IVF Cost In India: भारत में मां बनने की इच्छा हर महिला की स्वाभाविक चाहत होती है, लेकिन यही चाहत अब कई मध्यम वर्गीय परिवारों को भारी आर्थिक संकट में धकेल रही है। एक नई मल्टी-सेंटर स्टडी में खुलासा हुआ है कि देश में बढ़ती इनफर्टिलिटी (बांझपन) की दिक्कत और उसका इलाज परिवारों को कर्ज के बोझ तले दबा रहा है। ICMR-NIRRCH के HTA रिसोर्स हब द्वारा किए गए इस अध्ययन का नेतृत्व डॉ. बीना जोशी ने किया है और इसमें सामने आया है कि IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) कराने वाले लगभग 90% जोड़े वित्तीय दबाव से जूझ रहे हैं।
अध्ययन के मुताबिक भारत में 3.9% से 16.8% जोड़े बांझपन की समस्या से प्रभावित हैं, और इनमें से कई परिवार बच्चा पाने की उम्मीद में IVF का सहारा लेते हैं। लेकिन यह प्रक्रिया जितनी भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण है, उतनी ही महंगी भी।
सरकारी और निजी अस्पतालों के खर्च में बड़ा अंतर (IVF Cost In India)
रिपोर्ट में बताया गया कि IVF का खर्च सार्वजनिक अस्पतालों में भी कम नहीं है। सरकारी अस्पतालों में एक IVF चक्र का औसत खर्च करीब 1.1 लाख रुपये तक होता है। निजी अस्पतालों में यही खर्च लगभग 2.30 लाख रुपये तक होता है।
यही नहीं, कई दंपतियों को सफलता मिलने तक दो या तीन चक्र करवाने पड़ते हैं, जिससे खर्च कई गुना बढ़ जाता है। यही वजह है कि आधे से ज्यादा परिवारों को इलाज कराने के लिए उधार लेना पड़ता है या कर्ज लेना पड़ता है।
बीमा कवरेज लगभग ना के बराबर
स्टडी की सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि IVF इलाज को लेकर बीमा कंपनियां भी पर्याप्त सुविधा नहीं देतीं। सिर्फ 5% दंपतियों के पास किसी तरह का IVF बीमा कवरेज था। जिनके पास कवरेज था, उन्हें भी बेहद सीमित आर्थिक मदद मिली। इस स्थिति ने IVF को भारत में बेहद महंगा और अधिकांश परिवारों की पहुंच से बाहर बना दिया है।
PM-JAY योजना में IVF शामिल करने की सिफारिश
अध्ययन में एक IVF चक्र की स्वास्थ्य-प्रणाली लागत 81,332 रुपये आंकी गई है। इसी आधार पर शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) में IVF को शामिल किया जाए और यही राशि रीइम्बर्समेंट पैकेज के रूप में तय की जाए।
हालाँकि कुछ चुनौतियाँ भी बताई गईं जैसे:
- IVF का अधिकतर खर्च OPD सेवाओं में आता है, जो अभी PM-JAY के तहत कवर नहीं होती।
- इसलिए इस योजना को IVF के लिए कारगर बनाने के लिए इसकी संरचना में संशोधन जरूरी होगा।
- विशेषज्ञों ने CGHS और NICE गाइडलाइंस के आधार पर तीन IVF चक्रों तक के कवरेज की सिफारिश की है, क्योंकि एक चक्र में सफलता मिलना हमेशा संभव नहीं होता।
मानसिक और भावनात्मक तनाव भी अत्यधिक
वित्तीय संकट के साथ-साथ दंपतियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी इस प्रक्रिया का गहरा असर पड़ता है। IVF करा रहे दंपतियों की जीवन गुणवत्ता काफी खराब पाई गई। महिलाओं ने तीव्र दर्द, चिंता, तनाव और अवसाद की शिकायत की। पुरुषों में भी चिंता का स्तर काफी ऊँचा पाया गया।
यह तनाव सिर्फ IVF तक सीमित नहीं है। PCOS, एंडोमेट्रियोसिस, ट्यूबल ब्लॉकेज जैसी स्थितियों का इलाज करा रहे लगभग 25% दंपतियों ने भी भारी खर्च और मानसिक दबाव की बात कही।

