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निहत्थे गांधीवादी इंजीनियर से डरा भारत का ‘सुल्तान’? यहां जानिए सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और छठी अनुसूची से जुड़ी हर एक बात

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Sonam Wangchuk, Modi Government
Source- Nedrick News

‘देश का राजा डरता है…डरपोक है…राजा आंदोलनों से डरता है…उसे डर लगता है अपनी कुर्सी के खिसकने का…उसे डर लगता है जब कोई उसके खिलाफ बोलता है…उसे डर लगता है जब कोई उसकी नीतियों पर सवाल उठाता है…उसे डर लगता है जब उसके नाम देश के मशहूर उद्योगपतियों के साथ जोड़े जाते हैं….उसे डर लगता है जब देश में लोग अपने अधिकारों की मांग करते हैं…हर तानाशाह डरता है लोगों की आवाज से…डर का आलम ऐसा होता है कि लोगों को कुचलने का काम शुरू हो जाता है.’ सभी तानाशाहों ने ऐसा ही किया है…हम यहां किसी को तानाशाह नहीं बता रहे लेकिन पैटर्न देखें तो काफी हद तक चीजें स्पष्ट हो जाती है.

किसान आंदोलन के समय किसानों को रोकने के लिए रोड पर कील की दीवार खड़ी करना हो…आंदोलनकारी किसानों पर लाठीचार्ज करा कर उनकी आवाज दबानी हो या फिर शांतिपूर्ण मार्च निकाल कर अपने अधिकारों की मांग करने वाले सोनम वांगचुक और लद्दाखियों की गिरफ्तारी का मामला हो…मोदी सरकार डरी है…हर बार डरी है…जब किसी ने अपने हक की मांग की है तब मोदी सरकार डरी है…सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी क्यों हुई है, अगर इसकी पड़ताल करें तो मोदी सरकार का घिनौना चेहरा निकल कर सामने आता है. मोदी सरकार लद्दाख पर अपने फैसले से कैसे पलटी मार गई, जिसके कारण यह सब शुरु हुआ? सोनम वांगचुक की मांगें क्या हैं ? छठी अनुसूची क्या है? षड्यंत्र के तहत वांगचुक की गिरफ्तारी कैसे हुई? इन सारे सवालों के जवाब इस लेख के जरिए हम ढूंढने का प्रयास करेंगे.

लद्दाख पर पलटी क्यों मार गई मोदी सरकार

दरअसल, 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार संसद में एक बिल लेकर आई…370 को निरस्त कर दिया गया…जम्मू कश्मीर और लद्दाख को 2 हिस्सों में बांट दिया गया…इसके 1 महीने बाद ही सितंबर 2019 में सरकार के अंतर्गत आने वाली संस्था राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश कर दी…इस आयोग का मानना था कि नया केंद्रशासित प्रदेश मुख्य रूप से आदिवासी बहुल है और इसकी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता है. आपको बता दें कि लद्दाख में 97 फीसदी आदिवासी हैं.

लेकिन साल 2023 आते आते सरकार अपने इस फैसले से पलट गई.. गृह मंत्रालय ने लद्दाख के लोगों के लिये “भूमि और रोज़गार की सुरक्षा सुनिश्चित करने” हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया..साथ ही गृह मंत्रालय ने  स्पष्ट कर दिया कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांगों पर विचार-विमर्श भी नहीं किया जाएगा…सरकार के इस फैसले के बाद पूरे लद्दाख में लोग सड़कों पर उतर आए थे…उसके बाद फिर से गृह मंत्रालय और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस और लेह एपेक्स बॉडी के प्रतिनिधियों के बीच मांगों के समाधान के लिए बातचीत शुरु हुई लेकिन फरवरी 2024 में यह बातचीत फेल गई और लद्दाख में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया.

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सोनम वांगचुक का अनशन

अगले ही महीने पेश से इंजीनियर और पर्यावरण एक्टिवस्ट सोनम वांगचुक ने 6 मार्च 2024 से लद्दाख की मांगों को लेकर शून्य से नीचे के तापमान पर भूख हड़ताल शुरु कर दिया. उनके साथ-साथ उनके कई साथियों ने भी लद्दाख की मांगों को लेकर भूख हड़ताल शुरु किया था. 26 मार्च 2024 को इन्होंने अपना भूख हड़ताल खत्म किया…इतने दिनों तक वे सिर्फ नमक और पानी के सहारे जिंदा रहे…सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल को लद्दाख में काफी जनसमर्थन मिला था. इसके बाद उनकी हड़ताल ने सभी का ध्यान खींचा था. हालांकि, सरकार ने तब भी इनकी बातें नहीं सुनी.

उसके बाद सरकार को नींद से जगाने के लिए लद्दाखियों ने दिल्ली आने का फैसला किया…1 सितंबर 2024 को लेह के एनडीएस मेमोरियल पार्क से सोनम वांगचुक और लेह एपेक्स बॉडी के पदाधिकारियों के नेतृत्व में 100 से अधिक लद्दाखी पैदल ही दिल्ली के लिए निकल गए…लेह से दिल्ली की दूरी करीब 930 किलो मीटर के आस पास है…ऐसे में लद्दाख से निकले लोग हर दिन 25-30 किमी पैदल और शांतिपूर्ण यात्रा करते हुए दिल्ली की ओर बढ़ते रहे…30 सितंबर को लद्दाख से निकले लोग जैसे ही अपनी 1 महीने की पदयात्रा के बाद दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचते हैं…दिल्ली पुलिस उन्हें उठा लेती है.

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी कैसे हुई

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को देखें तो यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार को उनके पग-पग की खबर थी…कब और कितने बजे तक लद्दाखी दिल्ली पहुंचेंगे..उन्हें पता था…यही कारण था कि 30 सितंबर को दिन में ही यह खबर आती है कि दिल्ली में बीएनएस की धारा 163 लागू कर दी गई (यह वही धारा है, जिसे पहले 144 के नाम से जाना जाता था…) इसे लागू करने के बाद राज्य में कहीं भी किसी भी जगह पर 5 से अधिक लोग एक साथ इकठ्ठा नहीं हो सकते…ऐसे में जैसे ही शाम तक सोनम वांगचुक के साथ लद्दाख से निकले लोग दिल्ली बॉर्डर पहुंचते हैं…इसी धारा के तहत पुलिस उन्हें उठा लेती है…तय तय कार्यक्रम के अनुसार, उन्हें दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन महात्मा गांधी की समाधि पर पहुंचना था और सरकार को अपने मांगों के बारे में बताना था..

सोमवार की रात ख़ुद सोनम वांगचुक ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर हिरासत में लिए जाने की बात कही. उन्होंने खुद की एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, “दिल्ली बॉर्डर पर 150 पदयात्रियों के साथ मुझे हिरासत में लिया जा रहा है. इसके लिए 100 पुलिस वाले हैं. कुछ का कहना है कि ये 1000 हैं.”

उन्होंने बताया, ”उनके साथ पदयात्रियों में 80 साल से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्ग भी हैं. इसमें महिलाएं भी शामिल हैं. इसके साथ कुछ दर्जन सेना से रिटायर्ड लोग भी हैं. आगे क्या होगा, कुछ पता नहीं है. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बापू की समाधि तक सबसे शांतिपूर्ण मार्च पर थे.” अब पुलिस की हिरासत में ही सोनम वांगचुक ने अनिश्चितकालीन अनशन शुरु कर दिया है. उधर वांगचुक और अन्य को हिरासत में लेने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है. मंगलवार को इस मामले का उल्लेख मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ में किया गया. इस पर कल यानी 3 अक्टूबर को सुनवाई होगी.

आप समझिए कि लद्दाखियों के दिल्ली पहुंचने वाले दिन ही दिल्ली में 163 लागू किया जाता है…बॉर्डर पर पहुंचते ही उनकी गिरफ्तारी होती है और उन्हें दिल्ली पहुंचने से रोक दिया जाता है. मामला कोर्ट में जाता है लेकिन डेट उस दिन का नहीं मिलता…अगले दिन 2 अक्टूबर की छुट्टी होती है और सुनवाई 3 अक्टूबर तक खींच जाती है…इसे ही बोलचाल की भाषा में षड्यंत्र कहा जाता है…बाकी आप खुद समझदार हैं!

सोनम वांगचुक की मांगें और छठी अनुसूची

अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी यह सुनिश्चित किय गया. साथ ही यह स्पष्ट हुआ कि लद्दाख में कोई परिषद नहीं होगी. लेकिन छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद लद्दाख के लोग स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद बना सकेंगे. इसके अलावा उनकी मांगों में दो लोकसभा की सीटें और एक राज्यसभा की सीट भी शामिल है.

सोनम वांगचुक की ये हैं मांगें…

  • लद्दाख के लिए एक लोक सेवा आयोग की मांग
  • लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीट बनाने की मांग
  • साथ ही जल्द भर्ती प्रक्रिया और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है

अब समझते हैं कि लद्दाख के लिए छठी अनुसूची जरुरी क्यों है…ध्यान देने वाली बात है कि छठी अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 244 के अंतर्गत आता है, जिसके तहत स्वायत्त ज़िला परिषदों का गठन किया जाता है. छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित विशेष प्रावधान हैं. इन चार राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है. राज्यपाल के पास स्वायत्त ज़िलों के गठन और पुनर्गठन से संबंधित अधिकार है. संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं अथवा विशिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं. इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या फिर राज्यपाल के पास होती है… प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है और इसमें सदस्यों की संख्या 30 होती हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं.

स्वायत्त परिषद के अधिकार क्षेत्र में तमाम चीजें आती हैं…

  • वे भूमि, जंगल, नहर का पानी, झूम खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज़ों आदि जैसे कुछ विशिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं. लेकिन ऐसे सभी कानूनों हेतु राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है.
  • वे जनजातियों के बीच मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम सभाओं या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं. वे उनकी अपील सुनती हैं. इन मुकदमों एवं मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है.
  • ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, घाटों, मत्स्य पालन, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है.
  • उन्हें भू-राजस्व का आकलन करने और एकत्र करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है.

लद्दाख में मौजूदा समय में कोई परिषद नहीं है…साथ ही लद्दाख में आदिवासियों की जनसंख्या 97 फीसदी के करीब है…इसके अलावा पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए भी इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है..लेकिन दूसरी ओर गृह मंत्रालय की ओर से स्पष्ट तौर पर कहा जा रहा है कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल होगा..संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के लिये है तथा पाँचवीं अनुसूची देश के बाकी हिस्सों के आदिवासी क्षेत्रों के लिये है…यहां भी एक पेंच ये फंसता है कि अगर सारे नियम कायदों के मुताबिक लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश कैसे कर दी.

लद्दाख में तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर

आपको बता दें कि लद्दाखियों की लड़ाई इस बात के लिए भी है कि लद्दाख में ग्लेशियर पिघल रहे हैं…दुनिया के हर 4 में से 1 एक इंसान ऐसे इलाके में रहता है जो पानी के लिए ग्लेशियर या मौसमी बर्फ पर निर्भर है..ग्लेशियर एक सुरक्षा कवच की तरह हैं…ये सैकड़ों हजारों सालों की जमापूंजी हैं लेकिन ये अब नाटकीय रुप से तेजी से पिघल रहे हैं..शोधकर्ताओं का कहना है कि पूर्व हिमालयी क्षेत्र के अधिकतर ग्लेशियर अगले एक दशक में पिछल जाएंगे…इसे  लेकर सोनम वांगचुक कहते हैं कि “लद्दाख और आसपास के हिमालय के ग्लेशियर ग्रह का तीसरा ध्रुव हैं. इसमें ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है और दो अरब लोगों को भोजन मिलता है, जो ग्रह की कुल आबादी का एक-चौथाई है. जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ इंसानी गतिविधि और कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.”

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लद्दाख के नाजुक ईकोसिस्टम में खनन और उद्योगों की अनुमति दी गई, तो “कुछ ही समय में ग्लेशियर पिघल जाएंगे. गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सफेद चमचमाती बर्फ पर बैठ जाता है और इसे बहुत तेजी से पिघला देता है. यदि यह जारी रहा तो हम जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं. इसका मतलब यह भी है कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों के महीनों से लेकर वसंत तक पानी के भंडार नहीं होंगे.”

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छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया तो क्या होगा

ऐसे में  अगर लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता है तो वहा पूर्ण  रूप से चीजें उपराज्यपाल के हाथों में होंगी…कोई रोक टोक नहीं होगा…विकास के नाम पर वहां फैक्ट्रियां लगाई जाएंगी…अपने  करीबियों को जमीन दिया जाएगा….जमकर प्रदूषण होगा…फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं ग्लेशियर को पिघलाते रहेंगे और देखते ही देखते हमारी सैकड़ों हजारों साल से संरक्षित की गई पूंजी स्वाहा हो जाएगी…और आने वाले वर्षों में हमें इसके भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं….सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी काफी सोच समझ कर की गई है, जिसे कोई भी सपोर्ट नहीं कर सकता…लद्दाख का विकास जरुरी है लेकिन सरकार को इन षड्यंत्र और गिरफ्तारियों से ऊपर उठकर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए और लद्दाख की संस्कृति और अपनी प्राकृतिक धरोहरों को बचाते हुए विकास पर जोर देना चाहिए.

इजरायल-लेबनान यु्द्ध के बीच भारतीय युद्धपोत पहुंचे ईरान, जानें क्या हैं इसके पीछे की वजह

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Indian warships reached Iran
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इस समय भारतीय नौसेना का एक बेड़ा ईरान में है। एक दिन पहले इस नौसेना ने ईरानी बंदरगाह बंदर अब्बास के पास अपना डेरा जमाया है। इजरायल-लेबनान संघर्ष के दौरान ईरान में भारतीय युद्धपोतों की मौजूदगी को एक महत्वपूर्ण घटना माना जा रहा है। साथ ही भारतीय नौसेना की इस तैनाती को भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खाड़ी में ईरानी नौसेना के साथ संयुक्त अभ्यास के लिए भारतीय नौसेना का बेड़ा दक्षिणी बंदरगाह शहर अब्बास पहुंचा है। इसी बीच इजरायल ने सोमवार देर रात लेबनान में हिजबुल्लाह पर जमीनी हमला किया। इससे पहले इजरायली हवाई हमलों ने हिजबुल्लाह की कमर तोड़ दी थी। इन हमलों में हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह समेत कई प्रमुख हस्तियां मारे गए हैं।

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ईरान क्यों पहुंचे भारतीय युद्धपोत?

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय नौसेना का बेड़ा ईरान की नौसेना के साथ संयुक्त अभ्यास के लिए देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित बंदर अब्बास बंदरगाह पर पहुंच गया है। ईरान पहुंचने वाले भारतीय नौसेना के बेड़े का नाम “शांति और मैत्री” है। अंशुल किशोर इसके प्रभारी कप्तान हैं। भारतीय नौसेना के बेड़े में तीन विध्वंसक युद्धपोत हैं। ईरानी नौसेना के अधिकारी कैप्टन मसूद बेगी के अनुसार, दोनों देशों की नौसेनाएं होर्मुज जलडमरूमध्य के उत्तर में एक साथ प्रशिक्षण लेंगी।

ये युद्धपोत पहुंचे ईरान

फारस की खाड़ी में लंबी दूरी की प्रशिक्षण तैनाती के हिस्से के रूप में, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बताया कि आईएनएस तीर, आईएनएस शार्दुल और आईसीजीएस वीरा ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह शहर में उतरे। यह यात्रा आपसी समझ को बढ़ावा देने और समुद्री सहयोग को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ईरानी नौसेना के जहाज जेरेह ने भारतीय नौसेना के युद्धपोतों को बंदरगाह तक पहुंचाया। बंदरगाह पर, वरिष्ठ ईरानी नौसेना अधिकारियों ने भारतीय नौसेना का स्वागत किया।

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने क्या कहा

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, ये जहाज भारतीय और ईरानी नौसेनाओं के बीच समुद्री सुरक्षा और समन्वय को बेहतर बनाने के लिए डिज़ाइन किए गए अभ्यासों में भाग लेंगे। जहाज की यात्रा के दौरान, पेशेवर आदान-प्रदान, क्रॉस-ट्रेनिंग दौरे, पुष्पांजलि, मैत्रीपूर्ण खेल और समुद्री साझेदारी अभ्यास (एमपीएक्स) निर्धारित हैं।

ईरान के साथ रक्षा संबंध बढ़ा रहा भारत

उन्होंने कहा, इससे पहले ईरानी प्रशिक्षण बेड़े के जहाज बुशहर और टोनब ने प्रशिक्षण के लिए 24 मार्च को मुंबई का दौरा किया था। ईरानी नौसेना जहाज डेना ने 24 फरवरी को बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास मिलन 24 में भी भाग लिया था। वर्तमान यात्रा सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के दृष्टिकोण के अनुरूप क्षेत्रीय देशों के साथ समुद्री सहयोग के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।”

नेतन्याहू ने दी ईरान को चेतावनी

इससे पहले इजरायली पीएम नेतन्याहू ने सोमवार को ईरान के लोगों को संबोधित करते हुए ईरानी शासन की कड़ी आलोचना की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि ईरानी शासन लगातार अपने लोगों का दमन कर रहा है। जो पैसा ईरान के विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था, ईरान उस पैसे को हथियारों और विदेशी युद्धों पर बर्बाद कर रहा है। सोमवार को पीएम मोदी ने नेतन्याहू से फोन पर बात की थी और कहा था कि दुनिया में आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है।

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Happy Diwali Wishes: दिवाली के दिन अपनों को भेजे ये खास संदेश

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Happy Diwali
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Diwali 2024 : इस साल 1 नवंबर, रविवार के दिन दिवाली का त्योहार देशभर  में बड़ी ही धूमधाम, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाएगा.  हर साल कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. दिवाली खुशियों, उमंग और उल्लास का पर्व है. क्योंकि कार्तिक माह की अमावस्या के दिन भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे. दिवाली  के दिन लोग अपनों, रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाकर मिठाईयां व उपहार देकर दिवाली की शुभकामनाएं देते हैं. अगर आप दिवाली से पहले दिवाली की शुभकामनाएं मैसेज  या किसी पत्र में लिख कर भेजना चाहते है तो हम आपके लिए कुछ संदेश लेकर आए है.

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दिवाली की शुभकामनाएं लिए कुछ खास संदेश

प्यार की बंसी बजे,
प्यार की बजे शहनाई.
खुशियों के दीप जले,
दुख कभी न ले अंगड़ाई.
शुभ दीपावली

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दीप जगमगाते रहें,
सबके घर झिलमिलाते रहें,
साथ हों सब अपने,
सब यूं ही मुस्कुराते रहें.

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जगमग जले ये सुंदर दीप,
चारों तरफ रौशनी ही रोशनी हो,
मेरी है यही दुआ, इस दिवाली पर
होठों पर आपके बस हंसी ही हंसी हो.

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सुख और समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएं
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएं
खुशियां आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएं
देव दीपावली पर्व की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं.

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दीपों का ये पावन त्योहार,
आपके लिए लाये खुशियां हजार,
लक्ष्मी जी विराजें आपके द्वार,
हमारी शुभकामनाएं करें स्वीकार.

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रोशन हो दीपक और सारा जग जगमगाए
लेकर साथ सीता जी को राम जी हैं आए
हर शहर सजा है ऐसे जैसे अयोध्या हो
आओ हर द्वार, हर गली, हर मोड़ पर हम दीप जलाएं
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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मुस्कुराते हंसते दीप तुम जलाना,
जीवन में नई खुशियों को लाना,
दुःख दर्द अपने भूल कर, सबको गले लगाना.

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खुशियों का पर्व है दिवाली,
मस्ती की फुहार है दिवाली,
लक्ष्मी पूजन का दिन है दिवाली,
अपनों का प्यार है दिवाली।
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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हर घर में हो उजाला
आए ना कोई रात काली
हर घर मे मनाएं खुशियां
हर घर मे हो दिवाली।
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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दिवाली त्योहार दीप का, मिलकर दीप जलायेंगे।
सजा रंगोली से आंगन को, सबका मन हर्षायेंगे।
बम-पटाखे भी फोड़ेंगे, खूब मिठाई खायेंगे।
दिवाली त्योहार मिलन का, घर-घर मिलने जाएगे.

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और पढ़ें : विजयादशमी के मौके पर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों का भेजें ये शुभकामना संदेश 

Israel vs Iran: जानें दोनों देशों में से कौन है सबसे ताकतवर, यहां पढ़ें पूरा हिसाब-किताब

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ईरान और इजरायल के बीच इस समय काफी तनावपूर्ण स्थिति है। दिन-ब-दिन स्थिति खराब होती जा रही है। बीते दिन ही ईरान ने मंगलवार देर रात इजरायल पर 200 से ज्यादा मिसाइलें दागीं। ईरानी मीडिया के मुताबिक इसका निशाना इजरायल के सैन्य ठिकाने थे। ईरान इसे बदला बता रहा है। वहीं इजरायल भी इस हमले के बाद चुप बैठने वाला नहीं है। इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा, लेकिन समय और जगह का चुनाव इजरायल करेगा। ईरान और इजरायल के बीच टकराव के बीच मध्य पूर्व में युद्ध की संभावना बढ़ गई है। इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि अगर दोनों देशों के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू होता है तो कौन सा देश किस पर भारी पड़ेगा? आइए जानते हैं ईरान और इजरायल में किसकी सेना ज्यादा ताकतवर है।

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कितना ताकतवर है ईरान?

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ईरान की सेना

सबसे पहले बात करते हैं ईरान (ईरान आर्मी) की, जिसकी आबादी करीब 9 करोड़ है। ईरान की कुल जीडीपी 413 बिलियन डॉलर है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के अनुसार, ईरान का रक्षा बजट 7.4 बिलियन डॉलर है जो जीडीपी का करीब दो प्रतिशत है। ईरान दुनिया की 14वीं सबसे बड़ी सैन्य शक्ति और मध्य पूर्व की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। इसकी सेना में 580000 सैनिक और करीब दो लाख का रिजर्व बल है। कुल मिलाकर सैनिकों की संख्या करीब 780000 है।

ईरान के हथियार

ईरान की सबसे बड़ी ताकत उसकी बैलिस्टिक मिसाइलें हैं। अमेरिकी खुफिया निदेशालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान पूरे मध्य पूर्व में ऐसा देश है जिसके पास सबसे ज़्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने 1980 के दशक में पड़ोसी देश इराक के साथ युद्ध के दौरान अपने मिसाइल सिस्टम पर काम करना शुरू किया और फिर अगले दशक में उसने सैकड़ों छोटी दूरी की मिसाइलें विकसित कीं।

ईरान के पास ‘सेजिल’ नाम की मिसाइल है जो 17000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से 2500 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है। इसी तरह ‘खेइबर’ मिसाइल की रेंज 2000 किलोमीटर है। ‘हज कासेम’ भी 1400 किलोमीटर की रेंज तक जा सकती है। ईरान के पास KH-55 जैसी क्रूज मिसाइलें भी हैं और दावा किया जाता है कि ये परमाणु क्षमता से लैस हैं। ये 3000 किलोमीटर तक परमाणु हथियार ले जा सकती हैं।

ईरान की हाइपरसोनिक मिसाइल

इस बार ईरान ने इजरायल पर हाइपरसोनिक मिसाइलों से हमला किया है, जिन्हें पिछले साल जून में दुनिया के सामने पेश किया गया था। इन मिसाइलों को रोकना बेहद मुश्किल है और ये ध्वनि से पांच गुना तेज गति से चलती हैं। इसके अलावा ईरान पूरे मध्य पूर्व में ड्रोन का सबसे बड़ा उत्पादक है। उसके पास मोहजर-10 ड्रोन है जो 200 किलोग्राम का हथियार ले जा सकता है और 2000 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकता है।

ईरान एयरफोर्स और नेवी

ईरान में 273 लड़ाकू विमान और जेट हैं। इसके अलावा, 1783 टैंक, 572 बख्तरबंद वाहन, 240 परिवहन हेलीकॉप्टर और 50 से ज़्यादा हेलीकॉप्टर हैं। इज़राइल का बेड़ा ईरान के बेड़े से ज़्यादा उन्नत है। हालाँकि, उसके पास लगभग 220 जहाज़ हैं। इस बीच, इज़राइल के पास सिर्फ़ 60 जहाज़ हैं।

ईरान का परमाणु हथियार

यह भी दावा किया जाता है कि ईरान के पास परमाणु हथियार हैं। हालाँकि, ईरान ने कभी भी इसे खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है और न ही कभी इसकी पुष्टि हुई है।

कितना ताकतवर है इजरायल?

इजरायल की सेना

ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स अध्ययन के अनुसार इजरायली सेना को दुनिया की 20वीं सबसे मजबूत सेना माना गया है। इजरायली सेना में 465,000 रिजर्व सैनिक और 169,500 सक्रिय सैनिक हैं। कुल मिलाकर 634,500 सैनिक हैं। सैनिकों के मामले में यह ईरान से पीछे है। इजरायल रक्षा पर जितना खर्च करता है, वह ईरान से सात गुना ज़्यादा है।

इजरायल के हथियार

जब रक्षा प्रणालियों और हथियारों की बात आती है, तो इज़राइल आयरन डोम और डेविड स्लिंग जैसी वायु रक्षा प्रणालियों में सबसे आगे है। वे लंबी से लेकर छोटी दूरी तक की दूरी तक के ड्रोन, रॉकेट और मिसाइलों को हवा में मार गिराते हैं। इसके अलावा, इज़राइल के पास लगभग 1200 तोपें, कई लॉन्च रॉकेट सिस्टम और स्मार्ट बम जैसे सटीक मार करने वाले हथियार हैं।

इजरायल की एयरफोर्स और नेवी

ग्लोबल फायर पावर अध्ययन के अनुसार, इजरायली सेना के पास 2200 से अधिक टैंक, 48 लड़ाकू हेलीकॉप्टर और कम से कम 241 लड़ाकू जेट हैं। नौसेना के संबंध में, इजरायल के पास कम से कम सात युद्धपोत और छह पनडुब्बियां हैं जो परमाणु हथियारों से लैस हैं और उन्हें दाग सकती हैं। इजरायल की सबसे बड़ी संपत्ति मोसाद खुफिया संगठन है, जो केवल उन लक्ष्यों को मारने के लिए प्रसिद्ध है जिन्हें वह निशाना बनाना चाहता है।

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इजरायल के परमाणु हथियार

इजराइल के पास कम से कम एक दर्जन परमाणु हथियार हैं। इजराइल ने कभी भी खुले तौर पर यह स्वीकार नहीं किया है कि उसके पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन कई रक्षा विशेषज्ञों और थिंक टैंक ने इसकी पुष्टि की है।

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क्या आप जानते हैं कहां रखी है कांशीराम जी की कलम और अन्य चीजें, तो इस संग्रहालय के बारे में जरूर जानें

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Kanshiram museum
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बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक और दलितों के सशक्तिकरण के लिए जाने जाने वाले कांशीराम जी ने अपने जीवन में दलितों, पिछड़ों और समाज के कमज़ोर वर्गों के लिए बड़ा योगदान दिया। उनके विचारों और संघर्षों को सम्मान देने के लिए कई संग्रहालय और स्मारक बनाए गए हैं, जिनमें उनकी निजी चीज़ें भी रखी गई हैं। ऐसे ही एक संग्रहालय में कांशीराम जी की कलम को प्रमुखता से रखा गया है, जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपने कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और भाषण लिखने के लिए किया था। यह कलम उनके जीवन और विचारधारा का प्रतीक है, क्योंकि कांशीराम ने अपने जीवनकाल में कई किताबों, लेखों और घोषणापत्रों के ज़रिए दलित आंदोलन को दिशा दी।

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यहां रखी गई है व्यक्तिगत वस्तुएं

दलित दस्तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, BSP संग्रहालय में कांशीराम की कलम और अन्य निजी सामान संग्रहित हैं। यह संग्रहालय कांशीराम की याद में बनाया गया है, जो उनके जीवन और योगदान को समर्पित है। यहां उनकी कई निजी चीजें जैसे कि उनकी कलम, किताबें और कांशीराम जी की लिखी किताबें, उनके भाषणों के नोट्स और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज भी संग्रहालय में संरक्षित किए गए हैं। इस स्मारक का उद्देश्य उनकी विचारधारा और उनके द्वारा किए गए सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों को लोगों तक पहुंचाना है। यह स्थान बहुजन समाज पार्टी और उसके समर्थकों के लिए श्रद्धांजलि स्थल के रूप में भी कार्य करता है।

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कांशीराम जी की विरासत का सम्मान

इस संग्रहालय का मुख्य उद्देश्य कांशीराम जी के संघर्ष और योगदान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है। उनकी कलम और अन्य वस्तुएं दलितों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए उनके समर्पण और बलिदान का प्रतीक हैं। इन वस्तुओं को उनके जीवन और मिशन की महत्वपूर्ण धरोहर के रूप में देखा जाता है, जो बताती हैं कि कैसे उन्होंने अपने साधनों और औजारों का उपयोग किया और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अथक संघर्ष किया।

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कांशीराम जी की कलम, चश्मा, कपड़े और अन्य निजी सामान उनके जीवन और उनके द्वारा किए गए कार्यों के जीवंत प्रतीक हैं। इन वस्तुओं को संग्रहालय में संरक्षित करने का उद्देश्य उनके विचारों और योगदानों को याद रखना और नई पीढ़ी को उनके संघर्षों से प्रेरित करना है।

कौन थे कांशीराम?

कांशीराम जी एक भारतीय दलित नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब में हुआ था। उन्होंने जीवन भर दलितों, पिछड़ों और अन्य वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। कांशीराम जी ने BAMCEF (Backward and Minority Communities Employees Federation) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) जैसे संगठनों की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज के दलित और पिछड़े वर्गों की राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता को बढ़ाना था। उनके नेतृत्व ने भारतीय राजनीति में एक नई क्रांति ला दी और उन्होंने वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए एक मजबूत आंदोलन का नेतृत्व किया। 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके योगदान को आज भी सराहा जाता है।

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सपने में भोजन देखने का मतलब होता है बेहद खास, जानिए स्वप्न शास्त्र में इसे शुभ माना जाता है या अशुभ

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सपने देखना आम बात है। लेकिन इन सपनों के पीछे के रहस्य को समझ पाना एक आम इंसान के लिए संभव नहीं है। सपनों में प्राकृतिक तत्वों को देखना अक्सर विभिन्न भावनाओं और मानसिक स्थितियों का प्रतीक होता है। अगर आप सपने में खाना देखते हैं, तो इसका विशेष रूप से शुभ और गहरा अर्थ होता है। ये सपने आमतौर पर जीवन में बदलाव, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संकेत होते हैं। आइए जानते हैं इन सपनों के कुछ मुख्य अर्थ:

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सपने में भोजन दान करना

यह आपके लिए एक संदेश हो सकता है यदि आप सपने में किसी गरीब या ज़रूरतमंद व्यक्ति को भोजन दे रहे हैं। इसका मतलब है कि आपको उठकर व्यक्तिगत रूप से दान करना चाहिए। आपके पूर्वज भी पोषण की आवश्यकता का संदेश दे रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में, पूर्वजों के सम्मान में वंचित और निराश्रित लोगों को भोजन कराना अनिवार्य है।

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सपने में खुद को खाते हुए देखना

स्वप्न शास्त्र के अनुसार, ऐसे सपने जिनमें आप खुद को खाते हुए देखते हैं, उन्हें शुभ संकेत माना जाता है। यह दर्शाता है कि आपका भविष्य समृद्ध होगा और यदि आप बीमार हैं, तो आपकी स्थिति में सुधार होगा। यह सपना उचित आहार और मानसिक संतुष्टि की भावना का भी संकेत देता है।

सपने में खुद खाना बनाना

अगर आप सपने में खुद के लिए खाना बना रहे हैं, तो यह भी एक शुभ संकेत माना जाता है। यह दर्शाता है कि जिस काम के लिए आप बहुत मेहनत कर रहे हैं, वह जल्द ही पूरा हो जाएगा और आपको कोई अच्छी खबर सुनने को

सपने में भोजन मांगना

यदि आप सपने में भोजन मांग रहे हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि आपके वास्तविक जीवन में क्या हो रहा है। यह दर्शाता है कि आपके पास एक ऐसी इच्छा है जिसे आप अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद पूरा करने में असमर्थ हैं। हालांकि, यदि आपको अनुरोध करने के बाद भोजन मिलता है, तो यह सपना बताता है कि आपकी इच्छा जल्द ही पूरी होगी। सपने में सेब खाना यह दर्शाता है कि आपको जल्द ही अपने व्यवसाय में बड़ी सफलता मिलेगी।

सपने में दूसरों को खाते हुए देखना

अगर आप सपने में दूसरे लोगों को खाना खाते हुए देखते हैं तो यह सौभाग्यशाली माना जाता है। यह दर्शाता है कि आपको निकट भविष्य में परिवार का पूरा सहयोग मिलेगा और घर में धार्मिक कार्यक्रम हो सकते हैं। अगर आप सपने में मक्खन या बादाम खाते हुए देखते हैं तो यह भविष्य में सुखद जीवन का सूचक है। आपको अंततः अपनी सभी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा, जिससे आप खुश रहेंगे।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। नेड्रिक न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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जापान के इस शहर में पब्लिक टॉयलेट देखने आते हैं पर्यटक, दी जाती है हाईटेक सुविधाएं!

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Japan public toilets
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जब बात सार्वजनिक शौचालयों की आती है, तो लोग उनमें जाने से बचते हैं। सिर्फ इसलिए कि सार्वजनिक शौचालयों की हालत बेहद खराब है। लेकिन दुनिया में एक ऐसा देश भी है, जहां सार्वजनिक शौचालयों पर काफी ध्यान दिया जाता है। दरअसल हम बात कर रहे हैं जापान की। यहां के शौचालयों को देखने के लिए पर्यटक भी आते हैं। दरअसल जापान का टॉयलेट टूरिज्म एक अनोखी और दिलचस्प पहल है, जिसने दुनिया भर के पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। जापान अपनी अत्याधुनिक तकनीक और साफ-सफाई के लिए मशहूर है और इसका एक अद्भुत उदाहरण हैं यहां के हाईटेक और साफ-सुथरे शौचालय। जापान में शौचालय सिर्फ जरूरत ही नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक, डिजाइन और साफ-सफाई का प्रतीक बन गए हैं, जिसे देखने के लिए लोग वहां जाते हैं।

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टॉयलेट पर्यटन का महत्व

जापान में शौचालयों को सिर्फ़ एक आम सुविधा के तौर पर नहीं देखा जाता, बल्कि इसे एक अनुभव के तौर पर विकसित किया गया है। वहां के शौचालय इतने उन्नत और अनोखे हैं कि कई लोग इसे पर्यटकों के आकर्षण के तौर पर देखते हैं। जापान में सार्वजनिक शौचालय न सिर्फ़ साफ़-सुथरे हैं, बल्कि उनमें कई आधुनिक तकनीक और सुविधाएँ भी हैं जो दूसरे देशों के शौचालयों से बिल्कुल अलग हैं।

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टोक्यो में पब्लिक टॉयलेट को देखने आते हैं पर्यटक

जापान के टोक्यो में सार्वजनिक शौचालय इन दिनों चर्चा में हैं। डेली स्टार न्यूज़ वेबसाइट के अनुसार, यहाँ सार्वजनिक शौचालय पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं और टोक्यो आने वाले पर्यटक इन सार्वजनिक शौचालयों का लुत्फ़ भी उठा रहे हैं (शौचालय भ्रमण अजीब है)। इसके लिए गाइड की व्यवस्था भी की जा रही है। लेकिन सवाल उठता है कि इन शौचालयों में ऐसा क्या खास है? पर्यटक शौचालय देखने आते हैं

इलाके में मौजूद है 17 शौचालय

टोक्यो के शिबुया इलाके में, टोक्यो टॉयलेट प्रोजेक्ट के लिए विशेष रूप से बनाए गए 17 शौचालय हैं। इस परियोजना का उद्देश्य शहर के सार्वजनिक शौचालयों को बेहतर बनाना था। निप्पॉन फाउंडेशन ने 2020 में इस परियोजना को लॉन्च किया, और देश के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकारों ने शौचालय के डिज़ाइन बनाए। ये शौचालय अपने विशिष्ट डिज़ाइन और उन्नत तकनीकी विशेषताओं के कारण असाधारण हैं। वे सुरक्षित और बेदाग भी हैं। विशिष्ट डिज़ाइन हर शौचालय की विशेषता है।

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टूर के लिए आपको पैसे देने होंगे

इस साल मार्च में टूर प्रोग्राम की शुरुआत हुई। जो लोग इसके लिए रजिस्टर करते हैं, वे इन अनोखे शौचालयों को देख सकते हैं। ऐसा अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों को यह दिखाने के लिए किया गया था कि जापानी सार्वजनिक शौचालय कितने स्वच्छ हैं। डिस्ट्रिक्ट टूरिज्म एसोसिएशन की युमिको निशी ने बताया कि जिन लोगों ने इस भ्रमण के लिए रजिस्टर किया है, वे वास्तुकला में रुचि रखते हैं। वे इस भ्रमण के साथ शौचालयों को देख सकेंगे और शहर का पता लगा सकेंगे। इस दो घंटे के भ्रमण के लिए प्रति व्यक्ति 2600 रुपये का भुगतान करना होगा।

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Adventures of Tarzan: इस एक्टर के कारण गोविंदा और धर्मेंद्र को होने लगी थी अपने करियर की चिंता, हो गए थे इनसिक्योर

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Adventures of Tarzan
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बॉलीवुड के पहले टार्जन के रूप में प्रसिद्ध हेमंत बिरजे ने 1985 में आई फिल्म “Adventures of Tarzan” में टार्जन की भूमिका निभाकर अपनी पहचान बनाई। इस फिल्म के साथ उन्होंने अपनी दमदार फिजीक और बोल्ड किरदार से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। इस फिल्म की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि हेमंत बिरजे रातों-रात एक बड़े सितारे बन गए। उनकी जबरदस्त कद-काठी और स्क्रीन प्रेजेंस ने उन्हें बॉलीवुड में एक नई पहचान दी, जिससे कई अन्य बड़े सितारे भी उनकी बढ़ती लोकप्रियता से असुरक्षित महसूस करने लगे, जिनमें उस समय के स्टार अभिनेता गोविंदा और धर्मेंद्र जैसे दिग्गज भी शामिल थे।

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हेमंत बिरजे की लोकप्रियता और प्रभाव

“Adventures of Tarzan”  फिल्म में हेमंत बिरजे ने टार्जन की भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने अपनी दमदार बॉडी और एक्शन सीक्वेंस से दर्शकों का दिल जीत लिया। उनकी मस्कुलर बॉडी और चार्म ने उन्हें एक नए प्रकार के हीरो के रूप में प्रस्तुत किया, जो उस समय के बॉलीवुड के पारंपरिक हीरो से बिल्कुल अलग थे।

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– उस समय हेमंत बिरजे की अचानक से मिली सफलता और उनके शारीरिक आकर्षण ने उन्हें एक हॉट टॉपिक बना दिया था। उन्होंने अपने फिजिकल अपील और बोल्डनेस से दर्शकों और खासकर युवा वर्ग में काफी लोकप्रियता हासिल की, जिससे उस समय के कुछ स्थापित सितारों को अपनी लोकप्रियता पर खतरा महसूस होने लगा।

गोविंदा और धर्मेंद्र हुए इनसिक्योर

गोविंदा, जो 80 और 90 के दशक में तेजी से उभरते हुए स्टार थे, अपनी कॉमेडी, डांस और चार्म के लिए जाने जाते थे। लेकिन हेमंत बिरजे की शारीरिक फिटनेस और एक्शन-ओरिएंटेड भूमिका के कारण गोविंदा को यह महसूस हुआ कि हेमंत उनके करियर के लिए एक चुनौती बन सकते हैं, खासकर एक्शन और रोमांस की भूमिकाओं में।

वहीं, धर्मेंद्र, जो बॉलीवुड के पहले “ही-मैन” माने जाते थे, ने अपनी बॉडी और एक्शन भूमिकाओं से एक लंबी छाप छोड़ी थी। हेमंत बिरजे की फिटनेस और शारीरिक आकर्षण ने धर्मेंद्र जैसे दिग्गज अभिनेता को भी इनसिक्योर कर दिया था, क्योंकि हेमंत उस समय के सबसे फिट अभिनेताओं में से एक बन गए थे। उनकी मस्कुलर बॉडी और एक्शन हीरो की छवि ने धर्मेंद्र के “एक्शन हीरो” की जगह को थोड़ा हिला दिया था।

फिल्म की बोल्डनेस और हेमंत का ग्लैमर

“Adventures of Tarzan” के बोल्ड और ग्लैमरस सीन्स से हेमंत बिरजे को एक अलग इमेज हासिल हुई। फिल्म में उनकी फिजिकल अपील, खासकर उनके बोल्ड सीन्स ने दर्शकों का ध्यान खींचा। यह उस समय बॉलीवुड के हीरोज की छवि से कुछ अलग था, और इसी कारण हेमंत का स्टारडम बढ़ता गया।

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फिल्म में किमी काटकर के साथ उनकी जोड़ी भी चर्चा का विषय बनी रही, और उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री ने फिल्म को और भी हिट बना दिया।

हेमंत बिरजे का करियर और आगे की राह

हालांकि हेमंत बिरजे को “Adventures of Tarzan” के बाद वैसी सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने अपने करियर की शुरुआत धमाकेदार तरीके से की थी। उनकी शुरुआती लोकप्रियता ने बॉलीवुड के बड़े सितारों को जरूर असुरक्षित महसूस कराया, लेकिन बाद में वह टाइपकास्ट हो गए और उन्हें उस सफलता को लंबे समय तक बरकरार रखने में मुश्किलें आईं।

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Sarhad Restaurant: पंजाब में वाघा-अटारी बॉर्डर के पास है अनोखा रेस्टोरेंट, परोसे जाते हैं पाकिस्तानी और भारतीय व्यंजन

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Sarhad Restaurant
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भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव और सीमाओं की चर्चा अक्सर सामने आती है, लेकिन पंजाब के अमृतसर में स्थित सरहद रेस्टोरेंट एक ऐसा स्थान है जो इन दोनों देशों के बीच की सांस्कृतिक और खाद्य विरासत को एक साथ जोड़ता है। यह रेस्टोरेंट वाघा बॉर्डर के करीब स्थित है और यहाँ भारतीय और पाकिस्तानी व्यंजन एक ही छत के नीचे परोसे जाते हैं। इस अनोखे रेस्टोरेंट का उद्देश्य न केवल लोगों को स्वादिष्ट खाना परोसना है, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना और आपसी सद्भाव को बढ़ावा देना भी है।

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रेस्टोरेंट की स्थापना और उद्देश्य

सरहद रेस्टोरेंट की स्थापना अमृतसर के करीब वाघा-अटारी बॉर्डर के निकट की गई थी, जिसे भारत और पाकिस्तान की सीमा पर सबसे प्रमुख स्थानों में से एक माना जाता है। इस रेस्टोरेंट का नाम भी ‘सरहद’ यानी ‘सीमा’ पर रखा गया है, जो भारत-पाकिस्तान के बीच की विभाजन रेखा को संदर्भित करता है।

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इस रेस्टोरेंट का मुख्य उद्देश्य केवल स्वादिष्ट खाना परोसना नहीं है, बल्कि भारतीय और पाकिस्तानी लोगों के बीच साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को सम्मानित करना और दोनों देशों के बीच की मित्रता को बढ़ावा देना है। यह रेस्टोरेंट एक ऐसा मंच है जहाँ लोग सीमाओं से परे दोस्ती, भाईचारे, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का आनंद ले सकते हैं।

पाकिस्तानी और भारतीय व्यंजन का संगम

सरहद रेस्टोरेंट का मेन्यू दोनों देशों की लोकप्रिय और पारंपरिक व्यंजनों से सजा हुआ है। पाकिस्तानी व्यंजनों में लाहौरी कुजिन का प्रमुख स्थान है, जो अपने विशेष मसालों और पारंपरिक स्वाद के लिए जानी जाती है। वहीं, भारतीय व्यंजनों में पंजाबी तड़का, अमृतसरी कुलचा, तंदूरी रोटियां और विविध शाकाहारी और मांसाहारी पकवान शामिल हैं।

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वास्तुकला और सजावट

सरहद रेस्टोरेंट की वास्तुकला और सजावट भी विशेष रूप से दोनों देशों की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। रेस्टोरेंट की इमारत और उसके इंटीरियर्स को पाकिस्तानी और भारतीय कला और डिज़ाइन से सजाया गया है। यहाँ के दीवारों पर पाकिस्तानी ट्रक आर्ट और भारतीय लोक कला के अद्भुत नमूने देखे जा सकते हैं। ये कला के रूप दोनों देशों की सांस्कृतिक संपदा को सुंदरता से प्रस्तुत करते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन

सरहद रेस्टोरेंट सिर्फ खाने-पीने की जगह नहीं है, बल्कि यहां समय-समय पर दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाले कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। दोनों देशों के बीच लोक संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

शांति और सद्भाव का संदेश

सरहद रेस्टोरेंट सिर्फ़ एक व्यावसायिक उपक्रम नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि कला, संस्कृति और भोजन के ज़रिए शांति और सद्भाव का संदेश सीमाओं के पार कैसे फैलाया जा सकता है। रेस्टोरेंट का मुख्य लक्ष्य यह दिखाना है कि चाहे राजनीतिक परिस्थितियाँ कैसी भी हों, लोग एक-दूसरे के साथ सद्भाव और भाईचारे के साथ रह सकते हैं। यह जगह दिखाती है कि भोजन और कला सांस्कृतिक विभाजन को पाटने का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकते हैं।

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1968 में लापता हुआ था IAF का विमान, 2024 में भारतीय सेना को मिले 4 शव, ऐसे हुआ था हादसा

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1968 में भारतीय वायुसेना का AN-12 विमान लापता हो गया था और अब 56 साल बाद भारतीय सेना को इसके मलबे के साथ 4 शव मिले हैं। एक सैन्य ऑपरेशन दल ने बर्फ से ढके पहाड़ों से ये शव बरामद किए हैं। यह ऑपरेशन ‘चंद्र भागा’ नाम के एक बड़े ऑपरेशन का हिस्सा था। विमान जम्मू-कश्मीर से उड़ान भरने के बाद खराब मौसम का सामना कर रहा था और उसी दौरान लापता हो गया था। इसके बाद कई सालों तक विमान के मलबे या उसमें सवार लोगों का पता नहीं चल सका।

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1968 में हुआ हादसा

7 फरवरी, 1968 को भारतीय वायुसेना का AN-12 विमान चंडीगढ़ से लेह के लिए नियमित मिशन पर था। विमान ने जम्मू-कश्मीर से उड़ान भरी और कुछ ही देर बाद लद्दाख की ऊंचाइयों के पास संपर्क टूट गया। विमान में वायुसेना के कर्मियों और चालक दल सहित 102 लोग सवार थे। विमान अचानक खराब मौसम में फंस गया और उसके बाद उसका पता नहीं चल पाया।

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विमान की खोज

घटना के बाद भारतीय सेना और वायुसेना ने तुरंत खोज और बचाव अभियान चलाया, लेकिन खराब मौसम, ऊंचे पहाड़ और दुर्गम इलाके के कारण विमान का कोई सुराग नहीं मिल सका। इसके बाद भी कई प्रयास किए गए, लेकिन विमान का मलबा और उसमें सवार लोग कभी नहीं मिले। करीब 30 साल बाद 1997 में भारतीय सेना को हिमालय की ऊंचाई वाले इलाकों में विमान का मलबा और कुछ मानव अवशेष मिले। लेकिन उस समय भी सभी शव और विमान के सभी हिस्से नहीं मिल पाए थे।

लंबे समय से चल रहा था सर्च ऑपरेशन

2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने विमान का मलबा खोजा था। इसके बाद सेना खासकर डोगरा स्काउट्स ने कई ऑपरेशन चलाए। 2005, 2006, 2013 और 2019 में चलाए गए सर्च ऑपरेशन में डोगरा स्काउट्स सबसे आगे रही। 2019 तक सिर्फ पांच शव बरामद हुए थे।

2024 में मिले 4 शव

2024 में, 56 साल बाद, भारतीय सेना के पर्वतीय अभियानों में शामिल दल को लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्र में हिमाच्छादित मलबे में 4 शव मिले। यह शव भारतीय वायुसेना के उस AN-12 विमान के सवार लोगों के हैं, जो 1968 में लापता हो गए थे। यह खोज हिमालय के दुर्गम और बर्फीले क्षेत्रों में की गई, जहाँ मौसम की अत्यधिक कठिनाइयों के कारण पहले कभी पूरी तरह से तलाशी नहीं ली जा सकी थी।

तीन जवानों की पहचान हुई

इस बार मिले चार शवों में से तीन शव सही सलामत मिले जबकि चौथे के अवशेष मिले। तीनों जवानों की पहचान उनके पास मिले दस्तावेजों से हुई। ये जवान हैं सिपाही नारायण सिंह (एएमसी), मलखान सिंह (पायनियर कोर) और थॉमस चेरियन (सीईएमई)।

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डोगरा स्काउट्स ने किया ऑपरेशन का संचालन

एक अधिकारी ने बताया, शव के साथ मिले दस्तावेजों से चौथे व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकी, लेकिन उसके परिजनों का पता लगा लिया गया है। चंद्रभागा ऑपरेशन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सेना अपने जवानों के परिवारों को सांत्वना देने के लिए कितनी दृढ़ संकल्पित है। उच्च ऊंचाई वाले ऑपरेशनों में अपनी विशेषज्ञता के लिए मशहूर डोगरा स्काउट्स ने इस ऑपरेशन का नेतृत्व किया है। इन शवों की बरामदगी से उन परिवारों को राहत मिली है, जो दशकों से इंतजार कर रहे थे। अन्य यात्रियों के अवशेषों की तलाश जारी है। यह ऑपरेशन 10 अक्टूबर तक जारी रहेगा।

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