पंजाब के पहले ओलंपियन ब्रिगेडियर दलीप सिंह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कहां लापता हो गए थे?

Table of Content

पंजाब में कई ऐसे सैनिक और लड़ाके हुए हैं जिनकी कहानियां दुनिया तक नहीं पहुंच पाई हैं। ऐसी ही एक कहानी है पंजाब के पहले ओलंपियन ब्रिगेडियर दलीप सिंह की। उन्होंने अपने जीवन में खूब नाम कमाया और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान युद्ध में भी हिस्सा लिया, उनके मार्गदर्शन में पटियाला के एथलीटों ने 1948 तक लगातार 15 साल तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, इसके बावजूद आज उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। वहीं उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे लापता हो गए। यह कहानी खुद उनकी पोती ने बताई है। आइए आपको बताते हैं कि वह कहानी क्या है।

और पढ़ें: देश का सच्चा सिपाही कैसे बन गया देश का दुश्मन? जानिए बागी जनरल शबेग सिंह की कहानी 

कौन थें ओलंपियन ब्रिगेडियर दलीप सिंह?

दलीप सिंह का जन्म 27 अप्रैल 1899 को लुधियाना के डोलन खुर्द गांव में हुआ था। उन्होंने 1914 में शहर के मिशन स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। 1920 में, वे अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए लाहौर चले गए, जहाँ उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की। ​​बाद में, उन्होंने लाहौर में लॉ कॉलेज में भी दाखिला लिया। इस दौरान उन्होंने लाहौर में खेल-प्रतिस्पर्धी माहौल का अनुभव किया। वे पंजाब विश्वविद्यालय की ऑल इंडिया इंटर-यूनिवर्सिटी टूर्नामेंट के स्टार थे, हालाँकि अखिल भारतीय इंटर-यूनिवर्सिटी टूर्नामेंट अभी तक शुरू नहीं हुए थे। दरअसल पंजाब विश्वविद्यालय स्वतंत्रता से पहले एथलेटिक गतिविधियों का केंद्र था। दलीप सिंह ने वहां 100 गज, 200 गज, 440 गज, लंबी कूद और 120 गज बाधा दौड़ में सफलता हासिल की।

Brigadier Dalip Singh
Source: Google

दलीप सिंह पंजाब के पहले व्यक्ति थे जिन्हें ओलंपिक में खेलने का मौका मिला था। दरअसल उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान 1924 के पेरिस ओलंपिक में लंबी कूद स्पर्धा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। दलीप सिंह को 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक के लिए भी चुना गया और इस तरह वे दो ओलंपिक में खेलने वाले पंजाब के पहले खिलाड़ी बन गए।

सेना में हुए भर्ती

आज़ादी के बाद जब पटियाला आर्मी का भारतीय सेना में विलय हुआ, तो ब्रिगेडियर दलीप सिंह ने सेना टीम के कोच-कम-मैनेजर की भूमिका निभाई। उन्होंने 1949 में राष्ट्रीय खिताब जीता।

उन्होंने प्रथम एशियाई खेलों के दौरान सेना के एथलीटों को प्रशिक्षित किया, जहां उन्होंने चार स्वर्ण, छह रजत और छह कांस्य पदक हासिल किए। इस तरह से ब्रिगेडियर दलीप सिंह ने सेना में खेलों, विशेषकर एथलेटिक्स, के लिए एक मजबूत आधार स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

द्वितीय विश्व युद्ध में हो गए थे लापता

यह 1924 ओलंपिक से पहले की बात है। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए भी लड़ाई लड़ी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत में मेजर के पद पर तैनात थे, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। बाद में उन्हें असम-बर्मा मोर्चे पर भी तैनात किया गया, जहाँ उन्हें भयंकर युद्ध का अनुभव मिला।

second world war
Source: Google

अप्रैल 1944 में हुई लड़ाई के दौरान उनकी यूनिट के कई लोग मारे गए थे। दलीप सिंह की पोती हरिना बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहती हैं, “दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दलीप सिंह बर्मा के मोर्चे पर कुछ महीनों के लिए लापता हो गए थे। पटियाला में उनके परिवार को डर था कि शायद युद्ध के दौरान उनकी मौत हो गई होगी। बमबारी के समय वह अपनी यूनिट के साथ थे।

“उसके पास खड़े एक अधिकारी के सिर पर किसी नुकीली चीज से वार किया गया। दलीप सिंह भी घायल हो गए। गलती से एक रिपोर्ट में कहा गया कि उनकी मौत हो गई है। लेकिन सौभाग्य से उनकी चोट जानलेवा नहीं थी और कुछ महीनों बाद परिवार को उनकी हालत के बारे में खबर मिली।”

बता दें, दलीप सिंह 1951 में भारतीय सेना से ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हुए थे। रिटायरमेंट के बाद वे पटियाला खेलों से बतौर प्रशासक जुड़े रहे। इसके अलावा वे पंजाब ओलंपिक एसोसिएशन के मानद सचिव भी रहे। 1956 में पटियाला में आयोजित राष्ट्रीय खेलों के दौरान उनके योगदान को देखते हुए खेल गांव का नाम उनके नाम पर ‘दलीप नगर’ रखा गया।

और पढ़ें: क्या है Green Revolution जिसने आजादी के बाद भारत को भुखमरी से बचाया, जानें इसमें क्या खामियां रहीं

vickynedrick@gmail.com

vickynedrick@gmail.com https://nedricknews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News

Trending News

Editor's Picks

Ahan Pandey News

Ahan Pandey News: ‘सैयारा’ के बाद बदल गई ज़िंदगी, 28 की उम्र में बॉलीवुड का नया सेंसेशन बने अहान पांडे

Ahan Pandey News: बॉलीवुड में बहुत कम ऐसे चेहरे होते हैं जो आते ही माहौल बदल देते हैं। ज्यादातर कलाकारों को पहचान पाने में सालों लग जाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके लिए पहली ही फिल्म गेमचेंजर साबित होती है। अहान पांडे उन्हीं नामों में शामिल हो चुके हैं। हाल ही...
Who is CR Subramanian

Who is CR Subramanian: 1600 स्टोर, 3500 करोड़ का खेल… और फिर ऐसा मोड़ कि आज जेल में पाई-पाई को तरस रहा है ये कारोबारी

Who is CR Subramanian: देश में ऐसे कई बिजनेसमैन रहे हैं जिन्होंने बिल्कुल जीरो से शुरुआत कर अरबों की दुनिया खड़ी की। लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जहां सफलता जितनी तेजी से मिली, उतनी ही तेजी से सब कुछ हाथ से निकल गया। भारतीय कारोबारी सीआर सुब्रमण्यम (CR Subramanian) की कहानी भी कुछ ऐसी...
Bath in winter

Bath in winter: सर्दियों में नहाने से डर क्यों लगता है? जानिए रोज स्नान की परंपरा कहां से शुरू हुई और कैसे बनी आदत

Bath in winter: उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम आते ही नहाना कई लोगों के लिए सबसे बड़ा टास्क बन जाता है। घना कोहरा, जमा देने वाली ठंड और बर्फ जैसे ठंडे पानी को देखकर अच्छे-अच्छों की हिम्मत जवाब दे जाती है। यही वजह है कि कुछ लोग रोज नहाने से कतराने लगते हैं, तो...
Sikhism in Odisha

Sikhism in Odisha: जगन्नाथ की धरती पर गुरु नानक की विरासत, ओडिशा में सिख समुदाय की अनकही कहानी

Sikhism in Odisha: भारत में सिख समुदाय की पहचान आमतौर पर पंजाब से जोड़कर देखी जाती है, लेकिन देश के पूर्वी हिस्सों, खासकर ओडिशा में सिखों की मौजूदगी का इतिहास उतना ही पुराना, जटिल और दिलचस्प है। यह कहानी केवल धार्मिक प्रवास की नहीं है, बल्कि राजनीति, औपनिवेशिक शासन, व्यापार, औद्योगीकरण और सामाजिक संघर्षों से...
Ambedkar and Christianity

Ambedkar and Christianity:आंबेडकर ने ईसाई धर्म क्यों नहीं अपनाया? धर्मांतरण पर उनके विचार क्या कहते हैं

Ambedkar and Christianity: “मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ था, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।” डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की यह पंक्ति सिर्फ एक व्यक्तिगत घोषणा नहीं थी, बल्कि सदियों से जाति व्यवस्था से दबे समाज के लिए एक चेतावनी और उम्मीद दोनों थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति प्रथा...

Must Read

©2025- All Right Reserved. Designed and Developed by  Marketing Sheds