म होने के कगार पर खड़ा है. इस लेख में मैं आपको एक कथित अनुभवी और अपरिपक्व नेता गुलाम नबी आजाद के बर्बाद होने के पीछे की कहानी बताऊंगा.

गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस

गुलाम नबी आजाद हमेशा से ही कांग्रेस के सबसे करीबी नेताओं में से एक रहे…इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव से लेकर मनमोहन सरकार में भी उन्हें अहम  मंत्रालय का जिम्मा दिया गया…इसके अलावा कांग्रेस ने उन्हें जम्मू कश्मीर का सीएम भी बनाया…अपने 50 साल के राजनीतिक करियर में गुलाम नबी आजाद सिर्फ 4 बार ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे…इसके बावजूद कांग्रेस ने उन्हें 5 बार राज्यसभा सांसद बनाया…राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया…पार्टी में कई अहम पद दिए लेकिन समय के साथ आजाद, आजाद नहीं रहे…भावनाओं ने उन्हें मानसिक तौर पर जकड़ लिया था…उनकी भावनाएं उनके अनुभव पर भारी पड़ रही थी…

साल 2021 में गुलाम नबी आजाद का पांचवा राज्यसभा कार्यकाल खत्म हुआ था…देश में बदल रही राजनीतिक हवा को देखते हुए कांग्रेस अब उनके विकल्प की तलाश कर रही थी..बस गुलाम नबी आजाद को यही बात बुरी लग गई और यही से कांग्रेस के जी-23 गुट की बयानबाजियां शुरु हो गई…कांग्रेस का यह गुट अपने ही नेताओं और पार्टी के फैसलों पर सवाल खड़ा करने लगा…भाजपा ने भी इसका पूरा फायदा उठाया और मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जी-23  नेताओं को तोड़ने के प्रयास भी होने लगे.

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5 पन्ने में समेट दिया 5 दशक की वफादारी

कहा जाता है कि जब कांग्रेस पार्टी ने गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा न भेजने का डिसीजन ले लिया…उसी दौरान आजाद ने 26 अगस्त 2022 को कांग्रेस पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र देते हुए 5 पन्नों का अपना इस्तीफा सोनिया गांधी को भेज दिया…कांग्रेस में बिताए अपने 5 दशक को उन्होंने 5 पन्नों में समेट दिया..साथ ही आजाद ने अपनी राजनीतिक पार्टी डेमोक्रेटिक प्रगतिशील आज़ाद पार्टी का गठन भी कर दिया..यहां तक सारी चीजें ठीक थी लेकिन सवाल तब उठे, जब गुलाम नबी आजाद के 5 पन्ने के इस्तीफे में इस्तेमाल की गई भाषा पर गौर किया गया.

अपने पत्र में ग़ुलाम नबी आज़ाद ने राहुल गांधी के व्यक्तित्व और नेतृत्व को निशाने पर लिया और कहा कि ‘जैसे मनमोहन सिंह की सरकार रिमोट कंट्रोल से चलती थी वैसे ही कांग्रेस पार्टी रिमोट कंट्रोल से चल रही है.’ उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की बात नहीं सुनी जाती और अधिकतर फ़ैसले राहुल गांधी और उनके क़रीबी ‘पीए और गार्ड’ लेते हैं…इसके साथ ही पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर भी उन्होंने सवाल खड़े किए थे…कहा जाता है कि जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल गुलाम  नबी आजाद ने अपने पत्र में किया था…वैसी तल्ख भाषा का इस्तेमाल आज तक सिर्फ हिमंता बिस्वा सरमा और सुनील जाखड़ ने ही कांग्रेस छोड़ते वक्त की थी…उस दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद ने भी पार्टी छोड़ी थी, लेकिन किसी ने भी ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया.

गुलाम नबी आजाद का नहीं रहा है अपना जनाधार

इस्तीफे में प्रयोग की गई उनकी भाषा भी उनके अनुभव से मेल खाती नहीं दिखी…राजनीतिक विश्लेषकों ने भी भाषा के प्रयोग के स्तर पर उनकी आलोचना की थी. कई  लोगों ने तो ये भी कहा कि उन्होंने राहुल गांधी पर व्यक्तिगत आरोप लगाए. राहुल गांधी का जो तरीक़ा है वो अपमानजनक था, ये बात सच हो सकती है, लेकिन ये कहना है कि आज कांग्रेस वैसे ही रिमोट कंट्रोल से चल रही है जैसे मनमोहन सिंह की सरकार रिमोट कंट्रोल से चलती थी, वो स्वयं मंत्री थे मनमोहन सिंह की सरकार में, इसलिए उनका ये कहना शोभा नहीं देता था. अगर उस वक़्त सरकार रिमोट कंट्रोल से चल रही थी तो उनको खड़े होकर इसका विरोध करना चाहिए था…लेकिन आजाद तब सत्ता की मलाई चाट रहे थे…

गुलाम नबी आजाद के पार्टी छोड़ते ही जम्मू कश्मीर के कई दिग्गज कांग्रेसी नेता आजाद के पीछे चल पड़े और उनकी पार्टी में शामिल हो गए…दूसरी ओर गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद भाजपा ने आधिकारिक तौर पर उन्हें अपने पाले में करने की तैयारी शुरु कर दी…जो आजाद कांग्रेस में रहते…मोदी को जमकर कोसते थे…वो आजाद अब मोदी के गुणगान में लगे हुए थे…इसी दौरान मोदी सरकार की ओर से आजाद को पद्म भूषण देने का ऐलान कर दिया…आजाद को पद्म भूषण मिला…सोनिया गांधी ने भी उन्हें बधाई दी…अब समय आ चुका था लोकसभा चुनाव 2024 का.

बिना जनाधारा वाले आजाद की बिना जनाधार वाली पार्टी ने जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव 2024 लड़ा और पार्टी की सभी 3 सीटों पर भय़ंकर हार हुई…कुछ सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई…चुनावों से पहले उनकी पार्टी ने घोषणा की थी कि आज़ाद अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे लेकिन जैसी ही आजाद को जमीनी स्थिति का एहसास हुआ उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी…फिर क्या था कांग्रेस के जो नेता आजाद के इस्तीफे के साथ ही उनके साथ चले गए थे…एक-एक कर के वे छिटकने लगे…जम्मू कश्मीर में आजाद की जमीन पर स्थिति क्या है और वह कितना इंपैक्ट डाल सकते हैं…लोकसभा चुनाव 2024 में इसका लेखा जोखा भी सामने आ गया.

अपने फैसलों के बोझ तले दब गए हैं आजाद

धीरे धीरे सभी आजाद से दूरी बनाने लगे…मौजूदा समय में आजाद को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई बड़ा नेता उनकी पार्टी में बचा है…कांग्रेस से इस्तीफे के समय जो भाजपा नेता आजाद की तारीफ में कसीदे पढ़ा करते थे…वे भाजपा नेता अब तो उनका नाम भी नहीं लेते…जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में आजाद की पार्टी 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है…आज तीसरे चरण की अंतिम वोटिंग है…लेकिन किसी भी सीट पर आजाद की हवा चलती नहीं दिख रही है…स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वो किसी राजनीतिक पार्टी को नुकसान पहुंचा पाएं…आपको बता दें कि इस चुनाव में आजाद ने चुनाव प्रचार भी नहीं किया…चुनाव प्रचार में उनकी पार्टी का हश्र क्या होगा…उन्हें बखूबी पता है…पिछले महीने ही स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने खुद को चुनाव प्रचार से अलग कर लिया था…

ओवरऑल अगर देखा जाए तो गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस ने बनाया…आजाद तेजतर्रार नेता रहे लेकिन अपना जनाधार नहीं बना पाए, इसके बावजूद कांग्रेस उन्हें आगे बढ़ाते रही..लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में हार के बाद जब कांग्रेस पार्टी अपने बुरे दौर से गुजर रही थी…उस दौरान आजाद ने कथित तौर पर बहकावे में आकर पार्टी का साथ छोड़ दिया…उन्हें लगा कि अपनी पार्टी बनाकर वह जम्मू कश्मीर में अपना परचम लहरा सकते हैं लेकिन आजाद गलत थे… उनपर बीजेपी का मुखबिर होने का टैग लगा…आजाद ने इस टैग को उतार फेंकने के लिए भी कुछ खास कदम नहीं उठाएं और न ही जम्मू कश्मीर में जमीनी स्तर पर उनकी उतनी सक्रियता दिखी…यही कारण है कि एक समय पर कांग्रेस की राजनीति के ध्रुव माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद आज अपने ही फैसलों के बोझ तले दब गए हैं.

ऐसा अनुभव किस काम का!

बता दें कि जी-23 कांग्रेस पार्टी से रुष्ट नेताओं का एक समह था.., गुलाम नबी आजाद के बाद कांग्रेस ने जी-23 नेताओं को अल्टीमेटम दिया था और आज के समय में स्थिति ऐसी है कि जी-23 शायद एग्जिस्ट भी नहीं करता है…कांग्रेस पार्टी ने भी पिछले कुछ सालों में जबरदस्त वापसी की है…कई राज्यों में पार्टी ने सरकार भी बनाई है तो वही लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस अलग ही जोश में दिखी…मौजूदा समय में गुलाम नबी आजाद के दिमाग में भी ये सारी चीजें चल रही होंगी…उनकी महत्वाकांक्षाएं अभी भी हिलोरे ले रही होंगी..वो अभी भी खुद को अहम पदों पर देखना चाह रहे होंगे लेकिन आजाद, अपने फैसलों के गुलाम हो गए, जिसके कारण उनका राजनीतिक करियर स्वाहा हो गया..ऐसे में भविष्य में जब भी देश के अनुभवी नेताओं का जिक्र होगा, उसमें आजाद का नाम कोई नहीं लेगा.

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पैदा होते ही माता-पिता ने कर दी बच्ची की शादी, 20 साल बाद लिया तलाक, जाने क्या है पूरा मामला

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बाल विवाह… बाल विवाह को रोकने के लिए भारत में आजादी से पहले से ही कानून है. सबसे पहले 1929 में कानून लाया गया था. लेकिन आजाद भारत होने के बाद भी कई राज्यों से बाल विवाह की खबर सामने आती है. वही भारतीय कानून के अनुसार, बाल विवाह वह विवाह है जिसमें या तो महिला की आयु 18 वर्ष से कम होती है या पुरुष की आयु 21 वर्ष से कम होती है. लेकिन हम आपको इस लेख में ऐसे बाल विवाह के बारे में बताएंगे जहाँ 4 महीने की उम्र में बाल विवाह हो चुका था.

ससुराल वाले लड़की को दे रहे थे धमकियां

जैसे की हम आए दिन बाल विवाह के कई मामले सुनते हैं. कहीं 10 साल की उम्र में तो कहीं 12 साल की उम्र में लड़की की शादी कर दी जाती है. लेकिन यह मामला राजस्थान के जोधपुर जिले का है. जिसे जानकर आप हैरान हो जायेगें. यहां शादी के करीब 20 साल बाद एक लड़की को तलाक मिला है. इस लड़की की शादी तब हुई जब यह केवल चार महीने की थी. जी हाँ, जोधपुर की रहने वाली अनीता का 4 महीने की उम्र में बाल विवाह हो चुका था. जब अनीता 15 साल की हुई तो उसके ससुराल वालों ने उस ससुराल आने का दवाब बनाना शुरू कर दिया था. जिसके बाद कई तरह की धमकियां भी दी गई. लेकिन अनीता डरी नहीं और अपने बड़े भाई, बहन की मदद से ससुराल जाने से इनकार करती रही. इन सब के चलते अनीता की मुलाकात सार्थी ट्रस्ट की प्रबंध ट्रस्टी कृति भारती से हुई. जिसके जरिए बाल विवाह को निरस्त करने में मदद मिली.

अनीता के बाल विवाह को निरस्त करने के लिए जोधपुर के फैमिली कोर्ट 2 में केस दायर किया गया. जहाँ फैमिली कोर्ट संख्या 2 के जज वरुण तलवार के द्वारा लड़की के बाल विवाह को निरस्त कर ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है. साथ ही जिस लड़के से उसकी शादी हुई थी उसके परिवार के द्वारा लड़की को केस का खर्च दिलवाने के संबंध में भी आदेश जारी किया गया है. इसके अलाव जज वरुण तलवार कहते है कि बाल विवाह केवल एक कुरीति नहीं बल्कि एक बड़ा अपराध है. इसमें छोटे- छोटे बच्चों का भविष्य खराब हो जाता है और अगर बालिका या बालक बाल विवाह को निरंतर नहीं रखना चाहते तो उनको बाल विवाह निरस्त करवाने का अधिकार है.

अक्षय तृतीया पर होते हैं, राजस्थान के गांवों में बाल विवाह

मुख्य रूप से भारत में मनाया जाने वाला त्योहार अक्षय तृतीया, उस दिन राजस्थान में कई इलाको में बाल विवाह होते हैं. हालाँकि ज्यादातर बाल विवाह ग्रमीण इलाके में होते है. वही कुछ बाल विवाह चोरी छिपे कर दिए जाते है. ऐसे में अदालत ने पहले ही आदेश जारी किया है. कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू होने के बावजूद राज्य में अभी भी बाल विवाह हो रहे हैं. लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट इस बार बाल विवाह को रोकने के लिए काफी सख्त नियम बना दिए हैं.  कोर्ट ने गांवों में चोरी छुपे होने वाले बाल विवाह रोकने के लिए अब पंच सरपंचों को भी जिम्मेदार ठहराया, यानी अब गांव में कोई भी चोरी छिपे बाल विवाह हुआ, तो पंच और सरपंच की खैर नहीं होगी. कोर्ट ने यह निर्देश सरकार को मुख्य सचिव से लेकर सभी जिलों के कलेक्टरों को भी देने के निर्देश दिए.

ट्रंप का अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर दीवार बनाने का प्रस्ताव कितना सही? यहां पढ़ें इससे जुड़ा इतिहास

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Donald Trump's proposal build wall US-Mexico border
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डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने राष्ट्रपति काल के दौरान उठाए गए सबसे विवादित और चर्चित कदमों में से एक अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने का प्रस्ताव था। यह प्रस्ताव तब से विवादों में घिरा हुआ है जब से ट्रंप ने 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान इसे अपने अभियान का केंद्रीय मुद्दा बनाया था। उनका दावा था कि यह दीवार अवैध अप्रवासियों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोकेगी और देश की सुरक्षा में मदद करेगी। हालांकि, इस कदम के आलोचक इसे न केवल मानवता विरोधी बल्कि ऐतिहासिक विडंबना भी मानते हैं, क्योंकि अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा मूल रूप से मेक्सिको का था, जिसे समय के साथ छीन लिया गया।

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अमेरिका-मेक्सिको का साझा इतिहास

संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको का इतिहास बेहद जटिल और संघर्षपूर्ण रहा है। 19वीं सदी के मध्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई मैक्सिकन क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसका सबसे प्रमुख उदाहरण 1846-1848 का यूएस-मेक्सिको युद्ध है, जिसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैक्सिको से वर्तमान कैलिफ़ोर्निया, नेवादा, न्यू मैक्सिको, एरिज़ोना और टेक्सास के बड़े क्षेत्रों को जब्त कर लिया। यह क्षेत्र अब संयुक्त राज्य अमेरिका का अभिन्न अंग है, लेकिन कभी मैक्सिकन संस्कृति और पहचान का केंद्र था।

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इस ऐतिहासिक संदर्भ में, ट्रम्प का दीवार बनाने का प्रस्ताव कई लोगों को विडंबना और असंगति से भरा लगता है। मैक्सिकन इतिहास और अमेरिका के इस भूमि के साथ लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को देखते हुए, ऐसी दीवार बनाना जो इन दोनों देशों के बीच दूरी और विभाजन को बढ़ाए, एक बड़ा विरोधाभास लगता है।

ट्रंप के तर्क

डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों का दीवार बनाने का मुख्य तर्क यह है कि इससे अवैध अप्रवासियों की आमद रुक जाएगी, जिनमें से कई अपराधी, ड्रग तस्कर और हिंसक गतिविधियों में शामिल लोग हैं। ट्रंप ने कहा कि यह दीवार अमेरिका की सीमा सुरक्षा को मजबूत करेगी और देश को बाहरी खतरों से बचाने में मदद करेगी। इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन ने दीवार को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के मुद्दे के रूप में पेश किया।

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हालांकि, दीवार के निर्माण और इसकी प्रभावशीलता पर अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं। आलोचकों का मानना ​​है कि दीवार जैसे उपाय अवैध अप्रवास को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके बजाय, वे कूटनीति और आर्थिक सहयोग के माध्यम से इस समस्या को हल करने का सुझाव देते हैं।

आलोचना और विरोध

ट्रंप के दीवार प्रस्ताव का विरोध करने वाले कई आलोचकों का मानना ​​है कि यह न केवल आर्थिक रूप से अव्यावहारिक है, बल्कि इससे अमेरिका और मेक्सिको के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध भी खराब हो सकते हैं। मेक्सिको से अप्रवासी अक्सर आर्थिक कठिनाइयों और हिंसक स्थितियों से बचने के लिए अमेरिका आते हैं। आलोचकों का यह भी कहना है कि दीवार बनाना केवल एक अस्थायी समाधान है और अप्रवास के मूल कारणों को समझकर समाधान खोजने की जरूरत है।

इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने इस दीवार को लेकर मेक्सिको के साथ एक और विवाद खड़ा कर दिया था, जब उसने कहा था कि दीवार का खर्च मेक्सिको सरकार उठाएगी। मेक्सिको सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया था और इस कदम को अपमानजनक बताया था।

ऐतिहासिक विडंबना

इस पूरे मामले की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस ज़मीन पर यह दीवार बनाई जा रही है, वह कभी मेक्सिको का हिस्सा थी। आलोचकों का कहना है कि अमेरिका, जिसने खुद मेक्सिको के कई हिस्सों पर कब्ज़ा किया था, अब उसी ज़मीन पर दीवार बनाकर सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। यह दीवार दोनों देशों के बीच सिर्फ़ भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी दरार पैदा करेगी।

क्या वाकई समस्याएँ हल होंगी?

अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने का डोनाल्ड ट्रंप का प्रस्ताव सिर्फ़ सुरक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अमेरिका के इतिहास, राजनीति और सामाजिक संबंधों पर भी गहरे सवाल खड़े करता है। यह कदम न सिर्फ़ अमेरिका और मेक्सिको के बीच की सीमा को प्रभावित करता है, बल्कि उनके साझा इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को भी प्रभावित करता है। दीवार बनाने से क्या वाकई समस्याएँ हल होंगी या इससे सिर्फ़ विभाजन को बढ़ावा मिलेगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन अभी के लिए यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना हुआ है।

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क्या पैकेट बंद दूध को गर्म करना सेहत के लिए हानिकारक है? जानिए दूध उबालने का सही तरीका?

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पैकेज्ड दूध को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि इसे गर्म करना चाहिए या नहीं। बाजार में मिलने वाला पैकेज्ड दूध मुख्य रूप से पाश्चराइज्ड होते हैं, जिसे पहले से ही एक निश्चित तापमान पर गर्म किया जाता है और फिर ठंडा करके पैक किया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य दूध में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं को नष्ट करना होता है, ताकि इसे पीना सुरक्षित रहे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या हमें बाजार में बिकने वाले पैकेज्ड दूध को उबालना चाहिए या नहीं। आइए आपको इसका जवाब बताते हैं।

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पैकेज्ड दूध को उबालना एक गलती है!

shivammalik09 इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर एक वीडियो प्रकाशित किया गया है। यह वीडियो पैकेज्ड दूध को उबालने से आगाह करता है क्योंकि यह अस्वस्थ हो सकता है। यह वीडियो बताता है कि दूध के पैकेट के पीछे लेबल से पता चलता है कि दूध को पाश्चुराइज्ड है – यानी, खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म कर दिया गया है और दूध को उबाला गया है। इसके अलावा, इससे इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। इस परिदृश्य में पैकेज्ड दूध का उपयोग करते समय आपके पास दो विकल्प हैं: या तो इसे गर्म करने के बाद तुरंत इस्तेमाल करें, या दूध को सीधे वैसे ही इस्तेमाल कर सकते हैं।

 

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पाश्चराइजेशन का महत्व

पैकेट वाला दूध आमतौर पर पाश्चराइज्ड होता है, यानी इसे पहले से ही उच्च तापमान पर गर्म किया जा चुका होता है और फिर उसे तुरंत ठंडा किया जाता है। यह प्रक्रिया दूध में हानिकारक बैक्टीरिया को मार देती है और इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखती है। इसलिए, पाश्चराइज्ड दूध को बिना गर्म किए भी पी सकते हैं क्योंकि यह पहले से ही सुरक्षित होता है।

उबालने के नुकसान

इस वीडियो में यह भी बताया गया है कि पैकेज्ड दूध को बार-बार उबालने से उसकी पौष्टिकता कम हो जाती है। दरअसल, दूध को बार-बार उबालने से उसमें मौजूद कुछ पोषक तत्व जैसे विटामिन बी12 और प्रोटीन की मात्रा कम हो सकती है। इसलिए अगर पैकेज्ड दूध को सीधे ही फ्रेशनेस के साथ इस्तेमाल किया जाए तो उसे बार-बार गर्म करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, ज्यादा उबालने से दूध का स्वाद बदल सकता है और कई बार यह थोड़ा गाढ़ा या चिपचिपा भी हो सकता है, जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आता।

सही तरीका क्या है?

अगर आप पैकेज्ड दूध को गर्म करना चाहते हैं, तो उसे बहुत देर तक उबालने से बचें। इसे हल्का गर्म करके पीना बेहतर है, ताकि इसके पोषक तत्व बरकरार रहें। खासकर अगर आप बच्चों या बुजुर्गों को दूध दे रहे हैं, तो गुनगुना दूध पीना फायदेमंद हो सकता है। आपको बता दें, पैकेज्ड दूध पाश्चुरीकृत होता है और बिना उबाले भी पीने के लिए सुरक्षित है। हालांकि, अगर आप इसे गर्म करना चाहते हैं, तो इसे हल्का गर्म करना बेहतर है, क्योंकि इसे ज्यादा उबालने से दूध में मौजूद पोषक तत्व खत्म हो सकते हैं।

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फीस न भर पाने से IIT में नहीं हुआ एडमिशन, सुप्रीम कोर्ट ने कराया दलित अतुल दाखिला, कहा- ‘ऑल द बेस्ट’

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अगर आपकी मेहनत और लगन सच्ची हो तो गरीबी भी आपको सफलता पाने से नहीं रोक सकती। यह साबित कर दिखाया है यूपी के दलित अतुल कुमार ने। दरअसल, अतुल को आईआईटी धनबाद में इसलिए दाखिला नहीं मिला क्योंकि वह महज 17,500 रुपये नहीं जुटा पाया। छात्र के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन फीस भरने की डेडलाइन चूक गई। छात्र का आईआईटी में दाखिला पाने का सपना अधूरा रह गया। हालांकि, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी धनबाद को दलित छात्र को दाखिला देने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मेधावी अतुल की योग्यता का आकलन किया और डेडलाइन बीत जाने के बाद भी उसे दाखिला लेने की इजाजत दे दी।

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आईए जानते हैं अतुल कुमार की कहानी?

खबरों की मानें तो मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के टिटोडा गांव के रहने वाले अतुल कुमार ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की। पहले चरण में अतुल को आईआईटी धनबाद के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग में सीट मिल गई। हालांकि, अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण वह कॉलेज की समय सीमा तक अपनी फीस जमा नहीं कर पाए। फीस जमा करने की अंतिम तिथि 24 जून थी। अतुल दलित परिवार से आते हैं; उनकी मां गृहिणी हैं और पिता एक फैक्ट्री में मजदूर हैं। जब तक परिवार गांव से पैसे जुटा पाता, तब तक फीस जमा करने और कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन करने की समय सीमा बीत चुकी थी।

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खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

अतुल कुमार का कहना है कि वह सिर्फ ऑनलाइन वेबसाइट पर ही दस्तावेज जमा कर पाया। इसके बाद उसने झारखंड हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उम्मीद टूटने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 30 सितंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने छात्र का हौसला बढ़ाया और कहा कि कोर्ट पूरा सहयोग करेगा। उन्होंने कॉलेज को नोटिस जारी किया। सीजेआई ने कहा कि हम ऐसे प्रतिभाशाली लड़के को जाने नहीं दे सकते। उसने हर जगह न्याय की गुहार लगाई है। हम उसका आईआईटी धनबाद में एडमिशन का आदेश देते हैं। उसे उसी बैच में दाखिला मिलेगा जिसमें उसे एडमिशन मिलना था। उसके एडमिशन में एकमात्र बाधा यह थी कि वह फीस नहीं दे सकता था।

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ऑल द बेस्ट…अच्छा करो

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव से आए 18 वर्षीय छात्र से कहा, ” ऑल द बेस्ट। अच्छा करो।” राहत महसूस कर रहे अतुल ने कहा कि पटरी से उतरी ट्रेन अब पटरी पर आ गई है। मुझे सीट मुहैया कराई गई है। मैं बहुत खुश हूं। कोर्ट ने कहा कि मेरी सीट सिर्फ आर्थिक समस्याओं के कारण नहीं छीनी जा सकती। अतुल ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से मदद मिलने की उम्मीद है।

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जानें दुनिया के सबसे ज्यादा फाइटर जेट वाले टॉप 10 देशों के बारे में, भारत और पाकिस्तान की रैंकिंग भी है देखने वाली

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किसी भी देश की ताकत उसकी सेना के आकार और उसके पास मौजूद तकनीकी हथियारों के प्रकार से मापी जाती है। आजकल तकनीक में बहुत बदलाव आ गया है जिसके कारण हर देश आधुनिक तकनीकी हथियारों का इस्तेमाल करता है और लड़ाकू विमानों में भी निवेश करता है। क्योंकि लड़ाकू विमानों की संख्या किसी देश की वायु रक्षा और सामरिक ताकत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। इन विमानों का इस्तेमाल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने, देश की सीमाओं की रक्षा करने और हवाई श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए किया जाता है। आइए जानते हैं दुनिया के सबसे ज़्यादा लड़ाकू विमानों वाले टॉप 10 देश और जानें इस सूची में भारत और पाकिस्तान कहां हैं:

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संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 2,850+

अमेरिका के पास दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे आधुनिक वायुसेना है। इसके पास F-22 रैप्टर, F-35, F-15 और F-16 जैसे उन्नत लड़ाकू विमान हैं।

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रूस

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 1,500+

रूस के पास Su-27, Su-30, Su-35 और MiG-29 जैसे आधुनिक और उन्नत लड़ाकू विमान हैं, जो इसे वायु शक्ति में शीर्ष पर रखते हैं।

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चीन

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 1,200+

चीन की वायु सेना तेज़ी से बढ़ रही है। J-20 और J-10 जैसे घरेलू विमानों और कुछ रूसी विमानों के साथ, चीन वायु शक्ति के मामले में तीसरे स्थान पर है।

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भारत

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 600+

भारत की वायु सेना में सुखोई Su-30MKI, मिराज 2000, तेजस, मिग-29 और राफेल जैसे विमान शामिल हैं। भारतीय वायु सेना दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी वायु सेना है और दुनिया में चौथे स्थान पर है।

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उत्तर कोरिया

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 570+

उत्तर कोरिया के पास पुरानी पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, जिनमें मिग-21 और मिग-29 शामिल हैं। यद्यपि इसकी वायु सेना संख्या में बड़ी है, लेकिन इसे तकनीकी रूप से बहुत पिछड़ा माना जाता है।

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मिस्र

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 570+

मिस्र की वायु सेना में F-16, मिग-29 और राफेल जैसे विमान शामिल हैं। इसे मध्य पूर्व की सबसे मजबूत वायु सेनाओं में से एक माना जाता है।

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दक्षिण कोरिया

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 460+

दक्षिण कोरिया की वायु सेना F-35 और F-15K जैसे अत्याधुनिक विमानों से लैस है और उत्तर कोरिया के साथ अपने संबंधों के कारण लगातार अपनी वायु शक्ति को मजबूत कर रही है।

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पाकिस्तान

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 410+

पाकिस्तान की वायु सेना में JF-17 थंडर, F-16 और मिराज III जैसे लड़ाकू विमान शामिल हैं। चीन के सहयोग से विकसित पाकिस्तान का JF-17 थंडर उसकी वायु सेना की रीढ़ है।

जापान

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 370+

जापान की वायु सेना में F-15 और F-35 जैसे विमान शामिल हैं। जापान लगातार अपनी वायु सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है, खास तौर पर चीन और उत्तर कोरिया के साथ क्षेत्रीय तनाव के कारण।

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फ्रांस

कुल लड़ाकू विमान: लगभग 350+

फ्रांस की वायु सेना राफेल और मिराज 2000 जैसे अत्याधुनिक विमानों से लैस है। यह यूरोप की सबसे प्रभावशाली वायु सेनाओं में से एक है।

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भारत और पाकिस्तान की तुलना

भारत के पास लगभग 600+ लड़ाकू विमान हैं, जो इसे पाकिस्तान से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बनाते हैं। भारतीय वायु सेना के पास तकनीकी रूप से उन्नत विमानों का मिश्रण है, जिनमें राफेल, सुखोई Su-30MKI और मिराज 2000 प्रमुख हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास लगभग 410+ लड़ाकू विमान हैं। हालाँकि पाकिस्तान की वायु सेना की संख्या भारत से कम है, लेकिन पाकिस्तान JF-17 थंडर और F-16 जैसे विमानों की मदद से अपनी वायु शक्ति को संतुलित करने की कोशिश करता है।

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आपको बता दें, दुनिया की सबसे बड़ी वायु सेनाओं की सूची में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन सबसे ऊपर हैं। भारत इस सूची में चौथे स्थान पर है और दक्षिण एशिया में इसकी वायुसेना सबसे बड़ी है। पाकिस्तान की वायुसेना भी मजबूत है, लेकिन संख्या और तकनीक के मामले में यह भारत से पीछे है।

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